खाटू श्याम जी : कलयुग का अवतारी
|| श्री श्याम कथा ||
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खाटू श्याम जी का नाम, आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विशव के भारतीय परिवारों में न केवल जाना-जाता है बल्कि अधिकाधिक परिवार खाटू श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख चुके हैं| आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में खाटू श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द्वारा भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और अपने नाम के अनुरूप ये कलयुग के अवतारी खाटू श्याम जी अपने समस्त भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है | जो भी व्यक्ति राजस्थान के सीकर जिले में रींगस से १७ किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ खाटू श्याम जी में जाता है उसके जीवन के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और प्रभु के दर्शन मात्र से उसके जीवन में खुशियाँ एवं सुख शान्ति का भंडार भरना प्रारम्भ हो जाता है| यह पावन धाम भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ३०० किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग ८० किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ हैं| खाटू श्याम जी की पौराणिक प्रचलित पावानकथा संक्षिप्त में इस प्रकार हैं –
महाभारत काल में पांडवरतन महाबली भीम व भीम के पुत्र वीर घटोत्कच से सभी लोग परिचित हैं| वीर घटोत्कच के शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर, इनका विवाह मणीपुर दैत्य के राजा मूर की पुत्री मौरवी से हुआ | मौरवी को कामकंटका व अहिल्यावती नामों से भी जाना जाता है | वीर घटोत्कच व मौरवी को एक पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया | ये वही वीर बर्बरीक हैं जिन्हें आज हम खाटू के श्याम, कलयुग के आवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश व अन्य अनगिनत नामों से जानते व मानते हैं |
बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्री कृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल का साथी बनना बताया | वीर बर्बरीक ने वापस आकर समस्त अस्त्र-शस्त्र विद्या ज्ञान हासिल कर विजय नामक ब्राह्मण का शिष्य बनकर, उनके यज्ञ को राक्षसों से बचाकर, उनका यज्ञ संपूर्ण कराया | विजय नाम के उस ब्राह्मण का यज्ञ संपूर्ण करवाने पर माँ भगवती व भगवन शिव शंकर बर्बरीक से अति प्रसन्न हुए व उनके सम्मुख प्रकट होकर तीन बाण प्रदान किए जिससे तीनो लोको में विजय प्राप्त की जा सकती थी |
महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सन्मुख युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और तब इनकी माता ने इन्हे युद्ध में भाग लेने की आज्ञा इस वचन के साथ दी की तुम युद्ध में हरने वाले पक्ष का साथ निभाओगे | जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्री कृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो कौरवों की समाप्ति केवल १८ दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता |
वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया | बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की | युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो के पूछने पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था व द्रौपदी चंडी का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी | भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा व कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया |
आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्याम हैं और कलयुग के समस्त प्राणी श्याम जी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं उनके जीवन में खुशिओं और सम्पदाओ की बहार आने लगती है और खाटू श्याम जी को निरंतर भजने से प्राणी सब प्रकार के सुख पाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है |
|| बोलो श्याम प्रभु की जय ||
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