नाथूराम गोडसे का सच

chatजानिये नाथूराम गोडसे का वो सच जो आपसे 65 साल तक छुपाया गया


http://srishtanews.com/2015/08/20
नाथूराम गोडसे एक ऐसा नाम जिसे हम सब ने स्कूलों में पढ़ा, इतिहास में पढ़ा । पर क्या हम उन्हें सही सही जान पाये हैं ? कुछ लोग गोडसे को महात्मा गांधी का क़त्ल करने वाला देशद्रोही बताते हैं । जबकि कुछ अन्य उसे देश के टुकड़े करने वाले गांधी को गोली मारने वाला देशभक्त मानते हैं । कभी आपने सोचा की क्या थी परदे के पीछे की सच्चाई जिसने महात्मा गांधी के ही एक देशभक्त क्रांतिकारी अनुयाई को अपने ही आराध्य पर गोली चलाने को विवश कर दिया ?
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आइये जानते हैं कुछ राज़ की बातें । अकसर जब भी नेता गलत नीतियाँ बनाते हैं, घोटाले करते हैं, उलटे सीधे बयान देते हैं, लोगो की मजबूरी पर ग़लत रिपोर्ट से मजाक बनाते हैं, लोगों और सैनिकों के मरने पर मामूली मुआवज़ा देकर उनका उपहास बनाते हैं और देश में गन्दी राजनीती करते है…..तो हम जैसे आम लोग कहते है की ये नेता मर जाएँ तो देश का भला हो, ये नेता मरते क्यों नहीं, कोई इन्हें मार दे तो प्रसाद चढाऊंगा । कुछ ऐसा ही किया था क्रांतिकारियों की आखरी पीढ़ी ने, गाँधी को मार कर(उस समय लगभग 7-8 क्रन्तिकरी दल इस काम में लगे थे) … और सफलता मिली थी “नाथूराम गोडसे” को । वो आज़ाद देश का क्रन्तिकारी जिसने समझा और समझाया की आज़ादी की लड़ाई अभी ख़तम नहीं हुई बस दुश्मन बदले हैं।
इसलिए ये नेता क्रांतिकारियों से डरते हैं और उन्हें आतंकवादी घोषित करवाने में लगे हुए हैं। कांगेस को इसमे काफी सफलता मिल चुकी है जब उस ने बाकायदा पाठ्यक्रम में ये छपवा दिया की नाथूराम गोडसे ने गांधी को मारा । पर क्यों ?
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ये कभी किसी ने नहीं बताया आपको । नाथूराम गोडसे की अस्थियाँ आज भी विसर्जित नहीं की गयी हैं उनकी देशभक्ति भरी अंतिम इच्छा के कारण … नीचे फोटो में जानिए क्या थी उनकी अंतिम इच्छा ..?
नाथूराम गोडसे जयंती पर पढ़िए … मैंने गाँधी को क्यों मारा ” ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान {इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बनाया जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते } नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा –सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी भी हमे अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. मैं कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है।
The men accused of the assassination of Mahatma Gandhi listen to testimony in a courtroom during their arraignment in New Delhi, India, on May 27, 1948.  Gandhi was shot three times by Nathuram Vinayak Godse, center, on his way to a prayer meeting from Birla House on Jan. 30.  At left is Narayan Dattraya Apte and at right is Vishnu Ramkrishna Karkare.  In second row at center is Madan Lal, accused of exploding a bomb on Jan. 20 outside a Gandhi prayer meeting at Birla House.  (AP Photo)
प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करने, में एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ। तत्कालीन नेता सत्ता के लोभ में अपनी मनमानी कर रहे थे। या तो कांग्रेस, धर्म के आधार पर देश का बँटवारा कर पकिस्तान बनाने की मांग करने वालों की इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे. महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। गाँधी ने नेहरू और जिन्नाह जैसे देश बांटने वाले सत्ता के लोभियों की लालसा को तृप्त करने के लिए अपनी मातृभूमि के साथ विश्वासघात किया.
तत्कालीन नेता अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दम भरा करते थे। जिन्नाह और नेहरू ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर धर्म के आधार पर मातृभूमी का बंटवारा कर अलग पकिस्तान बनाने की मांग को स्वीकार कर लिया । और इस प्रकार महात्मा ने अपनी देशभक्ति का नेहरू और जिन्नाह के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .
धार्मिक तुष्टिकरण की निति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गए और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई.
नेहरू तथा उनकी भीड़ की स्वीकृति के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है परंतु किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला, जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है, और गांधी जी ने इस देशद्रोह पर शांत रहकर, विरोध नहीं किया तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया।
मैं साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए ।
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मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों देशवासियों को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला । इस वक्त देश में ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा मातृभूमी के इस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इसलिये मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया…………..मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्याकन करेंगे।
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों को विसर्जित मत करना। शायद सच ही कहा था गोडसे ने ।
गांधी हो, नेहरू हो, या जिन्नाह हो…. या कोई भी बड़ा नेता हो परंतु मातृभूमी के बंटवारे कराने का हक़ किसी महात्मा को नहीं है । इसलिए गोडसे से यह दर्द नहीं सहा गया कि उनके आराध्य गांधी ने चुप रहकर इस कुकर्म का विरोध क्यों नहीं किया । और इसलिए आज तक नाथूराम गोडसे की अस्थियां विसर्जित नहीं की गयी । निःसंदेह महात्मा गांधी ने देश के लिए बहुत कुछ किया है । परंतु देश का बँटवारा भी वो रोक सकते थे ।
पर उनकी चुप्पी ने बटवारे की आग में घी डालने का काम किया । गोडसे सही थे या गलत ये फैसला हम आपके विवेक पर छोड़ते हैं । किन्तु एक बात आप भी मानेंगी की अन्याय पर आँख मूंदकर गलत काम को बढ़ावा देना भी एक गुनाह है, जो उस वक्त महात्मा गांधी ने किया ।

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