आतंकवाद से गहरा रिस्ता है, नेहरूखानदान का...
कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ
कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ
आयरन लेडी : बाबर की मजार पर फूल चढ़ानेवाली
"आधुनिक आतंकवाद के जनक" गूगल करेंगे तो जवाब मिलेगा "यासिर अराफात".. दुनिया के 103 देशों द्वारा आतंकी घोषित और 8 विमानों के अपहरणकर्ता, 2000 लोगों के हत्यारे आतंकवादी यासिर अराफ़ात को कांग्रेस द्वारा ही प्रथम अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था!इन्दिरा गांधी ने उसे 5 करोड़ रूपए नकद दिए तो राजीव गांधी एक कदम और आगे बढ कर सैर सपाटे के लिए उसे बोइंग 747 गिफ्ट कर दिया था।इंदिरा गांधी ने उसे "नेहरू शान्ति" पुरस्कार से नवाजा और राजीव गांधी ने उसे "इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार" दिया!यासिर अराफात ने जब इज़रायल के ख़िलाफ़ एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में 'फ़िलिस्तीन' की घोषणा की, तो फ़िलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला देश था "धर्मनिरपेक्ष भारत"..फिर भी उसी यासर अराफात ने OIC की मीटिंग में पाकिस्तान का समर्थन करते हुए कहा था कि,.. "कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है और अगर पाकिस्तान कश्मीर को लेने के लिए फौज भेजता है तो हमारी फिलिस्तीन लिबरेशन आर्मी भी उसमे शामिल हो जायेगी *यह थी इस देश की कूटनीति और विदेशनीति कांग्रेस के शासनकाल में* घाव बड़े गहरे हैं.. क्या क्या याद कीजिएगा..!!
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जब इन्दिरा गांधी ने प्रोटोकॉल तोड़ मुग़ल आक्रमणकारी बाबर को दी थी श्रद्धांजलि
NewsGram Desk
Published:11th Jun, 2020
ये बात तब की है जब इन्दिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री हुआ करती थी। वर्ष 1969 में इन्दिरा गांधी काबुल, अफ़ग़ानिस्तान के दौरे पर गयी थी। ये इन्दिरा गांधी का निजी दौरा नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर राजनयिक दौरा था, तो स्वाभाविक है की उनके साथ उनका एक प्रतिनिधि मण्डल भी साथ गया था। उसी प्रतिनिधि मण्डल में मौजूद शक्स नटवर सिंह की लिखी हुई किताब 'वन लाइफ इज़ नॉट इनफ़' के हवाले से हम ये कहानी आपको बता रहे हैं।
नटवर सिंह उस वक़्त एक बड़े आईएफ़एस(इंडियन फ़ॉरेन सर्विस) अधिकारी थे। 1969 में इन्दिरा गांधी सरकार के प्रधानमंत्री सचिवालय में उनकी अहम भूमिका थी। हालांकि 1984 में उन्होंने आईएफ़एस के पद से इस्तीफा दे कर काँग्रेस पार्टी जॉइन कर लिया था। सालों बाद 2004 में वे विदेश मंत्री भी बने। नटवर सिंग उन चुनिन्दा लोगों में से एक हैं जिन्हे उस दौर के नेहरू-गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता था।
अपनी किताब 'वन लाइफ इज़ नॉट इनफ़' में नटवर सिंह 1969 के काबुल दौरे को याद करते हुए लिखते हैं की एक दोपहर प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी अपने खाली वक़्त में कहीं सैर पर जाना चाहती थी। उस सैर पर नटवर सिंह भी उनके साथ मौजूद थे। काबुल से कुछ दूर निकलते ही प्रधानमंत्री इन्दिरा को चंद पेड़ो से घिरी हुई एक टूटी-फूटी इमारत नज़र आई, जिसे देख कर उन्होने साथ चल रहे अफगान के सुरक्षा अधिकारी से पूछ दिया की, ये कौन सी इमारत है। सुरक्षा अधिकारी ने जवाब में बताया की वो 'बाग-ए-बाबर' है अर्थात बाबर का मकबरा।
नटवर सिंह लिखते हैं की प्रोटोकॉल को तोड़ कर इन्दिरा गांधी ने बाबर के मकबरे पर जाने का फैसला ले लिया। हालांकि प्रधानमंत्री के इस निर्णय से सुरक्षा अधिकारियों को आपत्ति थी लेकिन उस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान में मेहमान, भारत की प्रधानमंत्री को मना करना शायद उन्हे उचित नहीं लगा होगा। तो गाड़ी बाग-ए बाबर की ओर मोड़ ली गयी।
नटवर सिंह आगे लिखते हैं की बाबर के मकबरे के सामने इन्दिरा गांधी अपना सर झुकाए खड़ी रही, और उनके बगल मे ही वो खुद भी खड़े रहे। नटवर सिंह ने इन्दिरा गांधी से कहा की ये उनके लिए बहुत ही सम्मान की बात है की उन्हे भारत की महारानी(इन्दिरा गांधी) के साथ बाबर को श्रद्धांजलि देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
नटवर सिंह की किताब 'वन लाइफ इज़ नॉट इनफ़' का 143वां पन्ना।
इतिहास गवाह है की बाबर एक क्रूर मुग़ल आक्रमणकारी था जिसने भारत पर कब्जा करने के बाद हिंदुओं पर निरंतर अत्याचार किया। बाबर के शासन में हिंदुओं के अनगिनत मंदिरों को तोड़ा गया, हिन्दू महिलाओं का बलात्कार किया गया, उनके धर्म परिवर्तन कराए गए।
लेकिन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, अफ़ग़ानिस्तान में सारे प्रोटोकॉल तोड़ कर भी मुग़ल आक्रमणकारी बाबर को श्रद्धांजलि अर्पित करने जाती है, आखिर क्यूँ?
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