मोदी युग के भारत नें ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से , विश्व को चौंकाया - अरविन्द सिसोदिया


ऑपरेशन सिंदूर, विश्व को चौंकाया - अरविन्द सिसोदिया 
आपरेशन सिंदूर, प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार की इच्छा शक्ति और भारतीय सेना की युद्ध क्षमता का विश्व को चौंकाने वाला परिणाम रहा है। इस कार्यवाही में सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि पाकिस्तान में स्थित आतंकी अड्डों की सही लोकेशन भारत को होना, उन्हें किस हथियार से तबाह किया जा सकता है, इसकी सटीक चयन...! पाकिस्तान द्वारा परमाणु युद्ध की बार बार धमकी का भी पूरा पूरा इलाज करना और पाकिस्तान के पलटबार को आसमान में ही विफल कर देना रहा है। जिसके लिए भारत की मोदी सरकार, भारतीय सेना की सम्मिलित कार्यवाही और भारत के ख़ुफ़िया विभाग का अत्यंत क्षमतावान होना, बधाई का पात्र है। कम से कम समय में जरूरी कार्यवाही करना और कार्यवाही का मामूली समय में ही बंद हो जाना उच्चतम सफलता है। वर्तमान दौर में लंबे युद्ध में फंसना सबसे बड़ी विफलता माना जाता है। जिसमें रूस युक्रेन युद्ध फंस गया था। इससे पहले वियतनाम और अफगानिस्तान में अमेरिका फंस चुका था। पाकिस्तान तो तबाह देश है, नंगा देश है,मगर भारत एवं विकसित देश बनने की तरफ बड़ रहा है। भारत का बुरा चाहने वाली ताकतें तो यही चाहता है कि भारत युद्ध में फंस जाये। भारत का एक तरफा जीत के साथ इससे बाहर निकलना भी कुशल रणनीति है।

ऑपरेशन सिंदूर, विश्व को चौंकाया - अरविन्द सिसोदिया 
दुनिया के युद्ध इतिहास में कई सटीक और तेज़ सैन्य अभियान हुए हैं, जैसे कि:-

- ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म (1991) - इराक के खिलाफ अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा चलाया गया एक सैन्य अभियान।
- ऑपरेशन नेप्च्यून स्पीयर (2011) - अमेरिकी नेवी सील द्वारा ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए चलाया गया एक अभियान।
- ऑपरेशन थंडरबोल्ट (1976) - इजरायली कमांडो द्वारा युगांडा में एक विमान में बंधक बनाए गए यात्रियों को बचाने के लिए चलाया गया एक अभियान।

इन अभियानों में सटीकता और गति का महत्वपूर्ण योगदान था, और इन्हें युद्ध इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

- इसी तरह का अभियान था आपरेशन सिंदूर...
आपरेशन सिंदूर - प्रशिक्षित और तेज़ सैन्य अभियान 

विश्व युद्ध के इतिहास में कई विद्रोही और तीव्र सैन्य अभियान चलाए गए, जैसे कि ऑपरेशन सिन्दूर । यह भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ एक सैन्य अभियान था, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी हमलावरों के मूल ठिकानों पर हमला कर ध्वस्त कर दिया है।

इस अभियान में भारतीय सेना ने बहुत ही अच्छी तैयारी के साथ आतंकी अड्डों को खंडहर में तब्दील कर दिया। जिसमें पाकिस्तान के इनसाइड टार्गेट्स पर सटीक हमला किया था, जबकि भारतीय नौसेना ने कराची के दक्षिण से हमले के लिए एक अभियान तय कर रखा था।

ऑपरेशन सिन्दूर को विश्व के सटीक और कम समय में कार्यपूर्ण करने के युद्ध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जायेगा , क्योंकि यह पहली बार था जब भारत ने किसी अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देश पाकिस्तान पर सीधा सैन्य हमला किया और उसके 12/13 हवाई पट्टीयों को तहस नहस कर दिया है 
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ऑपरेशन सिंदूर: -
पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं के लिए एक बड़ा झटका

ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा चलाया गया एक सैन्य अभियान था। 

इस अभियान में पाकिस्तान में नौ उच्च-मूल्य वाले आतंकवादी प्रतिष्ठानों पर समन्वित मिसाइल हमले शामिल थे, जिनमें पाकिस्तान के भीतर चार और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पांच शामिल थे।

चीनी और पाकिस्तानी सैन्य संपत्तियों का विनाश

ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान, भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान की चीन द्वारा आपूर्ति की गई वायु रक्षा प्रणालियों को , एयरबेस और रडार प्रणालियों सहित कई सैन्य लक्ष्यों को नष्ट कर दिया।

भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी हवाई सुरक्षा को पूरी तरह बेअसर करने के लिए ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल और आकाश मिसाइल प्रणाली जैसे स्वदेशी युद्ध सामग्री का इस्तेमाल किया।

इस ऑपरेशन के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के सैन्य बुनियादी ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा, जिसमें लाहौर में चीन द्वारा आपूर्ति की गई LY-80 वायु रक्षा प्रणाली और कराची के मालिर में HQ-9 सतह से हवा में मार करने वाली प्रणाली का विनाश भी शामिल है।
चीन की सैन्य प्रतिष्ठा पर प्रभाव - 
भारतीय हमलों का मुकाबला करने में चीन द्वारा आपूर्ति किये गए सैन्य उपकरणों की विफलता ने चीन की सैन्य प्रौद्योगिकी की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिये हैं।

एचक्यू-9 वायु रक्षा प्रणाली जैसी चीनी प्रणालियों के खराब प्रदर्शन को चीन की सैन्य प्रतिष्ठा के लिए एक बड़ा झटका माना गया है।

पाकिस्तान में चीन द्वारा आपूर्ति की गई सैन्य परिसंपत्तियों के विनाश ने चीन की सैन्य प्रौद्योगिकी की सीमाओं तथा अपने सहयोगियों को प्रभावी सहायता प्रदान करने में उसकी अक्षमता को उजागर कर दिया है।

विश्लेषण और प्रतिक्रियाएँ -
विश्लेषकों ने कहा है कि पाकिस्तान में चीनी सैन्य उपकरणों की विफलता न केवल प्रौद्योगिकी की सीमाओं का प्रतिबिंब है, बल्कि पाकिस्तानी सेना के सिद्धांत और प्रशिक्षण का भी प्रतिबिंब है।

इस ऑपरेशन ने भारत की सूझबूझ और निडर रणनीति और उत्तम युद्ध सामग्री का प्रदर्शन किया है।

चीनी सरकार ने इस ऑपरेशन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नुकसान के महत्व को कम करने का प्रयास किया है तथा अपनी सैन्य प्रौद्योगिकी की क्षमताओं को उजागर करने का प्रयास किया है।

निष्कर्ष -
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के प्रति भारत की सैन्य रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया है, जिसमें पाकिस्तानी सैन्य-आतंकवादी परिसर पर प्रत्यक्ष क्षति उठाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस ऑपरेशन ने भारत की सैन्य क्षमताओं को प्रदर्शित किया है तथा चीन की सैन्य प्रौद्योगिकी की कमजोरीयों को भी उजागर किया है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता में भारत का एक महत्वपूर्ण विकास को दर्शाता है।

भारत के जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को घटित आतंकी घटना के प्रतिशोध के लिए की गईं भारतीय सेना की कार्यवाही का नाम आपरेशन सिंदूर है।

आतंकियों ने भारत के नागरिकों की हत्या धर्म पूछ कर की थी, कपड़े उतरवाकर धर्म की जाँच करके और कलमा पड़वा कर की थी। जिसमें 26 भारतीय और 1 नेपाली नागिरिक की हत्या की गईं थी।

इस आतंकी हमले में जान जानें वालों की पत्नियों का सुहाग उजड़ा था। सनातन धर्म में महिलाएं लाल रंग के सिंदूर को मांग में सुहाग की निशानी के तौर पर भरती हैँ। अर्थात उनका पति जीवित है। इस नरसंहार में हिंदू स्त्रियों के पतियों की हत्या की गईं थी। इसीलिए बदले की सैन्य कार्यवाही का नाम आपरेशन सिंदूर रखा गया।

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की सेना द्वारा 7 मई, 2025 को आतंकवादी हमले के जवाब में शुरू हुआ, जो कि एक सटीक आतंकवाद विरोधी अभियान था और अभी स्थगित है समाप्त नहीं हुआ है। पाकिस्तान किसी भी तरह की कोई गैर वाजिव हरकत करता है तो उसे तुरंत जबाब दिया जावेगा।


इस अभियान में पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिससे यह पता चला कि भारत पाकिस्तान के इलाके में अंदर घुस कर हमला करने में सक्षम है।

ऑपरेशन सिंदूर की प्रमुख उपलब्धियां
यह ऑपरेशन भारत की तकनीकी क्षमता और नैतिक युद्ध के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए, संतुलित बल का सफल प्रदर्शन था।

प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:-

1- आतंकवादी बुनियादी ढांचे का निष्प्रभावीकरण:-
भारत ने कई आतंकी शिविरों / ठिकानों को पूरी तरह नष्ट कर दिया, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष आतंकवादियों सहित सैकड़ों आतंकवादी मारे गए। 

सटीकता और संयम:-
इस ऑपरेशन में राफेल जेट, सुखोई-30एमकेआई, ब्रह्मोस मिसाइल, स्कैल्प क्रूज मिसाइल और हैमर प्रिसिजन-गाइडेड म्यूनिशन जैसे उन्नत रक्षा संसाधनों का इस्तेमाल किया गया। सबसे बड़ी बात इस कार्यवाही में नागरिक बुनियादी ढांचे और पाकिस्तानी सैन्य सुविधाओं को नुकसान नहीं पहुंचा गया था। सटीक जानकारी के आधार पर आतंकी ठिकानों के ह्रदय पर बार कर उन्हें खंडहर में बदल दिया गया।

रणनीतिक परिपूर्णता :- 
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के युद्ध सिद्धांत को नए सिरे से परिभाषित किया, जिसमें आतंकवादी कृत्यों को युद्ध के कृत्यों के बराबर माना गया, तथा त्वरित और आनुपातिक जवाबी कार्रवाई सुनिश्चित की गई।

इसने दुश्मन के ठिकानों पर भारत की बेहतरीन खुफिया जानकारी को प्रदर्शित किया और एक गंभीर, आत्मनिर्भर शक्ति के रूप में इसके उदय को पुष्ट किया।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया :- 
पाकिस्तान ने दोष को हटाने, भ्रम फैलाने और खुद को पीड़ित के रूप में पेश करने के लिए एक समन्वित दुष्प्रचार अभियान चलाया। पाकिस्तान ने अपने आपको विजेता दिखाने की भी पुरजोर कोशिश की। इसमें उसे सबसे ज्यादा मदद भारत की कांग्रेस पार्टी और कुछ अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के गैर जिम्मेदाराना बयानों से मिला।

हालाँकि, विश्व ने भारत की कार्रवाई को व्यापक रूप से आतंकवाद के प्रति न्यायोचित प्रतिक्रिया के रूप में ही देखा गया।
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इस्लामाबाद: भारत और पाकिस्तान के बीच इस महीने की शुरुआत में एक भीषण सैन्य संघर्ष छिड़ गया था, जो चार दिनों बाद एक-दूसरे पर हमले रोके जाने की सहमति के साथ खत्म हुआ था। इस टकराव के दौरान भारत ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर लक्ष्यों पर सटीक हमले करके पाकिस्तानी सेना को बढ़िया सबक सिखाया था। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों की सटीक कार्रवाई और लक्ष्यों की प्राप्ति की अब एक्सपर्ट भी तारीफ कर रहे हैं। 

किंग्स कॉलेज लंदन में सीनियर लेक्चरर वाल्टर कार्ल लैडविग ने भारत के अभियान को बेहद ही सफल बताया है।

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भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए अपना लक्ष्य हासिल किया।

रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर लिखे एक लेख में उन्होंने कहा, भारत ने अपने घोषित उद्येश्यों को काफी हद तक हासिल कर लिया है। हमलों के पहले दिन भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में आतंकवादियों से जुड़े बुनियादी ढांचे की पहचान करने और उसे नष्ट करने की विश्वसनीय क्षमता का प्रदर्शन किया। इसमें सटीक हमले करने के लिए स्टैंड ऑफ हथियारों का इस्तेमाल किया गया।

भारत ने साबित की हवाई क्षमता
अगले दिनों में ऑपरेशन का दायरा बढ़ा, तो भारत ने पाकिस्तान के पास मौजूद चीनी वायु रक्षा नेटवर्क में सेंध लगाते हुए अग्रिम एयरबेसों को निशाना बनाया। इसने यह साबित किया कि भारतीय वायु सेना सुरक्षित परिस्थितियों में लक्ष्यों पर हमला कर सकती है और बाद में भी हमले जारी रख सकती है। इसके साथ ही यह बताता है कि भारत के पास ऐसा राजनीतिक नेतृत्व है जिसने अपने इरादे का स्पष्टता के साथ संकेत दिया।

ऑपरेशनल जोखिम उठाने को तैयार
भारत ने इस अभियान में संयम का शक्तिशाली सबक दिया। भारतीय पायलटों ने सख्त नियमों के तहत काम किया, जिसमें पाकिस्तानी विमानों पर हमला करने या हवाई रक्षा प्रणालियों को दबाने पर रोक थी। इसे केवल आतंकवादियों से जुड़े ढांचे तक सीमित रखा गया, जो बताता है कि भारत ने ऑपरेशनल खतरे को स्वीकार किया था।

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परमाणु खतरे पर महत्वपूर्ण सबक -
वाल्टर ने आगे लिखा कि यह संघर्ष इस बात को भी रेखांकित करता है कि परमाणु हथियारों की छाया में सीमित सैन्य टकराव को नियंत्रित किया जा सकता है। यहां ध्यान देने की बात है कि पाकिस्तान की तरफ से तनाव के बीच लगातार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर धमकी दी गई। ऑपरेशन सिंदूर सशस्त्र बलों का एक संतुलित इस्तेमाल था, जिसका उद्देश्य संकेत देना, आतंकवादी बुनियादी ढांचे को नष्ट करना और क्षमता का प्रदर्शन करना था। इन सभी लक्ष्यों को हासिल करते हुए व्यापक युद्ध की सीमा को पार न करना इसकी उपलब्धि है।
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भारत पर हमला करे चीन...पाकिस्तान के लिए अमेरिका का ये था खतरनाक प्लान, POK और लाहौर पर हुई चूक समझिए
पहलगाम हमले के बाद मीडिया में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। कोई पीओके कब्जाने की बात कर रहा है तो कोई पाकिस्तान पर हमले की मांग कर रहा है। मगर, एक वक्त ऐसा भी था कि जब भारत को ऐसा मौका मिला था, मगर उसने कश्मीर समस्या का स्थायी समाधान खोजने का मौका शिमला में गंवा दिया। सच तो यह है कि शिमला समझौते से भारत और पाकिस्तान के बीच के किसी भी बड़े मुद्दे का समाधान नहीं हुआ। जानते हैं-

हाइलाइट्स

ऐसा क्या हुआ था शिमला समझौते के दौरान
भारत कहां चूक गया, जिसका होता है जिक्र
अमेरिका और चीन की तब भूमिका क्या थी

नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के एक्शन से बौखलाए पाकिस्तान ने शिमला समझौता स्थगित कर दिया है। माना जा रहा है कि इस समझौते को रोकने से खुद पाकिस्तान के लिए बड़ा ही आत्मघाती कदम साबित होगा। दरअसल, 2 जुलाई 1972 को हुआ शिमला समझौता भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक हार माना जाता है। उस वक्त देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी, जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्ठटो ने आयरन लेडी तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को अपनी बातों में उलझा लिया था। उन्होंने हिमाचल की राजधानी शिमला में वही करवाया जो वे चाहते थे। वह चाहतीं तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी POK को हासिल किया जा सकता था। जानते हैं पूरी कहानी।

शिमला समझौता क्या भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक हार थी
रिटायर्ड भारतीय राजनयिक एएस भसीन ने अपनी चर्चित किताब 'Negotiating India's Landmark Agreements' में लिखा है कि भारत दूसरे देशों के साथ समझौते करने में कमजोर रहा है। भारत 1954 का भारत-चीन तिब्बत समझौता, 1971 की भारत-सोवियत मैत्री और सहयोग संधि, 1972 का शिमला समझौता, 1987 का भारत-श्रीलंका समझौता और 2008 का भारत-अमेरिका परमाणु समझौता करने में कमजोर साबित हुआ है। खासकर शिमला समझौता तो बेहद खराब रहा है। उनके अनुसार, शिमला समझौता एक कूटनीतिक हार थी, क्योंकि भारत कश्मीर मुद्दे को हमेशा के लिए नहीं सुलझा पाया. उस समय भारत की स्थिति बहुत मजबूत थी।

93 हजार युद्धबंदी और 5000 वर्ग मील जमीन
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में जंग हुई थी, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की थी। इसके चलते पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश अलग देश बना। उस वक्त भारत के पास लगभग 93000 पाकिस्तानी युद्धबंदी थे। भारत ने पाकिस्तान के लगभग 5000 वर्ग मील क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया था। कई एक्सपर्ट यह मानते हैं कि भारत चाहता तो उस वक्त पीओके और कश्मीर समस्या को पूरी तरह से सुलझा लेता।

हारे हुए पाकिस्तानी लीडर के रूप में शिमला आए भुट्टो
ऐसे हालात में भुट्टो एक हारे हुए देश के नेता के तौर पर शिमला आए थे। उनके पास सौदेबाजी के लिए कुछ नहीं था। भारत के पास सब कुछ था। वह कश्मीर मुद्दे को सबसे अच्छे तरीके से सुलझा सकता था। 1949 की युद्धविराम रेखा (जिसे कराची में स्वीकार किया गया था) को पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता दी जा सकती थी। इस रेखा को बाद में नियंत्रण रेखा (LoC) का नाम दिया गया।

बांग्लादेश के चलते क्या चूक गईं इंदिरा गांधी
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि अगर इंदिरा गांधी ने शिमला में समझदारी से काम लिया होता, तो कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय विवाद बनकर नहीं रहता। ये भी चर्चा में है कि इंदिरा गांधी और उनके सलाहकारों के दिमाग में कश्मीर का मुद्दा ज्यादा नहीं था। दरअसल, इंदिरा की पहली कोशिश थी कि पाकिस्तान से बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में आजाद करवाना था।
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इंदिरा ने बांग्लादेशियों के नरसंहार पर दी थी माफी
कहा जाता है कि पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता 1974 में दी। इसके बदले इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना को बांग्लादेश में किए गए 'नरसंहार' के लिए माफ कर दिया। इससे बांग्लादेशी हताश और निराश हुए। पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में बहुत बर्बरता की थी, जिसके बारे में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में कई रिपोर्टें भी आई थीं।

1965 में क्या हुआ था, जब भारत चूक गया था
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, शिमला समझौते से काफी पहले 1965 का युद्ध भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था। उस दौरान भारत ने पाकिस्तान के काफी बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। युद्ध के बाद भारत चाहता तो उन इलाकों को लेकर पाकिस्तान से बारगेन कर सकता था। यह हमारे लिए बड़ी चूक साबित हुई। कश्मीर मुद्दा ज्यों का त्यों बना रहा।

जब लाहौर पाकिस्तान के हाथ से जाते-जाते रह गया
भारत ने 6 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा को पार कर पश्चिमी मोर्चे पर हमला कर युद्ध की आधिकारिक शुरूवात कर दी। द्वितीय विश्वयुद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेतृत्व में इच्छोगिल नहर के पश्चिमी किनारे पर भ्ळा पाकिस्तान के बड़े हमले का सामना किया। इच्छोगिल नहर भारत और पाकिस्तान की वास्तविक सीमा थी। इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी हमला हुआ। हालांकि, वह किसी तरह वहां से बच निकले। इस लड़ाई में पाकिस्तान के हाथ से लाहौर जाते-जाते रह गया था। भारत चाहता तो उस वक्त लाहौर पर आसानी से कब्जा कर लेता और पाकिस्तान आज लाहौर छुड़ाने के लिए लड़ रहा होता।

अमेरिका क्यों लाहौर से निकलवाना चाहता था
भारत ने जवाबी कार्रवाई में बरकी गांव के समीप नहर को पार करने में सफलता हासिल कर ली। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अडडे पर हमला करने की सीमा में पहुंच गई। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की। इसी बीच पाकिस्तान ने लाहौर पर दबाव को कम करने के लिये खेमकरण पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया बदले में भारत ने बेदियां और उसके आस पास के गावों पर हमला कर दिया।

आधे घंटे में सरेंडर करो, वर्ना गोली मार देंगे
डिफेंस एनालिस्ट के अनुसार, भारत को खुफिया जानकारी मिल गई थी कि अमेरिका का जंगी जहाज बंगाल की खाड़ी में घुस चुका था। 16 सितंबर, 1971 को इसे चटगांव बंदरगाह पर लंगर डालना था। उस जंगी बेड़े में अमेरिकी सैनिक छिपे थे। भारत को जल्दी थी कि ये युद्ध जल्दी खत्म हो जाए। यही वजह थी कि लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब ने पाकिस्तान के जनरल नियाजी को कहा था कि आधे घंटे में सरेंडर ट्रीटी पर साइन करो नहीं तो गोली मार दी जाएगी।

भारत पर हमले के लिए उकसा रहा था अमेरिका
सोढ़ी के अनुसार, भारत को उस वक्त यह भी डर था कि गर्मियां आ जाएंगी तो चीन भी दूसरे मोर्चे पर परेशान करना शुरू कर देगा, तब दो मोर्चें पर भारत के लिए लड़ना मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, अमेरिका बार-बार चीन को लगातार उकसा रहा है। वह चीन से भारत पर हमले करने के लिए उकसा रहा था। वह कह रहा था कि भारत पर हमला करो-भारत पर हमला करो। मगर, चीन इसलिए हमला नहीं कर पा रहा था कि एक तो उस वक्त पहाड़ों पर बर्फ थी। दूसरा-चीन तब आज के मुकाबले सीमा से बहुत दूर था। वहां तक पहुंचना उसके लिए बहुत मुश्किल था।

जब भुट्टो 93 हजार सैनिकों को छुड़ाकर बन गए हीरो
दूसरी ओर, भुट्टो ने वह सब कुछ हासिल कर लिया जिसके लिए वे आए थे। उन्होंने 93,000 पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों को छुड़ाकर खुद को हीरो बना लिया। ये सैनिक युद्ध के बाद भारत में युद्धबंदी बन गए थे। समझौते के माध्यम से उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि भारतीय सैनिक पाकिस्तान के 5000 वर्ग मील क्षेत्र से हट जाएं, जिस पर उन्होंने युद्ध में कब्जा कर लिया था। भुट्टो ने सैन्य हार के जबड़े से कूटनीतिक जीत छीन ली।

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अमेरिका पर भड़के पाकिस्तान के रक्षा मंत्री
ख्वाजा आसिफ का ये वायरल वीडियो कब का है, इसके बारे में फिलहाल हमारे पास जानकारी नहीं है। इस वीडियो में तारीख नहीं है। इसमें वो कह रहा है कि "दुनिया में हर जगह...अमेरिकी युद्ध छेड़ रहे हैं । शायद पिछले 100 सालों से। उन्होंने 260 युद्ध लड़े हैं, चीन ने 3 लड़े हैं। वे (अमेरिका) अभी भी पैसा कमा रहे हैं...सैन्य उद्योग उनके सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा है...इसलिए उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ता है...वे देशों को लड़वाते हैं...कभी यहां, कभी वहां...जब देश लड़ते हैं तो वे कमाते हैं। उन्होंने फिलिस्तीन, सीरिया, मिस्र और लीबिया में ऐसा किया है...ये अमीर देश थे...वे अब युद्ध के कारण दिवालिया हो चुके हैं और अमेरिका ने कमाई की है।"

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