सदगुरु SadGuru
सदगुरु की पहचान
संसार सदगुरु और गुरु में भेद नहीं जानता । गुरु उसे कहते हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए । प्रथम गुरु माता है जो शैशव का पालन करती है । द्वितीय गुरु पिता हैं । तद्पश्चात् आचार्य को गुरु माना गया है, जो अपने शिष्य को ज्ञान का प्रकाश देकर उन्नति का मार्ग दिखाता है । फिर सदगुरु किसे कहते हैं ?
सदगुरु उन्हें कहते हैं जो धर्मग्रन्थों का सार निकालकर भक्ति का मार्ग सुनिश्चित करें तथा निज स्वरूप और सच्चिदानन्द परमात्मा का ज्ञान देकर मोक्षमार्गी बनाये । सदगुरु की महिमा के विषय में ठीक ही कहा गया है-
यह तो बात प्रगट है साधो, शिव सुकमुनि श्रुति गाई । बिना सदगुरु कोई पार ना पावे, कोट करे चतुराई ।।
गुरु कंचन गुरु पारस , गुरु चन्दन परमान । तुम सदगुरु दीपक भए , कियो जो आप समान ।।
अर्थात् गुरु शुद्ध कंचन के समान उज्जवल चरित्र वाला या पारस मणि की भांति लोहे समान शिष्य को स्वर्ण समान परमार्थी बनाने वाला होता है । या फिर वह चन्दन के समान चारों ओर अपने गुणों की सुगन्धि फैलाता है । परन्तु सदगुरु तो दीपक के समान होते हैं, जो अपनी शरण में आने वाले को भी अपने सम��न बना देते हैं ।
परमात्मा की प्राप्ति का पहला चरण है सदगुरु को ढूढना । श्री प्राणनाथ जी ने कहा है -
खोज बड़ी संसार रे तुम खोजो रे साधो, खोज बड़ी संसार ।
खोजत खोजत सतगुर पाइए, सतगुर संग करतार ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन २६ध्१)
अर्थात् हे सन्त जनों ! इस दुनिया में अनेकों ने परब्रह्म को पाने के लिए सदगुरु की बड़ी खोज की । आप भी उस सदगुरु की खोज कीजिए । खोजते खोजते जब सदगुरु से मिलन हो जाएगा, तब परब्रह्म भी अवश्य मिल जाएँगे ।
सदगुरु किसे माना जाये ? उनकी पहचान कैसे हो ? इस विषय पर अक्षरातीत श्री प्राणनाथ जी कहते हैं -
सास्त्र पुरान भेख पंथ खोजो , इन पैंडों में पाइए नाहीं ।
सतगुर न्यारा रहत सकल थें , कोई एक कुली में काँही ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन ५ध्७)
शास्त्रों और पुराणों के विद्वानों, तरह-तरह की वेशभूषा धारण करने वाले महात्माओं और विभिन्न पन्थों में तुम भले ही खोजते रहो, लेकिन सदगुरु का स्वरूप नहीं मिलेगा । सदगुरु का स्वरूप इन सबसे अलग ही होता है । वास्तविक सदगुरु तो इस कलयुग में कहीं एक ही होगा ।
जाको तुम सतगुर कर सेवो , ताको इतनी पूछो खबर ।
ए संसार छोड़ चलेंगे आपन , तब कहां है अपनो घर ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन १०ध्३)
जिसे आप सदगुरु मानकर सेवा करते हैं, उनसे जाकर केवल इतनी सी बात पूछिए कि महाप्रलय या शरीर छोड़ने के बाद हमारा मूल घर कहाँ होगा ।
सास्त्र ले चले सतगुर सोई , बानी सकल को एक अर्थ होई ।
सब सयानों की एक मत पाई , पर अजान देखे रे जुदाई ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन ३ध्४)
सदगुरु वही है जो धर्म ग्रन्थों के द्वारा वास्तविक सत्य को प्रकट करे । सभी धर्मग्रन्थों का मूल आशय एक ही होता है । सभी मनीषियों के कथनों में एकरूपता होती है, लेकिन अज्ञानी लोग अलग अलग समझते हैं ।
वेद, उपनिषद, दर्शन, सन्त वाणी, कुरान तथा बाइबल इत्यादि में एक ही परब्रह्म को अनेक प्रकार से बताया गया है । छः शास्त्रों के रचनाकारों ने सृष्टि बनने के छः कारणों की अलग-अलग व्याख्या की है । उसमें तत्वतः कोई भेद नहीं है, किन्तु अल्पज्ञ लोग भेद मानकर लड़ते रहते हैं । सत्यदृष्टा मनीषियों का कथन सभी कालों में समान ही होता है ।
सतगुर साधो वाको कहिए, जो अगम की देवे गम ।
हद बेहद सबे समझावे, भाने मन को भरम ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन ४ध्१२)
हे सन्तजनों ! सदगुरु केवल वही हैं जो उस परब्रह्म का साक्षात्कार कराये, जिसे आज तक कोई मन, बुद्धि से प्राप्त नहीं कर सका है । वह ही हद (नश्वर ब्रह्माण्ड) तथा बेहद (अखण्ड भूमि) का ज्ञान दे सकता है और मन के सभी संशयों को समाप्त कर सकता है ।
सतगुर सोई जो आप चिन्हावे , माया धनी और घर ।
सब चीन्ह परे आखिर की , ज्यों भूलिए नहीं अवसर ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन १४ध्११)
सदगुरु वही है, जो आत्म स्वरूप की पहचान कराये तथा माया (नश्वर जगत), धाम धनी और निजधर का बोध कराये । ऐसे सदगुरु की कृपा से ही आखिरत (महाप्रलय) की पहचान होती है, जिससे जीव परब्रह्म के चरणों में जाकर अखण्ड मुक्ति का अवसर प्राप्त करता है।
---------
सदगुरु महिमा
श्री रामचरितमानस में आता है :-
गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई।।
भले ही कोई भगवान शंकर या ब्रह्मा जी के समान ही क्यों न हो किन्तु गुरू के बिना भवसागर नहीं तर सकता। सदगुरू का अर्थ शिक्षक या आचार्य नहीं है। शिक्षक अथवा आचार्य हमें थोड़ा बहुत एहिक ज्ञान देते हैं लेकिन सदगुरू तो हमें निजस्वरूप का ज्ञान दे देते हैं। जिस ज्ञान की प्राप्ति से मोह पैदा न हो, दुःख का प्रभाव न पड़े एवं परब्रह्म की प्राप्ति हो जाय । ऐसा ज्ञान गुरूकृपा से ही मिलता है। उसे प्राप्त करने की भूख जगानी चाहिए।
इसीलिए कहा गया है :-
गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसको लागूँ पाय।
बलिहारी गुरू आपकी, जो गोविंद दियो मिलाय।।
गुरू और सदगुरू में भी बड़ा अंतर है। सदगुरू अर्थात् जिनके दर्शन और सान्निध्य मात्र से हमें भूले हुए शिवस्वरूप परमात्मा की याद आ जाय, जिनकी आँखों में हमें करूणा, प्रेम एवं निश्चिंतता छलकती दिखे, जिनकी वाणी हमारे हृदय में उतर जाय, जिनकी उपस्थिति में हमारा जीवत्व मिटने लगे और हमारे भीतर सोई हुई विराट संभावना जग उठे, जिनकी शरण में जाकर हम अपना अहं मिटाने को तैयार हो जायें, ऐसे सदगुरू हममें हिम्मत और साहस भर देते हैं, आत्मविश्वास जगा देते हैं और फिर मार्ग बताते हैं जिससे हम उस मार्ग पर चलने में सफल हो जायें, अंतर्मुख होकर अनंत की यात्रा करने चल पड़ें और शाश्वत शांति के, परम निर्भयता के मालिक बन जायें।
जिन सदगुरू मिल जाय, तिन भगवान मिलो न मिलो।
जिन सदगरु की पूजा कियो, तिन औरों की पूजा कियो न कियो।
जिन सदगुरू की सेवा कियो, तिन तिरथ-व्रत कियो न कियो।
जिन सदगुरू को प्यार कियो, तिन प्रभु को !!
“ जिसके पास गुरूकृपा रूपी धन है वह सम्राटों का सम्राट है। जो गुरूदेव की छत्रछाया के नीचे आ गये हैं, उनके जीवन चमक उठते हैं। गुरूदेव ऐसे साथी हैं जो शिष्य के आत्मज्ञान के पथ पर आनेवाली तमाम बाधाओं को काट-छाँट कर उसे ऐसे पद पर पहुँचा देते हैं जहाँ पहुँचकर फिर वह विचलित नहीं होता।
गुरू ज्ञान देते हैं, प्रसन्नता देते हैं.... साहस, सुख, बल और जीवन की दिशा देते हैं। हारे हुए को हिम्मत से भर दें, हताश में आशा-उत्साह का संचार कर दें, मनमुख को मधुर मुस्कान से मुदित बना दें, उलझे हुए को सुलझा दें एवं जन्म-मरण के चक्कर में फँसे हुए मानव को मुक्ति का अनुभव करा दें वे ही सच्चे सदगुरू हैं।
सदगुरू की वाणी अमृत है। उनकी पूजा ईश्वर की पूजा है। उनके आशीर्वाद में वह ताकत होती है कि.....
जो बात दवा भी न कर सके, वह बात दुआ से होती है।
मानव तो आते वक्त भी रोता है, जाते वक्त भी रोता है।
जब रोने का वक्त नहीं होता तब भी रोता रहता है।
एक सदगुरू में ही वह ताकत है कि, जो जन्म-मरण के मूल अज्ञान को काटकर मनुष्य को रोने से बचा सकते हैं।
वे ही गुरू हैं जो आसूदा-ए-मंजिल कर दें।
वरना रास्ता तो हर शख्श बता देता है।।
उँगली पकड़कर, कदम-से-कदम मिलाकर, अंधकारमय गलियों से बाहर निकालकर लक्ष्य तक पहुँचाने वाले सदगुरू ही होते हैं। “
ब्रह्माजी जैसा सृष्टि सर्जन का सामर्थ्य हो, शंकरजी जैसा प्रलय करने का सामर्थ्य हो फिर भी जब तक सदगुरु तत्त्व की कृपा नहीं होती तब तक आवरण भंग नहीं होता, आत्म-साक्षात्कार नहीं होता। दिल में छुपा हुआ दिलबर करोड़ों युगों से है, अभी भी है फिर भी दिखता नहीं।
आदमी अपने को आँखवाला समझता है। वास्तव में वह आँख है ही नहीं। बाहर की आँख चर्म की आँख है। वह तुम्हारी आँख नहीं है, तुम्हारे शरीर की आँख है। तुम्हारी आँख अगर एक बार खुल जाय तो सुख ब्रह्माजी को मिलता है, जिसमें भगवान शिव रमण करते हैं, जिसमें आदि नारायण भगवान विष्णु विश्राम पाते हैं, जिसमें प्रतिष्ठित रहकर भगवान श्रीकृष्ण लीला करते हैं, जिसमें ब्रह्मवेत्ता सत्पुरुष मस्त रहते हैं वह परम सुख - स्वरूप आत्मा - परमात्मा तुम्हारा अपना आपा है।
आदमी को अपने उस दिव्य स्वरूप का पता नहीं और कहता रहता हैः- “मैं सब जानता हूँ। “
अरे नादान ! चाहे सारी दुनिया की जानकारी इकट्ठी कर लो लेकिन अपने आपको नहीं जानते तो क्या खाक जानते हो ? आत्मवेत्ता महापुरुषों के पास बैठकर अपने आपको जानने के लिए तत्पर बनो। अपने ज्ञानचक्षु खुलवाओ। तब पता चलेगा कि वास्तव में तुम कौन हो। तभी तुम्हारे लिए भवनिधि तरना संभव होगा।
जब कामिल मुर्शिद मिलते हैं, तो बात खुदा से होती है।।
हरि
ये तन ना साथ देगा, ये धन ना साथ देगा ।
सदगुरु बिन जहाँ में, कोई ना साथ देगा ॥
धन माल खूब जोड़ा, ऊँचा महल बनाया ।
दिया दान ना कभी भी, ना पुण्य ही कमाया ।
ना तो कभी किसी का, दुःख दर्द ही मिटाया ।
सब छोड़ कर चला तू, कुछ भी ना काम आया ।
ये कोठे, महल और बंगले, वैभव ना साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.....................
बस खेल में बिताया, बचपन वो प्यारा प्यारा ।
यौवन के मद में खोकर, सारा समय गंवाया ।
आया बुढ़ापा दिखता, कोई नहीं सहारा ।
आँखों से बह रही है, दिन रात अश्रु धारा ।
जब काल सिर पर आये, कोई ना साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.....................
ना गोरा तन रहेगा, ना रूप ही रहेगा ।
तेरी जवानी का मद भी, कभी न रह सकेगा ।
जिस तन को तू सजाता, वो धूल में मिलेगा ।
सब देखते रहेंगे, अग्नि में वो जलेगा ।
ना रूप साथ देगा, ना रंग साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.....................
यौवन में तुझमे मद की, चाई रही बदरिया ।
ऐसा हुआ दीवाना, सूझी नहीं डगरिया ।
हरि का भजन किया न, यूँ ही गयी उमरिया ।
अब लाद चला सर पर, है पाप की गठरिया ।
पहुंचे जब वहां पर, कोई न साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.....................
विषयों में क्यों तू भटका, गुरुद्वार क्यूँ ना आया ।
क्षणिक सुखों में फंसकर, आयुष्य क्यूँ गंवाया ।
अनमोल है ये जीवन भोगों में क्यूँ बिताया ।
पाया है जो इस जग में, वो कब तक साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.....................
मतलब के सारे नाते, मात पिता सूत भ्राता ।
ममता में फँस के इनकी, क्या हाथ तेरे आता ।
मृत्यु जो सर पे आये, कोई न साथ जाता ।
सच जान ले तू प्राणी, गुरु ही सबके विधाता ।
जब साथ सबका छूटे, गुरु नाम साथ देगा । सदगुरु बिन जहाँ में.......
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें