बालाकृष्णन-गोखले पत्र : दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए..!
मामला इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है कि यह दो सर्वोच्च न्यायाधिसों के बीच का है जो सामान्यतः झूठ नहीं बोल सकते , जिन्हें हम आदर से न्यायमूर्ति कहते हैं , इसका दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए ! ज्ञातव्य रहे कि एक आपराधिक मामले को केन्द्रीय मंत्री रहते ए राजा ने प्रभावित करने की कोशिश कि थी और यह मामला न्यायपालिका को परोक्ष प्रभावित करने से जुड़ा है ..!
मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीस रहे तथा वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एच एल गोखले ने कहा है कि केन्द्रीय संचार मंत्री ए.राजा के द्वारा न्यायाधीस एस रघुपति के द्वारा उन्हें भेजा गये पत्र कि जानकारी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रमुख न्यायाधीस जी बालाकृष्णन को ५ जुलाई २००९ को भेजी थी और उस पत्रकी प्राप्तीकी जानकारी ८ जुलाई २००९ को मिल गई थी ! इसमें उपरोक्त मंत्री का नाम था ! तत्कालीन मुख्य न्यायाधीस के जी बालाकृष्णन जो सेवा निवृत हो चुके हैं एवं मानव अधिकार अयोग़ के अध्यक्ष हैं ने इससे इंकार किया , उनके सर्थन में विधि मंत्री ने भी यही दोहराया..! और यह भी स्पष्ट है कि सारा मामला पूरी तरह उजागर था ..! फिर इसे इतने हलके में क्यों लिया गया !?
सच कौन बोल रहा है इसका एक ही उपाय है कि १. उन पत्रों को सार्वजानिक कर दिया जाये ..? बयानों का क्या मतलब ?
जबाबदेही कि बात यह है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीस के जी बालाकृष्णन और विधि मंत्रालय ने इतने गंभीर मामले पर और अधिक जानकारी क्यों नहीं मांगी! प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं की ?
तीसरी बात चलो अब क्या कर रहे हो ...??
मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीस रहे तथा वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एच एल गोखले ने कहा है कि केन्द्रीय संचार मंत्री ए.राजा के द्वारा न्यायाधीस एस रघुपति के द्वारा उन्हें भेजा गये पत्र कि जानकारी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रमुख न्यायाधीस जी बालाकृष्णन को ५ जुलाई २००९ को भेजी थी और उस पत्रकी प्राप्तीकी जानकारी ८ जुलाई २००९ को मिल गई थी ! इसमें उपरोक्त मंत्री का नाम था ! तत्कालीन मुख्य न्यायाधीस के जी बालाकृष्णन जो सेवा निवृत हो चुके हैं एवं मानव अधिकार अयोग़ के अध्यक्ष हैं ने इससे इंकार किया , उनके सर्थन में विधि मंत्री ने भी यही दोहराया..! और यह भी स्पष्ट है कि सारा मामला पूरी तरह उजागर था ..! फिर इसे इतने हलके में क्यों लिया गया !?
सच कौन बोल रहा है इसका एक ही उपाय है कि १. उन पत्रों को सार्वजानिक कर दिया जाये ..? बयानों का क्या मतलब ?
जबाबदेही कि बात यह है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीस के जी बालाकृष्णन और विधि मंत्रालय ने इतने गंभीर मामले पर और अधिक जानकारी क्यों नहीं मांगी! प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं की ?
तीसरी बात चलो अब क्या कर रहे हो ...??
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