१ जनवरी : यह तो अंगेजों का कामकाजी साल है



भारतीय नव वर्ष ही ईश्वरीय है .......
- अरविन्द सीसोदिया 
सामान्यतः सभी धर्मो और पंथों में , मानव आचरण  के दो पहलू  सामनें आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं ..! जो कुछ ३१ दिसम्बर  की रात  और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना , अश्लील नाचगाना ,  सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना  ! होटल , रेस्तरां   और पब में जा कर मौज  मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है | इसलिए सभ्यातानुकूल यह नया साल नहीं है इसमें सृष्टि जानी या नक्षत्रिय सरोकार भी नहीं है | बल्की यह सामान्यतः  दिन - प्रतिदिन के  क्रिया कलापों  को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में  निर्मित सत्रारंभ है ! इसकी तुलना कभी भी भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्यों कि वह ईश्वरीय है , सृष्टिजन्य है ,  नक्षत्रिय  है  इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन , कार्यशुभारंभ महूर्त , मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता है |
भारतीय काल गणना का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से होता है , यह सामान्यतः मार्च महीने  में आती है , हिन्दू महीनों के अनुसार चैत्र मॉस की एकम से  प्रारंभ होता है | इस दिन जो स्थिति पृथ्वी , सूर्य और आकाशगंगा में बनती है वह खगोलीय और ब्रहमांड के ग्रहों और नक्षत्रों के मिलन से होने के कारण वैज्ञानिक स्वरूप में भी बहुत ही शुद्धता लिया होती है | इसी कारण इसे हिन्दू समाज का विश्वाश प्राप्त है जबकी अंग्रेजी साल को महज तनखाह लेने और लें दें के हिसाब तक ही सीमित रखा  जाता है |
ईश्वरीय सत्य... 
- यह समया स्थिति पृथ्वी पर इस तरह  की होती है कि हर और हर्ष तथा उल्लास का वातावरण होता है | वृक्ष अपने पुराने पत्तों को छोड़ कर नई कोंपलों के साथ नया प्रारंभा  कर रहे होते हैं | इसी तरह से समुद्र से नये कालक्रम के लिए वाष्प बनाना प्रारंभ होती है जो आगे चल कर वर्षा के रूपमें नई फसलों की क्रमिक को क्रमिक करती है |
वैज्ञानिक सत्य ...
- भागवत पुराण और अन्य हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रम्हा जी के द्वारा की गई  सृष्टि  रचना का पहला दिन वर्ष प्रतिपदा है ! यह अवसर १ अरब ९७ करोड़ , ३९ लाख , ४९ हजार और १०९ वर्ष पूर्व आया था तथा वर्शनुक्र्म के रूप में प्रति वर्ष उपस्थित होता है | ....और आश्चर्य यह है कि वैज्ञानिक भी इसी अवधी के आस पास खड़े हैं !!
एतिहासिक तथ्य...
भारत में समय पर विशेसा यादगार को लेकर कई बार संवत प्रारंभ ही और लुप्त हुए ..! पाश्चात्य जगत में भी इस के जन से पूर्व कोई और संवत चलता होगा ....क्यों कि वहां के लोग भी कमसे कम ६००० वर्ष पूर्व की सभ्यता मानते हैं .., हालांकी यह अब वैज्ञानिक तथ्यों से गलत साबित हो गया है | सभ्यताएं तो करोड़ों और अरवों वर्ष पूर्व से हैं समयानुसार परिवर्तन होते रहे हैं , इसकी नियामक प्रकृति की परिवर्तन शीलता रही है ! 
वर्ष प्रतिपदा ... ( चैत्र शुक्ल एकम )
- विक्रमी संवत इसीदिन  से प्रारंभ  होता है ! १ जनवरी २०११ को विक्रम संवत २०६७ है | कलयुग के प्रारंभ को घोतक युगाब्द भी इसीदिन से प्रारंभ  होता है ! १ जनवरी २०११ को युगाब्द संवत ५११२  है | 
- श्री रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक  दिवस 
- नवरात्र की स्थापना का पहला दिन 
- सिख परंपरा के द्वितीय  गुरु अंगदेव के प्रगटोत्सव  ! 
- सिन्धी संत झूलेलाल  का जम दिवस 
- राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डा केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस
- आर्य समाज का स्थापना दिवस 
- शलिवाहन संवत का प्रारंभ दिवस ......
भारतीय नववर्ष में जो सृष्टि गत  , प्रकृति गत और नक्षत्रिय तथ्यों के साथ साथ वैज्ञानिकता पर पूर्ण है , उसकी एतिहासिक और सांस्क्रतिक स्वरूप में जो मान्यता है वह अंग्रेजी नव वर्ष को कहीं भी प्राप्त नहीं है | इस लिए भारत वासियों को अपने सात्विक और धर्म पूर्ण नव वर्ष ही मानना चाहिए ...! अंग्रेजी नव वर्ष की नशाखोरी और अश्लीलता से बचाना चाहिए !      


   

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