सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह आयु गतिरोध दुर्भावना ग्रस्त - उच्चतम न्यायालय


- अरविन्द सिसोदिया 
             जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि स्कूल प्रमाण-पत्र के आधार पर १० मई, १९५१ है और यही सबसे पुराना साक्ष्य है , इसलिए इसे झुठलाया नहीं जा सकता । मगर सरकार किन निहित स्वार्थों के चलते इसे झुठलाना चाहती है यह समझ से परे है ? किन्तु यह भी कहा गया है की आदर्श सोसायटी घोटाले में सरकार की मदद नहीं करने की सजा दी जा रही है ...! मैं नहीं जनता की सच क्या - झूठ क्या ...मगर सरकार की हठधर्मिता संदेह जरुर पैदा कर रही है । इस लिए मिडिया को यह पता लगाना चाहिए की जनरल और आदर्श सोसायटी की जाँच में कोई हित निहित तो आड़े नहीं आ रहा हे..
            सेनाध्यक्ष की जन्मतिथि का यह विवाद सेना रिकार्ड में जनरल की दर्ज दो अलग-अलग जन्मतिथियों के कारण उत्पन्न हुआ  है।सरकारी कर्मचारियों के गैर जिम्मेवाराना व्यव्हार के कर्ण अक्सर इस तरह की त्रुटियाँ हो जातीं हैं , उनकी पुराने साक्ष्यों से पुष्ठी का सुधर लिया जाता है , मगर यहाँ सरकार सुधारना ही नहीं चाहती ! यही वह बात है जो सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है ! सेना की सैन्य सचिव [एमएस] शाखा में उनकी आयु १०  मई, १९५०  दर्ज है जबकि एडजुडेंट जनरल [एजी] शाखा में १०  मई, १९५१  जन्मतिथि लिखी है। केंद्र सरकार का  रक्षा मंत्रालय जनरल की जन्मतिथि १९५०  मान रहा है। जिसके मुताबिक वे इसी वर्ष १०  मई २०१२ को सेवानिवृत हो जाएंगे। वीके सिंह का कहना है कि उनकी वास्तविक जन्मतिथि १०  मई १९५१  है। यही तिथि उनके स्कूल सार्टिफिकेट एवं अन्य दस्तावेजों में दर्ज है। अत: इसे ही सही माना जाए।
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सोमवार, 23 जनवरी 2012
जनरल वीके सिंह उम्र विवाद
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थलसेना प्रमुख जनरल वीके सिंह का जन्म 1950 में नहीं बल्कि 1951 में हुआ। हालांकि सरकार जनरल का जन्म 1950 में होने का दुष्प्रचार कर रही है। जो दस्तावेज सामने आए हैं। वो साबित करते हैं कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में मौजूद दस्तावेजों में यही तारीख दर्ज है।
यूपीए सरकार चाहती है कि जनता इस पर विश्वास करे कि जनरल सिंह अपने जन्म का वर्ष 'बदलवाना' चाहते हैं, क्योंकि वह अपना कार्यकाल एक साल बढ़वाना चाहते हैं। जबकि सच इसके उलट है। एनडीए में अपने शुरुआती दौर में जनरल सिंह ने कैडेट के तौर पर अपनी कहानी लिखी थी। इसका पहला वाक्य है, 'मैं 10 मई 1951 को पैदा हुआ।'
सरकार ने उनकी जन्म तिथि 10 मई 1950 मानी है। वहीं, सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर अपनी जन्मतिथि 10 मई 1951 होने का दावा किया है। इससे पहले जनरल सिंह के तत्कालीन अंग्रेजी शिक्षक बीएस भटनागर ने भी कहा था कि उनकी गलती से एनडीए का आवेदन भरते समय सिंह की जन्म तारीख 1950 दर्ज हो गई थी। भटनागर ने ही यह फार्म भरा था।
क्या कहता है रिकॉर्ड
-जनरल सिंह के पिता मेजर जगत सिंह की बटालियन 14 राजपूत रेजिमेंट्स ने तीन अगस्त 1965 को प्रमाणित किया है कि सेना प्रमुख का जन्म 10 मई 1951 को हुआ था। सेना की आधिकारिक रिकॉर्ड कीपर एडजुटेंट जनरल ने भी इसी तारीख का उल्लेख किया है।
- राजस्थान सेकंडरी बोर्ड के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट में भी जन्म तारीख 10 मई 1951 है।
- एयरफोर्स सिलेक्शन बोर्ड में जनरल सिंह ने 1965 में जब पहली बार आवेदन किया था उसके दस्तावेज में भी जन्म की तारीख 10 मई 1951 है।
-जनरल सिंह के स्कूल के स्कॉलर रजिस्टर में भी जन्म की तारीख 1951 बताई गई है।
कानून मंत्रालय में रक्षा मामलों के कानूनी सलाहकार ने साफ कहा है कि स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट उम्र को साबित करने का मजबूत साक्ष्य है।
आखिर सरकार एक राष्ट्रभक्त जनरल को जालसाझ साबित करने में क्यों जुटी है.. ये समझना जरा भी मुश्किल नहीं है। क्योंकि ये भ्रष्टचार एक भी ईमानदार व्यक्ति को किसी भी पद पर देख नहीं सकती। क्योंकि एक-एक ईमानदार व्यक्ति उसकी नींद हराम करने के लिए काफी है।

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जनरल के उम्र विवाद पर सरकार से ही सवाल
Fri, 03 Feb २०१२
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नई दिल्ली। ऐसा लगता है कि सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने आयु गतिरोध पर पहले दौर की कानूनी लड़ाई जीत ली है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जिस तरीके से उनकी वैधानिक शिकायत को खारिज किया गया है वह दुर्भावना से ग्रस्त लगता है।
न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई 10 फरवरी को तय करते हुए यह जानना चाहा कि क्या सरकार 30 दिसंबर 2011 के अपने आदेश का वापस लेना चाहेगी। रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने 30 दिसंबर को एक आदेश जारी किया था जिसमें जनरल सिंह की उस वैधानिक शिकायत को खारिज कर दिया गया था। इसमें कहा गया था कि सेना के रिकार्ड में उनकी जन्मतिथि को 10 मई 1950 नहीं बल्कि 10 मई 1951 माना जाए।
न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की पीठ ने सरकार पर प्रश्न उठाए। पीठ का मानना था कि रक्षा मंत्रालय का 21 जुलाई 2011 का वह आदेश अटार्नी जनरल की राय पर आधारित था जिसमें जन्मतिथि को 10 मई 1950 माना गया था। जब न्यायालय ने पूछा कि क्या सरकार 30 दिसंबर का अपना आदेश वापस लेना चाहेगी अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती ने कहा कि वह इस मुद्दे पर सरकार के निर्देश प्राप्त करेंगे।
न्यायालय ने कहा कि यदि सरकार 30 दिसंबर के अपने आदेश को वापस ले लेती है तो जनरल सिंह के समक्ष अन्य उपाय उपलब्ध हैं। न्यायालय ने कहा कि उस स्थिति में 21 जुलाई के आदेश के खिलाफ जनरल सिंह की वैधानिक शिकायत पर प्राधिकारियों द्वारा पुन:विचार किया जा सकता है। इसके अलावा उनके पास सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में जाने का विकल्प भी है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि जब यह कहा गया कि जनरल सिंह की शिकायत विचार योग्य नहीं है। उनके पास उच्चतम न्यायालय में आने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। पीठ ने शुरू से ही सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर प्रश्न खड़ा किया। पीठ ने कहा कि हमें जितनी चिंता निर्णय को लेकर नहीं है उतनी निर्णय लेने की प्रक्रिया को लेकर है जो कि दुर्भावना से ग्रस्त है। क्योंकि 21 जुलाई का आदेश अटॉर्नी जनरल की ओर से दी गई राय पर विचार करके दिया गया। जब 30 दिसंबर को सेनाध्यक्ष की ओर से दी गई वैधानिक शिकायत पर निर्णय किया गया तब अटार्नी जनरल की राय पर भी विचार विमर्श किया गया।
पीठ ने कहा कि रिकार्ड की सामग्री नैसर्गिक न्याय और कानून के सिद्धांत पर खरी नहीं उतरती। अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल रोहिनटन नरीमन ने सरकार के कदम का बचाव किया और कहा कि तथ्यों पर जनरल सिंह के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं बरता गया है।
न्यायालय के आदेश पर जनरल सिंह के एक वकील पुनीत बाली ने कहा कि वे इस आदेश से निश्चित रूप से प्रसन्न हैं लेकिन वे मामले के गुणदोष में नहीं जाएंगे क्योंकि मामला अभी विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि न्यायालय की ओर से मुख्य प्रश्न यह उठाया गया कि जिस प्राधिकारी ने जनरल सिंह की वैधानिक शिकायत को खारिज किया उसने अपना निर्णय अटार्नी जनरल की सलाह पर आधारित किया जिन्होंने पूर्व में सरकार को सलाह दी थी कि वह 21 जुलाई के अपने आदेश में अंतिम निर्णय करे।
बाली ने मीडिया से इसके बहुत अधिक अर्थ नहीं निकालने के लिए कहते हुए कहा कि अदालत के लिए प्रश्न खड़ा करना सामान्य प्रक्रिया है। पीठ ने कहा कि हम संवैधानिक सिद्धांतों को लेकर अधिक चिंतित हैं कि क्या 30 दिसंबर का यह आदेश नैसर्गिक न्याय और कानून के सिद्धांतों पर खरा उतरता है।
न्यायालय ने उनसे कहा कि आप इस आदेश पर अपना रुख तय करिए। पीठ ने सरकार से पूछा कि क्यों नहीं इस मामले को समाप्त कर दिया जाए। इस बीच यह सुझाव दिए गए कि जनरल सिंह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के पास जा सकते हैं। पीठ ने कहा कि उन्हें अवकाश ग्रहण करने में केवल चार महीने ही शेष रह गए हैं इसलिए यह संभवत: सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं होगा।
पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि हालाकि न्यायाधिकरण का नेतृत्व उसके अवकाशप्राप्त न्यायाधीश करते हैं लेकिन उसमें ऐसे सदस्य भी होते हैं जो सेना से आते हैं और ऐसी संभावना है कि वे किसी समय जनरल सिंह के कनिष्ठ या वरिष्ठ रहे हों।
जनरल सिंह सरकार पर यह आरोप लगाते हुए इस वर्ष जनवरी में उच्चतम न्यायालय गए थे कि वह उनसे ऐसे व्यवहार कर रही है जिससे यह झलकता है कि उनके आयु मामले पर निर्णय लेने में प्रक्रिया के पालन और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की पूरी तरह से कमी है।
सेनाध्यक्ष ने सरकार ने उच्चतम न्यायालय में खींचने का यह अभूतपूर्व कदम रक्षा मंत्रालय के इस बात पर जोर डालने के बाद उठाया कि 10 मई 1950 को ही उनकी आधिकारिक जन्मतिथि मानी जाए जिससे उनका इस वर्ष 31 मई को अवकाश ग्रहण करना जरूरी हो जाएगा।
जनरल सिंह ने जन्मतिथि को 10 मई 1951 नहीं बल्कि 10 मई 1950 मानने के सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए 68 पृष्ठ की अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने तत्कालीन सेनाध्यक्ष के समक्ष अपने जन्म का वर्ष 1950 होने की स्वीकारोक्ति सेना सचिव शाखा के अंतिम निर्णय से समझौता करके नहीं बल्कि नेकनीयत से की थी।
याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि सेना के वरिष्ठतम अधिकारी के साथ क्या ऐसा व्यवहार किया जा सकता है जिससे प्रक्रिया के पालन और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की पूरी तरह से कमी झलकती हो और वह भी तब जबकि यह अटार्नी जनरल से प्राप्त राय पर आधारित है।
उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि उन्हें एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि एक सेनाध्यक्ष को 'सम्मान के साथ अवकाश ग्रहण करने का अधिकार है। सेनाध्यक्ष ने 30 दिसंबर के मंत्रालय के आदेश और उससे पहले मामले को खारिज करने वाले आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन आदेशों ने उनके मैट्रिक प्रमाणपत्र, सेवा में आने सहित पूरे सेवा रिकार्ड, पदोन्नतियों और वार्षिक गोपनीय रिपोर्टो को सुविधानुसार नजरअंदाज किया है।
उन्होंने कहा है कि विशिष्ट अलंकरणों से अलंकृत अधिकारी होने के नाते उन्होंने अपने सभी पुरस्कार, सम्मान और पदोन्नतियां 10 मई 1951 के अनुसार प्राप्त की हैं।

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