इसाई मिशनरियां : 'धर्मांतरण करा रहे हैं मुख्य सचिव'
- अरविन्द सिसोदिया
'धर्मांतरण करा रहे हैं मुख्य सचिव'
अनिल द्विवेदी | रायपुर., जनवरी 24, 2012
पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता बनवारीलाल अग्रवाल ने मुख्य सचिव और आइएएस पी.जॉय. उम्मेन पर धर्मातरण कराने तथा ईसाई मिशनरियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है. इस पर जवाबी हमले में उम्मेन ने इतना ही कहा कि मैं जो भी काम करता हूं, छिपकर नहीं करता.
राज्य में धर्मांतरण का मुद्दा हमेशा से ही चर्चा में रहा है. पूर्ववर्ती जोगी सरकार पर भी भाजपा ने खूब हमला बोला था और उन पर इसाई मिशनरियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया था. भाजपा सांसद दिलीपसिंह जूदेव की राजनीति का आधार ही धर्मांतरण समस्या रही है. पिछले कई वर्षों से वे ऑपरेशन घर वापसी अभियान चला रहे हैं. उनका भी आरोप हमेशा रहा है कि इसाई मिशनरियां भोले-भोले आदिवासियों को बरगलाकर सुविधाओं और सेवा के नाम पर इसाई बना रही हैं लेकिन लम्बे समय के बाद सरकार के किसी वरिष्ठ नेता ने राज्य के मुख्य सचिव पर धर्मांतरण का आरोप लगाया है.
विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष बनवारीलाल अग्रवाल ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि मुख्य सचिव इसाई मिशनरियों के संरक्षक हैं तथा जिस निर्मला स्कूल का उद्घाटन उन्होंने किया है, उसे दी गई जमीन वनभूमि का हिस्सा थी जिस पर शासकीय छात्रावास बनाया जाना था. निजी स्कूल भवन का निर्माण वन विभाग की भूमि पर अवैध रूप से किया गया है. स्कूल प्रबंधन ने शासन से छात्रावास के लिये भूमि मांगी थी लेकिन स्कूल का संचालन शुरू कर दिया गया. वन व राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार इस भूमि पर छोटे-बड़े झाड़ का जंगल था जिसे नहीं दिया जा सकता. अग्रवाल ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिशनरियों का कार्य धर्मांतरण के सहारे चल रहा है और उन्हें उम्मेन का संरक्षण प्राप्त है. उनका कोरबा प्रवास इसाई मिशनरियों के इसी गुप्त एजेण्डे का हिस्सा था.
दूसरी तरफ मुख्य सचिव और आइएएस पी.जॉय. उम्मेन ने पहले तो किसी तरह की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया लेकिन फिर कहा कि मैं जो भी काम करता हूं खुले तौर पर करता हूं, छिपकर कोई काम नहीं करता. उन्होंने कहा कि वे छत्तीसगढ़ पॉवर कंपनी के चेयरमैन हैं और इसी नाते हसदेव ताप विस्तार परियोजना के कार्यों की समीक्षा करने आए थे. वैसे उम्मेन की कार्यप्रणाली पर आरएसएस और संघ परिवार की हमेशा टेढ़ी नजर रही है. कुछ दिनों पहले एक शिकायत भरा पत्र संघ मुख्यालय भेजा गया था मगर चूंकि वह बिना नाम और आधारहीन आरोपों वाला था इसलिए उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह दो साल पहले एशिया स्तर का एक इसाई कार्यक्रम भी रायपुर में हुआ था जिसके संरक्षक पी.जॉय. उम्मेन थे. इस कार्यक्रम का संघ परिवार के धर्म रक्षा मंच वालों ने विरोध किया था जिसके बाद मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक ने कार्यक्रम से दूरी बनाये रखी थी.
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कंधमाल :
बम-विस्फोट में कट्टरपंथी ईसाइयों के हाथ होने की आशंका
गत 27 सितम्बर को कंधमाल जिले के जी.उदयगिरि के पास नंदगिरि स्थित पुनर्वास केन्द्र में बम बनाते समय विस्फोट होने के कारण एक व्यक्ति की मौत हाने की घटना सुलझने के बजाए उलझती जा रही है। पुलिस ने इस मामले में माओवादियों के हाथ होने की आशंका जता रही है जबकि बजरंग दल का कहना है कि इस मामले में कट्टरपंथी ईसाइयों का हाथ है और पुलिस द्वारा जांच की दिशा को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी तथा दो अन्य घायल हो गये थे। केन्द्र से 4 बंदुकें भी बरामद की गई हैं। राज्य सरकार के आर्थिक सहायता से चल रहे इस केन्द्र में सुरक्षा बलों की उपस्थिति में बम बनाने का सामान पुनर्वास केन्द्र तक कैसे लाया गया, बंदुकें कैसे लायी गई तथा बम कैसे बनाया जा रहा था इसको लेकर स्थिति अस्पष्ट है। पुलिस इस मामले में कुछ भी कहने से कतरा रही है। कंधमाल जिले के पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार ने कहा कि मामले की जांच चल रही है।
बजरंग दल के राष्ट्रीय सह संयोजक सुभाष चौहान ने कहा है कंधमाल जिले में ईसाइयों के लिए चल रहे पुनर्वास केन्द्र में बम बनाने तथा बंदुकें बरामद होने की घटना की जांच एक स्वतंत्र जांच एजेंसी से करायी जाए ताकि इस मामले में सच्चाई शीघ्र लोगों के सामने आये। इसके अलावा स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या और उसके बाद भडकी हिंसा के मामले की जांच कर रहे महापात्र आयोग के जांच की परिधि में इस घटना को भी लाया जाना चाहिए।
श्री चौहान ने कहा कि इस घटना के पीछे चर्च का हाथ है और अब यह स्पष्ट हो गया है कि चर्च राज्य में आतंक फैलाना चाहता है। इससे पहले भी उत्तर पूर्व के राज्यों में हिंसा को बढावा देने में चर्च की भूमिका सर्वविदित है।
उन्होंने कहा कि हर बार की तरह इस बार भी चर्च अपने इस काले कारनामे को माओवादियों के हाथ होने की बात कह कर बच निकलने की कोशिश कर रहा है। श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार के आर्थिक सहायता व प्रोत्साहन से चल रहे इस केन्द्र में बम कैसे बनाया जा रहा था, बम के लिए सामग्री कैसे लायी गई तथा वहां से प्राप्त बंदुकें केन्द्र तक कैसे आयी इसकी विस्तृत जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सबस आश्चर्यजनक बात है कि यह सारे आतंकवादी गतिविधियां केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल व राज्य पुलिस बल के उपस्थिति में हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में राज्य सरकार का प्रछन्न हाथ है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस मामले में लीपापोती कर रही है और वोटों के खातिर तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है और जांच को गलत दिशा में लेने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने कहा कि स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद सभी लोगों का कहना था कि हत्या के पीछे चर्च जिम्मेदार है। इस घटना के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार के छत्रछाया में आतंक फैलाने के लिए बम बनाये जा रहे हैं। इतने सुरक्षकर्मियों के उपस्थिति के बावजूद भी वहां बम बनाया जाना और बंदूकें बरामद होना इस बात को स्पष्ट रूप से प्रमाणित करता है।
श्री चौहान ने कहा कि अगर यही स्थिति रही तो राज्य की जनता अपने सुरक्षा के लिए अनुरोध किससे करेगी। उन्होंने कहा कि वोटों की राजनीति के कारण राज्य सरकार तुष्टिकरण की नीति अपना रही है और अब तक इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। राज्य सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और तुष्टिकरण की राजनीति से ऊपर उठ कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
-समन्वय नंद
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विदेशी क्यों तय करे हमारी धार्मिक स्वतंत्रता ?
29 May, 2009 02:40;00आर एल फ्रांसिस
पूरे विश्व का पंच बनने की अमेरिकी प्रवृत्ति को भारतीय चर्च नेताओं ने पंख लगा दिये है। `अतंरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग´ (यूएससीआइआरएफ) जिसे अमेरिका की विधायिका ने 1998 में स्थापित किया था, पहली बार भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर सुनवाई/ जांच करने के लिए जून माह में भारत आने का जोरदार प्रयास कर रहा है। अगर नवगठित सरकार ने उसे भारत आने की अनुमति दी तो आयोग के सदस्य उड़ीसा, गुजरात एवं कर्नाटक का दौरा कर सकते है। 18 सिंतबर 2000 को आयोग ने पहली बार भारत के धार्मिक मामलों पर हस्तक्षेप करते हुए `ईसाइयों पर तथाकथित हमलों´ के मामलों पर अमेरिका में सुनवाई की थी।
उस सुनवाई में भारतीय चर्च की तरफ से प्रवासी शिक्षाविद सुमित गांगुली, कैथोलिक यूनियन के उपाध्यक्ष जॉन दयाल एवं मंगलूर के मुमताज अली खान ने हिस्सा लिया था। उक्त तीनों व्यक्तियों ने वहां ऐसा महौल बनाया कि पूर्व भारतीय प्रधानमत्रीं अटल बिहारी वाजपेयी को अपने अमेरिका प्रवास के दौरान `अल्पसंख्यक विशेषकर ईसाइयों´ की सुरक्षा के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सफाई देनी पड़ी।
वर्ष 1998 से ही आयोग भारत का दौरा करने का दबाव बनाये हुए है। लेकिन भारतीय सरकार ने उसे ऐसा करने की अनुमति प्रदान करने से इंकार कर दिया। क्योंकि `अतंरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग´ के भारत दौरे पर पहले विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी नराजगी जता चुके है। किसी भी देश की सार्वभौमिकता, एकता और अखण्डता के साथ राष्ट्रीय स्वाभिमान भी जुड़ा होता है। भारत की यह नीति रही है कि हमारे घरेलू मामलों में कोई भी देश या अंतरराष्ट्रीय संगठन हस्तक्षेप नही कर सकता। इसी नीति का पालन करते हुए राजग सरकार के मुखिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाजपेयी (1999-2004) एवं संप्रग के प्रधानमंत्री डा. मनमहोन सिंह (2004-2009) ने बनाये रखा। वैसे भी भारत की यह नीति रही है कि वह अपने अंदरुनी मामलों का समाधान खुद करेगा। इसके लिए देश में ही न्यायपालिका, विधयिका, कार्यपालिका मौजूद है।
`अतंरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग´ (यूएससीआइआरएफ) बात तो भले ही मनाव अधिकारों की करे लेकिन उसका मुख्य कार्य चर्च के साम्राज्वाद को मजबूत बनाना है। इसी रणनीति के तहत दुनिया के देशों को तीन विभिन्न विभिन्न श्रेणियों में बांट कर यह आयोग कार्य करता है। आयोग की नजर में जहां धार्मिक स्वतंत्रता एवं मानव अधिकारों का सबसे ज्यादा खतरा है उनमें बर्मा, चीन, ईरान, इराक, वियतनाम, नार्थ कोरिया, क्यूबा, उजबेकिस्तान आदि देश है। दूसरी श्रेणी में बेलारुस, तुर्की, सोमालिया जैसे देश है। आयोग की तीसरी श्रेणी में भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, कजाकिस्तान जैसे देश है जहां धार्मिक स्वतंत्रता को कभी भी खतरा पैदा हो सकता है। इस तरह का संदेश कुछ समय पूर्व पोप बेनेडिक्ट 16वें भी दे चुके है जब उन्होनें वेटिकन स्थित भारतीय राजदूत को बुलाकर भारत में कुछ राज्य सरकारों द्वारा `धर्मांतरण विरोधी´ बिल लाने पर अपनी नराजगी जाहिर की थी। उनका मानना था कि इस तरह के बिल लाने से चर्च के `मानव उत्थान´ कार्यक्रम में रुकावट आती है। निसंदेह `अतंरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग´ (यूएससीआइआरएफ) उन्ही देशों में हस्तक्षेप करने की योजना बनाता है जहां चर्च को आगे बढ़ने में रुकावट दिखाई देती हो।
अब प्रश्न खड़ा होता है कि क्या भारत में चर्च या ईसाई समुदाय के सामने ऐसी स्थिति आ गई है कि वह अपने धार्मिक कर्म-कांड, पूजा-पद्वति तक नही कर पा रहा? क्या ईसाइयों की जान/माल की सुरक्षा करने में देश का तंत्र असफल हो गया है? क्या विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका में इनकी सुनवाई नही हो रही? क्या विदेशी सरकारों एवं अंतराश्ट्रीय संगठनों के सामने जाने के अलावा और कोई मार्ग नही बचा? यह कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका उतर चर्च नेताओं को विदेशी आयोग के सामने जाने से पहले भारतीय समाज को देना चाहिए। अगर हम कर्नाटक, उड़ीसा में घटी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को ही देखें तो वहां कि राज्य सरकारे, केन्द्र सरकार, न्यायपालिका सभी ने पीड़ितों का पक्ष लिया है। यहां तक कि देश के सर्वोच्च न्यायायलय ने हिंसा के दोरान मारे गये लोगों के उचित मुआवजे एवं क्षतिग्रस्त हुए चर्चों तक के पुनानिर्माण के आदेश दिये है।
भारतीय जनता पार्टी की सरकारे ही धर्मातरण का विरोध करती है या इसे राष्ट्र के लिए खतरा मनाती है ऐसा नही है। विगत कुछ वर्ष पूर्व कांग्रेस पार्टी की हिमाचल प्रदेश सरकार ने सर्वसमति से `धर्मांतरण विरोधी´ कानून राज्य में लागू किया है। यह अलग बात है कि वह भाजपा सरकारों द्वारा लाए जाने वाले इस तरह के कानूनों का अपने राज्यपालों के माध्यम से विरोध करती आ रही है। भारत में चर्च को कार्य करने की कितनी स्वतंत्रता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में वेटिकन के राजदूत कितनी तेजी से नये डायसिसों का निर्माण एवं बिशपों की नियुक्तियाँ कर रहे है। हालाकि उन्हे ऐसी स्वतंत्रता हमारे पड़ौसी देशों चीन, बर्मा, भूटान, नेपाल, पकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान आदि में नही है। भारत में `अल्पसंख्यक अधिकारों´ की आड़ में चर्च लगातार अपना विस्तार कर रहा है। हालाकि उसके अनुयायी आज भी दयनीय स्थिति में है। भारत में चर्चो के पास अपार संपत्ति है। जिसका उपयोग वह अपने अनुयायियों की स्थिति सुधारने की उपेक्षा अपना साम्राज्वाद बढ़ाने के लिए कर रहा है। धर्म-प्रचार के नाम पर चलाई जा रही गतिविधियों के कारण होने वाले तनाव में क्या चर्च की कोई भूमिका नही होती?
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