शहीद भाई मतिराम जी : हिन्दुत्व के लिए आरे से सिर चिरवाने वाले






हिन्दुत्व के लिए आरे से सिर चिरवाने वाले शहीद भाई मतिराम जी


औरंगजेब के शाषण काल में हिंद्यों पर अनेक रूप से अत्याचार हुए.जिहाद के नाम पर हिंदुयों का बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करने के लिए इंसान के रूप में साक्षात् शैतान तलवार लेकर भयानक अत्याचार करने के लिए चारों तरफ निकल पड़े.रास्ते में जो भी हिन्दू मिलता उसे या तो इस्लाम में दीक्षित करते अथवा उसका सर कलम कर देते.कहते हैं की प्रतिदिन सवा मन हिंदुयों के जनेऊ की होली फूंक कर ही औरंगजेब भोजन करता था. हिन्दू का स्वाभिमान नष्ट होता जा रहा था. उनकी अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध प्रतिकार करने की शक्ति लुप्त होती जा रही थी. आगरे से हिन्दुओं पर अत्याचार की खबर फैलते फैलते लाहौर तक पहुँच गयी. हिन्दू स्वाभिमान के प्रतीक भाई मतिराम की आत्मा यह अत्याचार सुन कर तड़प उठी. उनके हृद्य ने चीख चीख कर इस अन्याय के विरुद्ध अपनी आहुति देने का प्रण किया.उन्हें विश्वास था की उनके प्रतिकार करने से ,उनके बलिदान देने से निर्बल और असंगठित हिन्दू जाति में नवचेतना का संचार होगा. वे तत्काल लाहौर से आगरे पहुँच गए. इस्लामी मतान्ध तलवार के सामने सर झुकाएँ हुएँ, मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोड़ने को तैयार हिंदुयों को उन्होंने ललकार कर कहाँ- कायर कहीं के, मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोड़ने में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम की बात सुनकर मतान्ध मुसलमान हँस पड़े और उससे कहाँ की कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता? भाई मतिराम ने कहाँ की अगर तुममे वाकई दम हैं तो मुझे मुसलमान बना कर दिखाओ. मतिराम जी को बंदी बना लिया गया उन्हें अभियोग के लिए आगरे से दिल्ली भेज दिया गया. लोहे की रस्सियों में जकड़ा हुआ मतिराम दिल्ली के हाकिम अलफ खान के दरबार में उपस्थित किया गया. काजियों ने शरह के कुछ पन्ने पलट कर पहले से ही निश्चित हुक्म सुना दिया की मतिराम – “तुम्हे इस्लाम कबूल करना होगा ” भाई मतिराम ने कहाँ की और अगर न करूँ तो. तब हाकिम ने बोला “तो तुम्हे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा” तब मतिराम ने कहाँ की मुझे धर्म छोड़ने की अपेक्षा अपना शरीर छोड़ना स्वीकार हैं. हाकिम ने फिर कहाँ की मतिराम फिर से सोच लो. मतिराम ने फिर कहाँ की “मेरे पास सोचने का वक्त नहीं हैं हाकिम,तुम केवल और केवल मेरे शरीर को मार सकते हो मेरी आत्मा को नहीं क्यूंकि आत्मा अजर ,अमर हैं. न उसे कोई जला सकता हैं न कोई मार सकता हैं ” मतिराम को इस्लाम की अवमानना के आरोप में आरे से चीर कर मार डालने का हाकिम ने दंड दे दिया. चांदनी चौक के समीप खुले मैदान में लोहे के सीखचों के घेरे में मतिराम को लाया गया. दो जल्लाद उनके दोनों हाथों में रस्से बाँधकर उन्हें दोनों और से खीँचकर खड़े हो गए, दो ने उनकी ठोढ़ी और पीठ थमी और दो ने उनके सर पर आरा रखा. इस प्रकार मतान्धता के खुनी खेल का अंत हुआ. वीर भाई मतिराम अपने प्राणों की आहुति देकर अमर हो गए. उनके बलिदान से हिन्दू जाति में जोश उत्पन्न हुआ जिसका प्रमाण हमारा इतिहास हैं की औरंगजेब की मतान्धता से मुग़ल साम्राज्य का अंत शीघ्र ही हो गया. और हिन्दू धर्म की बलिवेदी पर अपने शरीर को होम करने वाले भाई मतिराम से प्रेरणा पाकर आज का हिन्दू कहीं फिर से आँखे न खोल बैठे, इस लिए हमारी कश्मीर सरकार से कुछ वर्ष पहले मतिराम के चित्र का प्रकाशन भी कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया था और चुप हैं क्यूंकि हमारा सेकुलर राज्य हैं ।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

जागो तो एक बार, हिंदु जागो तो !

11 days are simply missing from the month:Interesting History of September 1752