विभाजन पर, नेताजी सुभाष की आत्मा रोई होगी..







विभाजन पर, एक बार फिर सुभाष की आत्मा रोई होगी..
अरविन्द सीसौदिया
‘‘हमारा कार्य आरम्भ हो चुका है।‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ हमें तब तक अपना श्रम और संघर्ष समाप्त नहीं करना चाहिए, जब तक कि दिल्ली में ‘वायसराय हाउस’ पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया जाता है और आजाद हिन्द फौज भारत की राजधानी के प्राचीन ‘लाल किले’ में विजय परेड़ नहीं निकाल लेती है।’’
ये महान स्वप्न, एक महान राष्ट्रभक्त नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का था, जो उन्होंने 25 अगस्त 1943 को आजाद हिन्द फौज के सुप्रीम कमाण्डर के नाते अपने प्रथम संदेश में कहे थे। यह सही है कि नेताजी ने जो सोचा होगा, उस योजना से सब कुछ नहीं हो सका, क्योंकि नियति की योजना कुछ ओर थी। मगर यह आश्चर्यजनक है कि उस वायसराय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने और लाल किले पर भारतीय सेना की परेड़ निकालने का अवसर महज चार वर्ष बाद ही यथा 15 अगस्त 1947 को नेताजी की ही आजाद हिन्द फौज की गिरफ्तारी के कारण उत्पन्न सैन्य विद्रोह और राष्ट्र जागरण के कारण ही मिल गया और आज हम आजाद हैं....।
यद्यपि नेताजी हमारे बीच नहीं हैं, उनकी कथित तौर पर मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हवाई दुर्घटना में हो चुकी है। मगर उसे महज एक युद्ध कूटनीति की सूचना ही मानी जाती है ! उनकी मृत्यु के सही तथ्य पता लगाने के लिये तीन कमीशन बनाये गये, शहनबाज कमीशन 1956, खोसला कमीशन 1970 से 74 तक, और तीसरा जस्टिस मुखर्जी कमीशन जिसने 2005 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। मगर नेताजी की कथित मृत्यु का रहस्य नहीं खोजा जा सका है।
सच जानना होगा...
सांसद सुब्र्रत बोस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमय मौत के संदर्भ को लोकसभा में उठाया और मुखर्जी आयोग के सच को सामने लाने की बात कही। उन्होंने यह रहस्य उजागर भी किया कि उस दिन हवाई दुर्घटना हुई ही नहीं थी।
ताईवान सरकार कहती है  कि 18 अगस्त 1945 के दिन पूरे ताईवान में कहीं कोई हवाई दुर्घटना नहीं हुई है । 
अर्थात जब दुर्घटना नहीं हुई तो मृत्यु कैसी, मृत्यु का सर्टिफिकेट देने वाला कोई चिकित्सक अथवा उनका अंतिम संस्कार करने वाले की पुष्टि नहीं होती है। सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि 18 अगस्त की हवाई दुर्घटना की प्रथम सूचना, पूरे पांच दिन बाद जापानी रेडियो से 22 अगस्त को प्रचारित की गई थी, अर्थात इतने बडे नेता के निधन की सूचना में इतना विलम्ब गले नहीं उतरता है।
वे छुप नहीं सकते...
इतना तो स्पष्ट है कि नेताजी का जो व्यक्तित्व रहा है, चाहे वह कांग्रेस के मंच पर रहा हो अथवा कांग्रेस से बाहर व देश से बाहर विदेशों में रहकर देशहित के मंच पर रहा हो, यह शेर किसी चूहे की तरह छिपने वाला न था और न ही छिपा होगा। यह अवश्य हो सकता है कि उनके साथ कोई कूटनीतिक दुर्दान्त दुर्घटना घटी हो। जैसे कि वे किसी शत्रु राष्ट्र की किसी गुप्तचर एजेंसी के हाथ पड़ गये हों, उनका अपहरण हो गया हो, उन्हें कूटनीतिक कारणों से किसी अज्ञात जेल में डाल दिया गया हो या उनकी कहीं और हत्या कर दी गई हो। क्योंकि ब्रिटिश गवरमेंट की दृष्टि में भारत में सुभाष चन्द्र बोस से बड़ा उनका काई शत्रु नहीं था और आयरिश इतिहासकार यूनन ओ हैल्विन इसका रहस्योद्घाटन करते है।
ब्रिटिश सरकार ने नेताजी की हत्या के आदेश दिये थे.....
आयरिश इतिहासकार यूनन ओ हैल्विन ने ब्रिटिश खुफिया सेवाओं के संदर्भ रहस्योद्घाटन करने वाली अनेकों पुस्तकें लिखी हैं और उन्हें न तो चुनौती दी जा सकी और न ही उनका खंडन किया गया।
इसी इतिहासकार ने कोलकाता में दिये एक भाषण में कई दस्तावेजों का हवाला देते हुए बताया कि ‘‘जब 1941 में अचानक सुभाष नजरबंदी से गायब हो गए तो तुर्की में तैनात दो जासूसों को लंदन स्थित मुख्यालय से निर्देश दिया गया कि वे सुभाष चन्द्र बोस को जर्मनी पहुंचने से पहले खत्म कर दें। उन्होंने बताया कि ब्रितानी जासूस नेताजी तक नहीं पहुंच पाए, क्योंकि नेताजी मध्य एशिया होते हुए रूस के रास्ते जर्मनी पहुंच गए और वहां से वे जापान पहुंचे थे।’’
कोलकाता के एक अन्य इतिहासकार लिपि घोष का कहना है कि ‘‘अंग्रेजों ने बोस से मिलने वाली चुनौती का सही आंकलन किया था और इससे यह भी पता चलता है कि ब्रितानी हुकूमत उनसे कितनी घबरा रही थी।’’
21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार का गठन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अध्यक्षता में किया गया। इस सरकार का ब्यौरा इस प्रकार है:-
1. सुभाषचन्द्र बोस: राज प्रमुख, प्रधानमंत्री और युद्ध तथा विदेशी मामलों के मंत्री।
देशभक्ति गीत
‘‘सूरज बनकर जग पर चमके,
भारत नाम सुभागा।
जय हो, जय हो, जय हो,
जय जय जय जय हो।।’’
राष्ट्रीय अभिवादन: जय हिन्द
राष्ट्रीय ध्वज: चरखे के साथ तिरंगा
राष्ट्रीय चिन्ह: बाघ
नारा: ‘चलो दिल्ली’ ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘आजाद हिन्द जिंदाबाद’
लक्ष्य: ‘विश्वास-एकता-बलिदान’
आव्हानः ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’’
आजाद हिन्द सैनिको का महाबलिदान
22 दिसम्बर 1967 को लोकसभा में ‘आजाद हिन्द फौज के भूतपूर्व सैनिक’ विषय पर आधे घंटे की चर्चा की गई। चर्चा शुरू करते हुए सांसद समर गुहा ने कहा:
‘‘आजाद हिन्द फौज के भूतपूर्व सैनिकों के बारे में इस चर्चा का आरम्भ मैं इन महान सेनानियों और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की महान विरासत और उन लोगों को श्रृद्धासुमन अर्पित करते हुए करूंगा, जिन्होंने अपना वर्चस्व न्यौछावर किया, बल्कि उन सभी 26,000 व्यक्तियों को श्रृद्धांजली अर्पित करूंगा जिन्होंने कोहिमा, इम्फाल और चटगांव के युद्ध क्षैत्रों को अपने प्राणों की आहूति दी।’’
आजाद हिन्द फौज की तीसरी बड़ी शख्सियत कर्नल पी.के. सहगल के शब्दों में:
1945 में भारत के कमाण्डर इन चीफ जनरल सर क्लाउड आउचिनलेक को उनके एजुटेंट जनरल ब्रांच ने सुझाव दिया कि आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर जब मुकदमा चलाया जायेगा तब कोर्ट मार्शल का जो भी निर्णय होगा, आम भारतीयों और विशेष तौर पर भारतीय सशस्त्र सेना द्वारा आजाद हिन्द फौज तिरस्कृत होगा।
लेकिन वादी और प्रतिवादी पक्ष के गवाहों ने कोर्ट में जब आजाद हिन्द फौज की पूरी कहानी सुनाई तब पूरे देश में इसका तीव्र प्रभाव हुआ। लाखों भारतीयों को जो ब्रिटिश दमन से पीडि़त और हतोत्साहित हुए थे, नई शक्ति और गौरव की अनुभूति हुई। जब उन्हें यह महसूस हुआ कि उनके दुश्मन अपराजेय नहीं हैं, तो उनमें क्रांति की भावना प्रस्फुटित हुई।
यही भावना भारतीय सशस्त्र बलों के सैनिकों में भी फैल गई। जब अधिकारियों एवं सैनिकों के एक विशेष समूह को भारतीय सेना के सभी यूनिटों में आजाद हिन्द फौज के प्रति उनके दृष्टिकोण जानने के लिए भेजा गया तो सभी से यही उत्तर मिला कि आजाद हिन्द फौज के सभी सैनिकों को मुक्त कर दिया जाये और उनके भारतीय यूनिटों में भेज दिया जाये।
भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना में विद्रोह उभरा था, वह भारतीय सशस्त्र बलों के सैनिकों में आ रही नवजागृति का प्रत्यक्ष परिणाम था। भारतीय सशस्त्र बलों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई थी और ब्रिटिश सरकार यह अच्छी तरह समझ गई थी कि उसके लिए अब भारत में ब्रिटेन के निरंकुश शासन को अधिक समय तक बनाए रखना और उसे समर्थन देना अब सम्भव नहीं है। भारतीय सशस्त्र बलों में आई इस जागृति से ब्रिटेन का भारत में ब्रिटिश शासन जारी रखने का इरादा खंडित हो गया था।
इस प्रकार अंतिम विश्लेषण में आजाद हिंद फौज अंग्रेजों के विरूद्ध अपने सशस्त्र संघर्ष के द्वारा नेताजी की रणनीति के अनुरूप ऐसी स्थिति पैदा करने में सफल हो गई थी कि ब्रिटिश शासन इस देश में अब अपना शासन नहीं चला सकता था।
तथापि यह दुःख की बात है कि आजाद हिन्द फौज और भारतीय जनता युद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय से पूर्व अंग्रेजों को बाहर नहीं निकाल सके और देश का बंटवारा तथा उसके बाद घटी घटनाएं नहीं रोक सके।
सुभाष का स्वप्न जो सच हुआ
‘‘भाईयों और बहनों! इस समय जबकि हमारे शत्रुओं को भारत की भूमि से खदेड़ा जा रहा है, आप पहले की ही तरह स्वतंत्र नर नारी होने जा रहे हैं। आज आजाद हिन्द की अपनी अस्थायी सरकार के चारों ओर एकत्रित हो जाइये और उससे आप नव प्राप्त स्वतंत्रता की सुरक्षा और संरक्षा में सहायता करें।’’
नियति का यह खेल देखिये की यह शब्द सही साबित हुए, दिल्ली में जब ब्रिटिश सरकार ने आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया तो पूरा देश इनकी सहायता के लिए उमड़ पड़ा था। गांधी जी के सारे सिद्धान्तों को ठोकर मारकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और भूलाभाई देसाई ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों का केस लड़ने के लिए फिर से वकालत का कोट पहन लिया था। सेना के तीनों अंगों ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिया। केन्द्रीय विधान परिषद, संविधान सभा में आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार लोगों की बिना शर्त मुक्ति की बहसें हो रही थी। श्रमिकों ने काम बंद कर दिया था, जनता गली कूचों में जय हिन्द के नारे लगा रही थी। पूरा देश एक जुट होकर इन महान बलिदानियों के लिए मैदान में उतर आया था। काश ! उस समय नेताजी मौजूद होते...!! न पाकिस्तान बनता, न अंग्रेजों का षडयंत्र सफल होता !
पाकिस्तान सिर्फ इसलिये बना कि वक्ते ए जरूरत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नेतृत्व हमें, 1947 में नहीं मिल सका।
आजाद हिन्द फौज के कारण मिली आजादी का बिन्दुवार लेखा-जोखा
आजाद हिन्द फौज को गिरफ्तार भले ही कर लिया गया हो, मगर उनका अभिवादन ‘जय हिन्द’ भारतीय सेना में फैशन बन कर उभरा और वे भी आजाद हिन्द फौज की तरह कुछ कर दिखाने का मन बनाने लगे। इधर दिल्ली के लाल किले में लगी अदालत आजाद हिन्द फौज के तीन अफसर यथा मेजर जनरल शाहनवाज खां, कर्नल गुरूबख्श सिंह ढि़ल्लन और कर्नल प्रेम कुमार सहगल को मुकदमा चलाकर फांसी के फंदों पर लटकाने की तैयार कर रही थी। यह समाचार भारतीय फौज में उत्तेजना का, विद्रोह का संवाहक बन गया।
नौसेना इमारतों पर जगह-जगह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बड़े-बड़े चित्र लगा दिये गये या बनाये गये और ‘जय हिन्द’ लिखा गया।
बम्बई में 18 फरवरी 1946 को नौसैनिक विद्रोह प्रारम्भ हुआ। बम्बई के सागर तट पर नौसैनिकों के प्रशिक्षण स्थल ‘तलवार’ की दीवारों पर ‘जय हिन्द’ और ‘भारत छोड़ो’ नारे लिखे देखकर अंग्रेज चैंक उठे थे।
बम्बई में जितने भी छोटे बड़े जहाज थे, उन सभी में विद्रोह की लपटें फैलने में देर नहीं लगी। बड़े जहाजों में कुछ के नाम इस प्रकार थे, हिन्दुस्तान, कावेरी, सतलज, नर्मदा और यमुना। छोटे जहाजों में प्रमुख असम, बंगाल, पंजाब, ट्रावरकोर, काठियावाड़, बलूचिस्तान और राजपूत सहित कुछ प्रशिक्षण देने वाले जहाज डलहौजी, कलावती, दीपावली, नीलम और हीरा विद्रोह की चपेट में थे।
करांची, विशाखापत्तनम, मद्रास, कोचीन, कोलकाता और अन्य बंदरगाहों पर जहाजों में तीव्रता के साथ विद्रोह फैल गया। कोलम्बो में खड़े ‘बड़ौदा’ जहाज पर भी विद्रोह हो चुका था। नौसेना के शाही जहाज ‘गोंडवाना’ पर भी विद्रोह की खबर से लंदन और नई दिल्ली थर्रा उठी थी, तब बी.बी.सी. लंदन से यह समाचार प्रसारित हुआ था:
‘‘19 फरवरी 1946 को प्रातःकाल तक सभी जहाजों, प्रशिक्षण केन्द्रांे और आवास बैरकों में हड़ताल फैल चुकी थी। हड़तालियों की संख्या 20 हजार से अधिक थी, ‘कैसल बैरक’ में झुंड के झुंड सैनिक एकत्र हो गये और वे किसी योजना के जुलूस के रूप में सड़क पर आ गये और ‘तलवार’ की ओर बढ़ने लगे। उनके समर्थन में जनता भी उनके साथ हो ली। राजनैतिक दलों के झंडे भी आ गये। क्या कांग्रेस, क्या मुस्लिम लीग, क्या कम्यूनिस्ट जैसे सारा मुम्बई उमड़ पड़ा।’’
हमारी मंजिल आजादी है,
अंग्रेजों भारत छोड़ो,
इंकलाब जिन्दाबाद, जय हिन्द,
हिन्दु-मुस्लिम एक हैं,
चलो ‘तलवार’ पर चलो, 
‘तलवार’ पर चलो।
हम आ रहे हैं, हम आ रहे हैं।
विदेशी दुकानें लूट ली गई। विदेशी झंडे उतार लिये गये और तिरंगा फहरा दिया गया। परेड मैदान में विशाल आमसभा हुई, उसमें तलवार के एक विद्रोही ने सम्बोधित करते हुए कहा ‘‘हडताल चैहत्तर जहाजों, चार बेड़ों और बीस तटवर्ती अड्डों तक फैल चुकी है, बीस हजार नौसेनिकों ने बरतानिया झंडा उतार कर फेंक दिया है। अंग्रेज सरकार अपनी सेना के समूचे विभाग पर नियंत्रण खो चुकी है।’’
इस हड़ताल की एक समन्वय और संचालन समिति बनी जिसका नाम ‘‘नौसेना केन्द्रीय हड़ताल समिति’’ रखा गया, इसके अध्यक्ष एम.एस. खान और उपाध्यक्ष मदन सिंह थे। 
इस विद्रोह को शांत करने के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने ‘हाउस आॅफ काॅमंस’ में एक वक्तव्य देते हुए बताया कि ‘‘भारत को स्वतंत्रता देने संबंधी मुद्दे का अध्ययन करने के लिए शीघ्र ही मंत्रीमण्डलीय स्तर का एक आयोग भारत भेजा जायेगा।’’
हर तरफ से एक ही आवाज आती थी ‘‘काश आज सुभाष चन्द्र बोस जैसा कोई मर्द नेता होता’’
आजाद हिन्द फौज का मुख्य गीत, इस विद्रोह का महान गीत बन चुका था:
‘‘कदम-कदम बढ़ाये जा,
खुशी के गीत गाये जा।
ये जिंदगी है कौम की,
तू कौम पर लुटाये जा।।’’
   महात्मा गांधी ने कहा ‘कुछ गुण्डों का उत्पात’ सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना ने विद्रोहियों से अपील की कि वे बिना शर्त समर्पण करें। भारतीय नेताओं के द्वारा पीठ दिखने पर, 23 फरवरी को हड़ताल वापसी का निर्णय हुआ। इस सैनिक विद्रोह के पश्चात पाकिस्तान में उन सभी सैनिकों को फिर नौकरियां दे दी गई और भारत में उनकी सेवाएं बहाल नहीं की गई।
विद्रोह से मिली आजादी
इस विद्रोह के अवसर को हमारे कांग्रेसी नेतागण, किस हीन भावना के चलते नहीं भुना सके, इस बात को तो भगवान ही जानता होगा। हमने अखण्ड भारत आजाद करवाने के इस शुभ अवसर को क्यों छोड दिया, इसका जवाब भी कांग्रेस ही दे सकती है। मगर अंग्रेज समझ चुके थे कि अब भारत छोडना ही होगा, इसी क्रम में मार्च 1946 में एक मंत्रीमण्डल का दल जिसमें लाॅर्ड पैथिक लारैन्स, सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. एलेक्जेण्डर थे, भारत आया। इसकी योजना के अनुसार अंतरिम सरकार की व्यवस्था की गई थी तथा भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनाने की बात हुई। कांग्रेस ने इसे स्वीकार कर लिया, तब मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकार कर दिया। अगस्त 1946 में कलकत्ता की प्रसिद्ध मारधाड़ हुई, 2 सितम्बर 1946 को पं. नेहरू ने अंतरिम सरकार बनाई। मुस्लिम लीग ने आरम्भ में तो सम्मिलित होने से इंकार कर दिया, किन्तु बाद में वह सम्मिलित भी हुई और विभाजन में सफल भी हुई। यदि इस सैनिक विद्रोह के अवसर पर कांग्रेस ने चूक नहीं की होती तो देश अखण्ड आजाद होता। एक बार फिर सुभाष की आत्मा रोई होगी।
असीम ऊर्जा स्रोत है हमारी संस्कृति!
कुछ टाई पहनने वाले भारतीय यूरोपपंथी, कुतर्क के द्वारा हिन्दुत्व में, भारतीयता में, मीनमेख निकाल सकते हैं। वे इसे दरिद्र, पिछडी और हीनताग्रस्त ठहरा सकते हैं, मगर अमर सत्य यह है कि यह अक्क्षुण्य है..! क्योंकि इस संस्कृति में सत्य का आत्मविश्वास है, इस धरा ने आत्मविश्वास कभी खोया नहीं है और स्वतंत्रता संग्राम में जिस स्वतंत्रता नायक ने आत्म विश्वास नहीं खोया और अंतिम दौर तक लडता रहा और लडाई के फल को विजय में बदल गया, वह था सुभाष चंद्र बोस!! आज हम उन्हे नमन ही तो कर सकते हैं। उन्हे शत शत नमन्!
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ये है एक लाख का नोट ।
नेताजी सुभाषचन्‍द्र बोस के ‘’आजाद हिन्‍द ‘’ का प्रतीक ,
कई देशो से मान्‍यता दिलवायी थी नेताजी ने इसे ।।।
श्री रामकिशोर दुबे जी को अपने दादा श्री प्रागीलाल जी की रामायण मे यह एक लाख का नोट मिला था जिसे नेताजी की 113 वी वर्षगाठॅ पर जनता के लिए सार्वजनिक किया गया ।। श्री दुबे भोपाल मे एरिगेशन विभाग से सेवा निवृत्‍त हुए है उनके अनुसार उनके दादा नेताजी के साथ आजाद हिन्‍द फौज मे थे और उनका देहावसान 1958 मे 63 वर्ष की आयु मे हो गया था , श्री दुबे के अनुसार उनके दादाजी बुन्‍देलखण्‍ड मे आजाद हिन्‍द फौज की झॉसी की रानी रेजीमेन्‍ट मे लक्ष्‍मी स्‍वामीनाथन के नेतृत्‍व मे थे उन्‍होने अपनी जमीन आजाद हिन्‍द फौज को दे दी थी जिसके फलस्‍वरूप नेताजी ने यह नोट उन्‍हे दिया था । ज्ञात रहे नेताजी ने 1944 मे आजाद हिन्‍द बैंक ( स्‍वतत्रं बैक ) की स्‍थापना रगूंन मे की थी और उसके द्वारा पुरे विश्‍व से भारत की आजादी के सघर्ष के लिए धन की व्‍यवस्‍था की जाती थी । इस नोट पर आजाद हिन्‍द फौज के ध्‍वज के साथ ही ‘ शुभेच्‍छा ‘ सन्‍देश भी लिखा हुआ है ।।
http://india--against--corruption.blogspot.in/2012/01/blog-post_23.html
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 
"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार"
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने "आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के निर्माण की घोषणा की जिसमें वे स्वयं देश के मुखिया, प्रधान मन्त्री तथा युद्ध मन्त्री थे तथा आजाद हिन्द फौज के अन्य अधिकारी केबिनेट मेम्बर थे। "आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के केबिनेट मेम्बर्स का विवरण इस प्रकार है -
लेफ्टिनेंट ए.सी. चटर्जी - वित्त मन्त्री (Minister of Finance)
डॉ.(कैप्टन) लक्ष्मी सहगल - Minister of Women’s Organisation
श्री ए.एम सहाय - Secretary with Ministerial Rank
श्री एस.एं अय्यर - Minister of Publicity and Propaganda
ले. कर्नल जे.के. भोंसले - Representative of INA
ले. कर्नल लोगानाथन - Representative of INA
ले. कर्नल एहसान कादिर - Representative of INA
ले. कर्नल एन.एस. भगत - Representative of INA
ले. कर्नल एम.जेड. कियानी - Representative of INA
ले. कर्नल अज़ीज़ अहमद -Representative of INA
ले. कर्नल शाह नवाज़ खान - Representative of INA
ले. कर्नल गुलजारा सिंह - Representative of INA
रास बिहारी बोस - Supreme Advisor
करीम गियानी - Advisor from Burma
देबनाथ दास - Advisor from Thailand
सरदार ईशर सिंह - Advisor from Thailand
डी.एम. खान - Advisor from Hong Kong
ए. येल्लप्पा - Advisor from Singapore
ए.एन सरकार - Advisor from Singapore
"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" ने न केवल नेताजी को जापानियों के साथ बराबरी के साथ समझौता करने में सक्षम बनाया बल्कि पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीयों को एक सूत्र में बाँधकर आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया। सुभाष चन्द्र बोस जी के इस तत्कालिक सरकार को अनेक देशों ने मान्यता भी प्रदान की।
"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के निर्माण के साथ ही नेताजी ने भारतीयों को एकसूत्र में बँध कर आजाद हिन्द फौज के तत्वावधान में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध का शंखनाद भी कर दिया। मलाया, थाइलैंड तथा बर्मा में बसे भारतीयों ने नेताजी के युद्ध के प्रस्ताव का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और बड़ी संख्या में भारतीय आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने लगे। अनेक भारतीयों ने आजाद हिन्द फौज को सोना, चाँदी, गहने, कपड़े आदि की सहायता प्रदान की, महिलाओं ने अपने जेवरात तक उतार कर आजाद हिन्द फौज को समर्पित कर दिए।
भारतीयों से प्राप्त उसी धन से अप्रैल 1944 तक रंगून में आजाद हिन्द बैंक की स्थापना भी हो गई।


-: राधाकृष्ण मंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा ज0 , राजस्थान ।

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