हिन्दू धर्म - एक परिचय


हिन्दू धर्म - एक परिचय
हिंदू शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थवास्तव में यह 'हिंदू' शब्द भौगोलिक (स्थान, देश से संबंधित) है। मुसलमानों को यह शब्द फारस अथवा ईरान में मिला था। फारसी कोषों में 'हिंद' और इससे व्युत्पन्न अनेक शब्द पाए जाते हैं। जैसे हिंदू, हिंदी, हिंदुवी, हिंदुवानी, हिंदुकुश आदि। इन शब्दों के अस्तित्व से स्पष्ट होता है 'हिंद' शब्द मूलत: फारसी है और उसका अर्थ 'भारतवर्ष' है। फारसी व्याकरण के अनुसार संस्कृत का 'स' अक्षर 'ह' में परिवर्तित हो जाता है। इस कारण 'सिंधु' (सिंधु नदी) शब्द 'हिंदू' हो गया। पहले हिंद के रहने वाले 'हिंदू' कहलाए। धीरे-धीरे संपूर्ण भारत के लिए इसका प्रयोग होने लगा। इसी प्रकार व्यापक रूप में भारत में रहने वाले लोगों का धर्म हिंदू धर्म कहलाया।हिंदू और हिंदुत्व की एक परिभाषा लोकमान्य तिलक ने प्रस्तुत की थी। जो इस प्रकार है:'सिंधु नदी के उद्गम स्थान (जहां से यह निकलती है) से लेकर हिंदमहासागर तक संपूर्ण भारत भूमि जिसकी मातृभूमि तथा पवित्र भूमि है वह हिंदू कहलाता है और उसका धर्म हिंदुत्व।'विश्वविख्यात महात्मा श्री विनोबाजी भावे ने हिंदू शब्द की परिभाषा एवं लक्षण इस प्रकार बताए हैं:जो वर्णों और आश्रमों की व्यवस्था में निष्ठा रखनेवाला, गो-सेवक, श्रुतियों (धार्मिक गं्रथों) को माता की भांति पूज्य मानने वाला तथा सब धर्मों का आदर करने वाला है,देवमूर्ति की जो अवज्ञा नही ंकरता, पुनर्जन्म को मानता और उससे मुक्त होने की चेष्टा करता है तथा जो सदा सब जीवों के अनुकूल बर्ताव को अपनाता है। वही 'हिंदू' माना गया है। हिंसा से उसका चित्त दु:खी होता है, इसलिए उसे 'हिंदू' कहा गया है।सनातन धर्म का अमिट स्वरूपप्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक अनेक जातियों, संप्रदायों, मतों, पंथों एवं वादों का भारत में आगमन होता रहा है। भारत में आदिकाल (प्रारंभ) से निवास करने वाली 'हिंदू' जाति ने अपने मूल सनातन धर्म जिसे बाद में 'हिंदू' धर्म कहा जाने लगा को सदैव सुरक्षित एवं परिपूर्ण बनाए रखा। विश्व के विभिन्न देशों में जन्मे एवं पनपे अनेक धर्मों एवं संस्कृतियों का अस्तित्व वर्तमान में लगभग समाप्त हो चुका है। जबकि हिंदू धर्म और संस्कृति उसी मूल स्वरूप में आज तक जीवित एवं नित-नवीन रूप मे विस्तारमान है। वैदिक धर्महिंदू जाति ने अपना धर्म श्रुति-वेदों से प्राप्त किया है। उनकी धारणा है कि वेद अनादि और अनंत हैं। वेदों का अर्थ है, भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविस्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वेदों की घोषणा है- 'मैं शरीर में रहने वाली आत्मा हूं, मैं शरीर नहीं हूं। शरीर मर जाएगा, पर मैं नहीं मरूंगा। मैं इसमें विद्यमान (रहने वाला) हूं और जब यह शरीर नहीं रहेगा तब भी मेरा अस्तित्व बना रहेगा। मेरा एक अतीत (पिछला जन्म) भी है।'आत्मा का अमर स्वरूपहिंदू धर्म में शरीर को नश्वर तथा आत्मा का निवास स्थान बताया गया है। आत्मा को ही मनुष्य का मूल स्वरूप मानते हुए, उसे अजर-अमर अर्थात् अनश्वर माना गया है। आत्मा की अमरता के बाद, कर्मफल की मान्यता भी हिंदू धर्म की प्रधान विशेषता है। प्रत्येक कर्म का फल या परिणाम मिलना निश्चित माना गया है। मनुष्य को उसके जीवन में मिलने वाले दु:ख, सुख, अमीरी-गरीबी एवं मान-अपमान स्वयं उसके ही पिछले और वर्तमान के कर्मों का परिणाम है। हिंदू धर्म की मान्यता है कि मनुष्य की वर्तमान अवस्था उसके ही पूर्व कर्मों का परिणाम है और भविष्य में उसकी जो भी अवस्था होगी वह उसके वर्तमान कर्मों द्वार निर्धारित होगी।हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि मनुष्य का मूल स्वरूप उसकी 'आत्माÓ है न कि शरीर। उसको (आत्मा) शस्त्र काट नहीं सकते। अग्नि जला नहीं सकती, जल भिगो नहीं सकता, और वायु सुखा नहीं सकती। हिंदुओं की ऐसी मान्यता है कि आत्मा एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है, किंतु जिसका केंद्र शरीर में अवस्थित है, और मृत्यु का अर्थ है इस केंद्र का एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाना।सर्वव्यापी ईश्वरईश्वर के स्वरूप और गुणधर्मों के विषय में 'हिंदू' धर्म की मान्यता है कि वह परमात्मा सर्वत्र (सभी जगह रहने वाला) है। शुद्ध व पूर्ण पवित्र है, निराकार (जिसका आकार न हो), सर्व शक्तिमान है, सब पर उसकी पूर्ण दया है, वही सबका पिता है, सबकी माता है, वही सबका परमप्रिय सखा है, वही सभी शक्तियों का मूल है, वह हमें इस जीवन के उत्तरदायित्वों, कत्र्तव्यों को वहन करने की शक्ति दे क्योंकि वह इस संपूर्ण ब्रह्मांड का भार वहन करता है।जीवन का लक्ष्य मोक्षहिंदू धर्म के आधार स्तंभ वेद कहते हैं कि आत्मा दिव्यस्वरूप है, वह केवल पंच तत्वों (पृथ्वी, अग्रि, जल, वाय ुव आकाश) या पंचमहाभूतों के बंधनों में बंध गई है और उन बंधनों के टूटने पर वह अपने असली स्वरूप को प्राप्त कर लेगी। इसी अवस्था का नाम मुक्ति या मोक्ष है। जिसका अर्थ है स्वाधीनता, अपूर्णता के बंधनों से छुटकारा, जन्म-मृत्यु से छुटकारा। इस प्रकार हिंदुओं की सारी साधना, प्रणाली का लक्ष्य है - बिना रुके, बिना थके, लगातार के प्रयास द्वारा पूर्ण बन जाना, दिव्य बन जाना, ईश्वर को प्राप्त करना या साक्षात्कार करना।प्रमुख सिद्धांतबड़े-बड़े विद्वान ऋषियों के हजारों वर्षों के प्रयास के बल पर इस हिंदू धर्म का विकास किया है। हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं।1. वेद हिंदू धर्म के प्रामाणिक धर्म ग्रंथ।2. ईश्वर में विश्वास और नाना रूपों में उसकी उपासना।3. जीवन में नैतिक एंव मर्यादित आचरण पर अडिग रहना।4. ऋषि-मुनियों द्वारा बनाई गई आश्रम व्यवस्था को मानना। जो कि पूर्णत: वैज्ञानिक प्रणाली है।5. कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास।
हिंदू धर्म के आधार ग्रंथहिंदू धर्म में वेदों को ज्ञान का भंडार एवं ईश्वरीय पुस्तक के रूप में मान्यता एवं सम्मान प्राप्त है। इनकी संख्या चार है जो कि इस प्रकार हैं :1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद 3. सामवेद 4. अथर्ववेद
 धर्मग्रंथहिंदुओं के धर्म शास्त्रों को दो भागों में बांटा गया है : श्रुति और स्मृति। श्रुति अर्थात् सुनी गई यानि ईश्वर के पास से साक्षात् सुनी गई वाणी। वेद से लेकर उपनिषद् तक श्रुतियों में आते हैं।स्मृति अर्थात् स्मरण की गई, स्मरण में रखकर याद करके और उसके बताए विषयों पर विचार करके जो शास्त्र रचे गए उनका नाम स्मृति है। स्मृतियों में छ: वेदांग, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण और नीति के ग्रंथ आते हैं। धर्म शास्त्रों में धर्म सूत्र, स्मृतियों और निबंधकारों का साहित्य आता है।वेदांगों में कल्प का बहुत अधिक महत्व है। कल्प सूत्रों में यज्ञ भाग के संस्कारों की विधियां दी गई है। कल्प सूत्र के तीन भाग हैं: श्रौत, ग्रह्य सूत्र और धर्म सूत्र। श्रौत सूत्र में वैदिक यज्ञों का कर्मकाण्ड (पूजा पद्धति) है। ग्रह्य सूत्र में जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले पारिवारिक जीवन संबंधी कर्मों का विधान है, इसमें पाक यज्ञ भी है और पंच महायज्ञ भी। श्राद्ध तथा अन्य संस्कार भी धर्म सूत्रों में हैं। मुख्य धर्म सूत्र हैं : आपस्तंब, बौधायन, गौतमीय, हिरण्याकेशन। स्मृतियों की रचना भी आगे चलकर धर्मसूत्रों में से ही हुई है।स्मृतियां :हिंदू धर्म शास्त्रों में स्मृतियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। स्मृतियों की संख्या 18 से लेकर 56 तक बताई जाती है। मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, हारीत, उशनस, अंगिरा, कात्यायन, बृहस्पति, व्यास, गौतम, वशिष्ठ और पाराशर की मुख्य स्मृतियां मानी गई हैं। मनुस्मृति या मानव धर्म शास्त्र सबसे पुरानी स्मृति मानी जाती है। मनु स्मृति में 12 अध्याय है। इसके 12 अध्यायों में व्यक्ति, परिवार एवं समाज के लिए नियम कायदे दिए गए हैं।
 धर्म निबंधस्मृतियों की प्रामाणिक संख्या को लेकर जब मत-भिन्नता (मतभेद, अलग-अलग राय) उत्पन्न हो गई और स्मृतियों की संख्या बहुत बढ़ गई तब धर्म निबंधों की रचना हुई। उस समय के राजाओं ने स्मृतियों का सारांश धर्म निबंधों के रूप में तैयार करवाया। स्मृति कल्पतरू, सबसे पुराना धर्म निबंध है। मुख्य धर्म निबंध हैं-ै स्मृति चंद्रीका, चतुर्वर्ग चिंतामणि, स्मृति रत्नाकर, धर्म रत्न, निर्णय सिंधु।
 इतिहासहिंदू इतिहास में दो ग्रंथ माने जाते हैं रामायण और महाभारत। आदिकवि वाल्मीकि ने अयोध्या के राजा एवं विष्णु के दशावतारों में सातवें अवतार भगवान राम की पूरी कथा का वर्णन किया है। वाल्मीकि द्वारा रची गई रामायण की भाषा संस्कृत होने के कारण आधुनिक लोगों के लिए कठिन प्रतीत होती थी। तुलसीदास ने इसी रामायण को वर्तमान भाषा में रचकर सबके लिए सुलभ एवं सहज बना दिया। तुलसीकृत रामायण का नाम रामचरितमानस है। हिंदू धर्म में रामायण (भगवान राम की कथा) की अत्यधिक महत्ता है।महाभारत महर्षि वेदव्यास की रचना है। इसमें कोरवों और पाण्डवों के युद्ध का विस्तार से वर्णन है। यह संपूर्ण ग्रंथ बहुत बड़ा है। जिसे 18 पर्वों में विभाजित किया गया है। युद्ध वर्णन के साथ-साथ महाभारत में कई अन्य कथाएं एंव प्रेरणास्पद उपदेश दिए गए हैं।
पुराण शब्द का अर्थ प्राचीन या पुराना होता है। प्राचीनता के कारण ही उक्त ग्रंथों का नाम पुराण पड़ा। वेदों, उपनिषदें, स्मृतियों आदि धर्म शास्त्रों के गूढ़ (कठिन) गंभीर तत्वज्ञान को, सरल भाषा में कथा कहानियों के रूप में जिन ग्रंथों में वर्णित किया गया उन्हीं को पुराण कहते हैं। महाभारत और श्रीमद्भागवत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास ही पुराणों के भी रचनाकार (लेखक)माने गए हंै। प्रमुख पुराणों की संख्या 18 मानी गई है। जो कि इस प्रकार हैं : ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, हरिवंश पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण,स्कंद पुराण,वामन पुराण, कूर्म पुराण मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्मांड पुराण।यदि समस्त पुराणों का अध्ययन करने पर इनका मूलभाव निकाला जाए तो वह है - परोपकार ही पुण्य है और स्वार्थ में किसी को कष्ट देना या हानि पहुंचाना ही सबसे बड़ा पाप है।
 दर्शनशास्त्रजीवन और जीवन के उद्देश्य के विषय में एक विशेष दृष्टिकोण रखने वाले शास्त्र दर्शनशास्त्र कहलाते हैं। मूलत: भारतीय हिंदू दर्शन आस्तिक दर्शन है। किंतु अत्यंत कम प्रभाव व प्रसार वाले नास्तिक दर्शनों का भी अस्तित्व भारत में रहा है। अत: सुविधा की दृष्टि से हम दर्शन को दो भागों में बांटते हैं।
आस्तिक दर्शनवेदों का प्रमाण मानने वाले छ: दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते हैं जो इस प्रकार हैं: 1. न्याय दर्शन2. वैशेषिक दर्शन3. सांख्य दर्शन4. योग दर्शन5. मीमांसा दर्शन6. वेदांत दर्शन
नास्तिक दर्शन तीन माने गए हैं : 1. चार्वाक 2. जैन दर्शन 3. बौद्ध दर्शन
 इन दर्शनों में बहुत गहरा तत्वज्ञान समाया हुआ है। मानव जीवन का उद्देश्य, जीवन का अर्थ, जीवन की सार्थकता, परमज्ञान की प्राप्ति, परमानंद एवं चिरशांति का मार्ग आदि मनुष्य जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों का बड़ा महत्वपूर्ण एवं गहन विवेचन व विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। सभी की यह मान्यता एवं अनुभव है कि आनंद प्राप्ति के लिए, मुक्ति के लिए, मोक्ष के लिए, निश्चित रूप से शुद्ध, पवित्र एवं नि:स्वार्थ जीवन जीना अनिवार्य आवश्यकता है।

 नैतिक आचरण
 हिंदू धर्म के भिन्न-भिन्न उपासना मार्गों में चाहे वह भक्ति मार्ग हो, ज्ञान मार्ग हो, योग मार्ग हो, चाहे तंत्र मार्ग हो सब में पवित्र नैतिक आचरण पर बल दिया गया है। पवित्र आचरण और नैतिकता हिंदू धर्म की आधार-शिला है। इसलिए हिंदू धर्म की प्रत्येक साधना का प्रारंभ यम और नियम से ही होता है। यम और नियम के बिना कोई भी साधना और धर्म कार्य सफल नहीं हो सकता। यम के भी कुछ अंग हैं:

ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा, ध्यान, सत्य, नम्रता, अहिंसा, चोरी न करना, मधुर स्वभाव, इंद्रियों पर नियंत्रण।

यम की तरह नियम के भी कुछ अंग बताए गए हैं,जो कि इस प्रकार हैं: स्नान, मौन, उपवास, यज्ञ, स्वाध्याय, इंद्रियनिग्रह, गुरु सेवा, शौच, क्रोध न करना, प्रमाद न करना।

 हिंदू धर्म में नारियों का सम्मान
 हिंदू धर्म में नारियों का स्थान अत्यंत उच्च एवं पूजनीय है। नारियों के लिए हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि: ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता'' हिंदू धर्म में मान्यता है कि जहां पर नारियों की पूजा एवं आदर-सम्मान होता है,वहां देवताओं (दैवीय शक्तियों) का वास होता है। जहां पर उनका सम्मान, सत्कार व सुख-सुविधा की व्यवस्था और परंपरा नहीं होती वहां दु:ख, दरिद्रता(गरीबी) अशांति, रोग-शोक एवं संकटों का वातावरण बना रहता है। जिस घर में दु:खी होकर नारियों के आंसू गिरते हैं। वहां से सुख, समृद्धि एवं शांति नष्ट हो जाते हैं।

 हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ
 यद्यपि हिंदू धर्म में अनेक ग्रंथ और शास्त्र हैं। जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, किंतु जो सर्वाधिक प्रचलित एवं उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार हंै : 1. गीता 2. महाभारत 3. रामायण 4. वेद (चार) 5. पुराण 6. उपनिषद्(१०८) 7. मनुस्मृति
जय श्री राम
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हिन्दू धर्म की कुछ प्रचलित विशेषताएं -----


हिंदुत्व केवल धर्म नही अपितु ये सफल जीवन जीने का तरीका है. हिंदू धर्म में कई विशेषताएँ है. इसको सनातन धर्म भी कहाँ गया है. भागवद गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है वो जो अग्नि से, पानी से , हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है. धर्म का अर्थ होता है जीवन जीने की कला. सनातन धर्म की जड़े आद्यात्मिक विज्ञान में है. सम्पूर्ण हिंदू शास्त्रों में विज्ञान और आध्यात्म जुड़े हुए है. यजुर्वेद के चालीसवे अध्याय के उपनिषद में ऐसा वर्णन आता है कि जीवन की समस्याओ का समाधान विज्ञान से और आद्यात्मिक समस्याओ के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए.

स्मृति से हमें बताती है की व्यक्ति को एक चौथाई ज्ञान आचार्य या गुरु से मिल सकता है, एक चौथाई स्वयं के आत्मावलोकन से, अगला एक चौथाई अपने संग या संगती में विचार विमर्श करने से और आखिरी एक चौथाई अपने जीवन शैली से जिसमे सद्विचार और सदव्यवहार को जोड़ना, कमजोरीयों को हटाना, अपना सुधार करते रहना और समय के अनुकूल परिवर्तन करना शामिल है. अकसर आज के मानव के मन में कई बार रीती रिवाजो को लेकर क्यो, कैसे और किसलिए आदि प्रश्न उठते रहते है. आईये हिंदू धर्म से सम्बंधित कुछ जिज्ञासाओं का जवाब पाने का प्रयास करे.


ॐ का उच्चारण क्यों करते है ?
भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?
घर में पूजा का कमरा क्यों होता है ?
हम नमस्ते क्यों करते है ?
हम बडो के पैर क्यों छूते है ?
हम आरती क्यों करते है ?
भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ?
ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ?
कलश पूजा क्यों की जाती है ?
शंख क्यों बजाया जाता है ?
उपवास का क्या महत्त्व है ?
पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ?



ॐ का उच्चारण क्यों करते है ? ?

हिंदू में ॐ शब्द के उच्चारण को बहुत शुभ माना जाता है. प्रायः सभी मंत्र ॐ से शुरू होते है. ॐ शब्द का मन, चित्त, बुद्धि और हमारे आस पास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ॐ ही एक ऐसा शब्द है जिसे अगर पेट से बोला जाए तो दिमाग की नसों में कम्पन होता है. इसके अलावा ऐसा कोई भी शब्द नही है जो ऐसा प्रभाव डाल सके.

ॐ शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है जो है "अ", "उ" और "म". जब हम पहला अक्षर "अ" का उच्चारण करते है तो हमारी वोकल कॉर्ड या स्वरतन्त्री खुलती है और उसकी वजह से हमारे होठ भी खुलते है. दूसरा अक्षर "उ" बोलते समय मुंह पुरा खुल जाता है और अंत में "म" बोलते समय होठ वापस मिल जाते है. अगर आप गौर से देखेंगे तो ये जीवन का सार है पहले जन्म होता है, फिर सारी भागदौड़ और अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन.

ॐ के तीन अक्षर आद्यात्म के हिसाब से भी ईश्वर और श्रुष्टि के प्रतीकात्मक है. ये मनुष्य की तीन अवस्था (जाग्रत, स्वपन, और सुषुप्ति), ब्रहांड के तीन देव (ब्रहा, विष्णु और महेश) तीनो लोको (भू, भुवः और स्वः) को दर्शाता है. ॐ अपने आप में सम्पूर्ण मंत्र है.



भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है. हर घर में आपको सुबह, या शाम को या फिर दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है. कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है. किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है.

प्रकाश ज्ञान का घोतक है और अँधेरा अज्ञान का. प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है. ज्ञान अज्ञान का नाश करता है और उजाला अंधेरे का. ज्ञान वो आंतरिक उजाला है जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है. अत दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है.

कुछ तार्किक लोग प्रश्न कर सकते है कि प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है फिर दीपक की क्या आवश्यकता ? तो भाई ऐसा है की दीपक का एक महत्त्व ये भी है कि दीपक के अन्दर जो घी या तेल जो होता है वो हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए. अंत में आइये दीप देव को नमस्कार करे :

शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।।
सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं।



पूजा का कमरा घर में क्यों होता है ?

घरो में पूजा के कमरे का अपना महत्त्व है. हर घर में पूजा का कमरा होता है जहाँ पर दीपक लगा कर भगवान की पूजा की जाती है, ध्यान लगाया जाता है या पाठ किया जाता है. भगवान चूँकि पुरी श्रष्टि के रचियेता है और इस हिसाब से घर के असली मालिक भी भगवान ही हुए. भगवान का कमरा ये भावः दर्शाता है की प्रभु इस घर के मालिक है और घर में रहने वाले लोग भगवान की दी हुई जमीन पर इस घर में रहते है. ये भावः हमें झूठा अभिमान और स्वत्वबोध से दूर रखता है.

आदर्श स्तिथि में मनुष्य को ये मानना चाहिए की भगवान ही घर के मालिक है और मनुष्य केवल उस घर का कार्यवाहक प्रभारी है. एक अन्य भावः ये भी है की ईश्वर सर्वव्यापी है और घर में भी हमारे साथ रहता है इसलिए घर में एक कमरा प्रभु का है.

जिस तरह घर में प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग कक्ष होते है, जैसे आराम के लिए शयनकक्ष, खाना बनाने के लिए रसोईघर, मेहमानों के लिए ड्राइंग रूम या आगंतुक कक्ष ठीक उसी प्रकार हमारे आध्यात्म के लिए भगवान का कमरा होता है जहाँ पर बैठ कर ध्यान पूजा पाठ और जप किया जा सकता है.


हम नमस्ते क्यों करते है ?

शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है "नमस्कारम". नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है. संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते. नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया. नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नही.

आध्यात्म की दृष्टी से इसमे मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है. नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये.



हम बडो के पैर क्यों छूते है ?

भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है. अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक उर्जा होती है. आदर के निम्न प्रकार है :

प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना

किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है ये शास्त्रों में विदित है. उदहारण के तौर पर राजा केवल ऋषि मुनि या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे.



हम आरती क्यों करते है.

जब भी कोई घर में भजन होता है, या कोई संत का आगमन होता है या पूजा पाठ के बाद हिंदू धर्म में दीपक को दायें से बाएँ तरफ़ वृताकार रूप से घुमा कर साथ में कोई वाद्य यन्त्र बजा कर अन्यथा हाथ से घंटी या ताली बजा कर भगवान की आरती की जाती है. ये पूजा की विधि में षोडश उपचारों में से एक है. आरती के पश्च्यात दीपक की लौ के उपर हाथ बाएँ से दायें घुमा कर हाथ से आँखों और सर को छुआ जाता है.

आरती में कपूर जलाया जाता है वो इसलिए की कपूर जब जल जाता है तो उसके पीछे कुछ भी शेष नही रहता. ये दर्शाता है कि हमें अपने अंहकार को इसी तरह से जला डालना है की मन में कोई द्वेष, विकार बाकी न रह जाए. कपूर जलते समय एक भीनी सी महक भी देता है जो हमें बताता है कि समाज में हमें अंहकार को जला कर खुशबु की तरह फैलते हुए सेवा भावः में लगे रहना है.

दीपक प्रज्वालित कर के जब हम देव रूपी ज्ञान का प्रकाश फैलाते है तो इससे मन में संशय और भय के अंधकार का नाश होता है. उस लौ को जब हम अपने हाथ से अपनी आँखों और अपने सर पर लगा कर हम उस ज्ञान के प्रकाश को अपनी नेत्र ज्योति से देखने और दिमाग से समझने की दुआ मांगते है.



भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ?

आप देखेंगे की मन्दिर में आम तौर पर नारियल अर्पित किया जाता है. शादी, त्यौहार, गृह प्रवेश, नई गाड़ी के उपलक्ष में या किसी प्रकार के अन्य उत्सव या शुभ कार्य में भी प्रभु को नारियल अर्पित किया जाता है. प्रभु को नारियल अर्पित के पीछे जो मुख्य कारण है, आइये उनका अवलोकन करे. नारियल अर्पित करने से पहले उसके सिर के अलावा सारे तंतु या रेशे उतार लिए जाते है. ऐसे में अब ये नारियल मानव खोपडी के सामान दीखता है और इसे फोड़ना इस बात का प्रतीक है कि कर हम अपने अंहकार को तोड़ रहे है. नारियल के अन्दर का पानी हमारी भीतर की वासनाये है जो हमारे अंहकार के फूटने पर बह जाती है.

नारियल निस्वार्थता का भी प्रतीक है. नारियल के पेड़ का तना, पत्ती, फल (नारियल या श्रीफल) मानव को घर का छज्जा, चटाई, तेल, साबुन आदि बनाने में काम में आता है. नारियल का पेड़ समुद्र का खारा पानी लेकर मीठा, स्वादिष्ट और पौष्टिक नारियल और नारियल का पानी देता है.



ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो हमेशा भीतर और बहार शांति की खोज में लगा रहता है. मनुष्य या तो अपने लिए ख़ुद विघ्न खड़ा करता है या फिर दुसरे लोग उसकी शांति में बाधा उत्पन्न करते है. जब तक कोई उपद्रव नही होता वहां शांति रहती है. वादविवाद शांत होने के बाद शांति उसी तरह कायम हो जाती है जैसे पहले थी. आज के वातावरण में झमेलों के चलते शांति की खोज बहुत कठिन है. कुछ लोग होते है जो कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी शांत रहते है. हिंदू धर्म में शांति का आह्वान करने के लिए मंत्र, यज्ञ आदि के अंत में तीन बार शांति का उच्चारण किया जाता है जिसे त्रिव्रम सत्य भी कहा जाता है. सम्पूर्ण दुखो के तीन उद्भव स्थान माने गए है और तीन बार शांति का उच्चारण करके इन उद्भव स्थानों को संबोधित किया जाता है.

पहली बार शांति का उद्घोष अधिदेव शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वरीय शक्ति जैसे प्राकृतिक आपदाये, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ आदि जिन पर मानव का कोई नियंत्रण है है उसे शांत रखने की प्रार्थना की जाती है.
दूसरी बार शांति का उद्घोष आधिभौतिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे दुर्घटना, प्रदुषण, अधर्म, अपराध आदि से शांत बने रहने की प्रार्थना की जाती है.

आखरी बार शांति का उद्घोष आध्यात्मिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वर से प्रार्थना की जाती है की हम अपने रोजमर्रा में जो भी सामान्य या अतरिक्त कार्य करे उसमे हमें किसी भी प्रकार की बाधाओ का सामना न करना पड़े.

कलश पूजा क्यों की जाती है ?
आम तौर पर हर हिंदू पूजा में एक कलश (जो प्रायः पीतल, ताम्बे या मिट्टी का) होता है जिस में पानी भरा जाता है. इसके मुंह पर आम की पत्तियां रखी जाती है, ऊपर एक नारियल रखा जाता है और फिर इसे लाल या सफ़ेद धागे से चारो और से बाँधा जाता है.लोटे में पानी भर कर चावल के कुछ दाने डालने की क्रिया को पूर्ण कुम्भ भी कहते है जो हमारे जीवन को भरा पुरा होना दर्शाता है.

चूँकि पृथ्वी पर पहले केवल पानी था और पानी से ही जीव की उत्पत्ति हुई है इसलिए कलश का जल सम्पूर्ण पृथ्वी का द्योतक है. जिससे जीवन का आरम्भ हुआ था. नारियल और आम की पत्तियां सृजनात्मकता या जीवन को दर्शाती है. धागे से बाँध कर रखने का उद्देश्य विश्व की सम्पूर्ण उत्पत्ति को एक सूत्र में पिरोना दर्शाता है.

शंख क्यों बजाया जाता है ?
शंख बजाने से ॐ की मूल ध्वनि का उच्चारण होता है. भगवान ने श्रष्टि के निर्माण के बाद सबसे पहले ॐ शब्द का ब्रहानाद किया था. भगवान श्री कृष्ण के भी महाभारत में पाञ्चजन्य शंख बजाय था इसलिए शंख को अच्छाई पर बुरे की विजय का प्रतीक भी माना जाता है. ये मानव जीवन के चार पुरुषार्थ में से एक धर्म का प्रतीक है.
शंख बजाने का एक कारण ये भी है की शंख की ध्वनि से जो आवाज़ निकलती है वो नकारात्मक उर्जा का हनन कर देती है. आस पास का छोटा मोटा शोर जो भक्तो के मन और मस्तिष्क को भटका रहा होता है वो शंख की ध्वनि से दब जाता है और फिर निर्मल मन प्रभु के ध्यान में लग जाता है.

प्राचीन भारत गाँव में रहता था जहाँ मुख्यत एक बड़ा मन्दिर होता था. आरती के समय शंख की ध्वनि पुरे गाँव में सुने दे जाती थी और लोगो को ये संदेश मिल जाता था कि कुछ समय के लिए अपना काम छोड़ कर प्रभु का ध्यान कर ले.

उपवास का क्या महत्त्व है

उप+वास=उपवास;मतलब आराध्य के नजदीक रहना ; उसको देखना उसको समझना उसके गुणों को जानना ; उसके गुणों का चिंतन करना ; गुणों को आत्मसात करना. भगवान हमें यह नहीं कहते कि तुम्हें उपवास करना ही है। यह सब तो हमारी मर्जी से चलते है। फिर क्यों न उपवास को सही ढंग और सही नियम से किए जाए ताकि हमें सही अर्थ में उसका फल भी प्राप्त हो।

वैज्ञानिक रूप से भी शरीर की शुद्धि के लिए व्रत का महत्त्व स्वीकार किया गया है | उपवास का सही अर्थ दिन में एक बार फल का आहार लेना, एक आसन पर बैठकर एक ही समय में खाना ताकि बार-बार खाने में न आए, उपवास के हर दिन कोई एक अलग वस्तु का त्याग करना ऐसा ही कुछ होना चाहिए। लेकिन होता ऐसा नहीं और कुछ ही होता है। जब उपवास करने के दिन नजदीक आने लगते है तभी लोग घरों में अलग-अलग प्रकार की मिठाई, फलाहारी व्यंजन आदि बनाकर पहले से ही रख लेते है। और उपवास के दिनों में जो अलग-अलग व्यंजन बनेंगे सो अलग। ऐसे में उपवास का सही अर्थ क्या होता है यह समझना मुश्किल ही है।

दरअसल सैकड़ों सालों से चले आए धार्मिक रीतिरिवाजों को हम तोड़-मरोड़कर अब इस्तेमाल कर रहे हैं। जरूरत है उपवास शब्द को सही तरह से समझा जाए और उसके बाद ही उपवास के बंधन में बंधा जाए।

उपवास का अर्थ संयम भी है। संयम का अर्थ है दिनभर की चाय या खान-पान पर संयम करना। ऐसा नहीं कि भूख नहीं लगी हो फिर भी मुँह चलाते रहने के लिए कुछ न कुछ खाते रहना। अगर उपवास के नाम पर तरह-तरह के व्यंजन ही बनाकर खाना हो और तरह-तरह के फल ही खाना हो, दिन भर मुँह चलाना हो तो फिर उपवास करना ही बेकार है.

पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ?
हिन्दू धर्म में ज्ञान को पवित्र और अलौकिक माना गया है. आप पाएंगे की हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा, दवात पूजा, आयुध पूजा भी की जाती है. किसी भी चीज़ को पाँव से छूना अपमानजनक माना गया है. पुस्तक सम्मानीय है और उसका दर्जा बड़ा है इसलिए पाँव से छूकर पुस्तक का अपमान नहीं किया जाता.
Bhavesh ji

टिप्पणियाँ

  1. धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) ।
    व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
    व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    धर्म सनातन है भगवान शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
    धर्म एवं ‘ईश्वर की उपासना द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
    कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri

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    1. वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।

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