विजयादशमी : ‘जय श्रीराम’ - ‘जय जय श्रीराम’ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
Posted on: October 12, 2016
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लखनऊ। मंगलवार को विजयादशमी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ की ऐतिहासिक ऐशबाग की रामलीला में शामिल हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने दशहरा कार्यक्रम में अपने 25 मिनट के भाषण में मन के रावण को दूर करने से आतंक के रावण को हराने की बात की। पीएम के भाषण की 10 बड़ी बातें क्या थीं, जानिए-
-मोदी ने अपने भाषण का समापन भी ‘जय श्रीराम’ और ‘जय जय श्रीराम’ के उद्घोष के साथ किया। मैदान में मौजूद जनता ने उनका साथ दिया और पूरे वातावरण में जय श्रीराम का उद्घोष गूंज उठा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के लिए समान अधिकार की वकालत करते हुए लोगों से अपील की कि लड़के और लड़की के बीच भेदभाव बंद होना चाहिए और ‘अपने घरों की सीता’ को बचाना चाहिए।
-प्रधानमंत्री ने सवाल किया कि आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले कौन लड़ा था? फिर खुद ही जवाब दिया, ‘रामायण गवाह है कि आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले जिसने लड़ाई लडी थी, वो जटायू ने लड़ी थी। एक नारी की रक्षा के लिए रावण जैसी सामर्थ्यवान शक्ति के खिलाफ जटायू लड़ता रहा, जूझता रहा। आज भी अभय का संदेश कोई देता है तो वो जटायू देता है, इसलिए सवा सौ करोड़ देशवासी राम तो नहीं बन पाते हैं। लेकिन अनाचार, दुराचार, अत्याचार के सामने हम जटायू के रूप में तो कोई भूमिका अदा कर सकते हैं।’
-मोदी ने गंदगी और अशिक्षा से मुक्ति के लिए भी संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘हमारे भीतर ऐसी चीजें जो रावण के रूप बिखरी पड़ी हैं, उससे इस देश को मुक्ति दिलानी है।’
-पीएम ने कहा कि चाहे जातिवाद हो या वंशवाद, ऊंच नीच की बुराई हो, संप्रदायवाद का जुनून हो, ये सारी बुराइयां किसी ना किसी रूप में रावण हैं, इसलिए इनसे मुक्ति पाना हमारा संकल्प होना चाहिए।
-उन्होंने कहा, ‘श्रीकृष्ण के जीवन में भी युद्ध था। राम के जीवन में भी युद्ध था। लेकिन हम वो लोग हैं, जो युद्ध से बुद्ध की ओर चले जाते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘समय के बंधनों से, परिस्थिति की आवश्यकताओं से युद्ध कभी कभी अनिवार्य हो जाते हैं लेकिन ये धरती का मार्ग युद्ध का नहीं बल्कि बुद्ध का है। हम हमारे भीतर के रावण को खत्म करने वाले और अपने देश को सुजलाम सुफलाम बनाने के लिए संकल्प करने वाले लोग हैं।’
-मोदी ने कहा, ‘अगर सवा सौ करोड़ देशवासी एक बनकर आतंकवादियों की हर हरकत पर ध्यान रखें और चौकन्ने रहें तो आतंकवादियों का सफल होना बहुत मुश्किल होगा।’
-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद को मानवता का दुश्मन करार देते हुए कहा कि आतंकवाद को आज जड़ से खत्म करने की जरूरत है और जो आतंकवाद को पनाह देते हैं, उन्हें भी नहीं बख्शा जा सकता।
-आतंकवाद को खत्म किये बिना मानवता की रक्षा संभव नहीं। आतंकवाद मानवता का दुश्मन है।
-मोदी ने कहा कि आज से तीस-चालीस साल पहले जब हिंदुस्तान दुनिया के सामने आतंकवाद के कारण होने वाली परेशानियों की चर्चा करता था तब वह विश्व के गले नहीं उतरता था। वर्ष 1992-93 की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वह उस समय अमेरिका के ट्रेड डिपार्टमेंट के स्टेट सेक्रेटरी से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा, जब मैं आतंकवाद की बात करता तो वे (स्टेट सेक्रेटरी): बोलते थे कि ये आपकी कानून व्यवस्था की समस्या है, जब 26-11 हमले के बाद सारी दुनिया के गले उतर गया कि आतंकवाद कितना भयंकर है।
(भाषा से प्राप्त जानकारी के साथ)
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हम युद्ध से बुद्ध की ओर जाने वाले लोग:
दशहरा रैली में बाेले मोदी; गिनाए 10 रावण
लखनऊ.नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को यहां ऐशबाग की ऐतिहासिक रामलीला में शिरकत की। इस मौके पर उन्होंने लोगों को विजयादशमी की शुभकामनाएं दी आैर रावण के 10 रूप गिनाते हुए उनके खात्मे का संकल्प लेने की अपील की। मोदी ने जय श्री राम कहकर स्पीच की शुरुआत की और जय श्री राम कहकर ही उसे खत्म भी किया। उन्होंने कहा- 'दशहरे का मतलब है कि हम अपने भीतर की 10 बुराइयों को खत्म करें। जो लोग आतंकवाद को शह देते हैं उनको बख्शा नहीं जा सकता, लेकिन हम युद्ध करने वाले नहीं, युद्ध से बुद्ध की ओर जाने वाले लोग हैं।' मोदी ने और क्या कहा...- मोदी ने आतंकवाद के अलावा जातिवाद, वंशवाद, साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, दुराचार, कन्या भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, गरीबी और अशिक्षा को भी रावण का ही रूप बताया।
- मोदी ने रामायण से सीख लेने की सलाह दी। कहा- 'विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। आतताई को परास्त करने का पर्व है।'
- 'हम रावण को हर वर्ष जलाते हैं। हम इस परंपरा से क्या सबक लेते है। रावण को जलाते समय एक ही संकल्प होना चाहिए कि हम हमारे जीवन की बुराइयों को भी ऐसे ही भस्म करके रहेंगे। हमें हर साल इस संकल्प को मजबूत बनाना चाहिए।'
- 'आज शायद उस समय का रावण नहीं होगा, आज राम -रावण की तरह लड़ाई भी नहीं होगी।'
- 'हम वो लोग हैं जो युद्ध से बुद्ध की ओर चले जाते हैं। राम और कृष्ण दोनों ने युद्ध देखे, लेकिन हमें बुद्ध की जरूरत है।'
- 'युद्ध के मैदान में गीता का संदेश देने वाले मोहन का है ये देश। ये चरखे वाले मोहन का भी देश है।
'आतंकवाद को परास्त किए बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती'
- मोदी ने कहा, 'आतंकवाद मानवता का दुश्मन है। प्रभु राम मानवता का प्रतीक हैं। वे मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले कौन लड़ा था? आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहली लड़ाई जटायु ने लड़ी थी। आज भी अभय का संदेश जटायु देता है।'
- 'हम राम तो नहीं बन सकते लेकिन जटायु बनने की कोशिश हमें करनी चाहिए।'
- 'आज जब आप रावण को जला रहे हैं तो पूरे विश्व की मानवतावादी शक्तियों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी। आतंकवाद को परास्त किए बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। विजयादशमी से हमें यही प्रेरणा लेनी है।'
'अब अमेरिका भी हमारा दर्द समझता है'
- मोदी ने कहा- 'पहले हमारी समस्या को दुनिया नहीं सुनती थी। 1992 और 93 में अमेरिकी अफसर मेरी बात को नहीं समझे थे। इसे लॉ एंड ऑर्डर प्राॅब्लम बताया था। लेकिन 26/11 के बाद समझ गए।'
- 'आतंकवाद से पूरा विश्व तबाह हो रहा है। दो दिन से हम सीरिया की एक छोटी बालिका का चित्र देख रहे हैं। आंख में आंसू आ जाते हैं।'
- 'पूरे विश्व की मानवतावादी शक्तियों को लड़ाई लड़नी पड़ेगी। आतंकवाद को खत्म किए बिना मानवता की रक्षा नहीं की जा सकती।'
'बेटियों के पैदा होने पर भी उत्सव मनाएं'
- पीएम ने कहा- 'हमें समाज के भीतर की बुराइयां खत्म करनी होंगी। दुराचार और भ्रष्टाचार अगर रावण नहीं तो क्या हैं? गंदगी भी रावण का ही एक रूप है। बीमारी भी रावण का ही एक रूप है। जो गरीब बच्चों की जान लेती है।'
- 'अाज गर्ल चाइल्ड डे भी है। सीता माता को सताने वाले हरण करने वाले रावण को हम हर साल जलाते हैं। लेकिन मां के गर्भ में पल रही बेटियों को मार दिया जाता है। बेटियों के पैदा होने पर भी उत्सव मनाया जाना चाहिए।'
नहीं किया रावण दहन
- मोदी ने ऐशबाग रामलीला मैदान में रावण दहन में हिस्सा नहीं लिया। सिर्फ तीर चलाकर इसकी परंपरा निभाई।
- सिक्युरिटी एजेंसीज ने आतंकी हमले की आशंका के चलते मोदी के रहते यहां कोई भी विस्फोटक दागने या आतिशबाजी करने पर रोक लगा रखी थी।
भेंट में मिली चांदी की गदा और चक्र
- स्पीच से पहले मोदी ने राम और लक्ष्मण के पात्रों को तिलक लगाया और उनकी आरती उतारी। मंच पर यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव मौर्या ने उनका स्वागत किया। मोदी को चांदी की गदा और एक चक्र भेंट में दिया गया।
- अमौसी एयरपोर्ट पर सीएम अखिलेश यादव, राज्यपाल रामनाईक, लखनऊ के सांसद और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मोदी को रिसीव किया।
- मोदी ने दिल्ली से रवाना होने से पहले एक ट्वीट में भी किया। उन्होंने लिखा- 'विजयदशमी के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहा हूं लखनऊ।'
पिछले साल मोदी को बुलाने का हुआ था विरोध
- बता दें कि 2015 में जब ऐशबाग रामलीला कमेटी के ज्यादातर मेंबर्स ने मोदी को बुलाने पर जोर दिया था तो इसके विरोध में कमेटी के चीफ ट्रस्टी जेपी अग्रवाल ने पद से इस्तीफा दे दिया था। अग्रवाल कांग्रेस से जुड़े रहे हैं।
- इनके बाद डॉ. दिनेश शर्मा को चीफ ट्रस्टी बनाया गया था। शर्मा बीजेपी के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट और लखनऊ के मेयर भी हैं।
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विजयदशमी असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है: प्रधानमंत्री
विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है और आतंकवाद मानवता का दुश्मन है: प्रधानमंत्री
दुनिया भर के मानवतावादी ताकतों को तुरंत आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा: प्रधानमंत्री
मानवता के दुश्मन', आतंकवाद के खात्में के लिए वैश्विक समुदाय को एकजुट होना पड़ेगा: प्रधानमंत्री
भारत वह देश है जो भगवान बुद्ध के दिखाए शांति के मार्ग पर चलता है: प्रधानमंत्री
महिलाएं चाहें किसी भी धर्म या सम्प्रदाय से क्यों न जुड़ी हों उन्हें समान अधिकार और सम्मान देने की जरूरत है: प्रधानमंत्री
जय श्री राम, विशाल संख्या में पधारे प्यारे भाईयों और बहनों,
आप सबको विजयादशमी की अनेक-अनेक शुभकामनाएं। मुझे आज अति प्राचीन रामलीला, उस समारोह में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला है। हिन्दुस्तान की धरती का ये वो भू-भाग है, जिस भू-भाग ने दो ऐसे तीर्थरूप जीवन हमें दिए हैं- एक प्रभु राम और दूसरे श्री कृष्ण, इसी धरती से मिले। और ऐसी धरती पर विजयादशमी के पर्व पर आ करके नमन करना, इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य क्या हो सकता है?
विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। आताताई को परास्त करने का पर्व है। हम रावण को तो हर वर्ष जलाते हैं, आखिरकार इस परम्परा से हमें क्या सबक लेना है? रावण को जलाते समय हमारा एक ही संकल्प होना चाहिए कि हम भी हमारे भीतर, हमारी सामाजिक रचना में, हमारे राष्ट्रीय जीवन में जो-जो बुराइयां हैं, उन बुराइयों को भी ऐसे ही खत्म करके रहेंगे। और हर वर्ष रावण जलाते समय हमने हमारी बुराइयों को खत्म करने के संकल्प को भी मजबूत बनाना चाहिए, और उसमें विजयादशमी के समय हिसाब-किताब भी करना चाहिए कि हमने कितनी बुराइयों को खत्म किया।
आज शायद उस समय का रावण का रूप नहीं होगा; आज शायद उस समय के जैसी राम और रावण की लड़ाई भी नहीं होगी, लेकिन हमारे भीतर अंतरद्वंध एक अविरल चलने वाली प्रक्रिया है, और इसलिए हमारे भीतर भी ये दशहरा जो शब्द है, उसका एक संदेश तो ये भी है कि हम हमारे भीतर की दस कमियों को हरें, उसको खत्म करें - दशहरा, उसको खत्म करें, जीवन को पतन लाने वाली जितनी-जितनी चीजें हैं, उस पर विजय प्राप्त किए बिना जीवन कभी सफल नहीं होता है। हर एक के अंदर सब कुछ समाप्त करने का सामर्थ्य नहीं होता है, लेकिन हर एक में ऐसी बुराइ्यों को समाप्त करने के प्रयास करने का सामर्थ्य तो ईश्वर ने दिया होता है, और इसमें समाज के नाते, व्यक्ति के नाते, राष्ट्र के नाते हमारे भीतर विचार के रूप में; आचार के रूप में; ग्रन्थियों के रूप में; बुरी सोच के रूप में; जो रावण बस रहा है, उसे भी हम लोगों ने समाप्त करके ही इस राष्ट्र को गौरवशाली बनाना होगा।
मैं इस समिति का इसलिए आभारी हूं कि जैसे लोकमान्य तिलक जी ने गणेश-उत्सव को सार्वजनिक उत्सव बना करके सामाजिक चेतना जगाने के लिए एक अवसर के रूप में परिवर्तित किया था, आपने भी इस रामलीला के मंचन को सिर्फ पुरानी चीजों को भक्ति भाव से याद करने तक सीमित नहीं रखा, एक कौतुहलवश नई पीढ़ी देखने के लिए आ जाए, कलाकारों को अवसर मिल जाए, इसलिए नहीं किया। लेकिन आपने हर रामलीला के समय समाज के अंदर जो बुराइयां हैं, ऐसी कोई न कोई बुराइयां, या समाज में जो कोई अच्छाई उभारनी है, उस अच्छाई के ऊपर केन्द्रित करते हुए आपने इस रामलीला के मंचन की परम्परा खड़ी की है। मैं समझता हूं कि अद्भुत और पूरे देश के लोगों ने प्रेरणा प्राप्त करने जैसा ये काम यहां की रामलीला के द्वारा हो रहा है। और उस रामायण के पात्रों के माध्यम से भी हम आधुनिक जीवन के लिए संदेश दे सकते हैं, सामर्थ्य है उसमें। और ये देश की विशेषता यही है कि हजारों साल से हमारे यहां हमारी सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने की यही तो सबसे बड़ी व्यवस्था रही है कि कथा के द्वारा, कला के द्वारा हमने इस परम्परा को जीवित रखा है, और उसका अपना एक समाज जीवन में महामूल्य होता है।
इस बार का मंचन का विषय रहा है आतंकवाद। आतंकवाद ये मानवता का दुश्मन है, और प्रभु राम मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं; मानवता के उच्च मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं; मानवता के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं; मर्यादाओं को रेखांकित करते हैं; और विवेक, त्याग, तपस्या, उसकी एक मिसाल हमारे बीच छोड़ करके गए हैं। और इसलिए और आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले कौन लड़ा था? कोई फौजी था क्या? कोई नेता था क्या?
रामायण गवाह है कि आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले लड़ाई किसी ने लड़ी थी तो वो जटायु ने लड़ी थी। एक नारी के सम्मान के लिए रावण जैसी सामर्थ्यवान शक्ति के खिलाफ एक जटायु जूझता रहा, लड़ता रहा। आज भी अभय का संदेश कोई देता है तो जटायु देता है। और इसलिए सवा सौ करोड़ देशवासी- हम राम तो नहीं बन पाते हैं, लेकिन अनाचार, अत्याचार, दुराचार के सामने हम जटायु के रूप में तो कोई भूमिका अदा कर सकते हैं। अगर सवा सौ करोड़ देशवासी एक बन करके आतंकवादियों की हर हरकत पर अगर ध्यान रखें, चौकन्ने रहें तो आतंकवादियों का सफल होना बहुत मुश्किल होता है।
आज से 30-40 साल पहले जब हिन्दुस्तान दुनिया को हमारी आतंकवाद के कारण जो परेशानियां हैं, उसकी चर्चा करता था तो विश्व के गले नहीं उतरता था। 92-93 की घटना मुझे याद है, मैं अमेरिका के State Department के State Secretary से बात कर रहा था और जब मैं आतंकवाद की चर्चा करता था तो वो मुझे कह रहे थे ये तो आपका Law & Order problem है। मैं उनको समझा रहा था कि Law & Order problem नहीं है, आतंकवाद कोई और चीज है, उनके गले नहीं उतरता था। लेकिन 26/11 के बाद सारी दुनिया के गले उतर गया है आतंकवाद कितना भयंकर होता है। और कोई माने कि हम तो आतंकवाद से बचे हुए हैं तो गलतफहमी में न रहें, आतंकवाद को कोई सीमा नहीं है, आतंकवाद को कोई मर्यादा नहीं है, वो कहीं पर जा करके किसी भी मानवतावादी चीजों को नष्ट करने पर तुला हुआ है। और इसलिए विश्व की मानवतावादी शक्तियों का आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना अनिवार्य हो गया है। जो आतंकवाद करते हैं उनको जड़ से खत्म करने की जरूरत पैदा हुई है। जो आतंकवाद को पनाह देते हैं, जो आतंकवाद को मदद करते हैं, अब तो उनको भी बख्शा नहीं जा सकता है। पूरा विश्व तबाह हो रहा है, दो दिन से हम टीवी पर सीरिया की एक छोटी बालिका का चित्र देख रहे हैं; दो दिन से हम सीरिया की एक छोटी बालिका का चित्र देख रहे हैं टीवी पर, आंख में आंसू आ जाते हैं। किस प्रकार से निर्दोषों की जान ली जा रही है। और इसलिए आज जब हम रावण वध और रावण को जला रहे हैं, तब पूरे विश्व ने, सिर्फ भारत ने नहीं, सिर्फ मुझे और आपने नहीं, पूरे विश्व की मानवतावादी शक्तियों ने आतंकवाद के खिलाफ एक बन करके लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी। आतंकवाद को खत्म किए बिना मानवता की रक्षा संभव नहीं होगी।
भाइयो, बहनों जब मैं समाज के भीतर हमारे यहां जो बुराइयां हैं, उसको भी हमें नष्ट करना होगा, और यही विजयादशमी से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण रूपी वो बातें छोटी होंगी, लेकिन वो भी एक प्रकार की रावण रूप ही है। दुराचार, भ्रष्टाचार, हमारे समाज को तबाह करने वाले ये रावण नहीं हैं तो क्या हैं? इसको भी हमें खत्म करने के लिए देश के नागरिकों को संकल्पबद्ध होना पड़ेगा।
गंदगी, ये भी रावण का ही एक छोटा सा रूप ही है। ये गंदगी है जो हमारे गरीब बच्चों की जान ले लेती है। बीमारी गरीब परिवारों को तबाह कर देती है। अगर हम गंदगी से मुक्ति पाएं, गंदगी रूपी रावण से मुक्ति पाएं, तो देश के करोड़ों-करोड़ों परिवार जो अल्पायु में मौत के शरण हो जाते हैं; बीमारी के शिकार हो जाते हैं; उनको हम बचा सकते हैं। अशिक्षा, अंधश्रद्धा, ये भी तो समाज को नष्ट करने वाली हमारी कमियां हैं। और उससे भी मुक्ति पाने के लिए हमें संकल्प करना होगा।
आज एक तरफ हम विजयादशमी का पर्व मना रहे हैं, तो उसी समय पूरा विश्व आज Girl Child Day भी मना रहा है। आज Girl Child Day भी है। मैं जरा अपने-आप से पूछना चाहता हूं, मैं देशवासियों से पूछना चाहता हूं, कि एक सीता माता के ऊपर अत्याचार करने वाले रावण को तो हमने हर वर्ष जलाने का संकल्प किया हुआ है, और जब तक पीढि़यां जीती रहेंगी रावण को जलाते रहेंगे क्योंकि सीता माता का अपहरण किया था; लेकिन कभी हमने सोचा है कि जब पूरा विश्व आज Girl Child Day मना रहा है तब हम बेटे और बेटी में फर्क करके मां के गर्भ में कितनी सीताओं को मौत के घाट उतार देते हैं। ये हमारे भीतर के रावण को खत्म कौन करेगा? क्या आज भी 21वीं शताब्दी में मां के गर्भ में बेटियों को मारा जाएगा? अरे एक सीता के लिए जटायु बलि चढ़ सकता है, तो हमारे घर में पैदा होने वाली सीता को बचाना हम सबका दायित्व होना चाहिए। घर में बेटा पैदा हो, जितना स्वागत-सम्मान हो, बेटी पैदा हो उससे भी बड़ा स्वागत-सम्मान हो, ये हमें स्वभाव बनाना होगा।
इस बार ओलंपिक में देखिए, हमारे देश की बेटियों ने नाम को रोशन कर दिया। अब ये बेटी-बेटे का फर्क हमारे यहां रावण रूपी मानसिकता का ही अंश है। शिक्षित हो; अशिक्षित हो, गरीब हो; अमीर हो, शहरी हो; ग्रामीण हो, हिन्दू हो; मुसलमान हो, सिख हो; इसाई हो, बौद्ध हो; किसी भी सम्प्रदाय के क्यों न हो; किसी भी आर्थिक पार्श्वभूमि के क्यों न हो; किसी भी सामाजिक पार्श्वभूमि के क्यों न हो, लेकिन बेटियां समान होनी चाहिए; महिलाओं के अधिकार समान होने चाहिए, महिलाओं को 21वीं सदी में न्याय मिलना चाहिए कि किसी भी परम्परा से जुड़े क्यों न हों; किसी भी समाज से जुड़े क्यों न हों, महिलाओं का गौरव करने का ये युग हमें स्वीकारना होगा। बेटियों का गौरव करना होगा; बेटियों को बचाना होगा। हमारे भीतर ऐसे जो रावण के रूप बिखरे पड़े हैं उससे इस देश को हमें मुक्ति दिलानी है। और इसलिए जब लक्ष्मण की नगरी में आया हूं, गोस्वामी तुलसीदास की धरती पर आया हूं। श्रीकृष्ण के जीवन में भी युद्ध था, राम के जीवन में भी युद्ध था, लेकिन हम वो लोग हैं जो युद्ध से बुद्ध की ओर चले जाते हैं। समय के बंधनों से, परिस्थिति की आवश्यकताओं से युद्ध कभी-कभी अनिवार्य हो जाते हैं, लेकिन ये धरती का मार्ग युद्ध का नहीं, ये धरती का मार्ग बुद्ध का है। और ये देश; ये देश सुदर्शन चक्करधारी मोहन को युगपुरुष मानता है, जिसने युद्ध के मैदान में गीता कही; यही देश चरखाधारी मोहन, जिसने अहिंसा का संदेश दिया, उसको भी युगपुरुष मानता है। यही इस देश की विशेषता है कि दोनों तराजु पर हम संतुलन ले करके चलने वाले लोग हैं। और इसलिए हम युद्ध से बुद्ध की यात्रा वाले लोग हैं। हम हमारे भीतर के रावण को खत्म करने का संकल्प करने वाले लोग हैं। हमारे देश को सुजलाम-सुफलाम बनाने का संकल्प करके निकले हुए लोग हैं।
ऐसे समय अति प्राचीन ये रंगमंच जहां रामलीला होती हैं, अनेक पीढि़यों के बालक कभी राम और लक्ष्मण के रूप में, मां सीता के रूप मे इसी स्थान पर उनकी चरण-रज पड़ी होगी और वो पल वो इन्सान नहीं रहते; वो भक्ति में लीन हुए होते हैं, वो पात्र नहीं होते हैं; वो परमात्मा का रूप बन जाते हैं। उसी मंच पर आ करके आज इन सब रावणों के खिलाफ जो हमारे भीतर हैं, चाहे जातिवाद हो, चाहे वंशवाद हो, चाहे ऊंच-नीच की बुराई हो, चाहे सम्प्रदायवाद का जनून हो, ये सारी बुराइयां किसी न किसी रूप में बिखरा पड़ा रावण का ही रूप है। और इससे मुक्ति पाना, इसे खत्म करना, और एकात्म हिन्दुस्तान; एकरस हिन्दुस्तान; समरस हिन्दुस्तान इसी सपने को पार करने का संकल्प करके इस विजयादशमी के पावन पर्व पर हम बस प्रभु रामजी के हम पर आशीर्वाद बने रहें, मानवता के मार्ग पर चलने की हमें ताकत मिले, बुद्ध का मार्ग हमारा अन्तिम मार्ग बना रहे।
इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको विजयादशमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए जय श्रीराम। आवाज दूर-दूर तक जानी चाहिए।
जय श्रीराम, जय श्रीराम, जय जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।
विजयदशमी असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है: प्रधानमंत्री
विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है और आतंकवाद मानवता का दुश्मन है: प्रधानमंत्री
दुनिया भर के मानवतावादी ताकतों को तुरंत आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा: प्रधानमंत्री
मानवता के दुश्मन', आतंकवाद के खात्में के लिए वैश्विक समुदाय को एकजुट होना पड़ेगा: प्रधानमंत्री
भारत वह देश है जो भगवान बुद्ध के दिखाए शांति के मार्ग पर चलता है: प्रधानमंत्री
महिलाएं चाहें किसी भी धर्म या सम्प्रदाय से क्यों न जुड़ी हों उन्हें समान अधिकार और सम्मान देने की जरूरत है: प्रधानमंत्री
जय श्री राम, विशाल संख्या में पधारे प्यारे भाईयों और बहनों,
आप सबको विजयादशमी की अनेक-अनेक शुभकामनाएं। मुझे आज अति प्राचीन रामलीला, उस समारोह में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला है। हिन्दुस्तान की धरती का ये वो भू-भाग है, जिस भू-भाग ने दो ऐसे तीर्थरूप जीवन हमें दिए हैं- एक प्रभु राम और दूसरे श्री कृष्ण, इसी धरती से मिले। और ऐसी धरती पर विजयादशमी के पर्व पर आ करके नमन करना, इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य क्या हो सकता है?
विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। आताताई को परास्त करने का पर्व है। हम रावण को तो हर वर्ष जलाते हैं, आखिरकार इस परम्परा से हमें क्या सबक लेना है? रावण को जलाते समय हमारा एक ही संकल्प होना चाहिए कि हम भी हमारे भीतर, हमारी सामाजिक रचना में, हमारे राष्ट्रीय जीवन में जो-जो बुराइयां हैं, उन बुराइयों को भी ऐसे ही खत्म करके रहेंगे। और हर वर्ष रावण जलाते समय हमने हमारी बुराइयों को खत्म करने के संकल्प को भी मजबूत बनाना चाहिए, और उसमें विजयादशमी के समय हिसाब-किताब भी करना चाहिए कि हमने कितनी बुराइयों को खत्म किया।
आज शायद उस समय का रावण का रूप नहीं होगा; आज शायद उस समय के जैसी राम और रावण की लड़ाई भी नहीं होगी, लेकिन हमारे भीतर अंतरद्वंध एक अविरल चलने वाली प्रक्रिया है, और इसलिए हमारे भीतर भी ये दशहरा जो शब्द है, उसका एक संदेश तो ये भी है कि हम हमारे भीतर की दस कमियों को हरें, उसको खत्म करें - दशहरा, उसको खत्म करें, जीवन को पतन लाने वाली जितनी-जितनी चीजें हैं, उस पर विजय प्राप्त किए बिना जीवन कभी सफल नहीं होता है। हर एक के अंदर सब कुछ समाप्त करने का सामर्थ्य नहीं होता है, लेकिन हर एक में ऐसी बुराइ्यों को समाप्त करने के प्रयास करने का सामर्थ्य तो ईश्वर ने दिया होता है, और इसमें समाज के नाते, व्यक्ति के नाते, राष्ट्र के नाते हमारे भीतर विचार के रूप में; आचार के रूप में; ग्रन्थियों के रूप में; बुरी सोच के रूप में; जो रावण बस रहा है, उसे भी हम लोगों ने समाप्त करके ही इस राष्ट्र को गौरवशाली बनाना होगा।
मैं इस समिति का इसलिए आभारी हूं कि जैसे लोकमान्य तिलक जी ने गणेश-उत्सव को सार्वजनिक उत्सव बना करके सामाजिक चेतना जगाने के लिए एक अवसर के रूप में परिवर्तित किया था, आपने भी इस रामलीला के मंचन को सिर्फ पुरानी चीजों को भक्ति भाव से याद करने तक सीमित नहीं रखा, एक कौतुहलवश नई पीढ़ी देखने के लिए आ जाए, कलाकारों को अवसर मिल जाए, इसलिए नहीं किया। लेकिन आपने हर रामलीला के समय समाज के अंदर जो बुराइयां हैं, ऐसी कोई न कोई बुराइयां, या समाज में जो कोई अच्छाई उभारनी है, उस अच्छाई के ऊपर केन्द्रित करते हुए आपने इस रामलीला के मंचन की परम्परा खड़ी की है। मैं समझता हूं कि अद्भुत और पूरे देश के लोगों ने प्रेरणा प्राप्त करने जैसा ये काम यहां की रामलीला के द्वारा हो रहा है। और उस रामायण के पात्रों के माध्यम से भी हम आधुनिक जीवन के लिए संदेश दे सकते हैं, सामर्थ्य है उसमें। और ये देश की विशेषता यही है कि हजारों साल से हमारे यहां हमारी सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने की यही तो सबसे बड़ी व्यवस्था रही है कि कथा के द्वारा, कला के द्वारा हमने इस परम्परा को जीवित रखा है, और उसका अपना एक समाज जीवन में महामूल्य होता है।
इस बार का मंचन का विषय रहा है आतंकवाद। आतंकवाद ये मानवता का दुश्मन है, और प्रभु राम मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं; मानवता के उच्च मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं; मानवता के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं; मर्यादाओं को रेखांकित करते हैं; और विवेक, त्याग, तपस्या, उसकी एक मिसाल हमारे बीच छोड़ करके गए हैं। और इसलिए और आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले कौन लड़ा था? कोई फौजी था क्या? कोई नेता था क्या?
रामायण गवाह है कि आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले लड़ाई किसी ने लड़ी थी तो वो जटायु ने लड़ी थी। एक नारी के सम्मान के लिए रावण जैसी सामर्थ्यवान शक्ति के खिलाफ एक जटायु जूझता रहा, लड़ता रहा। आज भी अभय का संदेश कोई देता है तो जटायु देता है। और इसलिए सवा सौ करोड़ देशवासी- हम राम तो नहीं बन पाते हैं, लेकिन अनाचार, अत्याचार, दुराचार के सामने हम जटायु के रूप में तो कोई भूमिका अदा कर सकते हैं। अगर सवा सौ करोड़ देशवासी एक बन करके आतंकवादियों की हर हरकत पर अगर ध्यान रखें, चौकन्ने रहें तो आतंकवादियों का सफल होना बहुत मुश्किल होता है।
आज से 30-40 साल पहले जब हिन्दुस्तान दुनिया को हमारी आतंकवाद के कारण जो परेशानियां हैं, उसकी चर्चा करता था तो विश्व के गले नहीं उतरता था। 92-93 की घटना मुझे याद है, मैं अमेरिका के State Department के State Secretary से बात कर रहा था और जब मैं आतंकवाद की चर्चा करता था तो वो मुझे कह रहे थे ये तो आपका Law & Order problem है। मैं उनको समझा रहा था कि Law & Order problem नहीं है, आतंकवाद कोई और चीज है, उनके गले नहीं उतरता था। लेकिन 26/11 के बाद सारी दुनिया के गले उतर गया है आतंकवाद कितना भयंकर होता है। और कोई माने कि हम तो आतंकवाद से बचे हुए हैं तो गलतफहमी में न रहें, आतंकवाद को कोई सीमा नहीं है, आतंकवाद को कोई मर्यादा नहीं है, वो कहीं पर जा करके किसी भी मानवतावादी चीजों को नष्ट करने पर तुला हुआ है। और इसलिए विश्व की मानवतावादी शक्तियों का आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना अनिवार्य हो गया है। जो आतंकवाद करते हैं उनको जड़ से खत्म करने की जरूरत पैदा हुई है। जो आतंकवाद को पनाह देते हैं, जो आतंकवाद को मदद करते हैं, अब तो उनको भी बख्शा नहीं जा सकता है। पूरा विश्व तबाह हो रहा है, दो दिन से हम टीवी पर सीरिया की एक छोटी बालिका का चित्र देख रहे हैं; दो दिन से हम सीरिया की एक छोटी बालिका का चित्र देख रहे हैं टीवी पर, आंख में आंसू आ जाते हैं। किस प्रकार से निर्दोषों की जान ली जा रही है। और इसलिए आज जब हम रावण वध और रावण को जला रहे हैं, तब पूरे विश्व ने, सिर्फ भारत ने नहीं, सिर्फ मुझे और आपने नहीं, पूरे विश्व की मानवतावादी शक्तियों ने आतंकवाद के खिलाफ एक बन करके लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी। आतंकवाद को खत्म किए बिना मानवता की रक्षा संभव नहीं होगी।
भाइयो, बहनों जब मैं समाज के भीतर हमारे यहां जो बुराइयां हैं, उसको भी हमें नष्ट करना होगा, और यही विजयादशमी से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण रूपी वो बातें छोटी होंगी, लेकिन वो भी एक प्रकार की रावण रूप ही है। दुराचार, भ्रष्टाचार, हमारे समाज को तबाह करने वाले ये रावण नहीं हैं तो क्या हैं? इसको भी हमें खत्म करने के लिए देश के नागरिकों को संकल्पबद्ध होना पड़ेगा।
गंदगी, ये भी रावण का ही एक छोटा सा रूप ही है। ये गंदगी है जो हमारे गरीब बच्चों की जान ले लेती है। बीमारी गरीब परिवारों को तबाह कर देती है। अगर हम गंदगी से मुक्ति पाएं, गंदगी रूपी रावण से मुक्ति पाएं, तो देश के करोड़ों-करोड़ों परिवार जो अल्पायु में मौत के शरण हो जाते हैं; बीमारी के शिकार हो जाते हैं; उनको हम बचा सकते हैं। अशिक्षा, अंधश्रद्धा, ये भी तो समाज को नष्ट करने वाली हमारी कमियां हैं। और उससे भी मुक्ति पाने के लिए हमें संकल्प करना होगा।
आज एक तरफ हम विजयादशमी का पर्व मना रहे हैं, तो उसी समय पूरा विश्व आज Girl Child Day भी मना रहा है। आज Girl Child Day भी है। मैं जरा अपने-आप से पूछना चाहता हूं, मैं देशवासियों से पूछना चाहता हूं, कि एक सीता माता के ऊपर अत्याचार करने वाले रावण को तो हमने हर वर्ष जलाने का संकल्प किया हुआ है, और जब तक पीढि़यां जीती रहेंगी रावण को जलाते रहेंगे क्योंकि सीता माता का अपहरण किया था; लेकिन कभी हमने सोचा है कि जब पूरा विश्व आज Girl Child Day मना रहा है तब हम बेटे और बेटी में फर्क करके मां के गर्भ में कितनी सीताओं को मौत के घाट उतार देते हैं। ये हमारे भीतर के रावण को खत्म कौन करेगा? क्या आज भी 21वीं शताब्दी में मां के गर्भ में बेटियों को मारा जाएगा? अरे एक सीता के लिए जटायु बलि चढ़ सकता है, तो हमारे घर में पैदा होने वाली सीता को बचाना हम सबका दायित्व होना चाहिए। घर में बेटा पैदा हो, जितना स्वागत-सम्मान हो, बेटी पैदा हो उससे भी बड़ा स्वागत-सम्मान हो, ये हमें स्वभाव बनाना होगा।
इस बार ओलंपिक में देखिए, हमारे देश की बेटियों ने नाम को रोशन कर दिया। अब ये बेटी-बेटे का फर्क हमारे यहां रावण रूपी मानसिकता का ही अंश है। शिक्षित हो; अशिक्षित हो, गरीब हो; अमीर हो, शहरी हो; ग्रामीण हो, हिन्दू हो; मुसलमान हो, सिख हो; इसाई हो, बौद्ध हो; किसी भी सम्प्रदाय के क्यों न हो; किसी भी आर्थिक पार्श्वभूमि के क्यों न हो; किसी भी सामाजिक पार्श्वभूमि के क्यों न हो, लेकिन बेटियां समान होनी चाहिए; महिलाओं के अधिकार समान होने चाहिए, महिलाओं को 21वीं सदी में न्याय मिलना चाहिए कि किसी भी परम्परा से जुड़े क्यों न हों; किसी भी समाज से जुड़े क्यों न हों, महिलाओं का गौरव करने का ये युग हमें स्वीकारना होगा। बेटियों का गौरव करना होगा; बेटियों को बचाना होगा। हमारे भीतर ऐसे जो रावण के रूप बिखरे पड़े हैं उससे इस देश को हमें मुक्ति दिलानी है। और इसलिए जब लक्ष्मण की नगरी में आया हूं, गोस्वामी तुलसीदास की धरती पर आया हूं। श्रीकृष्ण के जीवन में भी युद्ध था, राम के जीवन में भी युद्ध था, लेकिन हम वो लोग हैं जो युद्ध से बुद्ध की ओर चले जाते हैं। समय के बंधनों से, परिस्थिति की आवश्यकताओं से युद्ध कभी-कभी अनिवार्य हो जाते हैं, लेकिन ये धरती का मार्ग युद्ध का नहीं, ये धरती का मार्ग बुद्ध का है। और ये देश; ये देश सुदर्शन चक्करधारी मोहन को युगपुरुष मानता है, जिसने युद्ध के मैदान में गीता कही; यही देश चरखाधारी मोहन, जिसने अहिंसा का संदेश दिया, उसको भी युगपुरुष मानता है। यही इस देश की विशेषता है कि दोनों तराजु पर हम संतुलन ले करके चलने वाले लोग हैं। और इसलिए हम युद्ध से बुद्ध की यात्रा वाले लोग हैं। हम हमारे भीतर के रावण को खत्म करने का संकल्प करने वाले लोग हैं। हमारे देश को सुजलाम-सुफलाम बनाने का संकल्प करके निकले हुए लोग हैं।
ऐसे समय अति प्राचीन ये रंगमंच जहां रामलीला होती हैं, अनेक पीढि़यों के बालक कभी राम और लक्ष्मण के रूप में, मां सीता के रूप मे इसी स्थान पर उनकी चरण-रज पड़ी होगी और वो पल वो इन्सान नहीं रहते; वो भक्ति में लीन हुए होते हैं, वो पात्र नहीं होते हैं; वो परमात्मा का रूप बन जाते हैं। उसी मंच पर आ करके आज इन सब रावणों के खिलाफ जो हमारे भीतर हैं, चाहे जातिवाद हो, चाहे वंशवाद हो, चाहे ऊंच-नीच की बुराई हो, चाहे सम्प्रदायवाद का जनून हो, ये सारी बुराइयां किसी न किसी रूप में बिखरा पड़ा रावण का ही रूप है। और इससे मुक्ति पाना, इसे खत्म करना, और एकात्म हिन्दुस्तान; एकरस हिन्दुस्तान; समरस हिन्दुस्तान इसी सपने को पार करने का संकल्प करके इस विजयादशमी के पावन पर्व पर हम बस प्रभु रामजी के हम पर आशीर्वाद बने रहें, मानवता के मार्ग पर चलने की हमें ताकत मिले, बुद्ध का मार्ग हमारा अन्तिम मार्ग बना रहे।
इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको विजयादशमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए जय श्रीराम। आवाज दूर-दूर तक जानी चाहिए।
जय श्रीराम, जय श्रीराम, जय जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।
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