जम्मू कश्मीर के निवासी सबसे पहले भारत के नागरिक हैं : सुप्रीम कोर्ट



जम्मू कश्मीर को संविधान के बाहर रत्तीभर नहीं है संप्रभुता : सुप्रीम कोर्ट

Saturday, December 17, 2016 भाषा

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर की भारतीय संविधान के बाहर और अपने संविधान के अंतर्गत रत्ती भर भी संप्रभुता नहीं है और उसके नागरिक सबसे पहले भारत के नागरिक हैं।

शीर्ष अदालत ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के एक निष्कर्ष को ‘पूरी तरह गलत’ करार देते हुए यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य को अपने स्थायी नागरिकों की अचल संपत्तियों के संबंध में उनके अधिकार से जुड़े कानूनों को बनाने में ‘पूर्ण संप्रभुता’ है।


न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की पीठ ने कहा, ‘जम्मू कश्मीर को भारतीय संविधान के बाहर और अपने संविधान के तहत रत्ती भर भी संप्रभुता नहीं है। राज्य का संविधान भारत के संविधान के अधीनस्थ है।’ पीठ ने कहा, ‘अतएव, उसके निवासियों का खुद को एक अलग और विशिष्ट वर्ग के रूप में बताना पूरी तरह गलत है। हमें उच्च न्यायालय को यह याद दिलाने की जरूरत है कि जम्मू कश्मीर के निवासी सबसे पहले भारत के नागरिक हैं।’

शीर्ष अदालत ने वित्तीय आस्तियां प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के प्रावधानों को संसद की विधायी क्षमता के अंतर्गत आने का जिक्र करते हुए कहा कि इन्हें जम्मू कश्मीर में लागू किया जा सकता है। पीठ ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के इस फैसले को दरकिनार कर दिया कि राज्य विधानमंडल से बने कानूनों पर असर डालने वाला संसद का कोई कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘उच्च न्यायालय का फैसला ही गलत अंत से प्रारंभ होता है अतएव वह गलत निष्कर्ष पर भी पहुंच जाता है। यह कहता है कि जम्मू कश्मीर के संविधान में अनुच्छेद पांच के सदंर्भ में राज्य को अपने स्थायी नागरिकों की अचल संपत्तियों के संदर्भ में उनके अधिकारों से जुड़े कानूनों को बनाने का पूर्ण संप्रभु अधिकार है।’
पीठ ने कहा, ‘हम यह भी कह सकते हैं कि जम्मू कश्मीर के नागरिक भारत के नागरिक हैं और कोई दोहरी नागरिकता नहीं है जैसा कि दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में कुछ अन्य संघीय संविधानों में विचार किया गया है।’ शीर्ष अदालत का फैसला उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध भारतीय स्टेट बैंक की अपील पर आया है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि वित्तीय आस्तियां प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन (एसएआरएफएईएसआई) अधिनियम का जम्मू कश्मीर के संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1920 से टकराव होगा।

एसएआरएफएईएसआई एक ऐसा कानून है कि जो बैंकों को कर्जदारों की प्रतिभूत संपित्त को कब्जे में लेने एवं उन्हें बेच देने के लिए अदालती प्रक्रिया के बाहर अपने प्रतिभूति हितों को लागू करने का अधिकार देता है। शीर्ष अदालत ने 61 पन्नों के अपने फैसले में यह भी कहा कि यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि उच्च न्यायालय के फैसले के कई हिस्से जम्मू कश्मीर की पूर्ण संप्रभु शक्ति का उल्लेख करते हैं।
न्यायालय ने कहा, ‘यहां इस बात को दोहराना आवश्यक है कि जम्मू कश्मीर का संविधान, जिसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा ने तैयार किया था, स्पष्ट घोषणा करता है कि जम्मू कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा तथा यह प्रावधान संशोधन के दायरे के बाहर है।’ उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू किये जा सकते हैं।
पीठ ने कहा, ‘अतएव, हम उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त करते हैं। फलस्वरूप, धारा 13 (प्रतिभूति हित प्रवर्तन) के अनुरूप बैंकों द्वारा जारी नोटिस एवं इस धारा के तहत किये गये दंडात्मक उपाय वैध हैं और इन मामलों में आगे कार्यवाही की जा सकती है।’ उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अधिनियम भारतीय स्टेट बैंक जैसे बैंकों के लिए लागू नहीं होता है, जो भारतीय बैंक हैं।


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

जागो तो एक बार, हिंदु जागो तो !

11 days are simply missing from the month:Interesting History of September 1752