यहूदी, अदम्य साहस की जिजीविषा

____यहूदी___ 
 काल के कपाल पर अदम्य जिजीविषा एवं शोर्य का हस्ताक्षर ___ 
_____ बेंजामिन नेतन्याहू का भाषण का अंश इजरायल की पुकार ही नहीं यहूदियों का आत्मकथा का सार अंश भी है।भाषण का अंश 
______ 75 साल पहले हमें मरने के लिए यहां लाया गया था। हमारे पास न कोई देश था,न कोई सेना थी।सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी।हम सिर्फ 65000 थें। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था।हम पर हमलें होतें रहे,होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन,मिश्र, लीबिया, सऊदी , अरब जैसे कयी देशों ने हमारे उपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मारना चाहते थे, किंतु हम बच गए।
----------- संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमें धरती दी,वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। हमने उसको भी अपने खून से सींचा। हमने उसे ही अपना देश माना क्योंकि हमारे लिए वही सबकुछ था।हम कुछ नहीं भूलें।हम फिर औन से बच गए।हम स्पेन से बच गए।हम हिटलर से बच गए।हम अरब से बच गए।हम सद्दाम हुसैन से बच गए।हम गद्दाफी से बच गए।हम हमास से भी बचेंगे,हम हिज्बुल्लाह से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।
----------- हमारे जेरुसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया,23 बार घेरा गया,39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया,44 बार कब्जा किया गया लेकिन हम अपने जेरुसलम को कभी नहीं भूले वह हमारे हृदय में हैं,वह हमारे मस्तिष्क में हैं और जब तक हम रहेंगे जेरुसलम हमारी आत्मा में रहेगा। संसार यें याद रखें कि जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है।मिश्र, लेबनान,वेवीलोन,यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गयें है।हम फिर भी बचे रहें।
-------------- हमें वे (इस्लाम) खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारें रस्म रिवाज को कब्जाया। उन्होंने हमारें उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारें पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहिम कर दिया गया, सोलोमन, सुलेमान हो गया, डेविड, दाऊद बना दिया गया।मोजेज मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा - तुम्हारा पैगंबर ( मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। करते भी कैसे? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा स्वीकार करो़, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया।हम क़त्ल हुए,भगा दिए गए।
________ मक्का के काबा में हम दों लाख थें,मार दिए गए। हमें दुश्मन बता कर क़त्ल किया गया। फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ।हम तीन लाख थें मार दिए गए इराक़ में हम दों लाख थें, तुर्की में चार लाख हमें मारा जाता रहा, मारें जाता रहा। वें हमें मार रहे हैं,मारते जा रहें हैं। हमारे शहर,धन, दौलत, घर,पशु,मान सम्मान सब कुछ कब्जाये़ जातें रहें, फिर भी हम बचें रहें।1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया, फिर भी हम बचें रहें।75 साल पहले वें हम पर थूकते थें, ज़लील करतें थें, मारते थे।हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे हैं।
---------- आज हमारे पास एक अपना देश है। एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थ व्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक जैसी कई संस्थाएं हमने इस दौर में बनाई।आज हमारे चिकित्सक दवा बना रहे हैं, लेखक किताबें लिख रहें हैं। यें सबके लिए है,यह मानवता के कल्याण के लिए है।
--------- हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला, हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है।हम किसी के दुस्मन नहीं है, हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना,हम साजिश भी नहीं करते,हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।
---------- पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया, खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा,हम मिटे नहीं,हारे नहीं और न आगे कभी हारेंगे।हम जीतेंगे,हम जीत कर रहेंगे।हम 3000 सालों से यरुसलम में ही थें। आज़ हम अपने पहले देश इजरायल में है।यह हमारा ही था,हमारा ही है और हमारा ही रहेगा। यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से है।
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इसराइल ने ईरान के ग़ैर ज़िम्मेदारी भरे घातक प्रति उत्तर की १००% संभावना को जानते हुए भी ईरान के परमाणु ठिकानों, सैन्य अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिको पर टार्गेटेड हमला क्यो किया? क्या यह आत्मघाती नहीं था?

इसराइल जो कर रहा है वो मजबूरी में कर रहा है ,

इस्लामिक देशों के मजहब के आधार पर आँख बंद करके इसराइल के विरोध में एक जुट होना इसराइल की मजबूरी को बता रहा है!

इसराइल के पास सैन्य ताक़त और परमाणु बम नहीं होते तो बाक़ी मुस्लिम देश उसको अब तक कच्चा खा चुके होते और दुनिया भर के मुस्लिम उसका जश्न मना रहे होते ठीक वैसा जैसा ७ अक्टूबर २०२३ के हमले के बाद जश्न ईरान में और कई मुस्लिम देशों में देखा गया था!!

इसराइल के लिए स्थिति ये थी कि अभी शान्ति से रह लेता या ४-५ साल बाद ईरान के परमाणु हमले में पूरे इसराइल को बर्बाद होने देता !
इसराइल ने अपने अस्तित्व को बचाए रखना चुना ना कि क्षणिक शांति को!!

जिस तरह पाकिस्तान के लिए भारत से दुश्मनी कश्मीर को लेकर नहीं है!! कश्मीर सिर्फ एक बहाना है लड़ने का! पाकिस्तान की नफ़रत भारत के हिंदू राष्ट्र होने से है क्यो पाकिस्तान कभी अफ़ग़ानिस्तान या बंगालदेश को लेने की बात नहीं करता है?? क्योकि वंहा पहले से ही इस्लामिक राज्य है!!!

ठीक इसी तरह ईरान की इसराइल से कैसे दुश्मनी हो गई है जो १६०० किलोमीटर की दूरी है ? कारण वही १४०० साल पुराना है!!

मोहम्मद साहब की मृत्यु एक यहूदी औरत। द्वारा जहर देने से हुई थी!!

अब ये बात अलग है कि एक मुस्लिम आतंकी की वजह से पूरी क़ौम को आप आतंकी नहीं बोल सकते वैसे ही मुस्लिमों को ये समझाना कठिन है की एक यहूदी की हरकत की वजह से दुनिया से सारे यहूदियो को मिटाने की कसम खाना और उनकी मृत्यु पर जश्न मनाना ना केवल घटिया हरकत है बल्की मानवीयता नैतिकता के भी ख़िलाफ़ है!

लेकिन वो मुस्लिम ही क्या जो मुस्लिमो की मुस्लिमों के ख़िलाफ़ १४०० साल पुरानी लड़ाई और घटना को भुला दे और ग़ैर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ की गई बर्बरता को याद रखें!!

चाहे भारत के मुस्लिम हो या पाकिस्तान के या ईरान फ़िलिस्तीन के या दुनिया भर के मुस्लिम ये आज भी १४०० साल पहले ज़हर देने की घटना को याद रखकर यहूदियों के दुश्मन बने हुयें हैं और हमसे मुग़लों के आक्रमण बर्बरता को भूलने की बात करते हैं!!

ये दोगलापन मानवीय नहीं है इसको सिखाया जाता है मस्जिदों में,मदरसों में और कुरान हदीस में!!

खैर वापस मुद्दे पर आते हैं!!

1979 तक इसराइल और ईरान के संबंध दोस्ताना थे, फिर कट्टर शिया इस्लाम फ़ौजो ने और उनके नेताओं ने ईरान पर कब्ज़ा जमा लिया!! ७०० BC से ईरान के मूल निवासी भी अधिकतर शिया इस्लाम स्वीकार कर लिए थे! कुछ विश्व के अन्य देशों में पलायन कर गए थे ! भारत में लगभग ८०००० पारसी रह रहे हैं और ईरान में क़रीब २०००० पारसी रह रहे हैं!!

ईरान के शासक किसी जमाने में पारसी थे और इस्लाम के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार गए थे ठीक पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं की तरह!!

सही मायनों में इस्लाम का कोई देश है ही नहीं सब अन्य संस्कृतियों को तलवार के दम पर हासिल किए गए देश हैं!!

पूरा मिडिल ईस्ट सिर्फ़ और सिर्फ़ मज़हबी कारणों से इसराइल के पीछे पड़ा हुआ है और इसराइल कह रहा है हम परमाणु बम से मरने से पहले ही तुम लोगो को मारेंगे और इसराइल नहीं छोड़ेंगे क्योकि इज़राल और उसके अगल बगल का बहुत बड़ा इलाक़ा यहूदियों का है जो कि इस्लामिक ताक़तों ने मक्कारी, तलवार और जनसंख्या के दम पर हथिया लिया है!

इसराइल का अपने पड़ोसियों का बहुत कड़वा अनुभव रहा है वो अपने अस्तित्व और संस्कृति को बचाए रखने के लिए सब कर रहा है!!

१९५० में जब ब्रिटेन जा रहा था तब उसने दो राष्ट्र का सिद्धांत दिया था कि फ़िलिस्तीनी में मुस्लिम लोग रह लें और इसराइल में यहूदी!!!

असली शांति प्रिय यहूदियों ने यह प्रस्ताव मान लिया था लेकिन फ़िलिस्तीन मुस्लिम देश उसने कभी भी इसराइल को मनायता नहीं दी!

और यहूदियों के कत्लेआम और नरसंहार करके उनको वंहा से भगाने की पूरी कोशिश की!

इस सब में दुनिया भर के सभी राष्ट्रों ने इसराइल का विरोध किया ईरान को छोड़ कर और फिर १९७९ में शिया क्रान्ति के बाद ईरान भी इसराइल का मज़हब के आधार पर कट्टर दुश्मन बन गया!!

इसराइल की अस्तित्व की लड़ाई है !!

हम भी यह लड़ाई या तो आज लड़ेंगे या भविष्य में हमारे बच्चे !!

क्योंकि इस्लाम १४०० साल में दुनिया के किसी भी हिस्से में नहीं बदला है!!

यहूदी क़ौम एक यहूदी औरत की वजह से आज १४०० साल बाद भी दुनिया के सभी मुस्लिमों के लिए नफ़रत का प्रमुख निशाना है!!!

इसीतरह मूर्तिपूजक १४०० साल पहले भी काफ़िर थे आज भी काफ़िर हैं!!

हमारा नंबर भी आयेगा इसराइल को पहले ख़त्म हो जाने दो!!

यदि दुनिया इसराइल को बचाने खुलकर सामने नहीं आई तो इसका मतलब है दुनिया ने इस्लाम को चुन लिया है अपना भविष्य!!!

आज इसराइल बच गया तो भविष्य में दुनिया भी बच जाएगी!!
जो इसराइल का भविष्य है वही दुनिया का भविष्य है!!!
जो हरे रंग के बीच में लाल सा हिस्सा है सिर्फ़ उतना है इसराइल!!
लेफ़्टिस्ट, सेक्युलर और मूर्खों के हिसाब से ४० किलोमीटर की पट्टी में रहने वाली आबादी के मानवाधिकारों की सुरक्षा के नाम पर हरे रंग के इलाके में रहने वाली उस लाल हिस्से को तबाह करने के लिए ईरान के परमाणु बम का समर्थन कर रही है!!

और हाँ ये हरे रंग के इलाके में रहने वाले दुनिया के सबसे शांतिप्रिय मजहब का पालन करते हैं!!

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