वंदे मातरम - बंकिमचन्द्र - स्वतंत्रता का महामन्त्र

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शत शत नमन ,बंकिम
- अरविन्द सिसोदिया
कुछ  तो कहानी छोड़ जा ,
अपनी निसानी छोड़ जा ,
मोशम  बीता  जाये ,
जीवन बीता  जाये .
यह गीत संभव  दो बीघा जमीन का हे .
मगर सच यही हे की ,
काल चक्र की गती नही रूकती,

 एक थे बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय,
उनका निधन हुए भी काफी समय हो गया मगर वे हमारे बीच आज भी जिदा हें .
क्यों की उन्होंने एक अमर गीत की रचना की जिसने भारत को नई उर्जा दी और देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .जो रग रग  में जोश भर देता हे . जब भी कोई सैनिक जीत दर्ज कर्ता हे तो वो जन गण मन नही कहता , वह वन्दे मातरम का जय घोष करता हे .   
यही  वह गीत था वन्दे मातरम .जो स्वतंत्रता  का महामन्त्र बना .इसे उन्होंने आनद मठ नामक उपन्यास में लिखा था .., यह उपन्यास बंगदर्शन में किस्तों में छपा था . लेकिन जब १८८२ में यह पुस्तक रूप में छपा तो तुरंत ही बिक गया , लगतार इसके कई  संस्करण  छपे , उनके जीवन काल में ५ बार यह छप चुका था . उनका जन्म २६ जून १८३८ में हुआ था ,उन्होंने कई उपन्यास लिखे मगर उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्यति इसी आनद मठ  के वन्दे मातरम  से मिली .., 
यह उपन्यास भारत के साधू संतों के द्वारा, प्रारंभिक दोर में गुलामी  के विरुद्ध किये गये सघर्ष की कथा हे , कहा यह जाता हे की यह सच्ची कहानी पर आधारित था यह कहानी स्वंय बकिम के खोजी थी , आनन्द मठ उपन्यास पर कुछ विवाद हैं,कुछ लोग इसे मुस्लिम विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानो को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है। मगर सही बात तो यही हे की जो था वह लिखा गया हे .
स्वतन्त्रता संग्राम में यह गीत बच्चे -२  के जवान पर था , यह भारत माता की आराधना थी . लोग इसे बहुत ही प्यार से गाते थे .  कांग्रेस से लेकर  किसी भी देश हित की सभा में इस गीत से ही सभा प्रारंभ होती थी , अंगेजों ने बंग भंग कर हिदू मुस्लिम लड़ो अभियान प्रारंभ किया था , जिसके विरुद्ध यह गीत एक क्रांति बन गया था , बंग  एकीकरण हुआ और यह गीत हर देश भक्त ने गया , चाहे क्रन्तिकारी हों या सत्याग्रही .  
कांग्रेस से जुड़े कुछ लोगो नें वन्दे मातरम का विरोध किया था , तब कांग्रेस ने एल कमेटी बनी थी जिसके अध्यक्ष नेहरु जी थे , उन्होंने ,वन्दे मातरम के पहले दो अंतरों को .., स्वीकार किया था क्यों कि उसमें सिर्फ भारत माता कि स्तुति हे . .
अरविंद घोष ने बंकिम को राष्ट्रवाद का ‘ऋषि’ कहकर पुकारा.और बीबीसी के अनुसार, दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था,१५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमे मतदान किया था, वंदे मातरम् शीर्ष के १० गानो में दूसरे स्थान पर था।सन् 1920 तक, सुब्रह्मण्यम् भारती तथा दूसरों के हाथों विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर यह गीत ‘राष्ट्रगान’ की हैसियत पा चुका था,1930 के दशक में ‘वंदे मातरम्’ की इस हैसियत पर विवाद उठा और लोग इस गीत की मूर्तिपूजकता को लेकर आपत्ति उठाने लगे। एम. ए. जिन्ना इस गीत के सबसे उग्र आलोचकों में एक थे। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित एक समिति की सलाह पर भारतीय राष्टीय कांग्रेस ने सन् 1937 में इस गीत के उन अंशों को छाँट दिया जिनमें बुतपरस्ती के भाव ज्यादा प्रबल थे और गीत के संपादित अंश शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गए हैं,को राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया। सच यह हे की जवाहरलाल नेहरु मुश्लिम जोर जबरदस्ती से बहुत ही घबराते थे पूरे देश के विरोध के बाबजूद उन्होंने जन गन मन अधिनायक गीत को राष्ट्र गान बनबाया , जबकि इस गीत पर आरोप था की यह यह अंगेजों की स्तुति में गया गया  था . वह तो भला हो बाबू राजेन्द्र प्रशाद का जो उन्होंने अपनी व्यवस्था देते हुए ,वन्दे मातरम को बराबरी का दर्जा दिया . भारत की संबिधान सभा जिस वन्दे मातरम गीत से प्रारंभ हुई हो उसके साथ भी एसा मजाक ?   

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।
डा. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य है।
शब्दों व संगीत कि वह रचना जिसे जन गण मन से संबोधित करा जाता है भारत का राष्ट्रगान है,बदलाव के ऐसे विषय अवसर आने पर सरकार आधिकृत करे, और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे ऐतिहासिक भूमिका निभाई है,को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले (हर्षध्वनि) मै आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा। (भारतीय संविधान परिषद, खंड द्वादश:, २४-१-१९५०)
 
मेडम कामा ने भारत का जो झंडा बनाया था उसमें बीच की पट्टी में वन्दे मातरम लिखा था . 
श्री अरविन्द ने इस गीत का अंग्रेजी में और आरिफ मौहम्मद खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया है सर्वप्रथम १८८२ में प्रकाशित इस गीत पहले पहल ७ सितम्बर १९०५ में कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। इसीलिए २००५ में इसके सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में १ साल के समारोह का आयोजन किया गया। ७ सितम्बर २००६ में इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मंत्रालय ने इस गीत को स्कूलों में गाए जाने पर बल दिया। हालांकि इसका विरोध होने पर उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने संसद में कहा कि गीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, यह स्वेच्छा पर निर्भर करता है.
यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले संगीतकार ए आर रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, 'वंदे मातरम्' को लेकर एक संगीत एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ है। ज्यादतर लोगों का मानना है कि यह विवाद राजनीतिक विवाद है। गौरतलब है कि ईसाई लोग भी मूर्ति पूजन नहीं करते हैं पर इस समुदाय से इस बारे में कोई विवाद नहीं है।
-Arvind Sisodia
 radha krishn mndir road ,
ddwada , kota 2 , rajsthan .








  
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