काला आपातकाल - सतत सतर्कता ही स्वतन्त्रता का मूल्य हे

हम वीरों की संतानें हें , यही हमारी थाती हे !




- अरविन्द सिसोदिया
सतत सतर्कता ही स्वतन्त्रता का मूल्य हे , ये शब्द सिर्फ स्मरणीय वाक्य ही नही हें .  मानव जीवन के लिए ध्येय पथ भी हे . इसके बिना आप अपना स्वभिमान और सम्मान भी खो  देते हें .
आज विश्व में हमारा जो सम्मान हे उसका कारण यह भी हे की हम वह जाग्रत लोग हें जो अपनी गुलामी  के खिलाफ हजारों साल से लगातार संघर्स करते हुए आजादी प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते हें , नव स्वतंत्र देशों में से ज्यादातर देश अपनी लोकतंत्र व्यवस्था को खो चुके हें , मगर हमारा लोकतन्त्र मात्र १८ महीने की कैद  के साथ ही फिरसे स्वतंत्र हो गया ! 
  हलांकि हम एक सनातन राष्ट्र हें हमारी राष्ट्रिय आयु अनंत हे , कुल मिला कर विश्व की प्रथम सभ्यता से हमारा अस्तित्व हे , किन्तु हमारी  गुलामी से मुक्ति और नई स्वतन्त्रता के साथ जीवन का शुभारंभ १५ अगस्त १९४७ से माना जाता हे , हमारी नागरिक आजादी के  अपहरण का एक दोर   गुजर चुका , जिसे  संघर्ष और सोभाग्य  से  बाद में हटा दिया गया .  . उस काल खंड ( २५/२६  जून १९७५  की रात्रि से २१ मार्च १९७७ ) को हम काला आपातकाल के नाम से जानते हे  ओर यह भी जानते हें की राष्ट्रिय स्वंयसेवक  संघ ने लोकतंत्र रक्षा का महाअभियान  नही चलाया होता तो शायद वह कालीरात  न जाने कब तक रहती .सघ के उस समय के १३५६ पुर्ण  कालिक प्रचारकों में से १८९ प्रचारक ही जेल में थे और बांकी भूमि गत रहते हुए बहार थे , सो उन सभी ने अदितीय जन जागरण और संघर्स का परोक्ष  नेत्रत्व करते हुए , सम्पूर्ण देश और विश्व में अभियान छेड़ा जिसके फल स्वरूप लाखों युवक और किशोर लोकतंत्र बहाली के लिए सडकों पर उतरे , अपने जीवन की चिता किये बिना राष्ट्र जीवन के लिए रक्षक बन कर जेलों को भर दिया . जनमत के दबाव के चलते  इमरजेंसी का आतंकवाद हटा . 
- मतपेटी के द्वारा भी तानाशाह और एकाधिकारवादी सत्ता   में आ सकते हें इस का उदाहरण  हिटलर से अच्छा और कोनहो सकता हे .

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की पुत्री इंदिरा प्रियदर्शनी इकलोती होने के कारण स्वभाव से ही जिद्दी थीं . उन्होंने अपना  विवाह जिद्द में किया था . लालबहादुर शास्त्री जी के निधन  के बाद कांग्रेस पार्टी में भी उन्होंने यही व्यवहार दोहराया , पार्टी के अधिक्रत राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार  को अपना  निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा कर हरवाया . जो जो भी उन्हें ना पशन्द थे , उन सभी को पार्टी से बाहर हो जाने पर मजबूर कर दिया . सबसे बड़ी बात यह हो गई की भारतीय फोजों नें पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए , बंगलादेश एक स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में लाया गया . यह उपलब्धी कम से कम भारत में इंदिरा गाँधी को दुर्गा बनाने के लिए पर्याप्त थी , पूरा भारत उनके पीछे खड़ा था . यही वह अभिमान था जिसने उन्हें एकाधिकार और तानाशाही के रास्ते पर डाल दिया . उनके लोकसभा  चुनाव को पराजित उम्मीदवार  राजनारायण ने चुनोती दी , की यह चुनाव अवेध्य   आचरण के द्वारा जीता गया हे , ईलाहबाद   उच्च न्यायलय के न्यायाधीस जगमोहन लाल सिन्हा  ने यह सही पाया और चुनाव रद्द कर दिया और कानून के मुताबिक ही अगले ६ वर्ष चुनाव लड़ने पर प्रतिवंध लगा दिया . , हलांकि अपील की गुंजायस  दी गई थी . इसी दिन गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणामों में भी कांग्रेस चुनाव हार गई . देश में इन दोनों घटनाओं के कारण इंदिराजी के इस्तीफे की मांग ने जोर पकड़ लिया .  मगर इंदिरा जी ने इसे प्रतिष्ट से जोड़ लिया और इमरजेंसी लगा दी .  ,
ना दलील , ना वकील , ना अपील
 देश के सात दलों के ३३ संसद  सदस्य जेलों में बंद  थे , सिर्फ एक दल भारतीय कोमुनिस्ट पार्टी , सोवियत सघ के इशारे पर इंदिराजी के साथ थी . जय प्रकाश नारायण , मोरारजी देशाई , अटल बिहारी वाजपेई,चोधरी चरण सिंह ,विजयाराजे सिंधिया  , ज्योतिर्मय  बसु , भेरों सिंह  शेखावत  , मधु  दंडवते , समर गुहा , रवि रे , राजनारायण , लाल क्रष्ण अडवाणी ,श्य्म्नंदन मिश्र ,  पिलु मादी , चन्द्रशेखर , मोहन धरिया , क्रष्ण कान्त , रामधन और  पी एन सिंह आदि सहित बहुत से लोग जेलों में थे .  
ज्यादतर गैर कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता , कांग्रेस के प्रति कुल विभिन्न सामाजिक संगठन  आदि के लोगों को रातों रात घर से उठा कर जेलों में डाल दिया गया . मिडिया पर सेंसर सिप लागु कर दी गई , प्रति कुल प्रेस बद करवा  दिए गये . पत्रकारों की आबाज बंद करदी गई . 
- २७ जून १९७५ को प्रधान मंत्री इंदिरा जी ने अधिकारीयों की एक बैठक में कहा इन सब मामलों की जड़ संघ हे . क्यों की संघ के पास ही कांग्रेस की तरह विविध क्षेत्रों में विविध संगठन थे . तब कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बुआ ने कहा था , हम संघ को पूर्णत नष्ट करदेना चाहते हें ताकि वह फिर कभी ना उठ पाए . हुआ भी यही की संघ के सरसंघ चालक  बाला साहब  देवरस को  गिरिफ्तर कर लिया गया था .यूँ तो छब्बीस सगठनों पर प्रतिबन्ध लगा था मगर राष्ट्रिय स्तर का मात्र संघ ही था . 
जय प्रकाश नारायण जी ने  उनकी गिरिफ्तर से पूर्व ही लोक संघर्ष समिति बना दी थी , उसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और महा सचिव नानाजी देशमुख थे . 

मेरी खबरें , मेरे चमचे  ,
मेरी फोटू, भाषण चर्चे, 
बीस सूत्रीय के गुण गाओ,
नही तो सीधे जेल  जाओ. 
तब यह नारा मजाक में बहुत चलता था .      
पूरे देश में प्रशासनिक  तरीका  बदल गया , जनता पर जुल्म ढाए  जाने लगे , जबरिया नस बंदी ने कोहराम  मचा दिया , लोग घरों पर सोना छोड़ चुके थे , रास्ते चोदे करने के नाम पर भी खूब तोड़ फोड़ की गई . प्रधान मंत्री का २० सूत्रीय कार्यक्रम चलाया गया .
जनता ने फर्ज निभाया 

इमरजेंसी के चलते ही लोक सभा चुनाव हुए , जनता ने अपना फर्ज निभाते  हुए , कांग्रेस को बुरी तरह से हरा   दिया ,   मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री और नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति बने . अटल जी व अडवानी जी  सहित संघर्ष रत नेता गण मंत्री बने , मगर आपस की लड़ी ने यह सरकार भी डुवा दी . मगर यह इतिहास बना की लगातार ३० वर्षें के शासन के वाद पहली बार  कांग्रेस केन्द्रीय मंत्री मंडल से हटी  .

- राधा कृष्ण मन्दिर रोड ,
डडवाडा , कोटा २ . राजस्थान .

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