भोपाल गैस त्रासदी - धारा ३०४ क़ी काली और गेर जिम्मेवाराना व्याख्या


सुप्रीम कोर्ट पूर्व चीफ जस्टिस एएम अहमदी ने कहा है कि भोपाल गैस त्रासदी के मामले में वे पीड़ितों से केवल ‘सॉरी’ कह सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने 1996 के अपने फैसले को सही ठहराया है। उन्होंने कहा था कि संविधान कानून की मां है। इसलिए संविधान को गहराई से समझना चाहिए। जस्टिस अहमदी ने विद्यार्थियों का आह्वान भी  किया था कि वे साहित्य का अध्ययन करें, क्योंकि इसके बिना वे अच्छे वकील और न्यायाधीश नहीं बन सकते। मगर उनकी अध्यक्षता वाली बेंच के फैसले से ही भोपाल गैस त्रासदी के  मामले के आरोप को गैर इरादतन हत्या के बजाय लापरवाही में बदल गए थे। इस लिए में गंभीरता  पूर्वक उन पर आरोप लगता हु क़ी इस फेसले में उनकी नियत आरोपियों को बचाने क़ी थी .संविधान विशेषज्ञ राजीव धवन के अनुसार पूरे मामले में केवल सुप्रीम कोर्ट ही जिम्मेदार है। उसने 1996 में गैरइरादतन हत्या के मामले को लापरवाही से हुई मौत का दर्जा देकर दोषियों को छूट दी। अगर कमजोर धारा में मुकदमा दर्ज नहीं होता तो दोषियों को कम से कम दस साल की सजा होती।

          गेर इरादतन हत्या और लापरवाही   को समझने  के लिए दिमाग लगाना पड़ता हे, एक कार का ड्राईवर अपने मालिक से बार-बार कह रहा हे क़ी ब्रेक ठीक  नही हें उन्हें ठीक करवा दो , और मालिक ठीक करवाए बिना उसे रोड पर भेज रहा हे तो ,एक्सीडेंट के बाद हुई किसी भी मोत  के लिए मालिक धारा ३०४ का ही अपराधी हे , उसे ३०४ ए में छोड़ कर आप कानून से धोका कर रहे हें , यही कारण हे क़ी आम आदमी भी कीड़े मकोड़े क़ी तरह मर रहा हे , रोज अख़बार यही खबर देते हें , अदालतें सही विवेचना करे और सही सजा दें तो आधी दुर्घटनाएं बंद  हो जाएँ , सवाल तो यही हे क़ी आपके दिमाग क़ी बत्ती भी तो जले . मेरा तो स्पष्ट मानना  हे क़ी अदालत क़ी पहली जबाबदेही  ही न्याय के प्रति हे . फेसले में बारीकी होनी ही चाहिए , नगर निगम या पालिका क़ी सीमा में कई रोड़ों  पर गति सीमा ३०/४० किलो मीटर  हे , ड्राईवर १२० किलो मीटर में गाड़ी चला कर लोगों को मार   देता हे , आप धरा ३०४ ए लगायेंगे , धारा  ३०४ लगनी चाहिए . दुष्परिनाम जानते हुए भी लापरवाही करें तो आप हत्यारे हें .बी एम् डब्ल्यू कार का मामला क्या आया ,आप मालिक क़ी हेसियत के आगे छुक गये, मरने वाला आपको मक्खी मच्छर से भी गया गुजरा हो गया .
  यूनियन कार्बाइड जेसी बहु राष्ट्रिया कम्पनी के सामने जस्टिस एएम अहमदी  को भोपाल गैस त्रासदी जो पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना थी ,  सामान्य कार दुर्घटना नजर आई ,  जस्टिस एएम अहमदी, न्यायपालिका के इतिहास में इस धारा ३०४ को ३०४ ए में बदलने क़ी काली और गेर जिम्मेवाराना व्याख्या के कारण ही जाने जाएँगे, ताजुब हे क़ी एक साधारण प्रकरण और एक असाधारन प्रकरण में उन्हें फर्क ही नजर नही आया . ,खुदा जाने कोंन सा चश्मा लगा  था , इस तरह क़ी बर्बरता यातो हिरोशिमा या नागासाकी में अमरीकी परमाणु बमों ने ढहाई थी या अमरीकी लाभ कमाने क़ी मनोव्रती के चलते आवश्यक रखरखाव नही करवा  भोपाल में ही ढहाई हे .
     सच यह  था कि इस फेक्ट्री में उतने सुरक्षा इंतजाम थे ही नही जितने क़ी अमेरिका क़ी यूनियन कार्बाइड  फेक्ट्री में थे , श्रमिको को मांगने पर भी हिंदी में सुरक्षा पत्रक / म्न्युअल नही दिया गया .इस घटना से पूर्व भी घटनाएँ हुई , श्रमिक मोत भी  हुई , विधानसभा में भी इंतजाम नही होने क़ी बात आई थी और मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह ने सब कुछ ठीक होने का भरोसा दिलाया था , इसके बाद यह सब हुआ , यानि क़ी जान लेवा लापरवाही बरती जा रही थी , लगभग ३० कमियां जो घातक थी क़ी जानकारी काफी पहले  ही आ गई  थीं मगर सारी बातों को टाला   गया . पैसा बचना और लाभ कमाना यही उद्देश्य था, गेस के बादल के बादल बन  कर शहर पर छा गये तो बड़ी ही गफलत होगी , फैक्टरी प्रबंधन को मेंटेनेंस में लापरवाही की जानकारी होने के बाद भी उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में मशीनों व भंडारण  के रखरखाव में लापरवाही बरतने से गैस त्रासदी हुई।
        पूर्व चीफ जस्टिस पीएन भगवती ने कछुआ की चाल से ऐसे गंभीर मामले का निपटारा होने पर गहरा दुख जताया है। जस्टिस भगवती ने इस सिद्धांत की नींव रखी थी कि लापरवाह कंपनी को अपनी भुगतान क्षमता के अनुरूप मुआवजा देने को कहा जाना चाहिए। उनके मुताबिक, ‘भोपाल के ट्रायल कोर्ट के फैसले से इस सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है। जजों को पीड़ितों की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए।’
अरविन्द सीसोदिया
राधा क्रिशन मंदिर रोड ,
ददवारा , वार्ड ५९ , कोटा २
राजस्थान .

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