भ्रष्टाचार का शिष्टाचार-यह गंगा ऊपर से नीचे बह रही हे
अरविन्द सिसोदिया
भ्रष्टाचार एक बार फिर से चर्चा में हे ,विश्व बैंक के अधिकारीयों ने बहुत स्पष्टता से कहा हे , की भारत में भयंकर भ्रष्टाचार हे और उन्होंने हाल ही में एक समझोता भी भ्रष्टाचार नियन्त्रण के सन्दर्भ में भारतीय अधिकारीयों के साथ किया हे , वैसे तो यह भारतीय सरकार, भारतीय अधिकारीयों और राजनेताओं के लिये बहुत ही शर्मिदगी का विषय हे, मगर अमरीका जबसे मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने हें तब से भारत के साथ इस तरह का व्यवहार कर रहा हे जैसे मनमोहन सिंह उनकी वजह से प्रधानमंत्री बने हों . यह ठीक हे की हम अमेरिका की तरफ तेजी से बड़ रहे हें , मगर उसका अर्थ यह भी नही हे की हमारे भ्रष्टाचार की जाँच विश्व बैंक करेगा ! हमारी जाँच हम ही करके दें यही राष्ट्र हित में हे !!
किन्तु यह भी सच हे की हमारे यहाँ भ्रष्टाचार नशे की तरह हो गया हे , जो पूरे शरीर पर हाबी हे, यह नशा दिनोदिन बड़ रहा हे , कैंसर की तरह लाइलाज हे , कारण इसका यह हे की , यह गंगा ऊपर से बह रही हे , पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक , पटवारी से लेकर प्रमुख सचिवों तक पर , आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार के आरोप लगे , मगर ज्यादातर मामलों में सजा हुई ही नही , हुई तो उनको जिनकी खास पहचान नही थी .इसीलिए भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मान लिया गया हे .
भारत को भी चीन की तरह भ्रष्टाचार मुक्ति का अभियान चलाना चाहिए , उनके यहाँ तो प्रशासनिक भ्रष्टाचार ही समस्या हे ,राजनेतिक भ्रष्टाचार यथा संभव नही हे , हमारे यहाँ तो तीनो प्रकार के भ्रष्टाचार हें यथा राजनेतिक , प्रशासनिक , सामाजिक , भगवान को प्रशाद चढाने की तरह, भ्रष्टाचार का बोलबाला हे , सबसे बड़ी बात तो यह हे की भ्रष्टाचार पर अब किसी को शर्म भी नही आती , भ्रष्टाचार के अवसरों को उन्नति का परिचायक माना जाता हे , सरकार के ज्यादातर काम कराने वाले और काम करने वाले , बिल पास होने पर तय सुदा कमीशन को तो अधिकार मानते हें . अधिकार के रूप में भ्रष्टाचार का अनुसन्धान किया जाये तो एक रोचक और बड़ा भारी ग्रन्थ बनाया जा सकता हे .
कुछ तथ्य ,
- २००९ में वैश्विक स्तर की भ्रष्टचार माप ने वाली एक संस्था ट्रांसपेरंसी इंटरनेशनल ने भारत को १८० देशों में ८४ वें पायदान पर रखा हे . 2007 में भारत 3.5 अंक लेकर दुनिया के 180 देशों में 72वें स्थान पर था, जो वर्ष 2008 में 3.4 अंक के साथ 85वें स्थान पर लुढ़क गया है। 2007 में भारत के साथ चीन भी 72वें स्थान पर था। अपनी स्थिति में मामूली सुधार करते हुए चीन अपना स्थान पूर्ववत बरकरार रखा है। सबसे बड़ी बात यह हे की इसका खंडन भारत सरकार ने नही किया हे .
- 2004 में 154 सांसद करोड़पति थे, इस साल 306 सांसद करोड़पति। 543 सांसदों की कुल संपत्ति 28 अरब रुपए के आसपास है। 64 केंद्रीय मंत्री मिलकर पांच अरब रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। यह उस देश की स्थिति है, जहां 83.6 करोड़ लोग अब भी बीस से साठ रुपए पर जी रहे हैं जो देश भूख का आकलन करने वाले ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 88 देशों की सूची में 66वें नंबर पर है,ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 132वें नंबर पर।फिलहाल देश के 306 सांसद करोड़पति हैं और 543 सांसदों की कुल संपत्ति 28 अरब रुपए के आसपास है।- 14 jun2010, विश्व बैंक अधिकारी और एसटीएआर (स्टोलन असेट रिकवरी इनिशिएटिव) के को-ऑर्डिनेटर एड्रियन फोजार्ड ने वाशिंगटन से यह जानकारी दी है, विकासशील देशों में हर साल 1,873 अरब रुपए (40 अरब डॉलर) भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं।विश्व बैंक की भारतीय अधिकारियों के साथ एक विशेष बैठक में बैंक की परियोजनाओं में भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के उपायों पर सहमति हुई है।
- अमरीकी विदेश विभाग ने वर्ष-2008 की मानवाधिकारों पर जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में पुलिस और सरकार में हर स्तर पर भ्रष्टाचार मौजूद है।
- हर्षद मेहता, केतन पारीख से जुड़े स्कैण्डल किसकी देन हैं?
- अर्थशास्त्री मानते हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ में हमारे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी हैं।
- पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का वक्तव्य सभी को याद होगा।उन्होंने कहा था कि गरीबी उन्मूलन परियोजनाओं को केन्द्र द्वारा दिए जाने वाले प्रत्येक सौ करौड़ रुपए में मात्र 15 करोड़ रुपए ही मूल परियोजना में खर्च हो पाते हैं। शेष राशि बीच के सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े भ्रष्ट लोग खा जाते हैं।
- सन् 2001 में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.पी. भरूचा ने आजिज आकर वक्तव्य दिया था कि न्यायालयों के 20 प्रतिशत न्यायाधीश भ्रष्ट हो चुके हैं। अब जब हमारी न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार की यह हालत है तो प्रशासन का क्या पूछना।
चीन ने किया भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान तेज -
- निजी संपत्ति सार्वजनिक करने की व्यवस्था की स्थापना इन सालों में चीन में एक बहुचर्चित विषय बन गया है।
- सरकारी अधिकारी अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करने के जरिए जन समुदाय को अपनी असल हालत बता सकते हैं
- चीन सरकार ने गत वर्ष नेटवर्क पर भ्रष्टाचार मामले की रिपोर्ट देने का भी प्रोत्साहन दिया और रिपोर्ट ग्रहण करने का तेलीफोन नम्बर जारी किया
- नेटवर्क पर भ्रष्टाचार मामले का भंडाफोड़ करना एक अच्छा तरीका है। जिस से प्रोक्युरेट संस्थाओं को अधिक सुराग मिलेगा
- चीनी कानून विश्वविद्याल के प्रोफेसर छाओ ई सुन ने कहाः सूचना सार्वजनिक करने से लोग सरकार के बारे में जानकारी ले सकेंगे और उस पर निगरानी कर सकेंगे।
- व्यवस्था निर्माण को परिपूर्ण करने से सरकार के कार्यभार के लिए निश्चित मापदंड कायम होगा।
- इस तरह अधिकारी पद के दुरूपयोग से बच सकेंगे। यदि कोई भ्रष्टाचार हुआ, तो भी आसानी से भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाओं द्वारा पड़का
सच यह हे की भ्रष्टाचार को मिटाने की लिए ऊपर बैठे लोगों को ही आगे आना होगा , क्यों की यह गंगा उनके ही शिखरों से बह कर नीचे आ रही हे . अगर राजनीती तन्त्र ईमानदार हो जाये तो प्रशासनिक तन्त्र को सुधरने में ज्यादा वक्त नही लगेगा . जब प्रधानमंत्री और मंत्री की हैशियत से अकूत धन बनते उनके सेक्रेटरी देखते हें तो यही प्रेरणा नीचे तक आती हे ........!.
- राधा कृष्ण मन्दिर रोड, .
डडवाडा, वार्ड ५९, कोटा २ ,
राजस्थान
खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!
जवाब देंहटाएंसामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।
अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
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