जवाबदेही अमरीकी कंम्पनी यूनियन कार्बाइड की

- अरविन्द सिसोदिया   
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने संकेत दिए हैं कि भोपाल गैस त्रासदी पर केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में पुनर्गठित मंत्री समूह (जीओएम) विश्व की सबसे ब़डी इस औद्योगिक भोपाल गैस  त्रासदी के लिए जवाबदेही भी तय कर सकता है।
   मगर जवाबदेही तो अमरीकी कंम्पनी यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन की ही हे . जब यह हादसा हुआ था , तब एंडरसन ३८ देशों में चल रहे ७०० प्लांटों के मालिक थे . उनकी सीधी पहुच अमरीकी राष्ट्रपति से थी . जब सारी दुनिया से लाभ कमाया जा रहा था तो इस  नुकसान की भरपाई और जबाबदेही भी उन्हें ही उठानी होगी, यह बात दूसरी हे की आप पूर्व केंद्र सरकार की तरह ही अमरीका के सामने पूँझ हिलाने लगे .  .   
१- क्यों की कारखाना लगाने  का आवेदन  यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन  की अमरीकी कंम्पनी ने किया था . और मुनाफा भी उनने ही कमाया , उनकी लगभग ६० प्रतिशत की हिस्सेदारी थी , नफा खाया हे तो नुकशान भी उन्हें ही चुकाना पड़ेगा . वे दिवालिया हुए बिना कैसे बच सकते हें . उनका कोई लेना देना नही था तो ७ दिसम्बर १९८४ को भोपाल क्यों आये थे .
२- - जब फैक्टरी खोलने का लायसेंस दिया गया, तब यह स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि प्लांट के डिजाइन और तकनीकी क्षमता, सुरक्षा में कोई त्रुटि नहीं बरती जाएगी और उसके संबंध में सही जानकारी दी जाएगी। यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन (यूसीसी) के वेस्ट वर्जिनिया ( अमरीका )स्थित प्लांट में जो सुरक्षा मापदंड अपनाए गए वे भोपाल के प्लांट में नहीं अपनाए गए।
३- अमरीकी प्लांट में कार्यरत लोगों को और आस पास के निवासियों को समझ में आने वाली भाषा में जानकारी और सुरक्षा सावधानियों की डिटेल दी थी . मगर भोपाल में उन्होंने येसा कुछ भी नही किया , कार्यरत लोगों द्वारा मांगने पर भी समझमें आने वाली भाषा में कोई जानकारी उपलब्ध नही करवाई गई . यह सबसे बड़ी नेग्लेजेंसी थी .   
- भोपाल गैस पीड़ितों को इतना कम मुआवज़ा मिला है कि उसे भीख़ कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। दिल्ली में हुए उपहार अग्निकांड तक में पीड़ितों को लाखों रूपए मुआवज़ा मिला है.
- २४ दिसम्बर १९८१ में गैस रिसाव से एक कर्मचारी  की म़ोत हुई ,
- यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन की अमरीकी कंम्पनी के विशेषज्ञों  ने भोपाल प्लांट  की सुरक्षा संबंधी जाँच में प्लांट  में ६१ खतरे इंगित किये थे , जिनमें से ज्यादा खतरनाक गैस से जुड़े प्लांट में ११ थे , ३० को गंभीर माना गया था , और १५ वे उपाय जो होने चाहिए थे और किये ही नही गये थे .
- वर्क मैनेजर जे. मुकुंद ने कंपनी के अमरीकी आकाओं को अर्थार्त एंडरसन & कंपनी को पाईपों की कोटिंग के लिए प्रस्ताव भेजा  था ,उसे खर्च अधिक होने की बात कह कर ख़ारिज कर दिया गया था .
- २८ ओक्टुबर १९८४ को गैस रिसाव से २ लोगों की म़ोत हो गई
- गैस के स्टोरेज टैंक, गैस स्क्रबर और प्लेयर टावर जो सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण उपकरण थे, सेफ्टी मेन्यूअल के अनुरूप काम नहीं कर रहे थे। यूसीसी द्वारा जो मेन्यूअल एमआईसी गैस के उत्पादन से संबंधित सुरक्षा की दृष्टि से जारी किया गया था उसका बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया।
- गैस ठंडी रखने के खर्च को बचाने से हुआ यह नरसंहार -
यह बात भी साबित हुई कि फैक्टरी का रेफ्रीजेशन यूनिट काम नहीं कर रहा था और गैस रिसने के पहले से ही वह बंद पड़ा हुआ था। इसे बंद करने का आदेश प्रोडेक्शन मैनेजर एसपी चौधरी और वारेन वुमर (प्लांट के ओवर ऑल इंचार्ज) ने दिया था। इस रेफ्रीजेशन यूनिट को बंद करने के कारण स्टोरेज टैंक में गैस दबाव बड़ा और यह गैस त्रासदी का हादसा हुआ।  यूसीसी के वेस्ट वर्जिनिया स्थित प्लांट में रेफ्रीजेशन सिस्टम हमेशा चालू रखा जाता था। उसे फैक्टरी चालू होने के बाद से कभी बंद नहीं किया गया।
- यूनियन कार्बाइड कॉपरेरेशन (यूएसए) से आए श्री पाल्सन ने पाया था कि प्लांट में लापरवाही बरती जा रही है और सुरक्षा की दृष्टि से कई खामियां हैं। उसकी रिपोर्ट पर प्लांट में सुधार की कोई कार्यवाही की गई, यह तथ्य अदालत में प्रमाणित नहीं हो सका।
-  राधा कृष्ण मन्दिर रोड ,
    डडवाडा  , वार्ड ५९ , कोटा २
    राजस्थान .

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