जम्मू और कश्मीर - सेना को बहार करने की कोशिशें

उमर अब्दुल्लाह-पाकिस्तानी मंसूबों कि बकालत .....!!!!



- अरविन्द सिसोदिया
मत भूलिए जम्मू और कश्मीर प्रान्त आज तक भारत का हिस्सा इसलिए  हे की वहां सेना अपनी जान पर खेल कर , अनगिनित बलिदानों से उसकी रक्षा कर रही हे . जम्मू - कश्मीर पार से जब धोके से पाकिसतानी सेना ने कवाईली  वेश में आक्रमण किया था , तब उसे भारत कि सेनाओं ने ही बचाया था , भारतकी और से पहुची सेना को उतरने के लिए हवाई पट्टी ठीक करने ने के काम को  संघ के स्वंय सेवक ने ही किया था . ईसकी रक्षा के लिए कई युद्ध हो चुके हें , हजारों सैनिकों के बलिदान से , इसकी रक्षा हो रही हे . मत भूलिए कि कश्मीर में एक भी मुसलमान नही था , हर बच्चा भोले शंकर का पुजारी था , हर बेटी कि माता पार्वती जी थीं . गलत हाथों में राज चले जाने से , सबको जबरिया मुसलमान बनाया गया . आज वे चाहते हें कि कश्मीरी बन कर ही रहें तो उन्हें जबरिया पाकिस्तानी बनाने पर तुलें हें . यदि जरा सी ईमानदारी हे और जरा भी पुरुषार्थ हे तो उनकी सच्ची रक्षा कि जाये   . यह रक्षा आम व्यक्ति नही सेना ही कर सकती हे वही करेगी . कश्मीर में सेना से दिक्कत सिर्फ पाकिस्तान  को हे , उसका बकील चाहे जो भी बने !!
 . इस प्रान्त से सेना को बहार करने की कोशिशें बहुत दिन से जारी हें , अलगाव वादी और आतंकवादी इसे भारत से अलग करना चाहते हें . यह तभी सफल हो सकते  हें जब वहां सेना न हो ! यह तमाशा उसी का हिस्सा हे .
 सीआरपीएफ के महानिदेशक विक्रम श्रीवास्तव ने कहा कि सीआरपीएफ,  उनके बल के जवानों ने एक भी गोली या आंसू गैस का गोला नहीं चलाया। स्थानीय पुलिस अधीक्षक (सोपोर) वहां है। हमारे लोग उन्हें मदद कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार रात केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम से बातचीत की थी और अर्धसैनिक बलों की कार्रवाई में नागरिकों के चपेट में आने पर अपनी चिंता जताई थी।स्थानीय नेताओं और राज्य पुलिस दोनों ने आरोप लगाया है कि सीआरपीएफ ने गोलीबारी की थी।
हुआ यह था कि सेबों के लिए विख्यात शहर सोपोर में रविवार (२० जून २०१०) को गोलीबारी में एक युवक की मत्यु के बाद प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा सोमवार को गोलीबारी में कश्मीर घाटी में अलग-अलग घटनाओं में दो लोग मारे गए।
जम्मू-कश्मीर में नागरिकों की हत्या के मामले में सीआरपीएफ को चारों ओर से निशाना बनाए जाने के बाद केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई ने कहा है जो लोग कर्फ्यू तोड़ कर पुलिस चौकियों को निशाना बना रहे हैं, उन्हें मासूम नागरिकों की संज्ञा नहीं दी जा सकती।पिल्लई ने कहा एक ऐसी जगह, जहां कर्फ्यू लगा हुआ है, वहां लोग कर्फ्यू तोड़ रहे हैं, पुलिस और सीआरपीएफ की चौकियों पर हमले कर रहे हैं, मैं नहीं मानता कि आप उन लोगों को किसी भी तरह मासूम और निर्दोष नागरिक कह सकते हैं। गृह सचिव ने एक निजी चैनल से कहा अब ऐसी भीड़ जुटाने वाले आयोजक एक तरह से किशोरों को आगे करने की प्रवृत्ति अपना रहे हैं। मेरा मानना है कि दोष उन्हें दिया जाना चाहिए और किशोरों को ये अहसास होना चाहिए कि उनका शोषण किया जा रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या अलगाववादी  लोगों की भावनाओं को भुना रहे हैं, तो उन्होंने इसका सकारात्मक जवाब दिया।
उमर  का अलगाववाद....,
शेख अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला के साथ कांग्रेस के रिश्ते दोस्ती और दुश्मनी के रहे। अब बारी अब्दुल्ला परिवार के तीसरी पीढ़ी के वारिस उमर अब्दुल्ला के साथ राजनीतिक रिश्तों की। उमर कांग्रेस की मदद से ही मुख्यमंत्री बने हैं। मगर वे स्वंय के बूते पर अगली सरकार कि तैयारी कर रहे हें . इस बार कि तिकडम यह हे कि अलगाव वादी ताकतें इनका समर्थन करे ,  
भारत यह कभी नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए कि जम्मू कश्मीर की मौजूदा समस्या की जड़ में अमेरिका का हाथ है। पंडित जवाहर लाल नेहरू जब कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र में लेकर गए थे तो जनमत संग्रह का प्रस्ताव अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर रखा था। छह नवंबर 1952 को पेश किए गए इस प्रस्ताव का मकसद पाकिस्तान को फायदा पहुंचाना था। शेख़ अब्दुल्ला ने अपनी राह भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से अलग करते हुए राज्य के भविष्य का फैसला करने के लिए जनमत संग्रह कराए जाने की माँग शुरु कर दी. इसके लिए शेख़ अब्दुल्ला ने प्लेबिसाइट फ्रंट यानी रायशुमारी मोर्चा भी गठित किया. आप आज भी देख सकते हें कि जब भी पाकिस्तान का मामला आएगा तो अमेरिका और ब्रिटेन   का रुख परोक्ष - अपरोक्ष पाकिस्तान के ही फेवर में मिलेगा . यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान के परमाणु संबंध पाकिस्तान से हें . इसका क्या आर्थ हे ? 


उमर अब्दुल्लाह भी अपने दादा शेख अबोदुल्लाह के रास्ते कि और हें , 
- शेख अब्दुल्लाह , जवाहर लाल नेहरु के साथी और करीवी  होने से , जम्मू और कश्मीर के सर्वे सर्वा बन गये थे , नेहरु जी शेख अब्दुल्लाह के  आजादी के आन्दोलन को समर्थन करते थे . एक बार उन्हें महाराजा  हरी सिंह ने बदी बना कर भारत वापस भेजा था . वह खुन्नस नेहरु जी ने आजादी के बाद भी जारी रखी थी  और शेख अब्दुल्लाह को वहां का प्रधान मंत्री बनाया . प्रधान मंत्री बनने  के बाद उन्होंने , नेहरु जी को ठठ्ठा दिखाते हुए , आलगाव वादी कदम उठाने शिरू कर दिए , आखिर नेहरु जी को उन्हें जेल में डालने पड़ा . अलगाव वाद के कारनामें फारुक अबदुल्लाह ने भी बहुत किये , फिर जब यह समझ में आ गया  कि सबकुछ इतना आसन नही हे , तो जा कर ठंडे पड़े !

उमर सहाब  को बिना मेहनत सब कुछ मिला हे जब तक वे नष्ट नही कर लेंगे  तब तक चैन नही मिलेगा .कुछ दिन पहले वे संसद पर हमलावर अफजल गुरू कि बकालत कर रहे थे , उसे फाँसी नही देने कि बात कह रहे थे . गद्दारों के साथ खड़े होने वाले कि बात को क्या ताबुज्जो देना.
कश्मीर के भोले भले लोगों कि रक्षा  सेना कर रही हे , पाकिस्तानी गुंडों  से उन्हें बचा रही हे . सीमा पार से आये देशद्रोहियों से उनकी रक्षा कर रही हे . उसे वही बनाये रखना देश हित में हे .
-- राधा कृष्ण मन्दिर रोड , डडवाडा , कोटा २ , राजस्थान . .           

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