भोपाल गैस दुर्घटना-भारतवासी कीड़ों मकोड़ों की तरह
शनि महाराज देंगे सजा एंडरसन को ....
सरकारी न्याय व्यवस्था से तो आच्छी , हमारे शनी महाराज की न्याय व्यवस्था हे की कोई कितना भी भारी दानी ही क्यों न हो , पाप किया हे तो भुगतना ही पड़ेगा . एंडरसन जो की मुख्य अपराधी हे को अदालत ने भगोड़ा घोषित किया हे , उसके भागने में तो भारत सरकार ने मदद की थी , वह न्यूयार्क के एक उपनगरीय इलाके में रहता है। अमेरिका ने उसे सोंपने की बात तो नही कही , भारत एक गुलाम मानसिकता का देश उसे यहँ ला सकेगा येशा लगता नही हे , येसे में यही ठीक हे की शनी महाराज से प्रार्थना की जाये की वे उसे सजा दें ,
भोपाल गैष त्रासदी में १५ हजार से ज्यादा लोग मारे गए और २ लाख से ज्यादा लोग निरंतर पीड़ा भोग रहे हें , यह विश्व की सबसे बड़ी ओद्योगिक दुखान्त्की हे , इस दुर्घटना को टाला जा सकता था और रोका जा सकता था , मगर मालिक लोग कार्यरत मजदूरों को गुलाम समझते रहे और प्रशासन मालिकों को अपना मालिक समझता रहा , राजनेतिक लोग भी गुलाम रहे , अन्यथा यह कारखाना शहर से कम से कम ५० / १०० किलोमीटर दूर लगता , तमाम नियमों को सख्ती से पालन होता , समय समय पर होने वाली चेकिग सही ढंग से होती , कर्मचारियों को उनके समझमें आने वाली भाषा में , कार्य प्रणाली और सावधानियों की जानकारी दी जाती , इस कारखाने में काम करने वालों ने हिंदी में सावधानियों का पत्रक माँगा था , एक नही कई बार यह मांग हुई थी , जो कारखाना मलिकोने नही दिया और जोर देने पर भी नही दिया , यह एक येसा अपराध था जिसके कारण बचाव से सभी अनभिग्य थे , कराचारी भी नागरिक भी ,
1- 3 दिसंबर 1984 को हुई भोपाल गैस दुर्घटना के भुक्तभोगी। इस दुर्घटना में मध्य रात्रि हुए रासायनिक गैस के रिसाव के कारण तत्काल 7000 से 10,000 लोगों की मौत हो गई थी। तत्काल और इस दुर्घटना के कारण बाद के वर्षों में मरने वालों का कुल आंकड़ा करीब 20000 तक पहुंच गया। करीब 2,50000 लोग विकलांग हुए। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दुर्घटना का दुष्प्रभाव भोपाल की स्थानीय आबादी पर 3-4 पीढ़ियों तक रहेगा।
भोपाल गैस त्रासदी
‘भोपाल गैस ट्रेजडी विक्टिम्स एसोसिएशन’ के शशिनाथ सारंगी का कहना है कि 14-15 फरवरी 1989 को हुए इस करार के तहत यूनियन कार्बाइड के भारत और विदेशी अधिकारियों को 47 करोड़ डॉलर की एवज में हर प्रकार के नागरिक और आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया।
सारंगी के अनुसार इस करार में कहा गया कि कंपनी के खिलाफ सभी आपराधिक मामले खत्म करने के साथ-साथ सरकार इस त्रासदी के कारण भविष्य में होने वाली किसी भी खामी मसलन से उसके अधिकारियों की हर प्रकार के नागरिक और कानूनी उत्तरदायित्व से हिफाजत भी करेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस करार को अक्टूबर1991 में आंशिक रूप से खारिज कर दिया था। उसके फैसले में कहा गया था कि वित्तीय हर्जाने के भुगतान से सिर्फ नागरिक उत्तरदायित्व पूरा होता है, लेकिन इससे कंपनी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले खारिज नहीं हो जाते।
इसके बाद जाकर कंपनी के खिलाफ नवंबर 1991 में आपराधिक मामले की सुनवाई शुरू हुई। निचली अदालत ने 1993 में आठ अधिकारियों को गैर इरादतन हत्या के प्रावधानों के तहत आरोपी बनाया। इसे आरोपियों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ में चुनौती दी। उच्च न्यायालय द्वारा अपील खारिज कर दिए जाने पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के फैसले के बाद मामले की सुनवाई फिर से शुरू हुई।
२- इस पुरे मामले ने यह साबित कर दिया की , प्रशासन और राजनेताओं की तरह , न्यायपालिका भी कायर और गुलामी की मानसिकता से पीड़ित हे , अन्यथा उन्हें तो न्याय के हित के लिए कदम उठाना चाहिए थे , उन्होंने इतना तक नही सोचा की इस से भारत में न्यायपालिका की क्या फजीहत होगी , न्यायलय को इस पाखंड को समझते हुए , प्रत्येक व्यक्ति को एक पार्टी मानते हुए , सजा पर व्यक्ति के हिसाव से देनी चाहिए थी , प्रति व्यक्ति के हिसाव से क्षति पूर्ति का भी निर्णय देना चाहिए था ,
३- इस निर्णय से यह संदेस चला गया की, भारत में आज भी ईस्ट इंडिया कंपनी जेसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साम्राज्य हे , भारत वासी आज भी जर खरीद गुलामों की तरह ही हे , उन्हें आज भी कीड़ों - मकोड़ों की तरह मारा जाना आसन हे , वहां स्वतन्त्रता का परोक्क्ष मतलव बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साम्राज्य हे , पहले राजे महार्जे उनके गुलाम थे आब राजनेता उनके गुलाम हें , प्रशासन उनका पहरेदार हे , विधान संविधान भाद में जाये , कायदे कानून चूल्हे में जाये , भारत में विदेसी ख़ुशी रहें , लूटते रहें , सरे गेर क़ानूनी काम करते रहे , न्यू गुलामी जिन्दावाद .
४- यही केस किसी पश्चिमी देश की अदालत में चलता तो यूनियन कार्बाइड की सारी सम्पत्ति जप्त हो जाती और उसके बीमा धारक कंपनियो की भी संपत्ति बिक जाती , क्यों की हर व्यक्ति को न्याय मिलता , उनका न्यायलय इस तरह नही डरता , इस तरह की भयानक किस्म की लीपापोती उनके देश में नही होती , ...
५- कितनी सजा
भादवि की धारा 304-ए : केशव महेंद्रा, विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केवी शेट्टी, एसआई कुरैशी को दो साल की जेल और एक लाख रुपए जुर्माना। इसी धारा में यूका पर पांच लाख रुपए का जुर्माना।
१. धारा 338 में केशव महेंद्र सहित सातों आरोपियों को एक साल की जेल और एक हजार का जुर्माना।
२. धारा 337 में केशव महेंद्रा सहित सातों आरोपियों को छह महीने की जेल और पांच सौ का जुर्माना।
३. धारा 336 में केशव महेंद्रा सहित सातों को तीन माह की जेल और प्रत्येक पर 250 रु. का जुर्माना।
६- अमेरिका की हिम्मत देखो की उसने भारत वासियों के जले पर नमक छिडकते हुए कहा हे , अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता पी. जे. क्राउले ने आशा जताई कि यह भयावह त्रासदी भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों के विस्तार में अवरोधक नहीं बनेगी। यह परोक्ष धमकी नही तो क्या हे ,
अरविन्द सिसोदिया
राधा कृष्ण मन्दिर रोड ,
ददवारा , कोटा २
राजस्थान .
सरकारी न्याय व्यवस्था से तो आच्छी , हमारे शनी महाराज की न्याय व्यवस्था हे की कोई कितना भी भारी दानी ही क्यों न हो , पाप किया हे तो भुगतना ही पड़ेगा . एंडरसन जो की मुख्य अपराधी हे को अदालत ने भगोड़ा घोषित किया हे , उसके भागने में तो भारत सरकार ने मदद की थी , वह न्यूयार्क के एक उपनगरीय इलाके में रहता है। अमेरिका ने उसे सोंपने की बात तो नही कही , भारत एक गुलाम मानसिकता का देश उसे यहँ ला सकेगा येशा लगता नही हे , येसे में यही ठीक हे की शनी महाराज से प्रार्थना की जाये की वे उसे सजा दें ,
भोपाल गैष त्रासदी में १५ हजार से ज्यादा लोग मारे गए और २ लाख से ज्यादा लोग निरंतर पीड़ा भोग रहे हें , यह विश्व की सबसे बड़ी ओद्योगिक दुखान्त्की हे , इस दुर्घटना को टाला जा सकता था और रोका जा सकता था , मगर मालिक लोग कार्यरत मजदूरों को गुलाम समझते रहे और प्रशासन मालिकों को अपना मालिक समझता रहा , राजनेतिक लोग भी गुलाम रहे , अन्यथा यह कारखाना शहर से कम से कम ५० / १०० किलोमीटर दूर लगता , तमाम नियमों को सख्ती से पालन होता , समय समय पर होने वाली चेकिग सही ढंग से होती , कर्मचारियों को उनके समझमें आने वाली भाषा में , कार्य प्रणाली और सावधानियों की जानकारी दी जाती , इस कारखाने में काम करने वालों ने हिंदी में सावधानियों का पत्रक माँगा था , एक नही कई बार यह मांग हुई थी , जो कारखाना मलिकोने नही दिया और जोर देने पर भी नही दिया , यह एक येसा अपराध था जिसके कारण बचाव से सभी अनभिग्य थे , कराचारी भी नागरिक भी ,
1- 3 दिसंबर 1984 को हुई भोपाल गैस दुर्घटना के भुक्तभोगी। इस दुर्घटना में मध्य रात्रि हुए रासायनिक गैस के रिसाव के कारण तत्काल 7000 से 10,000 लोगों की मौत हो गई थी। तत्काल और इस दुर्घटना के कारण बाद के वर्षों में मरने वालों का कुल आंकड़ा करीब 20000 तक पहुंच गया। करीब 2,50000 लोग विकलांग हुए। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दुर्घटना का दुष्प्रभाव भोपाल की स्थानीय आबादी पर 3-4 पीढ़ियों तक रहेगा।
भोपाल गैस त्रासदी
‘भोपाल गैस ट्रेजडी विक्टिम्स एसोसिएशन’ के शशिनाथ सारंगी का कहना है कि 14-15 फरवरी 1989 को हुए इस करार के तहत यूनियन कार्बाइड के भारत और विदेशी अधिकारियों को 47 करोड़ डॉलर की एवज में हर प्रकार के नागरिक और आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया।
सारंगी के अनुसार इस करार में कहा गया कि कंपनी के खिलाफ सभी आपराधिक मामले खत्म करने के साथ-साथ सरकार इस त्रासदी के कारण भविष्य में होने वाली किसी भी खामी मसलन से उसके अधिकारियों की हर प्रकार के नागरिक और कानूनी उत्तरदायित्व से हिफाजत भी करेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस करार को अक्टूबर1991 में आंशिक रूप से खारिज कर दिया था। उसके फैसले में कहा गया था कि वित्तीय हर्जाने के भुगतान से सिर्फ नागरिक उत्तरदायित्व पूरा होता है, लेकिन इससे कंपनी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले खारिज नहीं हो जाते।
इसके बाद जाकर कंपनी के खिलाफ नवंबर 1991 में आपराधिक मामले की सुनवाई शुरू हुई। निचली अदालत ने 1993 में आठ अधिकारियों को गैर इरादतन हत्या के प्रावधानों के तहत आरोपी बनाया। इसे आरोपियों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ में चुनौती दी। उच्च न्यायालय द्वारा अपील खारिज कर दिए जाने पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के फैसले के बाद मामले की सुनवाई फिर से शुरू हुई।
२- इस पुरे मामले ने यह साबित कर दिया की , प्रशासन और राजनेताओं की तरह , न्यायपालिका भी कायर और गुलामी की मानसिकता से पीड़ित हे , अन्यथा उन्हें तो न्याय के हित के लिए कदम उठाना चाहिए थे , उन्होंने इतना तक नही सोचा की इस से भारत में न्यायपालिका की क्या फजीहत होगी , न्यायलय को इस पाखंड को समझते हुए , प्रत्येक व्यक्ति को एक पार्टी मानते हुए , सजा पर व्यक्ति के हिसाव से देनी चाहिए थी , प्रति व्यक्ति के हिसाव से क्षति पूर्ति का भी निर्णय देना चाहिए था ,
३- इस निर्णय से यह संदेस चला गया की, भारत में आज भी ईस्ट इंडिया कंपनी जेसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साम्राज्य हे , भारत वासी आज भी जर खरीद गुलामों की तरह ही हे , उन्हें आज भी कीड़ों - मकोड़ों की तरह मारा जाना आसन हे , वहां स्वतन्त्रता का परोक्क्ष मतलव बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साम्राज्य हे , पहले राजे महार्जे उनके गुलाम थे आब राजनेता उनके गुलाम हें , प्रशासन उनका पहरेदार हे , विधान संविधान भाद में जाये , कायदे कानून चूल्हे में जाये , भारत में विदेसी ख़ुशी रहें , लूटते रहें , सरे गेर क़ानूनी काम करते रहे , न्यू गुलामी जिन्दावाद .
४- यही केस किसी पश्चिमी देश की अदालत में चलता तो यूनियन कार्बाइड की सारी सम्पत्ति जप्त हो जाती और उसके बीमा धारक कंपनियो की भी संपत्ति बिक जाती , क्यों की हर व्यक्ति को न्याय मिलता , उनका न्यायलय इस तरह नही डरता , इस तरह की भयानक किस्म की लीपापोती उनके देश में नही होती , ...
५- कितनी सजा
भादवि की धारा 304-ए : केशव महेंद्रा, विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केवी शेट्टी, एसआई कुरैशी को दो साल की जेल और एक लाख रुपए जुर्माना। इसी धारा में यूका पर पांच लाख रुपए का जुर्माना।
१. धारा 338 में केशव महेंद्र सहित सातों आरोपियों को एक साल की जेल और एक हजार का जुर्माना।
२. धारा 337 में केशव महेंद्रा सहित सातों आरोपियों को छह महीने की जेल और पांच सौ का जुर्माना।
३. धारा 336 में केशव महेंद्रा सहित सातों को तीन माह की जेल और प्रत्येक पर 250 रु. का जुर्माना।
६- अमेरिका की हिम्मत देखो की उसने भारत वासियों के जले पर नमक छिडकते हुए कहा हे , अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता पी. जे. क्राउले ने आशा जताई कि यह भयावह त्रासदी भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों के विस्तार में अवरोधक नहीं बनेगी। यह परोक्ष धमकी नही तो क्या हे ,
अरविन्द सिसोदिया
राधा कृष्ण मन्दिर रोड ,
ददवारा , कोटा २
राजस्थान .
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