सोनिया जी की कृपा से : मायके वाले क्वात्रोची का मुक़दमा बंद ..!!



- अरविन्द सिसोदिया 
कांग्रेस ने जिस बेसर्मी से बोफोर्स घोटाला के मुख्य अभियुक्त ओतावियो क्वात्रोकी (Ottavio Quattrocchi) को बचाया उसने आज तक की सभी नैतिकताओं को तिलांजलि  दे दी है ..! यदि अपराधी सोनिया गांधी के देश का नहीं होता तो क्या बच पाता..? उसे बचानें में  कांग्रेस की सर्कार आते ही , सबूतों के ढेर पर बैठी सीबीआई ने पलटनें में देरी भी नहीं लगी..! रीड विहीन इसा तंत्र ने अपने आपको सत्ता का गुलाम अप्रोख्स से घोस्ट कर दिया प्रतीत होता है ..! इसा लिए अदालत के इस फैसले के विरुद्ध बड़ी अदालत में अपील की जानीं  चाहिए ..!
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नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने ४ मार्च २०११  को सीबीआई को बोफोर्स घोटाला मामले में इटली के कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोची का केस बंद करने की मंजूरी दे दी है। सीबीआई ने क्वात्रोची के खिलाफ मामला वापस लेने की याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने केस बंद करने का फैसला सुनाया है।क्वात्रोची दो दशक से ज्यादा पुराने इस मामले में आज तक भारत की अदालत में पेश नहीं हुआ। इस मामले पर अदालत को बीते 21 फरवरी को ही निर्णय देना था, लेकिन फिर इसे चार मार्च तक के लिए टाल दिया गया। सीबीआई के कदम का विरोध कर रहे वकील अजय कुमार अग्रवाल ने अपने लिखित जवाब में कहा कि सीबीआई और सरकार मिले हुए हैं। क्वात्रोच्चि भारत की किसी अदालत में कभी पेश नहीं हुआ।
प्रत्यर्पण की कोशिशें नाकाम
सीबीआई ने कहा था कि क्वात्रोच्चि का प्रत्यर्पण कराने की नाकाम कोशिशों समेत अनेक आधार पर मुकदमा जारी रखना न्यायोचित नहीं है। इतालवी व्यापारी को 2003 में मलेशिया और 2007 में अर्जेंटीना से प्रत्यर्पित कराने की कोशिश एजेंसी ने की थी। बोफोर्स तोप सौदे में कथित तौर पर दलाली लेने के मामले में क्वात्रोच्चि के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया था। सीबीआई ने 20 जनवरी 1990 को1986 के बोफोर्स तोप सौदे के लाभार्थियों की जांच कराने को लेकर एक आपराधिक मामला दर्ज किया था।
वकील अजय अग्रवाल ने सीबीआई द्वारा मामले को बंद करने का कदम उठाए जाने के खिलाफ निचली अदालत में गुहार लगाई थी। उनकी दलील थी कि केंद्र और सीबीआई क्वात्रोची के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने के बावजूद मामले को बंद करने का प्रयास कर रहे हैं। सीबीआई ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन के लिए क्वात्रोची की मौजूदगी सुनिश्चित करना कठिन है और इसके अलावा अन्य सभी आरोपियों की या तो मौत हो गई या उनके खिलाफ आरोपों को दिल्ली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।
200 करोड के खर्च का हवाला
न्यायाधीश ने घोटाले की जांच में पहले ही खर्च किए जा चुके 200 करोड रुपए से अधिक की राशि का हवाला देते हुए कहा कि मामले को चलाने में हम कितने लंबे समय तक आम आदमी की मेहनत के धन को खर्च करेंगे। सीबीआई ने अक्टूबर, 2009 में अदालत से क्वात्रोची के खिलाफ मामला वापस लेने की गुहार लगाई थी।
सीएमएम ने फैसला सुनाते हुए मामले में सीबीआई की याचिका का विरोध करने वाले वकील अजय अग्रवाल के अधिकार क्षेत्र के संदर्भ में कहा कि उनका इस मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि वह अग्रवाल द्वारा उठाए गए व्यापक जनहित के पहलू को भी देख चुके हैं। हालांकि अग्रवाल ने कहा कि वह अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करें। उन्होंने कहा कि 70 वर्षीय क्वात्रोची को दिवंगत राजीव गांधी तथा सोनिया गांधी से नजदीकी के चलते विशेष राहत नहीं दी जा सकती।
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क्वात्रोच्ची पीड़ित .....
....... क्वात्रोची ने स्नमप्रोगेटी के लिए साठ सरकारी परियोजनाओं पर कब्जा किया। उल्लेखनीय है कि हाजिरा-बीजापुर-जगदीशपुर पाइपलाइन परियोजना में स्पाइ-कैपैग कंपनी ने एक सौ करोड़ कम की बोली लगाई और जब उसे टेंडर नहीं मिला तो नवल किशोर शर्मा को पेट्रोलियम मंत्रालय खोना पड़ा, पीके कौल को कैबिनेट सचिवालय छोड़कर वाशिंग्टन रवाना कर दिया गया। गैल के अध्यक्ष एचएस चीमा को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी
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जबकी .....
३ जनवरी २०११ 
आयकर विभाग अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि बोफोर्स सौदे में करोड़ों रूपए की दलाली ली गई.
बोफोर्स तोप घोटाला मामले में एक नया खुलासा हुआ है. बोफोर्स सौदों को लेकर आयकर विभाग अपीलीय न्यायाधिकरण ने इटली के बिजनेसमैन ओटेवो क्वात्रोची और दिवंगत विन चड्ढा पर आरोप लगाया है.


न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि रक्षा सौदों में भारत में दलाली गैरकानूनी है, क्वात्रोची और चड्ढा इसके साथ-साथ भारत में आयकर न चुकाने के भी दोषी है. न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि बोफोर्स सौदे में क्वात्रोची और विन चड्ढा को करोड़ों रूपए की घूस दी गई थी.


बोफोर्स सौदों को लेकर आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के मुताबिक इटली के बिजनेसमैन ओत्तावियो क्वात्रोची और विन चड्ढा को भारत से 155 एमएम फील्ड हॉवित्जर बंदूकों का सौदा करवाने के लिए 1987 में मेसर्स एबी बोफर्स कंपनी की ओर से 1500 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली थी.


न्यायाधिकरण का यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई से एक दिन पहले आया है. इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट में क्वात्रोची के खिलाफ आपराधिक मामले की जांच बंद करने के लिए अपील की है.


न्यायाधिकरण के अनुसार क्वात्रोची और चड्ढा को घूस देने के कारण भारत को इस डील में 242.62 मिलियन स्वीडिश क्रोनर्स का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा. घूस की रकम क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया की कंपनी कोलबार इन्वेस्टमेंट लिमिटेड इंक और मेसर्स वेटलसेन ओवरसीज के अकाउंट में जमा कराई गई थी.


बोफोर्स से मिली रिश्वत की रकम को क्वात्रोची और चड्ढा पकड़े जाने से बचने के लिए एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर करते रहते थे.


उधर भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले के आते ही सरकार पर नए सिरे से हल्ला बोल दिया. वहीं कांग्रेस ने इस फैसले पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.


कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी कहा कि पहले हम आदेश को देखना चाहेंगे. विपक्षी पार्टी द्वारा उस पर कुछ कहे जाने से हम अपने निष्कर्ष नहीं निकाल सकते.
बोफोर्स घोटाले की एसआईटी से जांच हो: भाजपा
इसी मामले में भाजपा ने सीबीआई की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इनकम टैक्स अपीली ट्राइब्यूनल के हालिया फैसले में बोफोर्स तोप खरीद मामले में ओत्तावियो क्वात्रोकी और विन चड्डा को दलाली दिए जाने का खुलासा होने के बाद इसकी जांच विशेष जांच दल ( एसआईटी ) से कराने की जरूरत है.

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, ' अपीलीय ट्राइब्यूनल ने टैक्स भुगतान के एक मामले में 31 दिसंबर को दिए अपने फैसले में कहा है कि रक्षा सौदों में किसी भी बिचौलिये को दलाली नहीं देने की सरकार की नीति का बोफोर्स मामले में स्पष्ट उल्लंघन हुआ और चड्ढा व क्वात्रोकी को दलाली दी गई.'

बीजेपी के सीनियर नेता ने कहा, 'खुलासे के बाद अजीब और विरोधाभासी स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि एक तरफ सरकार की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई ने बोफोर्स घोटाला मामले में कहा है कि बिचौलियों को कोई दलाली नहीं दी गई, जबकि देश के शीर्ष राजस्व विवाद निपटान निकाय ने कहा कि दलाली का भुगतान हुआ और दलाली हासिल करने वालों को कर भुगतान करना चाहिए.'

उन्होंने आरोप लगाया कि ट्राइब्यूनल के फैसले से सीबीआई द्वारा इस धांधली पर उसके राजनीतिक आका कांग्रेस के कहने पर डाला गया पर्दा उठ गया है. ऐसे में इस मामले की एसआईटी से तफ्तीश कराना जरूरी हो गया है. जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बीजेपी कड़ा संदेश देती है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर पर्दा डालना बंद करें और दोषियों को सलाखों के पीछे डालें. भ्रष्टाचार से निपटने के लिए किसी पांच सूत्री कार्यक्रम के बजाय इस एक सूत्री उद्देश्य की जरूरत है.

जेटली ने कहा, 'अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले से सच सामने आ गया है. इससे यह साबित होता है कि सच को जितना दबाया जायेगा, वह उतना ही मुखरता से सामने आएगा. इस फैसले से सीबीआई अपना मुंह छिपाने के लायक नहीं रह गई है.'

जेटली ने कहा कि ट्राइब्यनूल का 140 पेज का फैसला अपने आप में एक सबूत है. उन्होंने कहा कि यह मामला महज भ्रष्टाचार का नहीं है, बल्कि उससे कहीं बड़ा है. यह दर्शाता है कि किस तरह कांगेस पिछले दो दशक से इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि बोफोर्स मामले की दोबारा आपराधिक जांच होनी चाहिए. जब अपेक्षाकृत छोटे मामलों में अदालतों द्वारा एसआईटी का गठन किया जा सकता है तो फिर न्यायाधिकरण के फैसले में इस खुलासे के बाद बोफोर्स मामले की भी एसआईटी से जांच होनी चाहिए. 
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फैसला .....
न्यायाधिकरण ने कहा है कि कमीशन एजेंटों पर प्रतिबंध के बावजूद बोफोर्स ने क्वात्रोची के कहने पर 15 नवंबर 1985 को एई सर्विसेज के साथ नया करार किया। इस समझौते के अनुसार यदि बोफोर्स को 31 मार्च 1986 के पहले सौदा मिल जाता तो वह सौदे की कुल राशि की तीन प्रतिशत राशि दलाली के रूप में भुगतान करेगी। यह विचित्र संयोग है कि बोफोर्स और भारत के समझौते पर 24 मार्च 1986 को हस्ताक्षर हुए। बोफोर्स ने भारत के रक्षा मंत्रालय को 10 मार्च, 1986 को भेजे गए पत्र में जानबूझकर दलाली से संबंधित समझौते का तथ्य छिपाया। न्यायाधिकरण ने उल्लेख किया है कि क्वात्रोची 28-2-1965 से 29-7-1993 तक भारत में रहे। इस दौरान केवल 4-3-1966 से 12-6-1968 की संक्षिप्त अवधि के दौरान वह देश से बाहर रहे। वह पेशे से एक चार्टर्ड एकाउंटेट है, जो एक इतालवी बहुराष्ट्रीय कंपनी मेसर्स स्नैमप्रोगेटी के लिए काम करते थे। न तो क्वात्रोची और न ही स्नैमप्रोगेटी को हथियार अथवा किसी अन्य रक्षा उपकरण का कोई अनुभव था। भारतीय अधिकारियों द्वारा स्विट्जरलैंड से प्राप्त किए गए बैंक प्रपत्रों के आधार पर न्यायाधिकरण ने बताया है कि भारत ने सौदे की 20 प्रतिशत राशि का भुगतान 2 मई 1986 को किया। इसमें से बोफोर्स ने तीन सितंबर 1986 को ज्यूरिख स्थित एई सर्विसेज के अमुक खाते में 7343941.98 डालर की रकम में जमा कर दी। यह रकम एडवांस के रूप में दी गई राशि का ठीक तीन प्रतिशत थी। इसके बाद क्वात्रोची ने इस रकम को एक खाते से दूसरे खाते में स्थानांतरित किया। ये सभी खाते उनके और उनकी पत्नी मारिया के नाम थे। न्यायाधिकरण ने यह भी बताया है कि क्वात्रोची ने एक खाता खोलने के लिए भारत में अपना फर्जी पता दिया। ऐसा लगता है कि न्यायाधिकरण को यह अंदाज था कि दिग्विजय सिंह सरीखे राजनेता उसके फैसले पर सवाल उठाएंगे। इसीलिए उसने कहा है कि भारतीय आयकर सभी तरह की आय पर लागू किया जाता है-फिर वह चाहे वैध हो अथवा अवैध या इसे कमाने वाला भारतीय हो अथवा विदेशी। उसने इस पर हैरानी भी जताई है कि क्वात्रोची तथा अन्य लोगों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
साफ है कि कांग्रेस में वफादारी की एकमात्र कसौटी यह है कि आलाकमान के इतालवी मित्रों के हितों की आप कितनी चिंता करते है। कांग्रेस के नेताओं के लिए इटली का कोई भी अतिथि देवता के समान ही है। यह दिग्विजय सिंह सरीखे नागरिक ही है जो भारत को एक शताब्दी से भी अधिक समय से गुलाम बनाए हुए है। उन्होंने इसकी झलक दिखा दी है कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन जाती है तो कांग्रेस नेता चाटुकारिता की किस हद तक गिर सकते है।
[ए. सूर्यप्रकाश: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार है]
Reference: Jagran






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बेशर्मी की हद ...

४ जनवरी २०११
नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एक अदालत में कहा कि बोफोर्स दलाली मामले में इटली के व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
तीस हजारी अदालत में सीबीआई की यह याचिका ऐसे समय में पेश की गई है, जब एक दिन पहले ही एक आयकर न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि क्वात्रोची और उसके साथी विन चड्ढा ने 1986 में होवित्जर तोपों के लगभग 15 अरब रुपये के सौदे में सरकारी नीति के खिलाफ 41.20 करोड़ रुपये की दलाली ली थी। अदालत मंगलवार को ही बाद में अपना फैसला सुना सकती है।
सीबीआई की याचिका का विरोध करते हुए अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने दावा किया कि उनके पास क्वात्रोची के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, लेकिन सीबीआई फिर भी इस मामले को दफन करना चाहती है।
सीबीआई इस आधार पर क्वात्रोची के खिलाफ आपराधिक मामले को समाप्त करना चाहती है कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, लिहाजा मामले को जिंदा रखने का कोई अर्थ नहीं होगा। सीबीआई ने 1999 में पूर्व रक्षा सचिव एस के भटनागर, क्वात्रोची, चड्ढा, बोफोर्स के पूर्व प्रमुख मार्टिन आर्डबो और बोफोर्स कम्पनी के खिलाफ आरोप दायर किया था।
भटनागर, आर्डबो और चड्ढा का निधन हो चुका है। इस मामले में जीवित बचे आरोपियों में एक मात्र क्वात्रोची ही है। लेकिन वह भारत में आज तक किसी भी अदालत में पेश नहीं हुआ है। सीबीआई क्वात्रोची के प्रत्यर्पण में दो बार विफल हो चुकी है। पहली बार 2003 में मलेशिया से प्रत्यर्पित कराने में और दूसरी बार 2007 में अर्जेटिना से प्रत्यर्पित कराने में।
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http://hi.wikipedia.org/wiki/

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