लूजपाल विधेयक
अब कांग्रेस सरकार की असलियत सामनें आ चुकी है,वह स्वंय भ्रष्टाचार में तो डूबी ही हुई है,आगे भी उस पर नियंत्रण की उसकी कोई इच्छा नहीं है | बल्की कांग्रेस की कारगुजारियों से तो येसा प्रतीत होता है कि देश को लूटना वह जायज अधिकार मानती हो ..!
लोकपाल बिल को अब लूजपाल बिल बना कर रख दिया है | निचले स्तर के भ्रष्टाचार को पकडनें के लिए कई कानून और संस्थाएं हैं | जो यदा - कदा पकड़ धकड़ करती रहती हैं | असली सवाल तो राजनेताओं और बड़े अधिकारियों, उद्योगपतियों , मफियायाओं , तस्करों तथा व्यापारियों की पकड़ धकड़ का है |
सबनें देखा है की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह जानते थे की ए. राजा भ्रष्टाचार कर रहे हैं, पहले तो उन्हें इच्छा के विरुद्ध मंत्री बनाना पड़ा ; फिर भ्रष्टाचार की गंगा बहते हुए भी चुप रहना पड़ा ! क्योंकि यह समर्थन के बदले राशी वसूली थी ? यदी कोई कानून होता तो प्रधानमंत्री भी और मंत्री भी डरता !! उस पर अंकुश रहता !!
इससे आगे एक और बात है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास जो विभाग थे उनमें से एक में एस - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला तो सम्पन्न होही गया था, जो २ जी से भी बड़ा था | प्रधानमंत्री पद लोकपाल विधेयक से बाहर रहे तो इस तरह के भ्रष्टाचार को कौन रोकेगा ?? प्रधानमंत्री एक भी विभाग नहीं रखे तो वह बिल से बाहर हो सकता है | मगर विभाग रहेंगे तो भ्रष्टाचार भी रहेगा |
इसी तरह सांसदों की बात भी करली जाये , लोग भूले नहीं होंगे की प्रश्न पूछनें के बदले ही राशी वसुलली गई , सांसद कोष से धन स्वीकृति के लिए भी राशी वसुलनें की बात चलती ही है | सच यही है कि देश को उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार ने ही बर्बाद कर रखा है | यदि लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री , उच्च अधिकारी , न्यायपालिका नहीं आते तो इसको लानें का कोई मतलब भी नहीं है | मोटी मुर्गियां तो बच ही जायेंगी छोटे लोगों के कान मरोड़ने का क्या मतलब ?
गंगा जिस तरह गंगोत्री से बहती है ,भ्रष्टाचार उसी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय से नीचे पंचायतों तक आता है !! प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मुक्ति का संकल्प ले ले तो भ्रष्टाचार की क्या औकात जो देश में रह जाये ??? प्रधानमंत्री का पद साफ सफाई देनें का नहीं कुछ करके दिखानें का है ! योग्यता है तो प्रधानमंत्री बनो हिम्मत नहीं है तो हट जाओ ..!
यदी प्रधानमंत्री कर्तव्यनिष्ठ हो तो लोकपाल बिल बनानें की जरुरत ही नहीं पड़े !!! प्रधानमंत्री को तो यह शर्म का विषय है कि लोकपाल बिल की जरुरत पड़ रही है !! आयकर विभाग यदि आय से अधिक सम्पत्ति धारकों पर निरंतर कार्यवाही करे तो क्या मजाल की भ्रष्टाचार फैल जाये !! छुट भय्या नेता और व्यापारी करोडपति , अरबपति बन जाते हैं पर कोई देखनें वाला नहीं |
कानून में कमीं है तो ठीक करो , कानून बनाने के लिए ही यो संसद है | पर हर ओर अकर्मण्यता और भ्रष्टता के कारण ऊपर से लेकर निचे तक लूट ही लूट है | लोकपाल बिल आकर भी क्या कर लेगा बैठेगा तो आदमी ही ? उसमें नैतिक बल नहीं हुआ तो !!!
लोकपाल बिल को अब लूजपाल बिल बना कर रख दिया है | निचले स्तर के भ्रष्टाचार को पकडनें के लिए कई कानून और संस्थाएं हैं | जो यदा - कदा पकड़ धकड़ करती रहती हैं | असली सवाल तो राजनेताओं और बड़े अधिकारियों, उद्योगपतियों , मफियायाओं , तस्करों तथा व्यापारियों की पकड़ धकड़ का है |
सबनें देखा है की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह जानते थे की ए. राजा भ्रष्टाचार कर रहे हैं, पहले तो उन्हें इच्छा के विरुद्ध मंत्री बनाना पड़ा ; फिर भ्रष्टाचार की गंगा बहते हुए भी चुप रहना पड़ा ! क्योंकि यह समर्थन के बदले राशी वसूली थी ? यदी कोई कानून होता तो प्रधानमंत्री भी और मंत्री भी डरता !! उस पर अंकुश रहता !!
इससे आगे एक और बात है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास जो विभाग थे उनमें से एक में एस - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला तो सम्पन्न होही गया था, जो २ जी से भी बड़ा था | प्रधानमंत्री पद लोकपाल विधेयक से बाहर रहे तो इस तरह के भ्रष्टाचार को कौन रोकेगा ?? प्रधानमंत्री एक भी विभाग नहीं रखे तो वह बिल से बाहर हो सकता है | मगर विभाग रहेंगे तो भ्रष्टाचार भी रहेगा |
इसी तरह सांसदों की बात भी करली जाये , लोग भूले नहीं होंगे की प्रश्न पूछनें के बदले ही राशी वसुलली गई , सांसद कोष से धन स्वीकृति के लिए भी राशी वसुलनें की बात चलती ही है | सच यही है कि देश को उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार ने ही बर्बाद कर रखा है | यदि लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री , उच्च अधिकारी , न्यायपालिका नहीं आते तो इसको लानें का कोई मतलब भी नहीं है | मोटी मुर्गियां तो बच ही जायेंगी छोटे लोगों के कान मरोड़ने का क्या मतलब ?
गंगा जिस तरह गंगोत्री से बहती है ,भ्रष्टाचार उसी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय से नीचे पंचायतों तक आता है !! प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मुक्ति का संकल्प ले ले तो भ्रष्टाचार की क्या औकात जो देश में रह जाये ??? प्रधानमंत्री का पद साफ सफाई देनें का नहीं कुछ करके दिखानें का है ! योग्यता है तो प्रधानमंत्री बनो हिम्मत नहीं है तो हट जाओ ..!
यदी प्रधानमंत्री कर्तव्यनिष्ठ हो तो लोकपाल बिल बनानें की जरुरत ही नहीं पड़े !!! प्रधानमंत्री को तो यह शर्म का विषय है कि लोकपाल बिल की जरुरत पड़ रही है !! आयकर विभाग यदि आय से अधिक सम्पत्ति धारकों पर निरंतर कार्यवाही करे तो क्या मजाल की भ्रष्टाचार फैल जाये !! छुट भय्या नेता और व्यापारी करोडपति , अरबपति बन जाते हैं पर कोई देखनें वाला नहीं |
कानून में कमीं है तो ठीक करो , कानून बनाने के लिए ही यो संसद है | पर हर ओर अकर्मण्यता और भ्रष्टता के कारण ऊपर से लेकर निचे तक लूट ही लूट है | लोकपाल बिल आकर भी क्या कर लेगा बैठेगा तो आदमी ही ? उसमें नैतिक बल नहीं हुआ तो !!!
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