देश को बाहर से कम अंदर से ज्यादा खतरा : परमपूज्य भागवत जी
देश को बाहर से कम अंदर से ज्यादा खतरा : परमपूज्य मोहन जी भागवत
04 August 2014 भोपाल,04 / अगस्त/2014 (ITNN) |
भारत को अमीर देश और भारतीयों को गरीब बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन जी
भागवत ने कहा कि राष्ट्र की आर्थिक नीतियों में सुधार करना होगा। बढ़ते पूंजीवाद को देश के लिए घातक बताते हुए भागवत ने कहा कि स्वावलंबन और स्वाभिमान की बुनियाद पर देश से गरीबी समाप्त हो सकती है।भागवत जी ने राजनीतिक दलों से समाज में गरीबी मिटाने के लिए पहल करने की अपील भी की। भोपाल में आयोजित चिंतन बैठक के आखिरी दिन आरएसएस के सर संघचालक मोहन जी भागवत ने कहा कि देश को बाहर से कम, अंदर से ज्यादा खतरा है। इससे निपटने के लिए एकता की जरूरत है। भागवत जी ने समाज से छुआछूत को मिटाने व राष्ट्रीयता को मजबूत करने के लिए स्वयंसेवकों को एकजुट होने का आदेश दिया।
भागवतजी ने कहा कि हिंदू व हिंदुस्तान को मजबूत करने के लिए जात-पात और ऊंच-नीच की विचारधारा से ऊपर उठकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि निजी स्वार्थ और रिश्वतखोरी आज की सबसे बड़ी समस्या है। विकास के लिए सिर्फ सरकारों के भरोसे बैठना ठीक नहीं है। जरूरत इसकी है कि लोग खुद अपने विकास के बारे में सोचें। समाज को संगठित करना देश के लिए बेहद आवश्यक है। ऐसा संघ ने समझा है, इसलिए संघ कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देता है। इसके लिए शाखाओं, कार्यक्रमों एवं शिविरों द्वारा लोगों को प्रशिक्षण देना संघ की पद्धति है।
चिंतन शिविर में समापन समारोह को संबोधित करते हुए आरएसएस के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख वी भागैया ने कहा कि आज हमारे देश में जो शिक्षा दी जा रही है उसमें ज्ञान व तकनीकी तो सम्मिलित है लेकिन नैतिक पक्ष पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
नरेंद्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का नाम लिए बिना भागवत ने कहा कि देश में नए नेतृत्व से लोगों को बेहतरी की उम्मीद है। केंद्र सरकार से सामंजस्य बनाकर संघ अपना काम करता रहेगा। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व व भारतीयता की हमारी पहचान पूरी दुनिया में मजबूत होनी चाहिए, इसके लिए यही सुनहरा सुअवसर है।
समाज क्या होता है, संस्कार क्या होते हैं, हमें किसके साथ किस प्रकार का बर्ताव करना चाहिए। ये सारी बातें शिक्षा पद्धति में सम्मिलित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमारे देश से संस्कार लुप्त हो गए हैं। आज भी माताएं अपने बच्चों को संस्कार सिखाती हैं और भारत इसीलिए जिंदा भी है
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें