पहली कक्षा से गीता अनिवार्य करता : जस्टिस ए आर दवे



तानाशाह होता तो पहली कक्षा से गीता अनिवार्य करता : जस्टिस एआर दवे
भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपरा और पुस्तकों की ओर लौटना चाहिए :जस्टिस एआर दवे
Saturday,Aug 02,2014
अहमदाबाद। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर दवे ने शनिवार को कहा कि महाभारत और भगवद गीता से हम जीवन जीने का तरीका सीखते हैं। यदि वे भारत के तानाशाह होते तो बच्चों को पहली कक्षा से ही इन्हें लागू करते। उन्होंने कहा कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपरा और पुस्तकों की ओर लौटना चाहिए। महाभारत और भगवद्गीता जैसे मूल ग्रंथों से बच्चों को कम उम्र में अवगत कराना चाहिए।
न्यायमूर्ति दवे 'समकालीन मुद्दों एवं वैश्वीकरण के युग में मानवाधिकारों की चुनौतियां' विषय पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय विचार गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'गुरु-शिष्य परंपरा जैसी हमारी प्राचीन प्रथा खत्म हो चुकी है। यदि वह रहती तो देश में इस तरह की समस्याएं [हिंसा और आतंकवाद] नहीं रहतीं। अब हम कई देशों में आतंकवाद देख रहे हैं।
अधिकांश देश लोकतांत्रिक हैं. यदि किसी लोकतांत्रिक देश में हर व्यक्ति अच्छा हो तो वे निश्चित रूप से किसी ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो अच्छा होगा। वह चुना गया व्यक्ति कभी भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोचेगा। इस तरह एक-एक कर हर आदमी में सभी अच्छे गुणों को भर के हर जगह हम हिंसा को रोक सकते हैं। इस मकसद के लिए हमें एक बार फिर अपनी पुरातन चीजों की ओर लौटना होगा।
इस कार्यक्रम का आयोजन गुजरात ला सोसाइटी की ओर से किया गया था। न्यायमूर्ति दवे ने यह भी प्रस्ताव किया कि छात्रों को पहली कक्षा से ही भगवद गीता और महाभारत पढ़ाई जाए। उन्होंने कहा ' कुछ लोग जो बहुत धर्मनिरपेक्ष हैं. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष इससे सहमत नहीं होंगे..। यदि मैं भारत का तानाशाह होता तो मैंने पहली क्लास से गीता और महाभारत की पढ़ाई लागू कर दिया होता। इससे आप जीवन कैसे जिएं यह सीखने का रास्ता पाते। मुझे खेद है यदि कोई कहता है कि मैं धर्म निरपेक्ष हूं या नहीं हूं.. कहीं कोई चीज अच्छी है तो उसे हमें कहीं से भी लेनी चाहिए।
बांबे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने कहा कि वैश्वीकरण का मूल अर्थ सबका विकास होना चाहिए। 'दुनिया एक गांव' की अवधारणा का अर्थ यह नहीं है कि सभी लोग सिर्फ दुनिया के बारे में सोचें बल्कि यह सबके विकास के विस्तार के रूप में हो। यदि हम वैश्वीकरण के फायदों को साझा नहीं करते तो इससे गंभीर चुनौतियां उभर कर सामने आएंगी। गीता के बारे में दवे से पहले हाईकोर्ट के एक जज भी ऐसे ही विचार व्यक्त कर चुके हैं और वह भी एक फैसला सुनाते समय। अगस्त 2007 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसएन श्रीवास्तव ने वाराणसी के एक पुजारी के संपत्ति संबंधी विवाद का निपटारा करते हुए गीता को राष्ट्रीय धर्म शास्त्र के रूप में मान्यता देने के साथ ही इस ग्रंथ को अन्य धार्मिक समूहों को पढ़ाए जाने की जरूरत पर बल दिया था। उनकी इस टिप्पणी से हलचल मच गई थी। तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री को संसद में यह स्पष्टीकरण देना पड़ा था कि न्यायाधीश की इस टिप्पणी का कोई महत्व नहीं है और उसकी अनदेखी की जाए।

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बहुत सही बात कही उन्होने. आखिर हमे अपने देश मे ही रहना है और अपनी संस्क्रति के साथ रहने मे क्या बुराई है. हमारी सभ्यता वसुधैव कुटुम्बकम, सर्व धर्म समभाव सिखाती है नाकि दूसरे दाह्र्मो का अपमान और निरादर. पश्चिमी सभ्यता के चलते ही गुरु शिष्य, माता पिता, संयुक्त परिवार, अतिथि आदि कितने ही रिश्ते खत्म होते जा रहे है. अपनापन खोता जा रहा है. इन सब के बारे मे हमारे धर्म ग्रंथो मे बहुत कुछ लिखा और समझाया गया है बस जरूरत है उसे अपनाने की. और इसके लिये हम सब कोही सुरुआत करनी होगी.

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अहमदाबाद (एसएनएन): सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एआर दवे ने कहा है कि अगर वो तानाशाह होते तो देश में पहली कक्षा से ही महाभारत और भगवद्गीता को पढ़ाना अनिवार्य कर देते. उन्होंने कहा कि भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटना चाहिए और महाभारत एवं भगवद्गीता जैसे शास्त्रों को बचपन से पढ़ाया जाना चाहिए.

जस्टिस दवे ने 'वैश्वीकरण के दौर में समसामायिक मुद्दे तथा मानवाधिकारों की चुनौतियों' विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि 'अगर गुरु शिष्य जैसी हमारी प्राचीन परंपराएं रही होतीं तो हमारे देश में ये सब समस्याएं (हिंसा एवं आतंकवाद) नहीं होता.'

उन्होंने कहा कि 'हम अपने देश में आतंकवाद देख रहे हैं. अधिकतर देश लोकतांत्रिक हैं. अगर लोकतांत्रिक देश में सभी अच्छे लोग होंगे तो वे स्वाभाविक रूप से ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो अच्छे होंगे. ऐसा व्यक्ति किसी अन्य को नुकसान पहुंचाने के बारे में कभी नहीं सोचेगा.'

जस्टिस दवे ने कहा कि 'लिहाजा प्रत्येक मनुष्य में से अच्छी चीजें सामने लाने से हम हर जगह हिंसा को रोक सकते हैं और इस मकसद के लिए हमें अपनी चीजों को वापस लाना होगा.' इस सम्मेलन का आयोजन गुजरात लॉ सोसाइटी ने किया था.

जज ने यह सुझाव भी दिया कि भगवद्गीता और महाभारत को पहली कक्षा से ही छात्रों को पढ़ाना शुरू कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, 'जो बहुत धर्मनिरपेक्ष होगा...तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तैयार नहीं होंगे..अगर मैं भारत का तानाशाह रहा होता, तो मैंने पहली ही कक्षा से गीता और महाभारत को शुरू करवा दिया होता. इसी तरह से आप जीवन जीने का तरीका सीख सकते हैं. मुझे खेद है कि अगर मुझे कोई कहे कि मैं धर्मनिरपेक्ष हूं या धर्मनिरपेक्ष नहीं हूं लेकिन अगर कुछ अच्छा है तो हमें उसे कहीं से भी ले लेना चाहिए.'

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