गरीव कि परिभाषा और उसकी गणना पर पहले संसद में बहस होनी चाहिए
कांग्रेस सरकार देश के साथ कितने झूठ बोल सकती हे वह उतने से भी ज्यादा झूठ बोलती हे . इसका सबसे जोरदार नमूना गरीवों की गणना में देखने को मिल सकता हे . योजना आयोग ने गरीव लागों की गड़ना के नियम इस तरह के बनाये की ज्यादातर उससे बहार ही रह गये क्यों की वह विश्व को समर्द्ध और विकसित देश दिखाना चाहता था . उसने इस तरह का गणना प्रारूप बनाया की गरीवी काम दिखे . सो हुआ भी यही की उनके अनुसार की गी गणना सिर्फ २७.५ प्रतिसत ही रही . देश के लगभग सभी राज्य इस गणना से अस्न्तुस्ट थे , मगर योजना योग की दादागिरी को कोंन रोक सकता हे .
बाद में अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने जब यह घोषणा की कि देश कि ७७ प्रतिशत आबादी गरीब हे तो यह चर्चित विषय बन गया , संसद में बात बात में यह उदाहरन आने लगा कि ७७ प्रतिशत लोग २० रूपये से भी काम में प्रतिदिन गुजर बसर करते हें . यह एक क्ररुर सच भी हे. भारत कि शांति प्रिय जनता कि सहन शक्ति कि कटिन परीक्षा भी थी .
योजना अयोग़ के पूर्व सदस्य एन सी सक्सेना के नेत्रत्व वाली एक एनी समिति का भी आकलन हे कि देश में ५० फीसदी लग गरीव हें .
एक और समिति गठित हुई नाम सुरेश तेंदुलकर समिति , क्यों कि विश्व बैंक ने भी २ डालर से कम व्यय क्षमता में ७५.६ प्रतिशत भारतियों को माना था और उसके अनुसार भी १ डालर से कम व्यय क्षमता में ४१.६ प्रतिशत लोगों को माना हे तेदुलकर समिति ने भी यह माना कि वर्तमान बी पी एल कार्ड जिस प्रारूप के अधर पर बने हें उसका एक मानक तो १९७३-७४ के दोरान कि किम्तोई के अधर पर बना हे दुसरे शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च को खी जोड़ा ही नही गया हे . जो कि पेट भरने से कही ज्यादा हे . इस तरह से अब योजना अयोग़ ने २७.५ के बजे ३७.२ प्रतिशत गरीव लोग हें मान लिया हे . सवाल यह नही हे कि आपने १०-११ करोड़ और लोगों को गरीव मान लिया हे .सवाल यह हे कि जो गरीव गे उसे गरीव मान ने में आपत्ति क्यों हे .गरीव को गरीव मानों और उसके जीवन को ऊँचा उठाने कि योजनायें लागू करो .
खाद्ध सुरक्षा कानून बना कर कोई उपकार तो कर नही रहे , भूख से कोई नही मरे यह जिम्मेवारी तो केंद्र सरकार कि हे ही . यह एक राजनेतिक तमाशा या वोट लूटने का कोई तरीका हो सकता हे .कानून आता भी हे तो विरोध कि कोई बात नही हे , मगर गरीव कि परिभाषा और उसकी गणना पर पहले संसद में बहस होनी चाहिए . .
अरविन्द सीसोदिया
राधा क्रिशन मंदिर रोड ,
ददवारा , वार्ड ५९ , कोटा
राजस्थान . .. . .
बाद में अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने जब यह घोषणा की कि देश कि ७७ प्रतिशत आबादी गरीब हे तो यह चर्चित विषय बन गया , संसद में बात बात में यह उदाहरन आने लगा कि ७७ प्रतिशत लोग २० रूपये से भी काम में प्रतिदिन गुजर बसर करते हें . यह एक क्ररुर सच भी हे. भारत कि शांति प्रिय जनता कि सहन शक्ति कि कटिन परीक्षा भी थी .
योजना अयोग़ के पूर्व सदस्य एन सी सक्सेना के नेत्रत्व वाली एक एनी समिति का भी आकलन हे कि देश में ५० फीसदी लग गरीव हें .
एक और समिति गठित हुई नाम सुरेश तेंदुलकर समिति , क्यों कि विश्व बैंक ने भी २ डालर से कम व्यय क्षमता में ७५.६ प्रतिशत भारतियों को माना था और उसके अनुसार भी १ डालर से कम व्यय क्षमता में ४१.६ प्रतिशत लोगों को माना हे तेदुलकर समिति ने भी यह माना कि वर्तमान बी पी एल कार्ड जिस प्रारूप के अधर पर बने हें उसका एक मानक तो १९७३-७४ के दोरान कि किम्तोई के अधर पर बना हे दुसरे शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च को खी जोड़ा ही नही गया हे . जो कि पेट भरने से कही ज्यादा हे . इस तरह से अब योजना अयोग़ ने २७.५ के बजे ३७.२ प्रतिशत गरीव लोग हें मान लिया हे . सवाल यह नही हे कि आपने १०-११ करोड़ और लोगों को गरीव मान लिया हे .सवाल यह हे कि जो गरीव गे उसे गरीव मान ने में आपत्ति क्यों हे .गरीव को गरीव मानों और उसके जीवन को ऊँचा उठाने कि योजनायें लागू करो .
खाद्ध सुरक्षा कानून बना कर कोई उपकार तो कर नही रहे , भूख से कोई नही मरे यह जिम्मेवारी तो केंद्र सरकार कि हे ही . यह एक राजनेतिक तमाशा या वोट लूटने का कोई तरीका हो सकता हे .कानून आता भी हे तो विरोध कि कोई बात नही हे , मगर गरीव कि परिभाषा और उसकी गणना पर पहले संसद में बहस होनी चाहिए . .
अरविन्द सीसोदिया
राधा क्रिशन मंदिर रोड ,
ददवारा , वार्ड ५९ , कोटा
राजस्थान . .. . .
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