नाकाम राजनेता , नोकरशाह और उधोगपति के चुगुल से खेल संगठन मुक्त हो

खेल संघों के अध्यक्षों व सचिवों के पदों के कार्यकाल को लेकर खेल मंत्रालय ने १९७५ के नियम के हवाले से संसोधन किये हें . जो देश के शीर्स ३६ फेड्रेसनों और एसोसियेसनो पर लागु होगा , इसके पीछे कारण  यह हे की , लगभग १८-२० संगठनो  पर राजनेता , नोकरशाह और उधोगपति काबिज हें और एक प्रकार से यह संगठन उनकी जागीर हो गए हें , सबसे बड़ा सच यह हे की इन लोगों को इन खेलों से कोई लेनादेना नही हे . इसे लोकतंत्र का मजाक ही कहा जायेगा , अब सरकार ने उच्चतम सीमा लागु की हे , नये नियमो के तहत कोई एक व्यक्ति १२ साल से ज्यादा फेडरेशन का अध्यक्ष एवं ८ साल से अधिक सचिव पद पर नही रह सकेगा , मुझे लगता हे की यह कदम खेल हित में न होकर इन गेर बाजिव कविज राजनेता , नोकरशाह और उधोगपति को संरक्षण देने का ही रास्ता हे .
स्वतन्त्रता के वाद १६ ओलंपिक खेलो में भारत ने भाग लिया हे , जिनमें २००८ में मात्र ३ पदक १९५२ में २ पदक और १९४८, १९५६, १९६०, १९६४, १९६८, १९७२ ,१९८०,१९९६, २०००, २००४ में सिर्फ १-१ पदक ही मिल पाए थे,   की बार ० पदक भी रहा हे . ओलम्पिक के ११३ वर्षो के इतिहास में भारत के नाम कुल २० पदक हाथ लगे , जिनमे ११ सकेले हाकी के हें , हम हर खेल में बहुत पिछड़े हें , सब कुछ होते हुए भी यह इसलिए हे की गलत लोगों के हाथ में खेल संगठन हें ,
ज्यादातर बड़े बड़े टुरनामेंतो   में हमारी नाक कट जाती हे और न कुछ देश हमसे आगे होते हें , यह तब और दुखद होता हे जब हम देखते हें की जन संख्या में दूसरी सबसे बड़ी शक्ति हो कर भी नाकाम और निक्क्म्मे सावित होते हें , कही न कही बड़ी कमी तो हे उसे दूर करना चाहिए था , दूर नही कर पाने  की जवावदेही  से सरकार भी बच नही सकती .  
मेरा मानन हे की -
१- खेल संघो में स्वयत्ता तो हो मगर , नेत्रत्व और निर्णय शक्ति उसी  खेल से जुड़े अनुभबी खिलाडियों के हाथ हो ,
२- खेल संगठनों  के पंजीयन अधर हेतु एक मोडल कोड या नियमावली हो जिस में यह स्पस्ट हो की उस संगठन में खेल के लिए धन , संसाधन और अन्य जरूरतों  की आपूर्ति की व्यवस्था क्या हे , उसकी निरन्तरता  क्या हे ., 
३- प्रत्येक संगठन में यदि सरकार स्तर का सहयोग हे तो सरकारी स्तर का एक जिम्मेवार अधिकारी हो , अर्थार्त जबाब देह व्यवस्था हो .
४- जिनका किसी खेल से कोई वास्तविक रिश्ता नही रहा हो , तो वह भामाशाह की भूमिका तो निभा सकता हे मगर महाराणा प्रताप की भूमिका अनुभवी खिलाडियों को ही निभाने  दे .

मुझे नही लगता की नासमझ और नाकाम राजनेता , नोकरशाह और उधोगपति के चुगुल से खेल संगठन मुक्त हो पाएंगे , यह अंदेसा भी हे की यह स्थिति एसी ही बनी रहने वाली हे .इस को सुधार ने के लिए तो खेल संगठनो के प्रारूप पर खुली चर्चा संसद में हो .  
अरविन्द सिसोदिया 
राधा क्रिशन मंदिर रोड ,
ददवारा वार्ड ५९
कोटा , राजस्थान .   .    ....

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

सर्व हिंदू समाज की " हिंदू नववर्ष शोभायात्रा " अद्भुत और दिव्यस्वरूप में होगी Hindu Nav Varsh Kota

स्वदेशी मेला हिंदू संस्कृति के विविध रंगारंग कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न Hindu Nav Varsh Kota

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

आज होगा विराट हिंदू संगम, लघु कुंभ जैसा दृश्य बनेगा कोटा महानगर में Hindu Nav Varsh

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

प्रत्येक हिंदू 365 में से 65 दिन देश को दे, जनसंख्या में वृद्धि कर समाज की सुरक्षा करें - महामंडलेश्वर उत्तम स्वामी जी महाराज

हिन्दू नव वर्ष 2082 के आगमन पर मेटा AI से बनाये कुछ चित्र Hindu Nav Varsh AI Meta