सुनो लालू जी तुम गद्दार - अनंत तुम शावास


प्रत्येक जनगणना में यह प्रश्न उभरता हे की , कुछ मामलों में जनसंख्या अविश्वसनीय प्रक्रति से बड रही हें और इसका कारन सामन्य जन्म दर नही हे । विशेषग्य मानते हें की इसके मूल में घुसपेठ ही हे । बंगला देस की करोड़ो की आबादी हर वर्ष भारत में घुस आती हे । इन्हें बंगला देसी कहते हें । ये योजना पूर्वक भारत में घुस पेठ कर मतदाता सूचि में अपना नाम जुड़ बाते हें । रासन कार्ड सहित सारी सुबिधायें प्राप्त कर लेते हें । क्यों की हम बहुत भ्रष्ट हें । असम में इनकी संख्या हार जीत का निर्णय करती हे । पश्चिमी बंगाल और बिहार के कई जिलों पर इनका प्रभत्व हो गया हे । कई चुनाव क्षेत्र इनके समर्थन से जीते जाते हें । कुल मिला कर मुस्लिम बहुलता लेन के सभी तरीके चल रहे हें उनमें से एक घुस पेठ भी हे। यह जग जाहिर और खुले आम हे।
यह भारत को मुस्लिम जनसंख्या को बढ़ा कर इस्लाम के नियन्त्रण में लेने की साजिस हे ।
१९४७ का १४ अगस्त इस बात का गवाह हे की जब मुस्लिम बलसाली हुआ , तब उसने कांग्रेश के ही छति पर पैर रख कर पाकिस्तान बना लिया । कश्मीर में अलगाव की यही बहुसंख्य समस्या हे । जहँ भी हिदू कम हुआ वहीं देश से अलग होने की बात उठने लगती हे । तथा कथित सेकुलर मुर्ख हें । उनके सेकुलिरिज्म में सिर्फ वोट का लोभ समिलित हे । इसके पीछे छिपे बहुत बड़े नुकसान को वे नजर अंदाज कर रहे हें । जब नुकसान अपने मुकाम पर पहुच जाएगा , तब वे इन सेकुलिरिज्म धारकों को कचरे डिब्बे में डाल देंगे , फिर इक नया पाकिस्तान माँगा जायेगा ।
जनगणना में हर किसी का नाम नही लिखा जाना चाहिये, शुद्ध रूप से देखन होगा की वह व्यक्ति हमारे देश का हें की नही । तमासे करने बाले जोकरों के भरोसे देश की अस्मिता खतरे में नही डाली जा सकती । लोक सभा में लालू का तमाशा गलत था और अनंत कुमार सही थे ।
अरविन्द सीसोदिया
राधा क्रिशन मंदिर रोड ,
ददवारा ; कोटा २ ।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism