विदेसीकरण का बड़ता प्रभाव
एक तरफ भारत आजाद हो रहा , दूसरी और कोमनवेल्थ की इतनी जल्दी थी की ,संविधान सभा में तक बहस नही चाहते थे , वह तो राजेन्द्र प्रशाद जी का भला हो कि उन्होंने सदस्यों को बोलने कि इजाजत दे दी ।
नेहरु जी ने देश को स्वभाविक रूप से स्वतंत्र नहीं होने दिया । वे विदेश में पड़े लिखे । उन्हें विदेशी विचार और चाल चलन कुछ अधिक ही पसंद थे । फिर उनका रूस प्रेम सबने देखा हे । उनका काम्नुज्म प्रेम तो इतना अधिक था कि उन्होंने चीन कि मदद करने के लिए तिब्बत पर जो भारत के अधिकार थे वे भी चीन के कारण छोड़ दिए । चीन को इक रास्ट्र का दर्जा दिया और उसके लिए संयुक्त रास्ट्र संघ में गये । चीन ने काम निकलते ही भारत को हडपने का काम शिरू कर दिया । नतीजा १९६२ का युध और इसके वाद से लगातार अघोसित युध । पाकिस्तान ने चीन की ही सह पर भारत से युद्ध लड़े और आतंकवादी लड़ाई लड़ रहा हे ।
बहुत सी कहानियां हें जो विदेशी प्रेम के कारण हुए नुकसान कि गवाही देती हें ।
मगर यह सब जान कर भी हाल ही में , विदेसी विश्व विद्यालयों के भारत में प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया और अमेरिका के साथ परमाणु संधि का कानून बिना बहस के पास कर दिया, इतनी भी क्या जल्दी हे , आप सरकार भारत की हें या अमेरिका की । आप का विदेस प्रेम कुछ गलत होने की बू दे रहा हे । kisi विदेशी अजेंडे के तहत तो आप काम नही कर रहे हो । सच क्या हे बता भी दो ।
जब इक विदेशी महिला के हाथ में देश कि सरकार हो तो उससे तो यही होना तय हे मगर अफ़सोस तो यह हे कि बाकी संसद सदस्यों का जमीर भी मर गया क्या । सब के सब गुलाम हो गये क्या.
arvind sisodia
radha krishna mandir road
dadwara kota jn.
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