महाराण प्रताप : सूरवीर राष्ट्रभक्त

यह आलेख क्षत्रिय कल्याण सभा भिलाई .. के द्वारा परिश्रम पूर्वक तैय्यार किया गया है .... http://kshatriyakalyansabha.org/kks/king.asp महाराणा प्रताप और सिसोदिया राजवंश सन 712 ई० में अरबों ने सिंध पर आधिपत्य जमा कर भारत विजय का मार्ग प्रशस्त किया। इस काल में न तो कोई केन्द्रीय सत्ता थी और न कोई सबल शासक था जो अरबों की इस चुनौती का सामना करता। फ़लतः अरबों ने आक्रमणो की बाढ ला दी और सन 725 ई० में जैसलमेर, मारवाड, मांडलगढ और भडौच आदि इलाकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। ऐसे लगने लगा कि शीघ्र ही मध्य पूर्व की भांति भारत में भी इस्लाम की तूती बोलने लगेगी। ऐसे समय में दो शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। एक ओर जहां नागभाट ने जैसलमेर. मारवाड, मांडलगढ से अरबों को खदेड कर जालौर में प्रतिहार राज्य की नींव डाली, वहां दूसरी ओर बप्पा रायडे ने चित्तौड के प्रसिद्ध दुर्ग पर अधिकार कर सन 734 ई० में मेवाड में गुहिल वंश का वर्चश्व स्थापित किया और इस प्रकार अरबों के भारत विजय के मनसूबों पर पानी फ़ेर दिया।मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जा...