सृष्टि के प्रथम पत्रकार : नारद मुनि
सृष्टि के प्रथम पत्रकार : नारद मुनि
नारद यानी देवताओं के संवाददाता
अक्षरयात्रा की कक्षा में न वर्ण की चर्चा करते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "अथर्ववेद" के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं। "ऎतरेय ब्राह्मधण" के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवम् युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे। "मैत्रायणी संहिता" में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं। "सामविधान ब्राह्मधण" में बृहस्पति के शिष्य के रू प में नारद का वर्णन मिलता है। "छान्दोग्यपनिषद्" में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, हमने तो नारद नाम के एक ऋषि का नाम सुना है जो देवताओं के बीच में संवाद का सेतु बनते हैं। वे तीनों लोक की खबर इधर से उधर पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं।
आचार्य ने कहा- तुम ठीक समझे हो वत्स। नारद नाम के एक ऎसे ही ऋषि हुए हैं जो मृत्यु लोक की खबर स्वर्ग लोक में और स्वर्ग लोक की खबर मृत्यु लोक तक पहुंचाते हैं। नारद नामक एक ऋषि भी हुए हैं जो "नारद स्मृति" के रचनाकार हैं। "महाभारत" में मोक्ष धर्म के "नारायणी आख्यान" में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को "पांचरात्र धर्म" का श्रवण कराया। "नारद पंचरात्र" के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रंथ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है। "नारद पुराण" के नाम से एक ग्रंथ मिलता है। इस ग्रंथ के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।
आचार्य ने बताया- नारद और शांडिल्य के रचे दो भक्ति सूत्र प्रसिद्ध है जिन्हें वैष्णव आचार्य अपना ग्रंथ मानते हैं। ये ग्रंथ "भागवत पुराण" पर आधारित हैं। "याज्ञवल्क्य स्मृति" में जिन स्मृतियों की सूची मिलती है उसमें नारद स्मृति का उल्लेख नहीं है। कुछ स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है। "नारद स्मृति" में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। इसके अलावा इस स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके भी वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है।
आचार्य बोले- "नारद स्मृति" में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। "नारद स्मृति" में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। "नारद स्मृति" वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुंचाने का वर्णन भी करती है। "नारद स्मृति" के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। "नारद स्मृति" की इन व्यवस्थाओं पर "मनु स्मृति" का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है।
आचार्य ने बताया- "श्रीमद्भागवत" और "वायुपुराण" के अनुसार देवर्षि नारद का नाम दिव्य ऋषि के रू प में भी वर्णित है। ये ब्रह्मधा के मानस पुत्र थे। नारद का जन्म ब्रह्मधा की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक के रू प में और देवताओं के संवाद वाहक के रू प में भी चित्रित किया गया है। नारद देवताओं और मनुष्यों में कलह के बीज बोने से "कलिप्रिय" अथवा कलहप्रिय कहलाते हैं। मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार भी नारद ने ही किया था। आज भी लोक व्यवहार में इधर की उधर बात करके कलह का बीज बोने वाले व्यक्ति को नारद और उसकी कलाकारी को नारद विद्या कहते हैं। "ब्रह्मधवैवर्त पुराण" के अनुसार मेरू के चारों ओर स्थित बीस पर्वतों में से एक का नाम नारद है। "मत्स्य पुराण" के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में से एक का नाम भी नारद है। चार शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी का नाम नारदा है। "रघुवंश" के अनुसार लोहे के बाण को नाराच कहते हैं। जल के हाथी को भी नाराच कहा जाता है। स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाम नाराचिका अथवा नाराची है। "मनु स्मृति" के अनुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम नारायण है जो नर के साथी थे। नारायण ने ही अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। विष्णु के एक विशेषण के रू प में भी नारायण शब्द का प्रयोग किया जाता है।
आचार्य ने बताया- "महोपनिषद्" में कहा है कि नारायण अर्थात विष्णु ही अनंत ब्राह्मध हैं। उन्हीं से सांख्य के 25 तžव उत्पन्न हुए हैं। शिव और ब्राह्मध के बराबर नारायण की मान्यता है। "ओम् नमो नारायणाय" वैष्णवों का दीक्षा मंत्र माना गया है। धन की देवी लक्ष्मी और दुर्गा का नाम भी नारायणी है। नारीकेर का अर्थ नारियल होता है। "हितोपदेश" में इसी अर्थ में नारीकेल शब्द का प्रयोग हुआ है। स्त्री को नारी कहा जाता है। कामासक्ति को नारी प्रसंग कहते हैं। श्रेष्ठ स्त्री को नारीरत्न कहा जाता है। शिव की वीणा को नालंबी कहा गया है। हाथी के कानों को बींधने का उपकरण नालि कहा जाता है। शरीर की धमनी को भी नालि अथवा नाड़ी कहते हैं। कमल की डंडी को नालिक कहा जाता है। नली के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग होता है। कमल के फूल को भी नालिक कहा गया है। बांसुरी का एक नाम भी नालिक है। "महाभाष्य" के अनुसार जहाज का कर्णधार चालक, पोतवाहक और मल्लाह को नाविक कहा जाता है।
अक्षरयात्रा की कक्षा में न वर्ण की चर्चा करते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "अथर्ववेद" के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं। "ऎतरेय ब्राह्मधण" के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवम् युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे। "मैत्रायणी संहिता" में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं। "सामविधान ब्राह्मधण" में बृहस्पति के शिष्य के रू प में नारद का वर्णन मिलता है। "छान्दोग्यपनिषद्" में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, हमने तो नारद नाम के एक ऋषि का नाम सुना है जो देवताओं के बीच में संवाद का सेतु बनते हैं। वे तीनों लोक की खबर इधर से उधर पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं।
आचार्य ने कहा- तुम ठीक समझे हो वत्स। नारद नाम के एक ऎसे ही ऋषि हुए हैं जो मृत्यु लोक की खबर स्वर्ग लोक में और स्वर्ग लोक की खबर मृत्यु लोक तक पहुंचाते हैं। नारद नामक एक ऋषि भी हुए हैं जो "नारद स्मृति" के रचनाकार हैं। "महाभारत" में मोक्ष धर्म के "नारायणी आख्यान" में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को "पांचरात्र धर्म" का श्रवण कराया। "नारद पंचरात्र" के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रंथ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है। "नारद पुराण" के नाम से एक ग्रंथ मिलता है। इस ग्रंथ के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।
आचार्य ने बताया- नारद और शांडिल्य के रचे दो भक्ति सूत्र प्रसिद्ध है जिन्हें वैष्णव आचार्य अपना ग्रंथ मानते हैं। ये ग्रंथ "भागवत पुराण" पर आधारित हैं। "याज्ञवल्क्य स्मृति" में जिन स्मृतियों की सूची मिलती है उसमें नारद स्मृति का उल्लेख नहीं है। कुछ स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है। "नारद स्मृति" में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। इसके अलावा इस स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके भी वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है।
आचार्य बोले- "नारद स्मृति" में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। "नारद स्मृति" में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। "नारद स्मृति" वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुंचाने का वर्णन भी करती है। "नारद स्मृति" के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। "नारद स्मृति" की इन व्यवस्थाओं पर "मनु स्मृति" का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है।
आचार्य ने बताया- "श्रीमद्भागवत" और "वायुपुराण" के अनुसार देवर्षि नारद का नाम दिव्य ऋषि के रू प में भी वर्णित है। ये ब्रह्मधा के मानस पुत्र थे। नारद का जन्म ब्रह्मधा की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक के रू प में और देवताओं के संवाद वाहक के रू प में भी चित्रित किया गया है। नारद देवताओं और मनुष्यों में कलह के बीज बोने से "कलिप्रिय" अथवा कलहप्रिय कहलाते हैं। मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार भी नारद ने ही किया था। आज भी लोक व्यवहार में इधर की उधर बात करके कलह का बीज बोने वाले व्यक्ति को नारद और उसकी कलाकारी को नारद विद्या कहते हैं। "ब्रह्मधवैवर्त पुराण" के अनुसार मेरू के चारों ओर स्थित बीस पर्वतों में से एक का नाम नारद है। "मत्स्य पुराण" के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में से एक का नाम भी नारद है। चार शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी का नाम नारदा है। "रघुवंश" के अनुसार लोहे के बाण को नाराच कहते हैं। जल के हाथी को भी नाराच कहा जाता है। स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाम नाराचिका अथवा नाराची है। "मनु स्मृति" के अनुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम नारायण है जो नर के साथी थे। नारायण ने ही अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। विष्णु के एक विशेषण के रू प में भी नारायण शब्द का प्रयोग किया जाता है।
आचार्य ने बताया- "महोपनिषद्" में कहा है कि नारायण अर्थात विष्णु ही अनंत ब्राह्मध हैं। उन्हीं से सांख्य के 25 तžव उत्पन्न हुए हैं। शिव और ब्राह्मध के बराबर नारायण की मान्यता है। "ओम् नमो नारायणाय" वैष्णवों का दीक्षा मंत्र माना गया है। धन की देवी लक्ष्मी और दुर्गा का नाम भी नारायणी है। नारीकेर का अर्थ नारियल होता है। "हितोपदेश" में इसी अर्थ में नारीकेल शब्द का प्रयोग हुआ है। स्त्री को नारी कहा जाता है। कामासक्ति को नारी प्रसंग कहते हैं। श्रेष्ठ स्त्री को नारीरत्न कहा जाता है। शिव की वीणा को नालंबी कहा गया है। हाथी के कानों को बींधने का उपकरण नालि कहा जाता है। शरीर की धमनी को भी नालि अथवा नाड़ी कहते हैं। कमल की डंडी को नालिक कहा जाता है। नली के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग होता है। कमल के फूल को भी नालिक कहा गया है। बांसुरी का एक नाम भी नालिक है। "महाभाष्य" के अनुसार जहाज का कर्णधार चालक, पोतवाहक और मल्लाह को नाविक कहा जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें