बिनायक सेन : भारतीय अदालतों में विदेशी षडयंत्रकारीयों को अनुमति क्यों ..?
- अरविन्द सिसोदिया
भारत में कांग्रेस सरकार को यह अधिकार किसनें दे दिया कि वह देश को फिरसे विदेशी गुलामी में धकेले और व्यवस्था कि छिन्न भिन्न करावा कर, अपराधियों के हाथ में सत्ता को परोक्ष सोंप दे ..!! आतंकवाद से लेकर नक्सलवाद तक यही हो रहा है !! हर बड़ा अपराधी देश का बाप हो जाता है , उसकी आवभगत दामाद कि तरह होनें लगाती है , यह क्या पाखंड है देश के साथ ..!!
जिस तरह अमरीका और उसके मित्र देशों नें सोवियत रूस के खिलाफ अफगानिस्तान में पाकिस्तान के माध्यम से तालिवान और आतंकवादियों को पैदा किया और फिर वे ही अब नासूर बन गए , येसा ही कार्य पश्चिमी देशों के पाखंडी तत्व , नक्सलवादियों को समर्थन देकर कर रहे हैं , उनकी हाँ हजूरी में कांग्रेसियों और एनी कुछ लोगों का खड़ा होना दुर्भाग्यपूर्ण है !
यह बात बहुत पहले २००८ में ही स्पष्ट हो गई थी कि नक्सलवादियों को ईसाई मिशनरीज का परोक्ष अपरोक्ष सहयोग है और इनमें भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था को हथियानें का कोई करार है! यह तथ्य उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के अवसर पर सामनें आई थी ! कुख्यात नक्सली नेता स्ब्यसांची पांडा ने इस हत्या की जोम्मेवारी ली थी ! तब यही मन गया था की यह इसाई मिसनारियों के हित में किया गया है , क्यों कि स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती के प्रयासों से आदिवासी क्षेत्रों में इसाई मिसनारियों का धर्मान्तरण बहुत कमजोर पड़ गया था |
हालाँकि आंध्र प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस ने इन्ही नक्शालियों कि मदद से चंद्रबाबू नायडू से चुनाव जीता था , तब बताया गया था कि नक्शालियों नें एक लाल परचा बाँट कर कांग्रेस को जिताया था | नक्सलपंथ के यूरोपीय सहयोगियों का असली चेहरा उजागर करनें का समय आ गया है , ताकि सच को पहचाना जा सके ..!
* भारत सरकार के केन्द्रीय गृह मंत्रालय नें , उच्चतम न्यायलय में नक्सल समर्थक बिनायक सेन कि जमानत याचिका सुनवाई पर, उसके पर्यवेक्षण की अनुमति यूरोपियन संघ के तीन सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल को दी ...? ये तीन सदस्य फ्रांस के रफेल मार्टिन डे लागरडे , डेनमार्क कि मिस लूइस डे ब्रास और यूरोपियन यूनियन की मिस वोगियर चटर्जी थे |
* इसी वर्ष जनवरी में केंद्र सरकार नें बेल्जियम , डेनमार्क , जर्मनी , फ्रांस , हंगरी , स्वीडन , यूनाइटेड किंगडम और यूरोपियन यूनियन के दिल्ली स्थित दूतावासों के प्रतिनिधियों को छतीसगढ़ उच्च न्यायलय में बिनायक सेन मामलें में चल रही सुनवाई के पर्यवेक्षण कि अनुमति दी |
*हाल ही में ११ मई २०११ को, केंद्र सरकार नें योजना आयोग के सदस्य के रूप में बिनायक सेन को सम्मिलित किया है | एक सजा याफ्ता व्यक्ति जिसे अभी तक न्यायलय नें देश के खिलाफ युद्ध छेडनें के लिए नक्सलियों से सांठ - गांठ का दोषी ठहराया हुआ है , उसे योजना आयोग में सदस्य बना कर देश को क्या सन्देश दिया गया है , यह केंद्र सरकार ही बता सकती है , किन्तु इस से यह सवित हो गया कि नक्सल और कांग्रेस और ईसाई देशों में कनेक्शन है ..!
दूसरी तरफ, कुछ जानकारों का कहना है कि ऎसा शायद पहली बार हो रहा है कि कोई विदेशी प्रतिनिधिमंडल अदालती कार्यवाही के दौरान अदालत में मौजूद रहने पर अड़ा हो। इससे पहले इस संबंध में यूरोपीय संघ ने भारत के विदेश मंत्रालय से अदालत की कार्यवाही देखने की अनुमति मांगी थी। इस दल में हंगरी के पीटर किम्पियन, फ्रांस के राफेल मार्टिन, स्वीडन की एलग्जांद्रा बर्ग, जर्मनी के फ्लोरियन बुकहार्ट, बेल्जियम के जोकहेन और ब्रिटेन के लेन टि्वग्ग शामिल हैं। जिस विमान से यह प्रतिनिधिमंडल रायपुर पहुंचा, उसी से भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद और मशहूर वकील राम जेठमलानी भी पहुंचे। वे बिनायक सेन की तरफ से सोमवार को हाईकोर्ट में पैरवी करेंगे।
* वेल्लूर के प्रतिष्ठित क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने वाले सेन ने जमानत मांगते हुए दलील दी थी कि निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए भूल की है जबकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है.
न्यायमूर्ति एच एस बेदी और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने 11 अप्रैल को सुनवाई टाल दी थी. तब छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले में दलील देने के लिए और समय मांगा था.पिछली सुनवाई के दौरान सेन के परिजन, पीयूसीएल के कार्यकर्ता और सेन के मामले पर निगरानी रख रहे यूरोपीय संघ के दो सदस्य मौजूद थे.सेन की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि सेन को कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि उनके कट्टर नक्सलियों से करीबी रिश्ते हैं.* तथा कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन (Binayak Sen) को ग्वांगजू पुरस्कार-2011 (Gwangju award-2011) 18 मई को प्रदान किया जाना है. बिनायक सेन का चयन करने वाली 32 सदस्यीय समिति ने अपने निर्णय में बताया कि चिकित्सक के रूप में डॉ बिनायक सेन (Binayak Sen) ने गरीबों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराकर और उन पर होने वाली हिंसा व मानवाधिकार हनन के खिलाफ पुरजोर वकालत कर खुद को विशिष्ट बना लिया.( यह बिलकुल झूठ है सच यह है कि वे नक्सलादियों के मुबिर के रूपमें काम कर रहे हैं )
ग्वांगजू पुरस्कार (Gwangju award) प्रत्येक वर्ष एशिया में मानवाधिकार, शांति, लोकतंत्र और न्याय के लिए काम करने वालों को दिया जाता है. इससे पहले मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला को भी यह पुरस्कार मिल चुका है.
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