प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी उपेछा ..? शैम - शैम !


में हर साल 10 मई 1857 की क्रांति में शहीदों को भारत सरकार का श्रद्धांजलि विज्ञापन तलाशता  हूँ ।  इस साल 2014 में भी नहीं मिला। केंद्र की कांग्रेस सरकार कैसे कह सकती है कि वह इस देश की पार्टी है ?  शैम  शैम !! 

- अरविन्द सिसोदिया
यह वह धरती है जहाँ वीर उगाये  जाते हैं ,
तलवारों की धारों पर शीश चढ़ाये  जाते हैं |  
क्या कोई जीतेगा इसको , यहाँ हार सुलाई जाती है , 
शौर्य - तेज की हर सुबह हुंकार लगाई  जाती है ,
युद्ध - मृत्यु का सतत मंजर, युग युग से हमनें देखा है ,
जीवन देकर,राष्ट्र जीवन की अमरता को हमनें साधा है ! 
                                              - अरविन्द सिसोदिया 
 
ऐसा लगता हमारे देश पर फिरसे फिरंगी शासन  हो गया है .., देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 आज के ही दिन 10 मई से प्रारम्भ हुआ  था ! यह दिन उन महा नायकों के प्रति स्मृति  दिवस है !! उन्हें श्रधांजलि देने का दिन है !! हम उन्हें नमन तक नहीं कर प् रहे , देश की वर्तमान पीढ़ी से भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी को दूर रखनें के षड्यंत्र ही इसे कहा जाएगा !! नेहरु - गाँधी परिवार के जन्म दिन  या पुन्य तिथि पर ढेरों  विज्ञापन और कार्यक्रम पर देश का धन लुटाने वाली सरकार को , वास्तविक देश भक्तों पर खर्च करने के लिए न धन है न समय है !! शैम - शैम !!
 
   जिस महा संग्राम से रानी झाँसी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे , मंगल पण्डे , दिल्ली में मुग़ल बादशाह  बहादुरशाह जफर , कानपुर में पेशवा सरदार नाना साहेब तथा अजीमुल्ला , लखनऊ  की  बेगम हजरत महल , मथुरा में देवी सिंह , मेरठ में कदम सिंह ,बिहार का वृद्ध रणवंकुरा  कुंवर  सिंह , फैजावाद में मौलवी मुहम्मद अल्ला ,.. इलाहावाद में लियाकत अली , हरियाणा में राव तुलाराम , संबलपुर में सुरेन्द्र सांई जैसे हजारों नाम इस महा संग्राम से जुड़े हैं उसे भुलाना ठीक  नहीं है ..!


प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी  उपेछा ..?
मेरे यहाँ दो प्रमुख अख़बार आते हैं , एक लाइन भी उसमें भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम १८५७ के बारे में नहीं है ! यह हल जब हमारे चौथे स्तम्भ का है तो केंद्र और राज्य सरकारों के हाल का तो कहना ही क्या होगा ! रही सही कसर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने निकल दी .., 10 मई का ऐतिहासिक दिन भी यूं ही निकल जाएगा। 1857 की क्रांति से जुड़ी इस खास तारीख पर अम्बाला में क्रांति का स्मारक बनाने की शुरुआत होनी थी। मगर सीएम भूपेंद्र सिंह का कार्यक्रम फिर स्थगित हो गया। यह तीसरा मौका है जब स्मारक का शिलान्यास कार्यक्रम स्थगित हुआ है। इसके लिए पहले 18 अप्रैल की तारीख रखी, फिर 26 अप्रैल कर दी गई और इसके बाद 10 मई का ऐतिहासिक दिन रखा गया था। अब आगे की तारीख रखी जाएगी।


इसलिए खास है यह दिन

10 मई 1857 को अम्बाला कैंट से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी फूटी थी। अम्बाला के तत्कालीन उपायुक्त फोरसिथ द्वारा सरकार को लिखे गए पत्र में इसका उल्लेख किया गया था। यह पत्र आज भी अभिलेखागार विभाग के पास सुरक्षित है। 1857 के विद्रोह में अम्बाला जिले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अम्बाला में एक सैनिक अड्डा था जिसका तब बहुत अधिक महत्व था।

पांचवीं स्वदेशी पैदल सेना के एक सिपाही शाम सिंह ने उपायुक्त को अप्रैल 1857 के अंत में बताया था कि मई के आरंभ में सिपाहियों का एक विद्रोह होगा। उनकी योजना के अनुसार कई स्थानों पर अंग्रेजों का खून बहाया जाएगा। यह बात 10 मई 1857 को रविवार के दिन सुबह 9 बजे सही साबित हुई।

जब 60वीं स्वदेशी पैदल सेना की भारतीय टुकड़ी ने खुला विद्रोह कर दिया। अप्रैल 1857 के अंतिम सप्ताह में जनरल एच बर्नाड अम्बाला पहुंचे थे और सैनिकों में असंतोष होने व कैंट में आगजनी की घटनाओं की जिला पुलिस से जांच करवाने के आदेश दिए थे।

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