'सिंधु का पानी पाक नहीं पंजाब को मिलेगा' - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी




'सिंधु का पानी पाक नहीं पंजाब को मिलेगा'
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पंजाब के बठिंडा में एक रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान पर 'तीखा हमला' किया.

मोदी ने कहा, "सिंधु नदी का जो बूंद-बूंद पानी पाकिस्तान चला जाता है वह पंजाब को मिलेगा. यह पानी पंजाब को मिल जाएगा तो यहां की मिट्टी सोना उगलेगी. कोई कारण नहीं है कि हम अपने हक़ का इस्तेमाल न करें और हमारे किसान पानी के लिए तड़पते रहें."
मोदी ने कहा, "पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक से जो जख़्म मिला है, वो उससे उबर नहीं पाएगा."
उन्होंने पाकिस्तानी जनता से 'आग्रह' किया कि वे अपने शासकों से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कहें. नरेंद्र मोदी के भाषण की छह अहम बातें.
1. सिंधु नदी का जो बूंद-बूंद पानी पाकिस्तान चला जाता है वह पंजाब को मिलेगा. यह पानी पंजाब को मिल जाएगा तो यहां की मिट्टी सोना उगलेगी.
2. कोई कारण नहीं है कि हम अपने हक का इस्तेमाल न करें और हमारे किसान पानी के लिए तड़पते रहें
3. पेशावर में स्कूल पर हमला हुआ तो सभी भारतीय दुखी थे. पाकिस्तानी जनता अपने शासकों से कहे कि वह भ्रष्टाचार से लड़े.
4. सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को गहरी चोट लगी है. वह इस झटके से उबर नहीं पाएगा.
5. जब हमारे जवानों ने सर्जिकल स्ट्राइक की तो सीमा पर हड़कंप मच गया.
6. पाकिस्तान को पता है कि हमारी आर्मी की ताकत क्या है.
सिंधु जल संधि को दो देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण बताया जाता है. 56 साल पहले भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. दोनों देशों के बीच दो युद्धों और एक सीमित युद्ध कारगिल और हज़ारों दिक्क़तों के बावजूद ये संधि कायम है. विरोध के स्वर उठते रहे लेकिन संधि पर असर नहीं पड़ा.
एक बार फिर कयास लग रहे हैं कि क्या भारत, सिंधु जल समझौता रद्द कर सकता है? बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने किया है इस संधि के तमाम पहलुओं का आकलन
भारत प्रशासित कश्मीर के उड़ी में इस साल सितंबर में हुए चरमपंथी हमले के बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ गया है. हमले के बाद विदेश मंत्रालय प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था, "आखिरकार किसी भी समझौते के लिए दोनो पक्षों में सद्भाव और सहयोग की ज़रूरत होती है."
सिंधु बेसिन ट्रीटी पर 1993 से 2011 तक पाकिस्तान के कमिश्नर रहे जमात अली शाह की राय हैं, "इस समझौते के नियमों के मुताबिक कोई भी एकतरफ़ा तौर पर इस संधि को रद्द नहीं कर सकता है या बदल नहीं सकता है. दोनो देश मिलकर इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या एक नया समझौता बना सकते हैं."
उधर पानी को लेकर वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेल्लानी ने समाचार पत्र 'हिंदू' में लिखा, "भारत विएना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ़ कर रहा है. अंततराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है."

सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है.
एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं.
सिंधु जल संधि के पीछे की कहानी.
अमरीका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर इस समझौते की पीछे की कहानी है. ऐरॉन वोल्फ़ औऱ जोशुआ न्यूटन अपनी केस स्टडी में बताते हैं कि ये झगड़ा 1947 में भारत के बंटवारे के पहले से ही शुरू हो गया था, खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों के बीच.
1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ़ आने वाली दो प्रमुख नहरों को लेकर एक 'स्टैंडस्टिल समझौते' पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा. ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था.
जमात अली शाह के अनुसार 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात खराब हो गए.
भारत के इस कदम के कई कारण बताए गए जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था. बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया.
स्टडी के मुताबिक 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया. लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और वापस अमरीका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा.
ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया. और फिर शुरू हुआ दोनो पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला.
ये बैठकें करीब एक दशक तक चलीं और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.

सिंधु जल समझौते की प्रमुख बातें.
1. समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.
2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी के कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी. अनुबंध में बैठक,साइट इंस्पेक्शन आदि का प्रावधान है.
3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. इसमें दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था. ये कमिश्नर हर कुछ वक्त में एक दूसरे से मिलेंगे और किसी भी परेशानी पर बात करेंगे.
4. अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिज़ाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनो पक्षों की बैठकें होंगी. अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाता है तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी.
5. इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है.
संधि पर राजनीति.
भारत में एक वर्ग की राय है कि इस समझौते से भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा है. जम्मू कश्मीर सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल करोड़ों का आर्थिक नुकसान हो रहा है.

संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में साल 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था. दिल्ली में एक सोच ये भी है पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए कर रहा है.
विश्लेषक ब्रह्म चेल्लानी ने अख़बार 'हिंदू' में लिखा, "भारत ने 1960 में ये सोचकर पाकिस्तान के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए कि उसे जल के बदले शांति मिलेगी लेकिन संधि के अमल में आने के पांच साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया."
वो कहते हैं कि चीन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बड़े डैम बना रहा है, पाकिस्तान भारत की छोटी परियोजनाओं पर आपत्तियां उठा रहा है.
चेल्लानी कहते हैं कि बड़े देश अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की बात नहीं करते या फिर ट्राइब्युनल का आदेश नहीं मानते जैसा कि चीन ने साउथ चाइन सी पर ट्राइब्युनल के आदेश के बारे में किया.
उधर जमात अली शाह का दावा है कि पाकिस्तान ने इस संधि को लेकर बहुत कुर्बानियां दी हैं.
वो कहते हैं, "जब भारत से ऐसी बातें उठती हैं तो उसका क्या मतलब है? क्या भारत पाकिस्तान का पानी रोक देगा, पाकिस्तान के हिस्से का पानी अपनी नदियों में डाल लेगा? ऐसा करने के लिए योजनाएं रातों-रात नहीं बनतीं. इसकी प्लानिंग होगी और उसके बाद पानी रोकना शुरू होगा. ऐसा होना नामुमकिन बात है."

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