नोट बंदी : पुनर्निर्माण



काले धन की नसबंदी 

अंशुमान तिवारी @anshuman1tiwari
नई दिल्ली, 12 नवम्बर 2016 |


कुछ फैसलों का फैसला समय पर छोड़ देना चाहिए 2016 में एक औसत पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी मानेगा कि छोटा परिवार सुखी होता है लेकिन '70 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब इंदिरा और संजय गांधी नसबंदी थोप रहे थे, तब तस्वीर शायद नोट बंद होने की अफरातफरी जैसी ही रही होगी. इतिहास ने इंदिरा-संजय को खलनायक दर्ज किया लेकिन परिवार नियोजन जरूरी माना गया. काला धन रोकने के लिए अर्थव्यवस्था को कुछ समय के लिए विकलांग बना देने के फैसले पर अंतिम निर्णय तो समय को देना है लेकिन फिलहाल यह फैसला बिखराव और अराजकता से भरपूर है, हालांकि इसी कोलाहल में पुनर्निर्माण के संकेत भी मिल जाते हैं.

फिलहाल भारत किसी वित्तीय आपदा या बैंकों की तबाही से प्रभावित देश (हाल में ग्रीस) की तरह नजर आने लगा है, जहां बैंक व एटीएम बंद हैं, लंबी कतारे हैं और लोग सीमित मात्रा में नकद लेने और खर्च करने को मजबूर हैं. ऐसे मुल्क में जहां बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती हो, 50 फीसदी वयस्क लोगों का बैंकों से कोई लेना-देना न हो और बड़े नोट नकद विनिमय में 80 फीसदी का हिस्सा रखते हों वहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल वाले नोटों को कुछ समय के लिए अचानक बंद करना विध्वंस ही होगा न! खास तौर पर तब जबकि रिजर्व बैंक की नोट मुद्रण क्षमताएं सीमित और आयातित साधनों पर निर्भर हैं.

वैसे इस अफरातफरी का कुल किस्सा यह है कि सरकार को नए डिजाइन के नोट जारी करने थे. नकली नोट रोकने की कोशिशों पर अंतरराष्ट्रीय सहमतियों के तहत रिजर्व बैंक ने सुरक्षित डिजाइन (ब्लीड लाइंस, नंबर छापने का नया तरीका) की मंजूरी लेकर तकनीक जुटाने का काम पिछले साल के अंत तक पूरा कर लिया था. नए नोटों को रिजर्व बैंक के नए गवर्नर (राजन के बाद) के हस्ताक्षर के साथ नवंबर 2016 में जारी किया जाना था. इसमें 2,000 रु. का नया नोट भी था. इसी क्रम में नकली नोटों में पाकिस्तानी हाथ होने की पुष्टि के बाद सरकार ने करेंसी को सुरक्षित बनाने की तकनीक व साजो-सामान को लेकर आयात पर निर्भरता तीन साल में 50 फीसदी घटाने का निर्णय भी किया था.

नए डिजाइन के नोट जारी करने के लिए पुरानी करेंसी को बंद (डिमॉनेटाइज) नहीं किया जाता, बस नए नोट क्रमश: सिस्टम में उतार दिए जाते हैं. लेकिन सरकार ने नोट बंद कर दिए, जिसके कई नतीजों का अंदाज उसे खुद भी नहीं था.

मुसीबतों का हिसाब-किताब 

1. बड़े नोट बंद होने से कुल नकदी (16 लाख करोड़ रु.) में लगभग 14 लाख करोड़ रु. कम हो गए यानी कि एक झटके में अधिकांश मांग को रोककर सरकार ने तात्कालिक मंदी को न्योता दे दिया. करेंसी की आपूर्ति सामान्य होने में लंबा वक्त लगता है, इसलिए मंदी व बेकारी से उबरने में और ज्यादा वक्त लगेगा.
2. कोई भी देश सामान्य स्थिति में अपनी करेंसी (लीगल टेंडर) के इस्तेमाल पर शर्तें नहीं लगाता, मसलन, दवा खरीद सकते हैं पर रोटी नहीं. यह करेंसी संचालन के सिद्धांत के खिलाफ है. ऐसा तभी होता है जब देश की साख डूब रही हो. इसलिए विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया कमजोर हुआ है.
3. करेंसी का प्रबंधन और निर्णय रिजर्व बैंक करता है, इस फैसले से रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बाधित हुई है.

इस फैसले के तरीके और तैयारियों को बेशक बिसूरिए लेकिन काले धन की ताकत को कमतर मत आंकिए. देखा नहीं कि घोषणा के बाद लोगों को बमुश्किल दो घंटे मिले थे लेकिन उसी दौरान सोने की दुकानों पर कतारें लग गईं. नोट बंद होने के बावजूद हवाला बाजार में अभूतपूर्व ऊंची कीमतों पर सोने और डॉलर के सौदे होते रहे, जिन्हें रोकने के लिए आयकर विभाग को छापेमारी करनी पड़ी.
काले धन को रोकने की ताजा कोशिशों का रिकॉर्ड बहुत सफल नहीं रहा है. बैंकों, प्रॉपर्टी व ज्यूलरी पर नकद लेन-देन में पैन नंबर की अनिवार्यता से बैंकों में जमा कम हो गया और बाजार में नकदी बढ़ गई. काला धन घोषणा माफी स्कीमें बहुत उत्साही नतीजे लेकर नहीं आईं. अंतत: सरकार ने अप्रत्याशित विकल्प का इस्तेमाल किया, जिससे करीब तीन लाख करोड़ रु. की काली नकदी खत्म होने का अनुमान है. इसके साथ ही नए नोट लेने के लिए नकदी लेकर बैंक जा रहे लोगों पर आयकर विभाग की निगरानी हमेशा रहेगी.
बहरहाल, एटीएम पर धक्के खाने और पैसे होते हुए उधार पर सब्जी लेने के दर्द के बावजूद इस फैसले से उठी गर्द के पार देखने की कोशिश भी करनी चाहिए, जहां पुनर्निर्माण की उम्मीद दिखती है.

यह रही पुनर्निर्माण की सूची 

1. बैंकों के लिए पहले आफत, फिर राहत है. फैसला लागू होने के बाद बैंक संचालन शुरू होने के पहले दो दिन में अकेले स्टेट बैंक में ही 55,000 करोड़ रु. जमा हुए, जबकि पूरी एक तिमाही में स्टेट बैंक का कुल जमा 76,000 करोड़ रु. होता है.
2. बकाया कर्जों से कराहते बैंकों के पास डिपॉजिट लौटेंगे और पूंजी की कमी पूरी करेंगे. सरकार की चिंता घटेगी और ब्याज दरें कम होने की उम्मीदें बंधेंगी.
3. प्रॉपर्टी, नकदी और काले धन का गढ़ है. वहां कीमतें औसतन 30 फीसदी टूट सकती हैं. सस्ता कर्ज और सस्ती प्रॉपर्टी वास्तविक ग्राहकों को मकानों के करीब लाकर मांग का पहिया फिर से घुमा सकते हैं.

लेकिन ध्यान रखिए, वित्तीय मामलों में ध्वंस तेज और निर्माण धीमा होता है, इसलिए राजनैतिक-आर्थिक कीमत चुकानी होगी.
फिर भी अगर तकलीफ है तो मोदी सरकार से यह सवाल पूछकर अपनी खीझ मिटाइए:
 नकद राजनैतिक चंदे पर पूर्ण पाबंदी कब तक लगेगी?
 बड़े नोट आने के बाद नकदी लेन-देन की सीमा तय करने में देरी तो नहीं होगी?
सोने की खरीद-जमाखोरी को कैसे रोकेंगे?
खेती की कमाई के जरिए काले धन की धुलाई रोकने की क्या योजना है?

विपक्ष को अपनी ऊर्जा उत्तर प्रदेश व पंजाब के चुनावों का लिए बचानी चाहिए, क्योंकि अगर यहां बीजेपी भारी धन बल और भव्य प्रचार के साथ उतरी तो फिर मान लीजिएगा भारत के राजनेता आम लोगों की कीमत पर किसी भी तरह की सियासत कर सकते हैं.

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

हम ईश्वर के खिलोने हैँ वह खेल रहा है - अरविन्द सिसोदिया hm ishwar ke khilone

माता पिता की सेवा ही ईश्वर के प्रति सर्वोच्च अर्पण है mata pita ishwr ke saman

हमारा शरीर, ईश्वर की परम श्रेष्ठ वैज्ञानिकता का प्रमाण