भीष्म पितामह के स्वर्गारोहण की तिथि है मकर संक्रांति Makar Sankranti
यह सर्वविदित तथ्य है कि ऋतु परिवर्तन का पर्व मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव उतरायण में प्रवेश करते हैं और सूर्य के उत्तर की ओर उदय होने की अवधि अर्थात उत्तरायण में दिन बढ़ता जाता है और रात्रि घटती जाती है। सूर्य की मकर राशि की संक्रांति से अर्थात उत्तरायण में सूर्य के प्रकाश की अधिकता के कारण इसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। और यही कारण है कि देश में मकर संक्रांति के दिन को अधिक महत्व दिया जाता है। सूर्य देव के उत्तरायण में प्रवेश करने के पर्व मकर संक्रांति की महिमा का वर्णन संस्कृत साहित्य में वेद से लेकर पुराण तथा आधुनिक ग्रंथों में विशेष रूप से की गई है। वैदिक ग्रंथों में उत्तरायण को देवयान कहा गया है। हमारी संस्कृति का मुख्य ध्येय तमसो मा ज्योतिर्गमय की भावना है। अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलें। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में उत्तरायण के प्रथम या आरम्भ के दिन को अत्यधिक महत्व दिया जाता है और प्राचीन काल से ही इस दिवस को एक पर्व के रूप में मनाये जाने की परिपाटी है। मकर सक्रांति दिवस से पूर्व शीतकाल पूर्ण यौवन पर होता है जिससे लोगों को काफी कष्ट होता है। इस दिन व इसके बाद रात्रि काल घटने व दिवस की अवधि बढ़ने से सूर्य का प्रकाश अधिक देर तक मिलने लगता है, जिससे मनुष्यों को सुख का अनुभव होता है। इस मनोवांछित परिवर्तन के कारण अपने उत्साह को प्रकट करने के लिए भी मकर संक्रांति के दिन को एक पर्व का रूप में मनाते हुए सूर्य को अर्ध्य देने व नाम, स्मरण, पूजनादि की परम्परा है। इस काल को उतम मानने की पराकाष्ठा का ही यह परिचायक है कि लोक व्यवहार में उतरायण काल में मृत्यु की प्राप्ति होने से उत्तमलोक अर्थात बैकुण्ठलोक की प्राप्ति सहज हो जाती है। महाभारत में वर्णित प्रसंग से यह उद्घाटित होता है कि ज्ञानी लोग अपने शरीर त्याग तक की अभिलाषा इसी उत्तरायण वा देवयान में रखते हैं। लोक व्यवहार में आज भी ऐसी अभिलाषा अर्थात सूर्य के उतरायण काल में मृत्यु की इच्छा रखने वालों की कमी नहीं है। ऐसे विचार वालों का मानना होता है कि उत्तरायण में देह त्यागने से उन की आत्मा सूर्य लोक में होकर प्रकाश मार्ग से प्रयाण करेगी। महाभारत की कथा से स्पष्ट है कि आजीवन ब्रह्मचारी रहे भीष्म पितामह ने इसी उत्तरायण के आगमन तक शर-शय्या पर शयन करते हुए देहत्याग वा प्राणोत्क्रमण की प्रतीक्षा की थी। और सूर्यदेव के उतरायण होने पर अपनी इच्छा मृत्यु ग्रहण कर स्वर्गारोहण की थी। यही कारण है कि मकर संक्रांति के ऐसे प्रशस्त महत्व व उतम समय को देखते हुए भारत में प्राचीन काल से ही मकर-संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण संक्रमण तिथि को पर्व के रूप में मनाने की परम्परा विकसित हो गयी और यही कारण है कि भारत के प्रात: सभी प्रांतों में मकर संक्रांति का पर्व चिरकाल से मनाया जाता रहा है।
महाभारत के एक कथा प्रसंगानुसार महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से बिंध जाने के बाद युद्ध करने में सर्वथा असमर्थ हो गये थे और उनके प्राणांत का समय निकट आ गया था। यह अनुभव कर भीष्म ने अपने समीपस्थ लोगों से तिथि, महीना व अयन के बारे में पूछा। इस पर उन्हें बताया गया कि उस समय सूर्य के दक्षिणायन का काल चल रहा है। दक्षिणायन काल के विद्यमान होने का तथ्य जान लेने के बाद उन्होंने कहा कि अभी प्राण त्यागने का उत्तम समय नहीं है। अत: वह उत्तरायण के प्रारम्भ होने पर ही वे प्राणों का त्याग करेंगे। यह सर्वविदित है कि भीष्म पितामह बाल ब्रह्मचारी थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य एवं साधना द्वारा मृत्यु व प्राणों को वश में कर रखा था। कथा के अनुसार वे धनुर्धारी अर्जुन को कह शरशय्या पर चले गये और सूर्यदेव के उतरायण होने के पश्चात ही उन्होंने इच्छा मृत्यु वरन की। महाभारत में उल्लिखित उक्त प्रसंग से स्पष्ट है कि मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया था। इससे यह स्पष्ट है संक्रांति की तिथि भीष्म की पुण्य तिथि भी है। भारतीय इतिहास के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है कि अपने महापुरुषों को उनके पुण्य तिथि के आधार पर स्मरण करने की परिपाटी देश में प्रचलित नहीं हैं। हां! अपने महाप्रतापी पूर्वजों को उनके जन्म दिन पर याद करने की परम्परा देश में प्राचीन काल से ही विद्यमान है। लम्बी अवधि के काल क्रम की क्रूर पंजों में भीष्म के जन्म की तिथि तो सुरक्षित न रह सकी। अत: मकर संक्रांति को उनकी पुण्य तिथि का दिन ही उनके स्मृति दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा देश में चल पड़ी है। उतरायण काल में मृत्यु को उतम माने जाने के सिद्धांत का वेदों व वैदिक साहित्य में कोई उल्लेख कहीं नहीं दिखाई देता है। खैर कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत काल के दिनों में दक्षिणायन में मृत व्यक्ति की वहउत्तम गति नहीं मानी जाती थी जो कि उत्तरायण में प्राण छोड़ने पर होती है। इस कारण से भीष्म पितामह ने सूर्य के उतरायण होने पर अपनी प्राणोत्सर्ग की इच्छा व्यक्त की और सूर्य के उतरायण में प्रवेश करने पर अपनी इच्छा मृत्यु प्राप्त की। इस प्रकार मकर संक्रांति का दिन भीष्म के प्राणोत्सर्ग अर्थात स्वर्गारोहण की तिथि है।
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