भविष्य में भारत की युवा पीढ़ी अपना मौलिक संविधान अवश्य बनायेगी - अरविन्द सिसौदिया indian constitution

 

भविष्य में भारत की युवा पीढ़ी अपना मौलिक संविधान अवश्य बनायेगी - अरविन्द सिसौदिया
नोट - ये विचार पूरी तरह से मेरे निजि विचार हैं। इन विचारों को मुझ से जुडे किसी भी संगठन के नहीं माने जानें चाहिये।
आज संविधान दिवस पूरे जोर शोर से मनाया गया , मनाया जाना भी चाहिये । मगर जब पाठ्यपुस्तकों में
पाठ्यक्रम के रूप में संविधान पढ़ाया जाता है। तब बताया जाता है कि अंग्रेजों का एक भारत शासन अधिनियम कानून था , उसकी 75 प्रतिशत धाराओं को हमारे संविधान में ज्यों का त्यों ले लिया गया है। हमारे संविधान करीब - करीब 10 देशों के संविधान से कुछ न कुछ लिया है।

ब्रिटिश सरकार ने 1935 में भारत पर शासन के लिये भारत शासन अधिनियम कानून लागू किया था, भारत को जो वर्तमान संविधान है, जिसमें 2/3 भाग उसी की सामग्री है। किंतु जब भारत शासन अधिनियम बना और लागू हुआ तो उसके सबसे बड़े आलोचक पं0 जवाहरलाल नेहरू ही थे। उन्होंने तब प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा था कि यह एक ऐसी मोटर कार है जिसमें ब्रेक अनेक हैं मगर इंजन नहीं है। बाद में उन्हीं प0 जवाहरलाल नेहरू की देखरेख में भारत का संविधान बना जो पहले कांग्रेस कार्यालय में डिसकस होता था, फिर संविधान सभा के पास आता था मगर फिर भी इस तरह की क्या मजबूरी रही कि उन्होने उसी संविधान की नकल कर मारी। इतना ही नहीं भारत के संविधान की पूर्णता पर प्रश्न तभी उठ गये थे जब कुछ ही वर्षों बाद यथा 18 जून 1951 को ही पहला संविधान संशोधन हुआ और अभी तक सौ से ज्यादा संविधान संशोधन हो चुके हैं।

महात्मा गांधी को पाश्चात्य "सेक्यूलेरिज्य" शब्द से ही चिढ़ थी । उनका मानना था कि भारत धर्मिक देश है उसकी अपनी मौलिकता है, भारत में धर्म सापेक्षता ही रहना चाहिये।

मेरा बहुत स्पष्टमत है कि भारत के हितों के लिए भारत का ही संविधान होना चाहिये। बहुत ज्यादा न देख कर मोटे स्वरूप में देखें तो राष्ट्रपति शब्द नहीं होना चाहिये। इस शब्द की जगह अध्यक्ष होना चाहिए । इण्डिया शब्द भी नहीं आना चाहिये था, भारत सिर्फ भारत है। दूसरे शब्द की जरूरत थी तो भारत का दूसरा नाम हिन्दुस्तान है। अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए था। उसे 10 साल के लिये सहायक भाषा बना कर टाईमली समाप्त करना चाहिये था। आज भी भारत के 98 प्रतिशत लोगों को अंग्रेजी की कहीं भी जरूरत नहीं है। बहुत सी बातें हैं जिनको लेकर संविधान के स्वरूप पर चर्चा हो सकती है।

मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि भारत आने वाले कुछ दसकों बाद या 100 / 150 साल बाद तक अपना मौलिक संविधान अवश्य बनायेगा ।

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संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
भारतीय संविधान में संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं अनुच्छेद-360 के तहत वित्तीय आपातकाल, मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था को दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका के संविधान से लिया गया है।


ब्रिटेन (Britain)
भारत की संसदीय शासन प्रणाली ब्रिटेन से प्रेरित है। साथ ही संविधान में एकल नागरिकता, कानून निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडल प्रणाली, न्यायालय के विशेषाधिकार, संसदीय विशेषाधिकार और द्वि-सदनवाद को ब्रिटिश संविधान से लिया गया है। एकल नागरिकता के तहत भारतीय नागरिक किसी दूसरे देश की नागरिकता नहीं ले सकता है।

जर्मनी (Germany)
भारत के संविधान में आपातकाल के समय के अधिकारों के संबंध में प्रावधान यूरोपीय देश जर्मनी के संविधान से लिए गए हैं। इसमें आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति के पास मौलिक अधिकार के निलंबन संबंधी शक्तियां हैं। आपातकाल के समय मूलभूत अधिकारों में सरकार बदलाव कर सकती है। हालांकि, भारतीय संविधान में आपात उपबंधों को तीन भागों में बांटा गया है। इनमें अनुच्छेद-352 के तहत राष्ट्रीय आपात स्थिति, अनुच्छेद-356 के तहत राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता या राष्ट्रपति शासन की स्थिति और अनुच्छेद-360 के तहत वित्तीय आपात स्थिति के प्रावधान हैं।

दक्षिण अफ्रीका (South Africa)
भारतीय संविधान में संविधान संशोधन की प्रक्रिया संबंधी प्रावधान, राज्यसभा में सदस्यों का निर्वाचन प्रणाली आदि दक्षिण अफ्रीका के संविधान से लिए गए हैं। राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। विभिन्न राज्य विधानसभाओं में चुने गए विधायक अपने राज्य से राज्य सभा सदस्यों के निर्वाचन के लिए मतदान करते हैं।

आयरलैंड (Ireland)
भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में 12 सदस्यों का मनोनयन (साहित्य, कला, विज्ञान तथा सामाजिक सेवा आदि के क्षेत्र से सम्मानित व्यक्ति) जैसे प्रावधान आयरलैंड के संविधान से लिए गए है। भारतीय संविधान के भाग- 4 में शामिल राज्य के नीति निर्देशक तत्व संविधान को अनोखी विशिष्टता प्रदान करते हैं। अनुच्छेद-37 यह घोषणा करता है कि निर्देशक तत्व देश के शासन के मूल आधार हैं और कानून के निर्माण में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।

ऑस्ट्रेलिया (Australia)
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन, व्यापार-वाणिज्य और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आदि व्यवस्थाओं को ऑस्ट्रेलिया के संविधान से लेकर भारतीय संविधान में जोड़ा गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में केवल एक ही बार संशोधन हुआ है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से इसमें संशोधन कर तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए थे।

कनाडा (Canada)
भारतीय संविधान में संघीय शासन व्यवस्था के प्रावधान, केंद्र के अधीन अतिविशिष्ट शक्तियां, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति और राष्ट्रपति का उच्चतम न्यायालय से परामर्श प्राप्त करने की व्यवस्था, यूनियन ऑफ स्टे्टस शब्द की अवधारणा आदि कनाडा के संविधान से लिए गए हैं।

सोवियत संघ (Soviet Union)
भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों के प्रावधान, मूल कर्तव्यों और प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का आदर्श तत्कालीन सोवियत संघ यानी रूस के संविधान से लिए गए हैं। भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को संतुलित करता है। आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान के भाग 4-ए में 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था।

जापान (Japan)
भारतीय संविधान में विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को जापान से लिया गया है। भारतीय संविधान विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का समावेश करके संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के स्वस्थ समन्वय को अपनाता है। विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें यदि संसद प्रक्रिया के तहत कोई कानून बनाएं फिर वह कानून भले ही उचित हो या न हो, लागू होने के बाद मान्य होगा। हालांकि, संविधान में अनुच्छेद-21 की व्यापकता के अंतर्गत न्यायपालिका के कई मसलों पर विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया पर सम्यक प्रक्रिया यानी उसे कानून चुनौती देने को सर्वोच्चता दी है।

फ्रांस (France)
भारतीय संविधान में गणतंत्रात्मक और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुता के आदर्श का सिद्धांत फ्रांस से लिया गया है। गौरतलब है कि भारतीय संविधान में इन तीनों को लोकतंत्र की आत्मा के तौर पर परिभाषित किया गया है। इनके बिना किसी स्वतंत्रता की कप्लना नहीं की जा सकती। 

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