वक़्फ़ पर बहस में चुप रहा गाँधी परिवार, कांग्रेस से ईसाई - मुस्लिम दोनों नाराज




कांग्रेस नें यूं तो पूरी आक्रामकता से वक्फ बिल का विरोध किया मगर, बहस में कांग्रेस के सर्वेसर्वा गांधी परिवार के तीनों सदस्य वक्फ के विरूद्ध एक शब्द भी नहीं बोले एवं इस पर संसद में बोलने से पूरी तरह दूर रहे । जबकि लोकसभा में राहुन गांधी और प्रियंका गांधी एवं राज्य सभा में सोनिया गांधी सदन की सदस्य है। अर्थात गांधी परिवार दोनों सदनों में विपक्ष को लीड कर सकता था। 

यूं तो गाँधी परिवार का वर्तमान सत्य यही है कि वे परोक्ष अपरोक्ष केथोलिक ईसाई हैं या उस विचसर के निकट है। दूसरा जब भी कांग्रेस का उत्तर भारत में पतन होता है तो ईसाई विचार के निकट दक्षिण का बडा समुदाय कांग्रेस के साथ रहता है। पनि्इरा गांधी , सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित प्रियंका गांधी दक्षिण से ही सदन में पहुंचे है। 

वक्फ पर कांग्रेस फंस गई थी, क्यों कि केरल में ईसाई बनाम मुस्लिम का मूल झगडा वक्फ ही है।   केरल का ईसाई समुदाय वक्फ के विरूद्ध अर्थात संसोधन के पक्ष में मतदान का पावरफंल आग्रह कर रहा था। जिसका समर्थन विश्वस्तरीय ईसाई संस्थान भी कर ही रहे होंगे। इसी प्रेसर नें कांग्रेस के गांधियों का बहस से दूरी बनाने पर मजबूर किया । 

कांग्रेस नें दोनों लड्डू हाथ में रखनें के लिये , बहस से किनारा किया है। इसके परिणाम अभी तत्काल पता नहीं चलेंगे, मगर केरल में ईसाई समुदाय कांग्रेस से नाराज है तो पूरे भारत में मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से नाराज है। किन्तु ले नाराजगी भाजपा को फायदा कतई नहीं पहुंचायेगी। हां इसका लाभ उन क्षैत्रीय दलों को होगा। जो भाजपा विरोध की राजनीति करते है। 

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#Waqf Bill

- गाँधी परिवार का वर्तमान सत्य यही है कि वे परोक्ष अपरोक्ष केथोलिक ईसाई हैँ 



प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में पोप की भारत यात्रा 
पोप जॉन पॉल द्वितीय की भारत यात्रा से भारतीय कैथोलिक चर्च में गर्व की नई भावना जागृत हुई

पोलैंड में जन्मे पोप भारतीय वायुसेना के विमानों और बुलेटप्रूफ पोपमोबाइल में सवार होकर 13 भारतीय शहरों का भ्रमण कर रहे थे, जिसके दौरान सड़कों, हवाई अड्डों और सार्वजनिक मैदानों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा।


सुमित मित्रा
Sumit MITRA

जारी दिनांक: फ़रवरी 28, 1986 | 
अद्यतन: जनवरी 22, 2014 

पोप जॉन पॉल द्वितीय का दिल्ली आगमन
दिल्ली में सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल में आशीर्वाद। कलकत्ता में मदर टेरेसा के निर्मल हृदय की यात्रा। केरल में नारियल के बागों के बीच संस्कार। उत्तरी गोवा में 390 साल पुराने भव्य बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस के द्वारों पर संस्कार।

फरवरी की एक ठंडी सुबह से, जब पोप जॉन पॉल द्वितीय, एक शानदार, सफेद कसाक और सैश पहने हुए, दिल्ली हवाई अड्डे पर एलीटालिया विमान से उतरे, घुटनों के बल बैठकर धरती को चूमा, और 10 दिनों की यात्रा के बाद बॉम्बे से उनके गमगीन प्रस्थान तक, जो कि किसी पोप द्वारा की गई अब तक की सबसे लंबी यात्रा थी, यह भारतीय कैथोलिकों के 13 मिलियन मजबूत समुदाय के साथ-साथ आस्थावानों के लिए भी एक घटना थी।


केरल में श्रद्धालुओं द्वारा; गोवा में एक समारोह में; तथा केरल में एक नन द्वारा
पोलिश मूल के पोप भारतीय वायुसेना के विमानों और सर्वव्यापी बुलेटप्रूफ पोप मोबाइल में सवार होकर 13 भारतीय शहरों की यात्रा कर रहे थे, जिसके बाद सड़कों, हवाई अड्डों और सार्वजनिक मैदानों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।

क्राइस्ट के पादरी और सेंट पीटर के 264वें उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) के संयुक्त निमंत्रण पर भारत आए थे। लेकिन यह तथ्य कि किसी अन्य पोप ने आधिकारिक निमंत्रण पर भारत का दौरा नहीं किया था (पॉल VI 1964 में विश्व यूचरिस्ट मीट में भाग लेने के लिए आए थे), ने भारतीय कैथोलिक चर्च को पूर्णता और गर्व की एक नई भावना से भर दिया।

दिल्ली हवाई अड्डे पर स्वागत
यद्यपि भीड़ उतनी अधिक नहीं थी जितनी पोप को विश्व भर में देखने को मिलती है, तथा कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा विरोध के प्रयासों के बावजूद, पोप का यह दौरा महज औपचारिकता से अधिक था, जिसका श्रेय 65 वर्षीय करोल जोसेफ वोयटीला (उच्चारण वॉयटिला ) के प्रभावशाली व्यक्तित्व को जाता है, जो एक कलाकार, संगीतकार, रंगमंच अभिनेता, रहस्यवादी तथा हाल के समय के सर्वाधिक राजनीतिक रूप से जागरूक पोप हैं।

दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में सामूहिक प्रार्थना सभा ; प्रतीक्षारत भीड़ ; और गांधी परिवार के साथ 
और श्रद्धालु बहुत दूर-दूर से आए थे - दिल्ली के धर्मसभा में राजस्थान, बिहार और नेपाल से आए लोग शामिल हुए थे।

अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने हिंदी, बंगाली, असमिया, खासी, तमिल, कोंकणी और मलयालम में अपने भारतीय श्रोताओं का अभिवादन किया। 
नई दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में 25,000 लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "मैं आपके सभी लोगों और आपकी विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करने की गहरी इच्छा के साथ मित्रता के लिए आया हूँ।" महात्मा गांधी की राजघाट समाधि पर , उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर घुटनों के बल लेट गए और पाँच मिनट से अधिक समय तक समाधि-जैसे ध्यान में रहे, जब तक कि उनके साथी बिशपों ने उन्हें जगाने के लिए नहीं कहा।

मदर टेरेसा के साथ ; निर्मल हृदय में ; मिशनरीज ऑफ चैरिटी में ; पोपमोबाइल में ; तथा कोट्टायम में संत घोषित किए जाने के अवसर पर
पोप को देखने और सुनने के लिए त्रिचूर, कोचीन, कोट्टायम और त्रिवेंद्रम में कम से कम तीन मिलियन लोग चिलचिलाती धूप में उमड़ पड़े। 
उन्होंने सभी पड़ावों पर पवित्र मास का आयोजन किया और नृत्य, भजन और कथकली, मोहिनीअट्टम और ओप्पाना जैसी विशिष्ट केरल कला शैलियों में छोटे स्वागत नाटकों से उनका मनोरंजन किया गया। उनकी यात्रा का मुख्य आकर्षण, निश्चित रूप से, फादर कुरियाकोस एलियास चावरा (1805-1871), एक कार्मेलाइट भिक्षु और सिस्टर अल्फोंसा (1910-1946), एक क्लैरिस्ट नन का संतीकरण था। कोट्टायम के नेहरू स्टेडियम में आयोजित समारोह में लगभग 8 लाख लोगों ने भाग लिया। पलाई की 80 वर्षीय महिला अन्नाम्मा जोसेफ, जो सिस्टर अल्फोंसा को जानती थीं, ने कहा: "यह भारत में ईसाई धर्म के लिए सबसे महान क्षणों में से एक है।" संतीकरण समारोह का अनूठा पहलू यह था कि रोमन कैथोलिक चर्च के इतिहास में पहली बार यह सिरो-मालाबार संस्कारों के अनुसार हुआ।

कोट्टायम में संत घोषित किया गया; कोचीन में एक जनसभा को संबोधित किया गया
350,000 की कैथोलिक आबादी वाले गोवा में पोप की यात्रा का मुख्य आकर्षण बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस में पादरी को संबोधित करना था। वे मैंगलोर से सीधे बेसिलिका पहुंचे, 200,000 भाइयों और बहनों ने उनका जोरदार स्वागत किया - बेसिलिका में पुरुष, बाहर नन - उन्होंने सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों की पूजा की, और ननों को विदाई देते हुए कहा: "आज मेरे पास आपके लिए एक संदेश है...(लंबा विराम)...संदेश यह है कि अगली बार आप चर्च के अंदर बैठेंगे और आपके भाई पादरी बाहर बैठेंगे।" लोग रविवार के लिए सबसे अच्छे कपड़े पहनकर सुबह-सुबह बसों, ट्रकों और नौकाओं में सवार होकर राजधानी पणजी पहुंचे।

बैम्बोलिन के रॉबर्टो मास्कारेनहास ने पोपमोबाइल को धूल भरे धुंध में गायब होते देखा और कहा: "यह मास अब तक का सबसे यादगार मास है जिसमें मैंने हिस्सा लिया है।" पणजी के मैदान में लगे संकेतों ने सामूहिक भावनाओं को शानदार ढंग से व्यक्त किया। उन्होंने घोषणा की, 'टोटस टूस', जिसका अर्थ है: पूरी तरह से आपका।

गोवा के बोम जीसस में पादरी वर्ग से मुलाकात; त्रिवेंद्रम में सामूहिक प्रार्थना समारोह
बंबई में पोप ने शिवाजी पार्क में एक युवा रैली में भाग लिया, जहां एक लाख की भीड़, हाथों में तोरण और पोप के झंडे लिए हुए थी। यहां तक ​​कि शिवसेना ने भी अपनी सतर्कता कम कर दी और बाल ठाकरे खुद युवा रैली में शामिल हुए। कलकत्ता में, लगभग 500 सुरक्षाकर्मियों ने बाहर एक अभेद्य घेरा बनाया, जब मुस्कुराते हुए पोप निर्मल हृदय में घूमे, जो मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित बेसहारा और मरते हुए लोगों का घर है। इसके 86 लोगों ने उनके वस्त्र को छुआ, उनकी अंगूठी को चूमा और कई लोग उन्हें बाबा कहकर रो पड़े। दिल्ली हवाई अड्डे की ओर जाते समय, वे भीड़ की ओर देखकर हाथ भी नहीं हिला सके - उनकी आंखें कलकत्ता में अपने अगले संबोधन के रोमनकृत बंगाली पाठ पर टिकी थीं।

प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया ने राष्ट्रपति भवन में उनके साथ कुछ समय बिताया। दिल्ली के आर्कबिशप रेवरेंड एंजेलो फर्नांडीज ने उनके अस्थायी निवास पर हर आम आदमी के सिर को छूते हुए उनके हाथों की "विद्युत तरंगों" के बारे में बात की। लॉरेंस, एक 45 वर्षीय इलेक्ट्रीशियन, जब पोप के हाथ उसके सिर पर रखे गए तो वह बेकाबू होकर रोने लगा।

जॉन पॉल द्वितीय की यात्रा भारत के बिशप इतिहास में एक निश्चित प्रविष्टि है और कैथोलिक इतिहास में एक बेंचमार्क है। पूरे देश के लिए, और इसकी मिश्रित संस्कृति के ताने-बाने के लिए, फरवरी के दस दिनों ने पवित्र दृश्य के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की एक दुर्लभ झलक प्रदान की।

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केरल में कांग्रेस को भारी पड़ेगी ईसाई समुदाय की नाराजगी! वक्फ बिल को लेकर पार्टी के रुख से नाराज

वक्फ संशोधन विधेयक पर कांग्रेस और माकपा के विरोध के चलते केरल का ईसाई समाज नाराज हो गया है। पारंपरिक कांग्रेस समर्थक रहे ईसाई संगठन अब भाजपा के संपर्क में हैं। भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर ने मुनंबम में जमीन विवाद को लेकर सक्रियता दिखाई जहां लोग भाजपा में शामिल भी हुए। इससे कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक दरक सकता है खासकर जब मुस्लिम वोटरों की भावनाएं भी उलझी हुई हैं।

BY NILOO RANJAN
EDITED BY: CHANDAN KUMAR
UPDATED: SUN, 06 APR 2025 

ईसाई समुदाय की नाराजगी केरल में कांग्रेस को पड़ सकती है भारी। 



मुनंबम भूमि विवाद बना भाजपा का एंट्री प्वाइंट
कांग्रेस के लिए धर्मसंकट की स्थिति।

नीलू रंजन, जागरण नई दिल्ली। 

वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ ईसाई समुदाय की नाराजगी केरल में कांग्रेस को भारी पड़ सकती है। केरल में ईसाई समुदाय की जनसंख्या लगभग 18-20 प्रतिशत है, जो पारंपरिक तौर से कांग्रेस का समर्थन करती रही है। हालांकि कुछ वोट CPI को भी मिलते रहे हैं। दोनों ही पार्टियों ने वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध किया है।
जाहिर है लंबे वक्त से जनाधार की कोशिश में जुटी भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है और उसके नवनिर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर तत्काल मुनंबम पहुंच गए जहां 600 परिवारों की 400 एकड़ जमीन वक्फ की संपत्ति घोषित कर दी गई है।

केरल के सभी सांसदों से विधेयक का समर्थन करने की अपील 
दरअसल केरल के ईसाई समाज के बड़े संगठनों कैथोलिक आर्कविशप कौंसिल और साइरो-मालाबार चर्च ने केरल के सभी सांसदों से विधेयक का समर्थन करने की अपील की थी। इसके बाद राष्ट्रीय कैथोलिक आर्कविशप काउंसिल ने भी इसी तरह की अपील की थी। यही नहीं, केरल के चर्च द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र दीपिका ने संपादकीय लिखकर वक्फ संशोधन विधेयक को देश में पंथनिरपेक्ष राजनीति की परीक्षा करार दिया था।

इस संपादकीय के अनुसार केरल वक्फ बोर्ड द्वारा 2022 में मुनंबम की जमीन को वक्फ घोषित करने के मामलों को राजनीतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए और इस ज्यादती के खिलाफ ईसाई समुदाय के लोगों के पक्ष में खड़े होना चाहिए, लेकिन माकपा और कांग्रेस दोनों ने ईसाई समुदाय की इस अपील को ठुकरा दिया।

मुस्लिम वोटबैंक कांग्रेस के लिए दुविधा
दरअसल कांग्रेस के लिए दुविधा की वजह केरल का बड़ा मुस्लिम वोटबैंक है। केरल की जनसंख्या का लगभग 24 प्रतिशत मुस्लिम मुख्य रूप से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) का समर्थक है। आइयूएमएल कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की अहम सदस्य है और 1978 से इसमें शामिल है। गांधी परिवार के वायनाड की सुरक्षित सीट की वजह भी आइयूएमएल है।

वक्फ संशोधन विधेयक ने यूडीएफ के कोर वोटबैंक ईसाई और मुस्लिम को आमने-सामने कर दिया है। राजीव चंद्रशेखर के सामने जिस तरह से मुनंबम के 50 लोग भाजपा में शामिल हो गए, वह केरल में राजनीति की नई बयार की बानगी माना जा रहा है। भाजपा में शामिल होने वाले ये लोग कांग्रेस और माकपा दोनों से जुड़े रहे हैं। यही नहीं, इस मुद्दे पर इडुक्की जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव बेन्नी पेरूवनथनम ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। आने वाले दिनों में ऐसे इस्तीफों की संख्या बढ़ सकती है।

दरअसल केरल में अगले साल अप्रैल में विधानसभा चुनाव होना है और 2016 से मुख्यमंत्री बने पी विजयन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए कांग्रेस वापसी की उम्मीद कर रही है, लेकिन ईसाई समाज की नाराजगी कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है।

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वक्फ संशोधन विधेयक पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की चुप्पी पर उठे सवाल, मुस्लिम लीग नाराज, बताया 'काला धब्बा'

Edited By Rahul Rana,Updated: 05 Apr, 2025

questions raised on the silence of congress mps priyanka
संसद में हाल ही में पारित वक्फ संशोधन विधेयक 2024 ने राजनीतिक हलकों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस विधेयक पर चर्चा के दौरान वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति ने इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) सहित कई विपक्षी दलों को...

नेशनल डेस्क: संसद में हाल ही में पारित वक्फ संशोधन विधेयक 2024 ने राजनीतिक हलकों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस विधेयक पर चर्चा के दौरान वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति ने इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) सहित कई विपक्षी दलों को नाराज कर दिया। पार्टी ने इस बारे में तीखी प्रतिक्रिया दी और प्रियंका गांधी की आलोचना की। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी पर भी सवाल उठाए गए हैं। 

प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति पर नाराजगी

वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर संसद में चर्चा के दौरान प्रियंका गांधी का सत्र में हिस्सा न लेना कई लोगों के लिए चौंकाने वाला था। समस्त केरल जेम-इय्यथुल उलमा के मुखपत्र 'सुप्रभातम' में प्रकाशित एक संपादकीय में प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति को "काला धब्बा" बताया गया। संपादकीय में सवाल उठाया गया कि जब बीजेपी इस विधेयक को आगे बढ़ा रही थी, तब प्रियंका गांधी कहां थीं? साथ ही, यह भी कहा गया कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। 

राहुल गांधी पर सवाल उठाए गए

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प्रियंका गांधी के अलावा, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पर भी सवाल उठाए गए। संपादकीय में कहा गया कि राहुल गांधी ने वक्फ विधेयक पर अपनी स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की, जबकि वे यह दावा करते हैं कि यह विधेयक देश की एकता को प्रभावित करता है। संपादकीय में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ तीखा रुख अपनाया गया, लेकिन साथ ही इंडिया गठबंधन के तहत संसद में बिल के खिलाफ उनके सामूहिक रुख की सराहना भी की गई।

कांग्रेस सांसद ने विधेयक को बताया असंवैधानिक

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन ने वक्फ विधेयक को असंवैधानिक और अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि "यह विधेयक संविधान के खिलाफ है और इसे पारित नहीं किया जाना चाहिए।" उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष ने एकजुट होकर इस विधेयक का विरोध किया, लेकिन सरकार इसे पारित करने पर अडिग रही। उन्होंने इसे लक्षित कानून भी करार दिया, जिसका उद्देश्य विशेष समुदाय को नुकसान पहुंचाना है।
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Waqf Bill News: केरल का वह गांव जहां 600 परिवारों की बेदखली का था खौफ और बीजेपी ने वक्फ के खिलाफ खोल दिया मोर्चा

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के पारित होते ही केरल के मुन्नमबम और कर्नाटक के विजयपुरा में दशकों पुराने जमीन विवाद फिर सुर्खियों में है। पीढ़ियों से बसे ईसाई और हिन्दू परिवार अचानक वक्फ सम्पत्ति के दावे में उलझ गए।

5 Apr 2025, 

नई दिल्ली: संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 जैसे ही पारित हुआ, केरल और कर्नाटक की दो पुरानी जमीन से जुड़ी कहानियां फिर से चर्चा में आ गईं। केरल के मुन्नमबम और कर्नाटक के विजयपुरा में बसे हजारों लोग जिन जमीनों पर पीढ़ियों से रह रहे हैं, अब उन्हें वक्फ सम्पत्ति बताया जा रहा है।

संशोधन विधेयक में पारदर्शिता और रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का प्रावधान किया गया है। ऐसे में मुन्नमबम और विजयपुरा गांव के लोगों समेत पूरे भारत में वक्फ की कब्जाधारी नीति से परेशान लोगों ने राहत की सांस ली है। यही वजह है कि विधेयक पास होते ही मुन्नमबम के लोगों ने केरल बीजेपी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर का जोरदार स्वागत किया और उनकी उपस्थिति में गांव के 50 लोगों ने भाजपा जॉइन कर ली।

समुद्र किनारे बसे 600 परिवार के बेघर होने का डर
केरल के एर्नाकुलम जिले के मुन्नमबम और चेराई गांवों में बसे करीब 610 परिवारों में अधिकतर ईसाई समुदाय और पिछड़े हिन्दू वर्ग से आते हैं। ये लोग सौ साल से भी ज्यादा वक्त से इस जमीन पर रह रहे हैं। लेकिन अब वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है कि ये 404 एकड़ जमीन उसकी सम्पत्ति है।

जमीन की असली कहानी कहां से शुरू हुई?
1902 में त्रावणकोर के शाही परिवार ने यह जमीन अब्दुल सत्तार मूसा सैत को लीज पर दी थी, जो बाद में मोहम्मद सिद्दीक सैत को ट्रांसफर हुई। 1950 में सैत ने यह जमीन फारूक कॉलेज को वक्फ डीड के जरिये दान कर दी। लेकिन तब तक यहां हजारों लोग रहना शुरू कर चुके थे। 1987 से 1993 के बीच फारूक कॉलेज ने इन रहवासियों से पैसा लेकर उन्हें जमीन के पट्टे दे दिए, लेकिन कहीं भी जिक्र नहीं था कि ये वक्फ सम्पत्ति है।

मुन्नमबम का मामला दिखाता है कि वक्फ बोर्ड की शक्तियों को रेग्युलेट करने की जरूरत है। यह विधेयक गरीब मुसलमानों और आम लोगों के हित में है। -संसद में वक्फ बिल पर चर्चा के दौरान मंत्री किरेन रिजिजू

जब वक्फ बोर्ड ने खुद ही जमीन पर दावा ठोका
2008 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच के लिए निसार आयोग बनाया गया। 2009 की रिपोर्ट में मुन्नमबम की जमीन को वक्फ घोषित करने की सिफारिश की गई। इसी आधार पर 2019 में वक्फ बोर्ड ने धारा 40 और 41 के तहत इसे वक्फ सम्पत्ति घोषित कर दिया। नतीजा? जमीन पर टैक्स देना बंद हो गया। लोग न तो इसे बेच सकते हैं, न गिरवी रख सकते हैं।

किसानों की पुश्तैनी जमीन पर 'कलर्क की गलती'?
विजयपुरा जिले के होनवाडा और इंदी तालुका के 1200 एकड़ खेत अचानक से सरकारी रिकॉर्ड में वक्फ की सम्पत्ति घोषित कर दिए गए। 433 किसानों को अक्टूबर 2023 में तहसीलदार से नोटिस मिले कि उनकी जमीन अब वक्फ बोर्ड के अधीन है। कोई पूर्व सूचना नहीं, कोई सुनवाई नहीं।

जांच में चौंकाने वाले खुलासे
News18 की रिपोर्ट के अनुसार, 
सितंबर से अक्टूबर 2023 के बीच 44 जमीनों के रिकॉर्ड बिना जानकारी बदल दिए गए। कांग्रेस सरकार ने इसे 1974 के गजट नोटिफिकेशन में 'क्लेरिकल मिस्टेक' बताया। मंत्री एमबी पाटिल ने किसानों को आश्वासन दिया कि गलती सुधारी जाएगी और जांच जारी है। लेकिन विपक्षी बीजेपी ने इसे 'वक्फ के नाम पर जमीन हड़पने की साजिश' बताया।

मुन्नमबम जैसे मामलों को बीजेपी ने बनाया औजार
केरल बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने मुन्नमबम के मामले को वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों के दुरुपयोग से जोड़ा। केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी और केरल बीजेपी के उपाध्यक्ष केएस राधाकृष्णन ने इसे लैंड जिहाद बताया। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड ऐसी संपत्तियों पर दावा कर रहा है जिन पर लोग पीढ़ियों से रह रहे हैं।

वहीं, केरल का ईसाई समुदाय भी वक्फ बोर्ड के खिलाफ एकजुट होने लगा। फिर, अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा में भी मुन्नमबम का जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'मुन्नमबम का मामला दिखाता है कि वक्फ बोर्ड की शक्तियों को रेग्युलेट करने की जरूरत है। यह विधेयक गरीब मुसलमानों और आम लोगों के हित में है।' वहीं, बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने भी इस मुद्दे को खूब हवा दी।

संसद में पारित वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 क्या कहता है?
इस बिल के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

➤ वक्फ सम्पत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करना

➤ बिना मंजूरी जमीन हस्तांतरण पर सख्त निगरानी

➤ अवैध कब्जा छुड़ाने के लिए कानूनी ढांचा मजबूत करना

लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह विधेयक मुन्नमबम या विजयपुरा जैसे मामलों को हल नहीं करता, जहां लोग वक्फ बोर्ड के दावों को वर्षों से अदालत में चुनौती दे रहे हैं।

सियासत का जहर और समुदायों की पीड़ा
जहां बीजेपी ने इस विधेयक को 'सभी नागरिकों के जमीन अधिकार का रक्षक' बताया, वहीं कांग्रेस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) और वाम दलों ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का औजार बताया। कांग्रेस नेता वीडी सतीशन ने पूछा कि जब बिल का रेट्रोस्पेक्टिव असर नहीं होगा तो मुन्नमबम के लोगों को इससे क्या फायदा होगा? वहीं, आईयूएमएल नेता सादिक अली थंगल ने भी कहा कि वो मुन्नमबम के लोगों को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। कैथोलिक बिशप्स काउंसिल ने केंद्र को ज्ञापन सौंप कर लोगों के हक में आवाज उठाई है।

आगे क्या?
केरल सरकार ने स्पष्ट कहा है कि वह मुन्नमबम के लोगों के साथ है, लेकिन मामला कोर्ट में है और फैसला अभी लंबित है। फारूक कॉलेज खुद वक्फ बोर्ड के दावे को अदालत में चुनौती दे चुका है।

अधिकार बनाम आस्था की लड़ाई
वक्फ सम्पत्तियों की रक्षा और पारदर्शिता का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका जमीनी सच्चाई से कटा हुआ लगता है। जिन लोगों ने जमीन खरीदी, टैक्स भरा, घर बनाए, क्या उन्हें एक झटके में बेदखल किया जा सकता है? जब तक वक्फ दावों की जांच निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं होगी, तब तक यह लड़ाई सिर्फ अदालतों में नहीं, लोगों के दिलों में भी लड़ी जाती रहेगी।

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