एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये उच्च स्तरीय रिपोर्ट को जानें one nation, one election
भारत में चुनावों पर दुनिया का सबसे ज्यादा पैसा खर्च तो होता ही है, साथ ही जनता की सेवा करने के दायित्व के आधीन सरकारों और जनप्रतिनिधियों का बहुमूल्य समय भी सर्वाधिक व्यय होता है। आदर्श चुनाव आचार संहिता के नाम पर कार्यवाधित होना। तीसरे संवैधानिक स्वतंत्रता अथवा व्यवस्था नहीं होनें के कारण दलों को सरकार गिराने, उससे सौदा करने और ब्लेकमेल करने के अवसर भी प्राप्त हैँ। जो पूरी तरह अनुचित और राष्ट्र को नुकसानदायक हैँ। इसलिए व्यवस्थित व्यवस्था स्वरूप सुनिश्चित व्यवस्था के रूप में वन नेशन वन इलेक्शन व्यवस्था अपना कर। देश को नुकसान पहुंचाने वाली अव्यवस्था से बाहर निकलना होगा। इसलिए देश को जनहितकारी और राष्ट्रहितकारी नीतियों को अपनाना चाहिए ।
शासन व्यवस्था
एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
(19 Mar 2024)
एक राष्ट्र, एक चुनाव, नगर पालिकाएँ और पंचायतें, भारत का चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग, अनुच्छेद 356
एक साथ चुनाव, महत्त्व और चुनौतियाँ
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
चुनाव सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट इस महत्त्वपूर्ण बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिये संविधान में व्यापक सिफारिशों और संशोधनों की रूपरेखा तैयार करती है।
एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें क्या हैं?
एक साथ चुनाव के लिये संक्रमण:-
अनुच्छेद 82A में संशोधन:
समिति राष्ट्रपति को लोकसभा और विधान सभाओं के एक साथ चुनाव शुरू करने के लिये "नियत तारीख" निर्दिष्ट करने का अधिकार देने के लिये संविधान के अनुच्छेद 82A में संशोधन करने का सुझाव देती है।
इस तारीख के बाद जिन राज्य विधानसभाओं में चुनाव होने हैं, वे एक साथ चुनाव कराने की सुविधा के लिये अपनी शर्तों को संसद के साथ समन्वयित कर लेंगी।
अवधि समन्वयन (Term Synchronization):
यदि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है और लागू किया जाता है, तो संभवतः पहला एक साथ चुनाव वर्ष 2029 में हो सकता है।
वैकल्पिक रूप से यदि वर्ष 2034 के चुनावों को लक्षित किया जाता है, तो वर्ष 2029 के लोकसभा चुनावों के बाद नियत तारीख की पहचान की जाएगी।
जिन राज्यों में जून 2024 और मई 2029 के बीच चुनाव होने हैं, उनका कार्यकाल 18वीं लोकसभा के साथ समाप्त हो जाएगा, भले ही इसके परिणामस्वरूप कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल एक बार के उपाय के रूप में पाँच साल से कम हो।
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु (2026), पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (2027) और कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना (2028) जैसे राज्य अपने चुनावी चक्र को समन्वयित (synchronise) करेंगे।
वर्ष 2024 के चुनावों के बाद चुनी गई सरकार अपनी प्राथमिकता के आधार पर वर्ष 2029 या 2034 को लक्ष्य करते हुए एक साथ चुनाव लागू करने के लिये शुरुआती बिंदु तय करेगी।
संसद या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने की स्थिति में समन्वय बनाए रखने के लिये, समिति ने एक साथ चुनावों के अगले चक्र तक केवल शेष कार्यकाल या "असमाप्त अवधि (unexpired term)" के लिये नए चुनाव कराने की सिफारिश की।
यह उपाय सुनिश्चित करता है कि कोई भी त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव एक साथ चुनावों की समग्र समय-सीमा को प्रभावित नहीं करता है।
स्थानीय निकाय चुनावों का समन्वयन:
संसद को आम चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों का समन्वय सुनिश्चित करने के लिये संभवतः अनुच्छेद 324A की शुरुआत के माध्यम से कानून बनाने की सलाह दी जाती है।
यह कानून स्थानीय निकायों की शर्तों को निर्धारित करेगा और उनके चुनाव कार्यक्रम को राष्ट्रीय चुनावी समय-सीमा के साथ संरेखित करेगा।
मतदाता सूची तैयार करना एवं प्रबंधन:
समिति संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव देती है ताकि भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के परामर्श से सरकार के सभी स्तरों पर लागू एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान-पत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सके।
लोकसभा के लिये मतदाता सूची ECI द्वारा तैयार और रखरखाव की जाती है, जबकि स्थानीय निकायों के लिये मतदाता सूची SEC द्वारा तैयार की जाती है।
समिति पुनर्मतदान को रोकने और मतदाता अधिकारों की सुरक्षा के लिये ECI तथा राज्य चुनाव आयोगों के बीच सामंजस्य के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
लॉजिस्टिक व्यवस्थाएँ और व्यय अनुमान:
समिति ECI से एक साथ चुनावों के लिये विस्तृत आवश्यकताएँ और व्यय अनुमान प्रस्तुत करने को कहती है।
निर्बाध लॉजिस्टिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये समिति ECI और SECs से व्यापक योजनाएँ तथा अनुमान विकसित करने का आग्रह करती है।
इन योजनाओं में उपकरण की आवश्यकताएँ, कर्मियों की तैनाती और सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये।
शासन और विकास पर प्रभाव:
समिति प्रभावी निर्णय लेने और सतत् विकास के लिये शासन में निश्चितता के महत्त्व को रेखांकित करती है।
यह नीतिगत पंगुता को रोकने और प्रगति के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने में समकालिक चुनावों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
एक साथ चुनाव के संबंध में विवाद क्या हैं?
पक्ष में तर्क:
लागत क्षमता:
एक साथ चुनाव कराने से राज्य और केंद्र दोनों सरकारों द्वारा किये जाने वाले पर्याप्त आवर्ती व्यय में कमी आती है।
चुनावों को एक कार्यक्रम में समेकित करने से मतदाता पंजीकरण, मतदान केंद्र, चुनाव कर्मचारी, सुरक्षा तैनाती और अन्य लॉजिस्टिक संबंधी आवश्यकताओं से जुड़ी लागत कम हो जाती है।
सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची के साथ, सुरक्षा बलों और नागरिक अधिकारियों जैसे प्रशासनिक संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग किया जाता है, जिससे सार्वजनिक धन की बचत होती है जिसे अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिये पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।
उन्नत शासन एवं प्रशासन:
एक साथ चुनाव होने से चुनावी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासन पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।
अलग-अलग चुनावों के दौरान सुरक्षा और पुलिस बलों की लंबे समय तक तैनाती राष्ट्रीय सुरक्षा तथा कानून प्रवर्तन प्रयासों पर दबाव डाल सकती है, जिसे एक साथ चुनाव कराकर कम किया जा सकता है।
अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादले और अलग-अलग चुनावों के दौरान आचार संहिता के कारण होने वाला व्यवधान सरकारी मशीनरी के सुचारु कामकाज में बाधा डाल सकता है, जिसे समकालिक चुनावों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
राजनीति में धन का प्रभाव कम होना:
एक साथ चुनाव कराने से चुनाव अभियानों की आवृत्ति और संबंधित खर्चों को कम करके राजनीति में धन की भूमिका को कम किया जा सकता है।
अभियान वित्त नियमों को ECI द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है, जिससे सभी दलों और उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित होंगे।
विभाजनकारी राजनीति का शमन:
'एक राष्ट्र-एक चुनाव' की अवधारणा का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करने में क्षेत्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विभाजनकारी प्रभाव को कम करना है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके और एकीकृत चुनावी एजेंडे को बढ़ावा देकर, एक साथ चुनाव संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
मतदाता सहभागिता में वृद्धि:
विभिन्न स्तरों पर बार-बार होने वाले चुनावों से उत्पन्न होने वाली वोटर फेटीग को एक ही कार्यक्रम में एकत्रित करके कम किया जा सकता है।
एक साथ चुनाव मतदाताओं की उदासीनता को कम करके और प्रत्येक चुनावी अभ्यास के महत्त्व को बढ़ाकर संभावित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर मतदान प्रतिशत बढ़ा सकते हैं।
एक साथ चुनाव के खिलाफ तर्क:
संघवाद और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
एक साथ चुनाव, चुनावी प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके और संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करके संघवाद के सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकते हैं।
घटक राज्य, विशेष रूप से वे जो राष्ट्रीय स्तर पर गैर-प्रमुख दलों द्वारा शासित हैं, समकालिक चुनाव परिदृश्य में हाशिए पर या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व महसूस कर सकते हैं।
संविधान में निहित संघीय भावना को कमज़ोर करते हुए, राष्ट्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय पार्टियों पर अनुचित लाभ प्राप्त कर सकती हैं।
लागत निहितार्थ:
एक साथ चुनावों के कार्यान्वयन के लिये अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल की खरीद में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
विधान परिषदों/राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों और उप-चुनावों के लिये अभी भी अलग-अलग मतदान आयोजनों की आवश्यकता होगी, जो समकालिक चुनावों के बावजूद चल रही लागत में योगदान देगा।
जवाबदेही और प्रतिनिधित्व पर प्रभाव:
सरकार के विभिन्न स्तरों पर बार-बार चुनाव होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच जवाबदेही बनाए रखने में मदद मिलती है और मतदाताओं को अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने के नियमित अवसर सुनिश्चित होते हैं।
चुनावों को समकालिक करने से चुनावी जवाबदेही जाँच की आवृत्ति कम हो सकती है और निर्वाचित अधिकारियों की अपने मतदाताओं की बढ़ती आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेही सीमित हो सकती है।
आवश्यक संवैधानिक संशोधन:
भारत का संसदीय लोकतंत्र लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके पाँच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करने की अनुमति देता है।
सभी सदनों के लिये पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल अवधि और विघटन से संबंधित अनुच्छेद 83, 85, 172 तथा 174 में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है।
एक साथ चुनावों को समायोजित करने के लिये राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को नियंत्रित करने वाले अनुच्छेद 356 में संशोधन की भी आवश्यकता होगी।
सुरक्षा निहितार्थ:
एक साथ चुनावों के दौरान, चुनाव ड्यूटी के लिये बड़े सुरक्षा बलों को तैनात करना संभावित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर कर सकता है, क्योंकि यह उन्हें सीमा सुरक्षा से विचलित कर देता है।
एक साथ चुनाव के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
संवैधानिक प्रावधान
विवरण
अनुच्छेद 83
लोकसभा (लोगों का सदन) की अवधि निर्दिष्ट करती है, जिसमें कहा गया है, कि यह अपनी पहली बैठक से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी जब तक कि पहले भंग न हो जाए।
अनुच्छेद 172
राज्य विधान सभाओं की अवधि से संबंधित, यह घोषणा करते हुए कि एक विधान सभा अपनी पहली बैठक की तारीख से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी।
अनुच्छेद 324
निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची की तैयारी और संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों की निगरानी, निर्देशन एवं नियंत्रण करने के लिये सशक्त बनाना।
अनुच्छेद 356
संवैधानिक शासन की विफलता के मामले में किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देता है, जिससे राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्ष शासन किया जाता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
भारत में चुनाव कराने के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें मतदाता सूची, सदस्यता के लिये योग्यता और चुनाव आचरण जैसे पहलू शामिल हैं।
भारत में एक साथ चुनाव का इतिहास
भारत में एक साथ चुनाव, जहाँ लोकसभा तथा राज्य विधानसभाएँ दोनों एक साथ निर्वाचित होते थे, आज़ादी के बाद शुरुआती वर्षों में 1952, 1957 एवं 1962 में प्रचलित थे।
हालाँकि, राजनीतिक अस्थिरता, राज्य विधानसभाओं के शीघ्र विघटन और क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिये अलग-अलग चुनावों की आवश्यकता जैसे विभिन्न कारकों के कारण, एक साथ चुनावों की प्रथा धीरे-धीरे खत्म हो गई।
वर्ष 2019 में, केवल चार राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए।
एक साथ/समकालिक चुनाव वाले देश ---
1- दक्षिण अफ्रीका:
नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव हर 5 वर्ष में एक साथ होते हैं।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली द्वारा किया जाता है।
2- स्वीडन:
स्वीडन के प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
3- जर्मनी:
जर्मनी के चांसलर का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
चांसलर में विश्वास की कमी को केवल उत्तराधिकारी चुनकर ही दूर किया जा सकता है।
4- ब्रिटेन:
ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता तथा पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद प्रत्येक 5वें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
एक साथ/समकालिक चुनाव के संबंध में विभिन्न अन्य सिफारिशें क्या हैं?
पिछली रिपोर्ट:
एक साथ/समकालिक चुनाव के मुद्दे को विधि आयोग (1999) और कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर संसदीय स्थायी समिति (2015) की रिपोर्टों में हल किया गया है। इसके अतिरिक्त, विधि आयोग ने वर्ष 2018 में एक प्रारूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
सिफारिशों का सारांश:
क्लबिंग चुनाव:
प्रस्तावों में लोकसभा चुनावों को लगभग आधे राज्य विधानसभा चुनावों के साथ एक चक्र में जोड़ने का सुझाव दिया गया है, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों को ढाई वर्ष बाद दूसरे चक्र में कराने का सुझाव दिया गया है।
इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित करने हेतु संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
अविश्वास प्रस्ताव:-
लोकसभा या विधानसभा में किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने का विश्वास प्रस्ताव भी होना चाहिये।
यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा का विघटन अपरिहार्य है, तो नवगठित सदन को विघटन को हतोत्साहित और वैकल्पिक सरकार बनाने की खोज को प्रोत्साहित करने के लिये मूल सदन की केवल शेष अवधि में ही काम करना चाहिये।
उप-चुनाव:
सदस्यों की मृत्यु, इस्तीफे या अयोग्यता के कारण होने वाले उपचुनावों को दक्षता के लिये एक साथ समूहीकृत किया जा सकता है और वर्ष में एक बार आयोजित किया जा सकता है।
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भारत की 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' योजना की व्याख्या
17 दिसंबर 2024
13 नवंबर, 2024 को भारत के असम के नागांव जिले में सामागुरी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर अपना वोट डालने के बाद एक मतदाता अपनी स्याही लगी उंगली दिखाती हुई।
भारत में लगभग एक अरब मतदाता हैं
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत लगभग हमेशा चुनावी माहौल में रहता है।
28 राज्यों, आठ केंद्र शासित प्रदेशों और लगभग एक अरब पात्र मतदाताओं के साथ, चुनाव देश के राजनीतिक परिदृश्य की एक निरंतर विशेषता है।
वर्षों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के विचार का समर्थन करती रही है - जिसमें हर पांच वर्ष में राज्य और संघीय चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है।
मंगलवार को भारतीय कानून मंत्री ने संसद में इस प्रणाली को लागू करने के लिए एक विधेयक पेश किया, जिससे सत्ता की गतिशीलता पर बहस छिड़ गई।
समर्थकों का तर्क है कि इस दृष्टिकोण से अभियान लागत में कमी आएगी, प्रशासनिक संसाधनों पर दबाव कम होगा और शासन सुचारू होगा।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, जिन्होंने पिछले वर्ष इसी समय चुनाव कराने की सिफारिश करने वाली नौ सदस्यीय समिति का नेतृत्व किया था, ने इसे "गेम चेंजर" बताया तथा अर्थशास्त्रियों का हवाला दिया, जिनका कहना है कि इससे भारत की जीडीपी में 1.5% तक की वृद्धि हो सकती है।
हालांकि, आलोचकों ने चेतावनी दी है कि इससे भारत का संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है, सत्ता केंद्र में केंद्रित हो सकती है और राज्यों की स्वायत्तता कमजोर हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है
एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है ?
भारत का लोकतंत्र कई स्तरों पर संचालित होता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना चुनाव चक्र होता है।
संसद सदस्यों को चुनने के लिए आम चुनाव होते हैं, विधायकों को चुनने के लिए राज्य चुनाव होते हैं, जबकि ग्रामीण और शहरी परिषदों में स्थानीय शासन के लिए अलग-अलग वोट होते हैं। उप-चुनावों के ज़रिए प्रतिनिधियों के इस्तीफ़े, मृत्यु या अयोग्यता के कारण रिक्तियाँ भरी जाती हैं।
ये चुनाव हर पांच साल में होते हैं, लेकिन अलग-अलग समय पर। सरकार अब इन्हें एक साथ कराना चाहती है।
मार्च में कोविंद की अगुआई वाली समिति ने अपनी 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट में राज्य और आम चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव रखा था। साथ ही, इसने 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की भी सिफारिश की थी।
समिति ने सुझाव दिया कि यदि कोई सरकार चुनाव हार जाती है, तो नए चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन उसका कार्यकाल अगले समकालिक चुनाव तक ही रहेगा।
यह बात भले ही बहुत गंभीर लगे, लेकिन एक साथ चुनाव कराना भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। 1951 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1967 तक यह एक आम बात थी, जब राजनीतिक उथल-पुथल और राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण अलग-अलग चुनाव कराने पड़े।
इस प्रणाली को पुनर्जीवित करने के प्रयासों पर दशकों से बहस चल रही है, जिसमें 1983 में चुनाव आयोग, 1999 में विधि आयोग तथा 2017 में सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये थे।
क्या भारत को एक साथ चुनाव की आवश्यकता है?
एक साथ चुनाव कराने का सबसे बड़ा तर्क चुनाव लागत में कटौती करना है।
दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अनुसार , भारत ने 2019 के आम चुनावों में 600 बिलियन रुपये ($ 7.07 बिलियन; £ 5.54 बिलियन) से अधिक खर्च किए, जिससे यह उस समय दुनिया का सबसे महंगा चुनाव बन गया।
हालाँकि, आलोचकों का तर्क है कि यही लक्ष्य - लागत कम करना - उल्टा भी पड़ सकता है।
900 मिलियन पात्र मतदाताओं के साथ, पर्याप्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें, सुरक्षा बल और चुनाव अधिकारी सुनिश्चित करने के लिए व्यापक योजना और संसाधनों की आवश्यकता होगी।
विधि एवं न्याय विभाग की 2015 की संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार , भारत पहले से ही आम और राज्य चुनावों पर 45 अरब रुपए खर्च करता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर एक साथ चुनाव कराए गए तो नई वोटिंग और वोटर-वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनें खरीदने के लिए कुल 92.84 बिलियन रुपए की ज़रूरत होगी, जो मतदाता द्वारा चुनी गई पार्टी के चुनाव चिह्न वाली एक पर्ची निकालती है। इन मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी ज़रूरत होगी।
- पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने उच्च लागत के बारे में चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि कोविंद समिति की रिपोर्ट में इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था, खासकर तब जब प्रस्ताव के पीछे चुनाव खर्च कम करना एक प्रमुख कारण था।
- भारत के राष्ट्रपति पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, को एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट सौंपीँ, गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे।
- भारत के राष्ट्रपति
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की
इस प्रस्ताव को लागू करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के विशिष्ट प्रावधानों (या अनुच्छेदों) में औपचारिक परिवर्तन या संशोधन करने की आवश्यकता होती है, जो देश का सर्वोच्च कानून है। इनमें से कुछ परिवर्तनों के लिए भारत की 28 राज्य विधानसभाओं में से कम से कम आधे द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
- यद्यपि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को संसद में साधारण बहुमत प्राप्त है, लेकिन ऐसे संशोधनों के लिए आवश्यक दो-तिहाई बहुमत का अभाव है।
- कोविंद समिति ने दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और इंडोनेशिया जैसे देशों के मॉडलों का अध्ययन किया तथा भारत के लिए उनके सर्वोत्तम तरीकों का सुझाव दिया।
- सितंबर 2024 में कैबिनेट ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी और इस प्रणाली के लिए दो विधेयकों का समर्थन किया था।
संघीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में विधेयक पेश किया।
एक विधेयक में संघीय और राज्य चुनावों को संयुक्त रूप से कराने के लिए संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव है, जबकि दूसरे विधेयक में दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनावों को आम चुनाव कार्यक्रम के साथ जोड़ने का प्रस्ताव है।
सरकार ने कहा है कि वह इन विधेयकों को संसदीय समिति को भेजने तथा आम सहमति बनाने के लिए राजनीतिक दलों से परामर्श करने के लिए तैयार है।
प्रस्ताव का समर्थन कौन करता है और विरोध कौन करता है?
कोविंद समिति ने सभी भारतीय दलों से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, जिसमें 47 दलों ने प्रतिक्रिया दी - 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया, जबकि 15 ने इसका विरोध किया।
अधिकांश समर्थक भाजपा के सहयोगी या मित्र दल थे, जिन्होंने समय, लागत और संसाधन की बचत का हवाला दिया।
भाजपा ने तर्क दिया कि आदर्श आचार संहिता के कारण कल्याणकारी योजनाओं में देरी के कारण पिछले पांच वर्षों में भारत के "800 दिन के शासन" का नुकसान हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है।
अगस्त में उन्होंने कहा था, "बार-बार होने वाले चुनाव देश की प्रगति में बाधा बन रहे हैं।" "हर तीन से छह महीने में चुनाव होने के कारण, हर योजना चुनावों से जुड़ी हुई है।"
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने एक साथ चुनाव कराने को "अलोकतांत्रिक" बताया है और तर्क दिया है कि इससे देश की संसदीय शासन प्रणाली कमजोर होती है। उनका कहना है कि इस तरह की व्यवस्था से क्षेत्रीय दलों के मुकाबले राष्ट्रीय दलों को अनुचित लाभ मिलेगा।
पार्टियों ने चुनाव लागत से संबंधित चिंताओं के समाधान के लिए बेहतर समाधान के रूप में वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की भी सिफारिश की।
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