यह गहन जाँच का विषय है कि कुछ विशेष अधिवक्ताओं की सुनवाई तुरंत क्यों हो जाती है- अरविन्द सिसोदिया
भारत के संविधान नें सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए कुछ राजनैतिक अधिवक्ताओं विशेषधिकार नहीं दिया है कि वे कोई भी याचिका लगाएं और उसे तुरंत सुन लिया जाये। इस तरह का होना, नागरिकों के साथ समान व्यवहार की संवेधानिक व्यवस्था का हनन भी है। रेल के टिकिट लेते समय आप लाईन नहीं तोड़ सकते, अस्पताल की पर्ची बनवाते समय आप लाईन नहीं तोड़ सकते, तो यह तो सर्वोच्च न्यायालय है।
जब भी देश, धर्म, संस्कृति, सुरक्षा के विरुद्ध कोई प्रकरण उठता है तो राजनैतिक दल विशेष से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता विरोधी या अपराधी पक्ष की ओर से कूद पड़ते हैँ और सरकार के सुधार प्रयासों को परिणामों तक पहुंचने में अडंगे बाजी प्रारंभ करते हैँ और उनके कुतर्क के सामने कई अवसरों पर सर्वोच्च न्यायालय को झुकते पाते हैँ।
येशा तभी संभव है जब इन वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पीछे से झाँकती भयानकता डरा रही हो या कोई बहुत बड़ा लाभ आकर्षित कर रहा हो। यह जाँच का विषय है कि येशा क्यों होता है।
संविधान की मनमानी व्याख्या नहीं की जा सकती, जो भी उसके बारे में सोचना है, वह संविधान सभा की बहस की कार्यवाही से खोज सकते हैँ। जो संवेधानिक बहस के अस्तित्व में ही नहीं है, वह मनमानी सोच थोपी नहीं जा सकता। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी पंथ विशेष से सापेक्षता नहीं है।
अर्थात मूल विषय यह है कि कुछ राजनैतिक दल से जुड़े अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायलय में सामान्य क्रम का उल्लंघन कर लगातार अपने प्रकरण की सुनवाई पहले कैसे करवा लेते हैँ। इसके पीछे कौनसे प्रभाव काम करते हैँ। इसकी गहन और उच्च स्तरीय जाँच होनी ही चाहिए।
हमें डर है कि कहीं हमारी न्यायपालिका विदेशी आतंकवाद के दवाब में तो नहीं है और उनके प्रतिनिधि / सलाहकार अपरोक्षरूप से जजेज को दवाब में ले रहे हों। यह गंभीर जाँच का विषय है कि डिजिटल अरेस्ट की तरह, आतंकी भय से डरे हुये हों।
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Ex चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के खिलाफ शिकायत
तीस्ता सीतलवाड़ के लिए एक
दिन में दो बेंच बना कर जमानत
देने के लिए -
शिकायत करने वाले रिटायर्ड जज
पटना हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस राकेश कुमार ने राष्ट्रपति को तत्कालीन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के खिलाफ तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने के मामले में अतिसक्रियता का आरोप लगाते हुए शिकायत की है - उन्होंने कहा है कि चंद्रचूड़ ने कोर्ट में न होते हुए भी एक दिन दिन में 2 बेंचों का गठन किया और सीतलवाड़ की जमानत हो गई - यह शिकायत उन्होंने 8 नवंबर 2024 को भेजी थी और चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हुए और शिकायत में जस्टिस राकेश कुमार ने CBI जांच की मांग की है -
लेकिन यह शिकायत आज 5 महीने बाद प्रिंट मीडिया में आई है जिससे लगता है जस्टिस राकेश कुमार इसे आगे बढ़ा रहे हैं और वो चुप नहीं बैठे - मीडिया में आने के बाद आज खबर है कि Law & Justice मंत्रालय ने उनकी शिकायत DOPT को उचित कार्रवाई के लिए भेजी है -
अब जस्टिस राकेश कुमार का किस्सा सुनो - अगस्त 2019 में उन्होंने पटना हाई कोर्ट के जज रहते हुए हाई कोर्ट में भ्रष्टाचार के बारे में फैसला सुनाया था - उसके बाद विवाद बढ़ने पर पहले उनसे हाई कोर्ट का काम वापस लिया गया और 2 महीने बाद उनका तबादला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में कर दिया गया -
एक IAS अधिकारी KP Ramaiah ने महादलित विकास निगम में CEO रहते हुए 5 करोड़ का घपला किया था और उनकी जमानत अर्जी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने खारिज कर दी थी लेकिन फिर भी उसे vigilance court के vacation judge ने जमानत दी दी जबकि नियमित जज छुट्टी पर था -
मामले की गंभीरता को देखते हुए जस्टिस राकेश कुमार ने District Judge को जांच करने को कहा और अपनी रिपोर्ट 4 सप्ताह में देने के आदेश दिए - उन्होंने DJ को पता करने के लिए कहा कि क्या नियमित जज (regular judge) किसी Genuine cause के लिए छुट्टी पर थे या किसी calculated way में छुट्टी पर थे और उनके द्वारा दिए गए पिछले 6 महीनों के फैसलों का भी रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा -
जस्टिस राकेश कुमार ने न्यायपालिका पर भी गंभीर टिप्पणियां की - उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में जब भी Lower Judiciary के जजों के भ्रष्टाचार के मुक़दमे आए, तब मेरे विरोध के बावजूद उन्हें हल्की फुल्की सजा देकर छोड़ दिया गया -
जस्टिस राकेश कुमार ने अपने आदेश में यह भी कहा कि taxpayers’ का पैसा जजों के घरों और बंगलों की Renovation और furnishing पर खर्च किया जा रहा है - उन्होंने कहा कि उनके आदेश की प्रति CJI, प्रधानमंत्री और Law Ministry को भेजी जाए -
पटना हाई कोर्ट के जजों के दिलों में तो जैसे आग लग गई - जस्टिस राकेश कुमार का फैसला single judge का फैसला था जिस पर Double Bench भी रोक लगा सकती थी लेकिन आश्चर्य की बात थी कि उनके आदेश पर विचार के लिए 11 जजों की बेंच बैठी जिसने उनके फैसले पर रोक लगा दी, उनसे काम छीन लिया गया और फिर 2 महीने बाद ट्रांसफर कर दिया गया -
यह है न्यायपालिका का मर्यादाहीन आचरण - अपने खिलाफ किसी की कोई बात सुनना ही नहीं चाहते और इसलिए ही जस्टिस यशवंत वर्मा के घपले को बर्फ में लगाने की कोशिश की गई -
Judicial Fraternity पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए चाहे कोई जज कितना भी उचित निर्णय लेने की हिम्मत क्यों न करे - लोकपाल को भी जांच से इसलिए ही रोक रहे हैं कि कहीं हाई कोर्ट के जज सच में न नप जाएं - चंद्रचूड़ के खिलाफ CBI जांच की अनुमति भी चीफ जस्टिस से लेनी होगी जो वो देगा नहीं -
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