कैलाश मानसरोवर यात्रा क्षेत्र का विकास, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम योजना से...
विपुल गोयल, संवाददाता, उत्तराखण्ड़।
भारत, नेपाल और चीन तीनों देशों से जुड़ी कैलाश मानसरोवर यात्रा क्षेत्र का विकास अब तीनों देश मिलकर करेंगे। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम( यूएनईपी) की 13 वर्षों की इस महत्वाकांक्षी योजना पर काम शुरू हो गया है। इसके लिये यूएनईपी 70करोड़ रूपए खर्च करेगा। इस योजना में तीनों देशों के यात्रा क्षेत्र से जुड़े इलाकों में पर्यावरण संरक्षण, ऐतिहासिक धरोहरों के संवर्धन और संरक्षण, वन्य जीवों की सुरक्षा व्यापार व स्थानीय लोगों की आजीविका सुधार के कार्यक्रम चलाये जायेंगे। संयुक्त योजना को मूर्त रूप देने के लिये तीनों देशों के अधिकारियों की दो कार्यशालाएं हो चुकी है।
भारत, नेपाल और चीन की सीमा से जुड़े कैलाश मानसरोवर क्षेत्र तीनों देशों के लिए काफी मत्वपूर्ण क्षेत्र है।भारत में बसे हिन्दुओं व तिब्बती बौद्धों की आस्था भी यहाँ से जुड़ी है। यूएनईपी ने तीनों देशों के कहीं न कहीं इस क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इस योजना पर कार्य शुरू किया है। इसके लिये कैलाश मानसरोवर क्षेत्र संरक्षण की योजना पर तीनों देशों के साथ तैयारी की जा रही है। इस योजना में भारत की सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ व बागेश्वर के क्षेत्र के अलावा नेपाल के दार्चुला और करनाली और चीन के तकलाकोट क्षेत्र को शामिल किया गया है। हाल ही में तीनों देशों के अधिकारियों की चीन के चैगई-जोशाईगु में कार्यशाला संपन्न हुई है। इस कार्यशाला में भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनोज चंद्रन ने हिस्सा लिया। लौटने पर मनोज चंद्रन ने बताया कि तीनों देश मिलकर यूएनईपी के सहयोग से इस योजना पर काम करेंगे। 13 वर्षों तक चलने वाली ये योजना 2023 में समाप्त होगी। तीनों देश अपने-अपने क्षेत्र की जरुरत के हिसाब से पर्यावरण संरक्षण, संस्कृति,व्यापार व वन्य जीव संरक्षण के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण, स्थानीय लोगो की आजीविका व पर्यटन आदि को ध्यान में रखते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेंगे। इस रिपोर्ट के साथ काठमांडू में अंतिम बैठक होगी। उसके बाद यूएनईपी के मुख्यालय नैरोबी में तीनों देशों की रिपोर्ट के आधार पर अंतिम रूप दिया जायेगा। इस योजना पर 2012 तक क्षेत्रों में काम शुरू हो जायेगा।
भारत में इस योजना के लिये जी बी पन्त पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल, नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी और चीन में सीनियर एकेडमी आफ साइंसेज नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेंगे। केंद्री स्तर पर इंटरनेशनल कमेटी आफ इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमैंट( आईसीआईएमओडी) को जिम्मेदारी दी गयी है।
भारत, नेपाल और चीन की सीमा से जुड़े कैलाश मानसरोवर क्षेत्र तीनों देशों के लिए काफी मत्वपूर्ण क्षेत्र है।भारत में बसे हिन्दुओं व तिब्बती बौद्धों की आस्था भी यहाँ से जुड़ी है। यूएनईपी ने तीनों देशों के कहीं न कहीं इस क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इस योजना पर कार्य शुरू किया है। इसके लिये कैलाश मानसरोवर क्षेत्र संरक्षण की योजना पर तीनों देशों के साथ तैयारी की जा रही है। इस योजना में भारत की सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ व बागेश्वर के क्षेत्र के अलावा नेपाल के दार्चुला और करनाली और चीन के तकलाकोट क्षेत्र को शामिल किया गया है। हाल ही में तीनों देशों के अधिकारियों की चीन के चैगई-जोशाईगु में कार्यशाला संपन्न हुई है। इस कार्यशाला में भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनोज चंद्रन ने हिस्सा लिया। लौटने पर मनोज चंद्रन ने बताया कि तीनों देश मिलकर यूएनईपी के सहयोग से इस योजना पर काम करेंगे। 13 वर्षों तक चलने वाली ये योजना 2023 में समाप्त होगी। तीनों देश अपने-अपने क्षेत्र की जरुरत के हिसाब से पर्यावरण संरक्षण, संस्कृति,व्यापार व वन्य जीव संरक्षण के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण, स्थानीय लोगो की आजीविका व पर्यटन आदि को ध्यान में रखते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेंगे। इस रिपोर्ट के साथ काठमांडू में अंतिम बैठक होगी। उसके बाद यूएनईपी के मुख्यालय नैरोबी में तीनों देशों की रिपोर्ट के आधार पर अंतिम रूप दिया जायेगा। इस योजना पर 2012 तक क्षेत्रों में काम शुरू हो जायेगा।
भारत में इस योजना के लिये जी बी पन्त पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल, नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी और चीन में सीनियर एकेडमी आफ साइंसेज नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेंगे। केंद्री स्तर पर इंटरनेशनल कमेटी आफ इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमैंट( आईसीआईएमओडी) को जिम्मेदारी दी गयी है।
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