ये कैसे प्रतिमान हुए ,
साथ बहुत लेते लोग..,
साथ देता कोई नहीं ...,
गर साथ देनें का मौका आये ,
तो शत्रुता की तलवारें उठा लेते लोग,
ये जिन्दगी किससे करें मित्रता ,
इस वेश में तो शत्रुता के शिवा कोई नहीं ...!
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ये कैसे प्रतिमान हुए ,
खलनायक भगवान हुए,
बगिया के परिजीवी पौधे ,
सबके सब धनवान हुए ,
उस घर का क्या होगा ,
जिसके मुखिया बेईमान हुए !
- महेंद्र नेह जी , कोटा .
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