मुंबई आतंकी धमाकों को रोकने में : व्यवस्थाएं स्वत: कायर

 

बृहस्पतिवार, १४ जुलाई २०११


आप तो नहीं कर पाएंगे किन्तु योद्धाओं को मत रोकिएगा


अब गंभीर चेहरे मत बनाइएगा। झूठे सांत्वना के शब्द मत उगलिएगा। सच्ची ही होगी, किन्तु श्रद्धांजलि मत दीजिएगा। पाकिस्तान का नाम मत लीजिएगा। ख़ासकर उसे सुबूत सौंपने की हल्की बात मत कहिएगा। आपात बैठकें लेते रहें, किन्तु उनमें कितनी ठोस बातें कीं, यह मत बताइएगा।
घिन आती है। घबराहट होती है। घुटन होती है।
चाहे जैसी सत्ता चलाते रहें, लेकिन हम आम लोगों को ख़ास सपने मत दिखाइएगा। आतंक के विरुद्ध युद्ध का दावा तो भूलकर भी मत कीजिएगा। मुंबई के सिलसिलेवार धमाकों पर भी भारी पड़ने वाले वाचालों को तो बिल्कुल मत बोलने दीजिएगा। गेटवे के विस्फोटों से लेकर 26/11 के हमलों में किए कागजी उपायों को मत दोहराइएगा। और सुरक्षा के लिए चिंता या कड़े कदम अब कतई मत उठाइएगा।
टीस सी उठती है। टूट से जाते हैं। टकराकर लौट आती है- हर आस।
हमलों से समूचा राष्ट्र भले ही दहल गया हो, आप हिम्मत मत दिखाइएगा। अकेले मुंबई में ही 1993 से सिलसिलेवार हमलों में अब तक 700 निर्दोषों की जान जाने के सिलसिले पर बेबसी मत जताइएगा। और सबसे बढ़कर, कार्रवाई करने का श्रेय लेने की तो कोशिश भी मत कीजिएगा। गृहमंत्री को मत हटाइएगा। मुख्यमंत्री मत बदलिएगा। शिवराज पाटिलों, अशोक चव्हाणों के उदाहरण मत सुनाइएगा।
कर्कश लगते हैं। कान फटते हैं। कुंठा बढ़ाते हैं।
और सबसे अलग मुद्दा- हमारे देश को हमारा देश ही रहने दें, विश्व शक्ति मत बनाइएगा। एटमी सौदे को ‘मान’ का प्रश्न बनाया, लेकिन आतंकी धमाकों को रोकने में जान मत लगाइएगा। पौने दो लाख करोड़ का 2जी घोटाला करवाइएगा, लेकिन आतंक की सेकंड और थर्ड जनरेशन को मत पहचानिएगा। घोटालों के टेप खुफिया तरीके से लीक होने से नाराज़ हुए थे, लेकिन देश की सुरक्षा लीक करने वाले खुफिया अमले को कुछ न कहिएगा। खेलों, अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थानों को लुटते देखिएगा किन्तु सैकड़ों मासूमों को बेसहारा-बर्बाद होते मत देखिएगा।
धधक जाते हैं। धड़कनें तेज हो जाती हैं। ‘धिक्कार है’- मन के भीतर से निकलता है।
पहले वे थे- तो कहते थे, ‘सब्र का बांध टूटने वाला है,’ अब आप हैं, कहा था, अगली बार सहन नहीं करेंगे। वे हमें तोड़ गए किन्तु सब्र न छोड़ा। आप का ‘अगली बार’ आ गया, जीवन के शिखर पर सचमुच अवसर है, सहन मत कीजिएगा।
कई व्यवस्थाएं स्वत: कायर होती हैं। इर्द-गिर्द नाकारा घेरा हो तो नेतृत्व भी अकर्मण्य हो जाता है। कायरता, वीरता को धकेल देती है। किन्तु इतनी बड़ी सेना में कुछ तो योद्धा होंगे? उन्हें ईश्वर के लिए, देश के लिए, मत रोकिएगा।

source : http://www.bhaskar.com/article

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