३१ जुलाई:सरदार उधम सिंह का शहीदी दिवस


- अरविन्द सिसोदिया 
३१ जुलाई हमारे महान शहीदों में से एक सरदार उधम सिंह का शहीदी दिवस है , उन्होंने तेरह अप्रैल 1919 को अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए 'जलियांवाला बाग नरसंहार' का बदला लिया |  नरसंहार के समय ओ.ड्वायर ही पंजाब प्रांत का गवर्नर था तथा  उसीके आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष भारतवासियों  पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थीं. जिसमें  १८०० लोग शहीद हुए थे!! उधम सिंह ने इस नरसंहार की अपनी बदला लेने की प्रतिज्ञा को लन्दन में १३ मार्च १९४० को ओ.ड्वायर को गोली मार कर हत्या कर पूरी की ! ३१ जुलाई १९४० में उन्हें फंसी दे दी  गई थी !! उन्होंने भारत माता की कोख का मान बढाया वे सदियों तक स्मरणीय रहेंगें..!! 
-------
पूरी स्टोरी जागरण के  इस लिंक से ली गई है ...
शहीद-ए-आजम ऊधम सिंह एक ऐसे महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए अपना जीवन देश के नाम कुर्बान कर दिया। लंदन में जब उन्होंने माइकल ओ. ड्वायर को गोली से उड़ाया तो पूरी दुनिया में इस भारतीय वीर की गाथा फैल गई।
तेरह अप्रैल 1919 को अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय ओ.ड्वायर ही पंजाब प्रांत का गवर्नर था। उसी के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर जाकर पूरा किया।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल का कहना है कि ऊधम सिंह एक ऐसे निर्भीक योद्धा थे जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया में भारतीयों की वीरता का परचम फहराया। सन 1901 में ऊधम सिंह की मां और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।
ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के 
जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ.ड्वायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए। जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे।
स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डाक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी। राजनीतिक कारणों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर ऊधम सिंह विचलित हो उठे और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ.ड्वायर को सबक सिखाने की शपथ ली। ऊधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुंचे।
वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे। भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओ.ड्वायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया। ऊधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओ.ड्वायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।
ओ.ड्वायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। इस मामले में 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

गणगौर : अखंड सौभाग्य का पर्व Gangaur - festival of good luck

अम्बे तू है जगदम्बे........!

अपने - अपने बूथ से, मोदीजी को पहले से 370 प्लस का मार्जिन कर दिखाएँ - अरविन्द सिसोदिया bjp rajasthan kota

हिन्दू विरोधी षड्यंत्र कांग्रेस घोषणापत्र से फिर उजागर - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

राजस्थान समेत पूरे देश में भाजपा की अभूतपूर्व लहर - प्रधानमंत्री मोदी जी

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग