Complete heroic story of lord hanuman ji ( hindi and english )
Complete heroic story of lord hanuman ji
(hindi and english)
भगवान हनुमान जी की सम्पूर्ण वीरतापूर्ण गाथा
bhagavaan hanumaan jee kee sampoorn veerataapoorn gaatha
भगवान हनुमान जी
lord hanuman ji
Lord Hanuman ji
Sri
Hanuman was born of Anjani from Pavana, the wind-god. Hanuman's body
was hard as a stone. So Anjani named him Vajranga. He is also known by
the names "Mahavir" or mightiest hero (because he exhibited several
heroic feats), Balibima and Maruti.
The world has not yet seen and will not see in future also a mighty hero like Sri Hanuman. During his life he worked wonders and exhibited superhuman feats of strength and valour. He has left behind him a name which, as long as the world lasts, will continue wielding a great influence over the minds of millions of people.
श्री हनुमान जी जैसे शक्तिशाली नायक , दुनिया में न तो कोई दूसरा हुआ है और न ही भविष्य में इसकी कल्पना की जा सकती है। उन्होंने अद्भुत शौर्य के कार्य किये तथा शक्ति और वीरता के अलौकिक क्षमता प्रदर्शित करके न्याय एवं मानवता की रक्षा की। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस तरह का है कि दूसरा इसकी कोई सानी नहीं हैं। जब तक यह संसार रहेगा, लाखों करोडों लोगों के मन पर उनका सहायता करनें का चरित्र गहरा प्रभाव डालता रहेगा। वे सहयोग की प्रेरणा के देवत्व को प्रेरित करते रहेंगे।
He
is one of the seven Chiranjivis. He was the only learned scholar who
knew the nine Vyakaranas. He learnt the Sastras from the sun-god. He was
the wisest of the wise, strongest of the strong and bravest of the
brave. He was the Sakti of Rudra. He who meditates on him and repeats
his name attains power, strength, glory, prosperity and success in life.
He is worshipped in all parts of India, particularly in Maharashtra.
हिन्दू
धर्म के सात चिरंजीवियों में से वे एक हैं। वह एक मात्र विद्वान थे जो नौ
व्याकरणों को जानते थे। उन्होंने सूर्यदेव से शास्त्रों की शिक्षा ली। वह
बुद्धिमानों में सबसे बुद्धिमान, बलवानों में सबसे शक्तिशाली और बहादुरों
में सबसे बहादुर थे। वे रुद्र के अवतार होकर उनकी शक्ति से युक्त थे। जो
उनका ध्यान करता है और उनके नाम का जप करता है, वह जीवन में शक्ति, भक्ति,
महिमा, समृद्धि और सफलता प्राप्त करता है। उनकी पूजा भारत के सभी हिस्सों
में की जाती है। खासकर महाराष्ट्र बहुत ज्यादा ।
He was born at the
most auspicious hour of the morning of the Lunar month, Chaitra, at 4
o'clock on the most blessed day, Tuesday.
उनका जन्म हिन्दू चंद्र मास चैत्र की पूर्णिमा की शुभ घड़ी में हुआ, उस दिन मंगलवार का दिन था।
He had the power to assume any form he liked; to swell his body to an enormous extent and to reduce it to the length of a thumb. His strength was superhuman. He was the terror of Rakshasas. He was well versed in the four Vedas and other sacred books. His valour, wisdom, knowledge of the scriptures and superhuman strength attracted everybody who came near him. He had extraordinary skill in warfare.
वे
अपनी पसंद का कोई भी रूप धारण करने की शक्ति रखते थे ; अपने शरीर को काफी
हद तक विस्तृत / बडा करने के लिए और इसे एक अंगूठे की लंबाई तक सूक्ष्म
करने की अलौकिक शक्ति उनमें थी। वे राक्षसों का आतंक थे । वे चार वेदों और
अन्य पवित्र पुस्तकों के ज्ञाता थे। उनके पराक्रम, ज्ञान, शास्त्रों के
ज्ञान और अलौकिक शक्ति ने उनके निकट आने वाले सभी लोगों को आकर्षित किया।
युद्ध विजय का उनके पास असाधारण कौशल था।
He
was the chosen messenger, warrior and servant of Sri Rama. He was the
votary and devotee of Lord Rama. Rama was his all in all. He lived to
serve Rama. He lived in Rama. He lived for Rama. He was a minister and
intimate friend of Sugriva.
वे श्री राम के प्रिय दूत, योद्धा और सेवक थे। वे भगवान राम के परम भक्त
थे। राम ही उनके सर्वस्व थे। वे राम की सेवा में तल्लीन रहते थे। वे राम मय
रहते थे। वे श्रीराम के लिए ही समर्पित थे। पूर्व में वे सुग्रीव के एक
मंत्री और घनिष्ठ मित्र थे।
From his very birth he exhibited extraordinary physical strength and worked many miracles.
अपने जन्म से ही उन्होंने असाधारण शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन किया और कई चमत्कार किए।
When he was a child he put the sun into his mouth. All the gods were very much troubled. They came with folded hands to the child and humbly entreated him to release the sun. The child set free the sun at their request.
जब
वे बच्चा थे तो सूर्य को अपने मुंह में डाल लिया। सभी देवता बहुत परेशान
हुए। वे हाथ जोड़कर बालक के पास आए और नम्रतापूर्वक उनसे सूर्य को मुक्त
करने की प्रार्थना की। बच्चे ने उनके अनुरोध पर सूर्य को मुक्त कर दिया।
Hanuman
saw Sri Rama for the first time in Kishkindha. Sri Rama and Lakshmana
came there in the course of their search of Sita whom Ravana had carried
away.
हनुमान जी ने श्री राम को पहली बार किष्किंधा में देखा था।
श्री राम और लक्ष्मण, सीता की खोज के दौरान वहां आए, जिन्हें रावण ले गया
था।इसके बादन से वे निरंतर श्रीराम के मित्र बन कर उनके कष्टों को दूर करने
वाले सहयोगी बन गये।
A Rishi pronounced a curse on Hanuman for
his wrong action, that he would remain unconscious of his great strength
and prowess till he met Sri Rama and served him with devotion. As soon
as Hanuman beheld Sri Rama he became conscious of his strength and
power.
In
Lanka, Hanuman exhibited his immense strength and extraordinary powers.
He destroyed the beautiful grove which was a pleasure resort of Ravana.
He uprooted many trees and killed many Rakshasas. Ravana was very much
infuriated at this. He sent Jambumali to fight against Sri Hanuman who
took the trunk of a tree and hurled it against Jambumali and killed him.
Ravana sent his son Aksha to fight against Hanuman. He was also
killed.
श्री
लंका में, हनुमान जी ने अपनी अपार और असाधारण शक्तियों का प्रदर्शन किया।
उसने सुंदर उपवन को नष्ट कर दिया, जो कि रावण का एक प्रिय आनंद स्थल था।
उन्होनें अनेक वृक्षों को उखाड़ा और अनेक राक्षसों का वध किया। इस पर रावण
बहुत क्रोधित हुआ। उन्होंने जंबूमाली को श्री हनुमान जी से लड़ने के लिए
भेजा, जिन्होंने एक पेड़ का तना लिया और उसे जंबूमाली के खिलाफ फेंक दिया और
उसे मार डाला। रावण ने अपने पुत्र अक्ष को हनुमानजी से लड़ने के लिए भेजा।
वह भी मारा गया।
Then he sent Indrajit. Hanuman threw a great tree upon Indrajit. Indrajit fell down senseless on the ground. After some time Indrajit recovered his consciousness. He threw the noose of Brahma on Hanuman. Hanuman allowed himself to be bound by the noose. He wanted to honour Brahma. Indrajit ordered the Rakshasas to carry the monkey to his father's court. Even a hundred Rakshasas were not able to lift Hanuman.
फिर
उसने इंद्रजीत को भेजा। हनुमानजी ने इंद्रजीत पर एक बड़ा पेड़ फेंका।
इंद्रजीत बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ देर बाद इंद्रजीत को होश आया।
उन्होंने हनुमानजी पर ब्रह्मा का फंदा फेंका। हनुमानजी ने स्वयं को फंदे से
बंध जाने दिया। वह ब्रह्मा जी का सम्मान करना चाहते थे। इंद्रजीत ने
राक्षसों को, वानर स्वरूप् हनुमान जी को अपने पिता के दरबार में ले जाने का
आदेश दिया। सौ राक्षस भी हनुमानजी को नहीं उठा सके।
Hanuman made
himself as light as possible. The Rakshasas then lifted him up. When
they placed him over their shoulders he suddenly became heavy and
crushed them to death. Then Hanuman asked the Rakshasas to remove the
rope. They removed the rope and Hanuman proceeded to the council hall of
Ravana.
Ravana said, "O mischievous monkey, what will you say in your defence? I will put you to death." Hanuman laughed and said, "O wicked Ravana, give back Sita to Lord Rama and ask his pardon; otherwise you will be ruined and the whole of Lanka will be destroyed." These words of Hanuman made Ravana very furious. He asked the Rakshasas to cut off the head of Hanuman.
रावण
ने कहा, “हे शरारती वानर , तुम अपने बचाव में क्या कहोगे ? मैं तुम्हें
मौत के घाट उतार दूंगा।“ हनुमान जी हँसे और कहा, “हे दुष्ट रावण, सीता को
भगवान राम को वापस दे दो और उनसे क्षमा मांगो, अन्यथा तुम बर्बाद हो जाओगे
और पूरी लंका नष्ट हो जाएगी।“ हनुमानजी के इन शब्दों ने रावण को बहुत
क्रोधित किया। उन्होंने राक्षसों से हनुमानजी को मार डालने को कहा।
Vibhishana
intervened and said, "O brother, it is not lawful and righteous to kill
a messenger. You can inflict some punishment only."
विभीषण जी ने हस्तक्षेप किया और कहा, “हे भाई, एक दूत को मारना वैध और उचित नहीं है। आप केवल कुछ दण्ड दे सकते हैं।“
Ravana
consented. He wanted to deprive Hanuman of his tail and make him ugly.
He ordered the Rakshasas to wrap Hanuman's tail with cloths soaked in
oil and ghee. Hanuman extended his tail to such length and size that all
the cloths in Lanka would not cover it. Then he reduced his tail of his
own accord. The Rakshasas wrapped the tail with cloths soaked in oil
and ghee and lighted the cloths. Hanuman expanded his body to an
enormous size and began to jump from place to place. The whole of Lanka
caught on fire. All the palatial buildings were burnt down to ashes.
रावण ने हामी भर दी। वह हनुमानजी को उनकी पूंछ से बंचित कर उन्हें कुरूप बनाना चाहता था। उन्होंने राक्षसों को हनुमान जी की पूंछ को तेल और घी में भिगोए हुए कपड़े से लपेटने का आदेश दिया। हनुमानजी ने अपनी पूंछ को इतनी लंबाई और आकार में बढ़ाया कि लंका के सभी कपड़े उसे ढक नहीं पाए। फिर उनने अपनी मर्जी से अपनी पूंछ कम की। राक्षसों ने पूंछ को तेल और घी में भिगोए हुए कपड़े से लपेट दिया और कपड़े को जला दिया। हनुमान जी ने अपने शरीर को एक विशाल आकार में फैलाया और एक स्थान से दूसरे स्थान पर कूदने लगे। पूरी लंका में आग लग लगादी। सभी महलनुमा इमारतें जल कर राख हो गईं।
Hanuman then jumped into the sea in order to cool and refresh himself. A drop of his perspiration fell into the mouth of a great fish which gave birth to a mighty hero named Makara Dhvaja. Makara Dhvaja is considered the son of Hanuman. Thereupon Hanuman went to the Asoka grove and told Sita all that he had done.
फिर हनुमानजी ने खुद को ठंडा करने और तरोताजा करने के लिए समुद्र में छलांग लगा दी। उनके पसीने की एक बूंद एक बड़ी मछली के मुंह में गिर गई , जिसने मकरध्वज नामक एक शक्तिशाली नायक को जन्म दिया। मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र माना जाता है। इसके बाद हनुमानजी अशोक वाटिका गए और माता सीता को वह सब बताया जो उन्होंने किया था।Then he crossed the sea through the air and came to the place where his army was placed. He told them all that had happened. Thereupon they all marched quickly to carry the good news to Sri Rama and Sugriva. They reached the city of Kishkindha. Hanuman gave Sita's ring to Lord Rama. Sri Rama rejoiced heartily. He praised Hanuman and embraced him saying, "O mighty hero I cannot repay your debt."
तब हनुमान जी वायु के द्वारा समुद्र पार करके उस स्थान पर आये, जहां उसकी सेना रखी गई थी। उनने उन्हें वह सब बताया जो हुआ था। इसके बाद वे सभी श्री राम और सुग्रीव को खुशखबरी सुनाने के लिए तेजी से आगे बढ़े। वे किष्किंधा शहर पहुंचे। हनुमान जी ने माता सीता की अंगूठी भगवान श्री राम को दी। श्री राम मन ही मन प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान जी की प्रशंसा की और उन्हें यह कहते हुए गले से लगा लिया, “हे पराक्रमी नायक मैं आपका कर्ज नहीं चुका सकता।“
When
all the brothers and sons of Ravana were killed, Ravana sent for his
brother Ahi Ravana who was the king of the nether world. Ahi Ravana came
to Lanka. Ravana asked his help to fight against Sri Rama and
Lakshmana.
जब
रावण के सभी भाई और पुत्र मारे गए, तो रावण ने अपने भाई अहिरावण को
बुलवाया जो कि अधोलोक का राजा था। अहिरावण लंका आया । रावण ने श्री राम और
लक्ष्मण से लड़ने के लिए उसकी मदद मांगी।
Ahi Ravana consented to
help his brother. At the dead of night he assumed the form of
Vibhishana, the brother of Ravana and an ally and devotee of Sri Rama.
He reached the place where Rama and Lakshmana were sleeping. Hanuman was
keeping watch. He thought that it was Vibhishana who was coming.
Therefore he allowed him to enter the camp. Ahi Ravana quietly took the
two brothers upon his shoulders and repaired to his kingdom.
जब
दिन निकला, तो हनुमानजी को पता चला कि श्री राम और लक्ष्मण गायब हैं।
उन्हें पता चला कि अहि रावण उन्हें अपने राज्य में ले गया था। वह तुरंत ही
पाताल लोक में चले गये । वहां उन्हे पता चला कि अहि रावण ने दोनों भाइयों
को देवी को बलि देकर मारने वाला है। हनुमानजी ने एक छोटा रूप धारण किया,
मंदिर में प्रवेश किया और देवी की छवि के ऊपर बैठ गए। छवि नीचे पृथ्वी में
चली गई। हनुमानजी ने अपना आसन ग्रहण किया। जब अहि रावण दोनों भाइयों की बलि
देने ही वाला था कि हनुमानजी अपने रूप में प्रकट हुए और उसका वध कर दिया।
तब श्रीराम जी ने हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज को सिंहासन पर बिठाया, हनुमान
जी नें दोनों भाइयों को अपने कंधों पर ले लिया और उन्हें लंका ले आये।
Hanuman killed many heroes in the great war. Dhumar, Vajro, Roshat, Ankhan and several other great warriors were killed by him.
महायुद्ध में हनुमान जी ने अनेक वीरों का वध किया था। उसके द्वारा धूमर, वज्रो, रोशत, अंखन और कई अन्य महान योद्धा मारे गए।
When
the great war was over, Vibhishana was installed on the throne of
Lanka. The time of banishment was about to be over. Sri Rama, Lakshmana,
Sita and Sri Hanuman sat in the Pushpaka Vimana or aeroplane and
reached Ayodhya in time.
जब
महान युद्ध समाप्त हुआ, तो विभीषण को लंका के सिंहासन पर बिठाया गया।
निर्वासन का समय समाप्त होने वाला था। श्री राम, लक्ष्मण, सीता और श्री
हनुमान जी पुष्पक विमान ( हवाई जहाज ) में बैठे और समय पर अयोध्या पहुंचे।
The
coronation ceremony of Lord Rama was celebrated with great eclat and
pomp. Sita gave Hanuman a necklace of pearls of rare quality. Hanuman
received it with great respect and began to break the pearls with his
teeth. Sita and other ministers who were sitting in the council hall
were quite astonished at this queer act of Hanuman.
भगवान राम का राज्याभिषेक समारोह बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। सीता ने हनुमान जी को दुर्लभ गुण के मोतियों का हार दिया। हनुमानजी
ने इसे बड़े सम्मान के साथ प्राप्त किया और अपने दांतों से मोतियों को
तोड़ना शुरू कर दिया। सीता और अन्य मंत्री जो परिषद हॉल में बैठे थे,
हनुमानजी के इस विचित्र कृत्य पर काफी चकित थे।
Sita
asked Hanuman, "O mighty hero, what are you doing? Why do you break the
pearls?" Sri Hanuman said, "O venerable mother, it is the most valuable
necklace indeed as it has come to me through thy holy hand. But I want
to find out whether any of the pearls contain my beloved Lord Rama. I do
not keep a thing devoid of him. I do not find him in any of the
pearls." Sita asked, "Tell me whether you keep Lord Rama within you."
Sri Hanuman immediately tore open his heart and showed it to Sri Rama,
Sita and others. They all found Lord Rama accompanied by Sita in the
heart of Sri Hanuman.
अन्ततः माता सीता ने हनुमान जी से पूछा, “हे
पराक्रमी नायक, तुम क्या कर रहे हो? तुम दुलर्भ मोती क्यों तोड़ रहे हो ?“
श्री हनुमान जी ने कहा, “हे आदरणीय मां, यह वास्तव में सबसे मूल्यवान हार
है , क्योंकि यह आपके पवित्र हाथ से मेरे पास आया है। लेकिन मैं यह जानना
चाहता हूं कि किसी मोती में मेरे प्यारे भगवान श्रीराम हैं या नहीं। मैं वह
चीज कभी नहीं रखता जो उनसे रहित हो। मुझे इनमें से किसी भी मोती में भगवान
श्रीराम एवं माता सीता नहीं मिले। मेरे लिये ये व्यर्थ है।“ तब माता सीता
ने पूछा, “मुझे बताओ कि क्या तुम भगवान राम को अपने हदय / भीतर भी रखते
हो।“ तब श्री हनुमानजी ने तुरंत अपना हदय चीर दिया और उसमें भगवान श्री राम
एवं माता सीता के दर्शन सभी मौजूद अन्य लोगों को करवाया । उन सभी ने श्री
हनुमान जी के हृदय में आष्चर्यजनक रूप से माता सीता के साथ भगवान श्रीराम
को पाया।
Lord Rama rejoiced heartily. He came down the throne and embraced Hanuman and blessed him. Sri Hanuman passed the rest of his life in the company of the Lord.
भगवान
राम मन ही मन प्रसन्न हुए। वे सिंहासन पर उतरे और हनुमानजी जी को गले लगा
कर आशीर्वाद दिया। तबसे श्री हनुमानजी ने अपना शेष जीवन भगवान श्रीराम की
संगति में ही गुजारा।
When
Sri Rama ascended to his supreme abode, Sri Hanuman also wished to
follow him. But the Lord asked him to remain in this world as his
representative and attend all the assemblies of men where discourses on
his deeds were held and heard, and help his devotees in cultivating
devotion.
जब
श्री राम अपने परमधाम में गए, तो श्री हनुमान जी ने भी उनका अनुसरण करने
की इच्छा की। लेकिन भगवान ने उन्हें इस दुनिया में अपने प्रतिनिधि के रूप
में रहने और धर्म की सभी सभाओं में भाग लेने के लिए कहा, जहां भी भगवान
श्रीराम और हनुमान जी महाराज पर प्रवचन होते हैं और सुने जाते हैं, वे वहां
किसी न किसी स्वरूप में मौजूद रहते हैं। जो उनकी भक्ति की करता है, वे उस
भक्तों की मदद अवश्य करते है।
He is a Chiranjeevi. He is everywhere. He who has eyes and devotion beholds him and receives his blessing.
वह चिरंजीवी हैं । वह हर जगह है । जिसके पास हनुमान जी की भक्ति है, वे उसे देखते है और उसको आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
Hanuman ranks first amongst the heroes of the world. His heroic deeds, wonderful exploits and marvellous feats of strength and bravery cannot be adequately described. His sense of duty was extremely laudable. He had great skill in all military tactics and methods of warfare. His crossing the sea of thirty miles in one leap and lifting the crest of a mountain in the palm of the hand, his carrying of the brothers on his shoulders from the nether world to Lanka are all astounding, superhuman feats which baffle human description.
विश्व के वीरों में हनुमानजी का प्रथम स्थान है। उनके वीर कर्मों, अद्भुत कारनामों और ताकत और बहादुरी के अद्भुत कारनामों का पर्याप्त रूप से वर्णन नहीं किया जा सकता है। उनकी सहयोग की भावना अत्यंत प्रशंसनीय है। उनके पास सभी सैन्य रणनीति और युद्ध के तरीकों में महान कौशल है। एक छलांग में तीस मील के समुद्र को पार करना और हाथ की हथेली में एक पहाड़ को उठाना, भाइयों को अपने कंधों पर नीचे की दुनिया से लंका तक ले जाना, सभी आश्चर्यजनक, अलौकिक करतब हैं जो मानव विवरण को चकित करते हैं। वे उनके कर्ता हैं।
He
conquered innumerable difficulties which cropped up in his way through
his courage, patience and undaunted spirit. He made untiring search to
find Sita. At the time of danger he exhibited marvellous courage and
presence of mind. He was steady and firm in his actions. He was always
successful in his attempts. Failure was not known to him. He gave up his
life in the service of the Lord. He had not a tinge of selfishness in
his actions. All his actions were offerings unto Lord Rama. No one
reached the peak in Dasya Bhava like Sri Hanuman. He was a rare jewel
among devotees, the supreme head among Pundits, the king among celibates
and the commander among heroes and warriors.
उन्होंने अपने साहस, धैर्य और अदम्य भावना के माध्यम से उनके रास्ते में आने वाली असंख्य कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की। उन्होंने माता सीता को खोजने के लिए अथक खोज की। खतरे के समय उन्होंने अद्भुत साहस और दिमाग की उपस्थिति का प्रदर्शन किया। वे अपने कार्यों में परिपूर्ण और दृढ़ थे। वे अपने प्रयासों में हमेशा सफल रहे। उन्हे असफलता कभी छू भी नहीं सकी। उनने प्रभु की सेवा में अपना जीवन त्याग दिया। उनके इन महान कार्यों में स्वार्थ कहीं भी नहीं था। उनके सभी कार्य भगवान राम के प्रसाद थे। सेवा भाव में श्री हनुमान जी के समान शिखर पर कोई नहीं पहुंचा। वह भक्तों में एक दुर्लभ रत्न, पंडितों में सर्वोच्च प्रमुख, ब्रह्मचारियों में राजा और वीरों और योद्धाओं में सेनापति थे।
जहां हनुमानजी हैं, वहां श्री राम और श्री सीता हैं और जहां श्री राम और माता सीता की स्तुति की जाती है और उनके चरित्र का पाठ किया जाता है, वहीं हनुमान जी होते हैं।
भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी
की जय। महिमा, श्री हनुमानजी की महिमा, पराक्रमी नायक, निडर योद्धा और
विद्वान ब्रह्मचारी, जिनके समान दुनिया ने अभी तक कोई नहीं हुआ और न ही आने
वाले समय में होगा ।
जय श्री हनुमान जी की
अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के कारण व्याकरण सम्बंधी गलतियों को सुधारा जा रहा है। आशा आप हमें असुविधा के लिये क्षमा करनें की कृपा करेंगे।
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श्री हनुमान जी का जन्म पवन-देवता, की कृपा से माता अंजनी की कोख से हुआ था। जन्म के समय हनुमान का शरीर वज्र अर्थात पत्थर के समान कठोर था। इसलिए अंजनी ने उसका नाम वज्रंग अर्थात बजरंग रखा, जिससे वे बजरंगबली कहलाये। उन्हें “महावीर“ या सबसे शक्तिशाली नायक के नाम से भी जाना जाता है ( क्योंकि उन्होंने वीरतापूर्ण के उन कारनामों का प्रदर्शन किया जिन्हे सामान्य तौर पर कोई कर नहीं सकता । ), बलीबिमा और मारुति भी उनके प्रसिद्ध नाम हैं।
श्री हनुमान जी जैसे शक्तिशाली नायक , दुनिया में न तो कोई दूसरा हुआ है और न ही भविष्य में इसकी कल्पना की जा सकती है। उन्होंने अद्भुत शौर्य के कार्य किये तथा शक्ति और वीरता के अलौकिक क्षमता प्रदर्शित करके न्याय एवं मानवता की रक्षा की। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस तरह का है कि दूसरा इसकी कोई सानी नहीं हैं। जब तक यह संसार रहेगा, लाखों करोडों लोगों के मन पर उनका सहायता करनें का चरित्र गहरा प्रभाव डालता रहेगा। वे सहयोग की प्रेरणा के देवत्व को प्रेरित करते रहेंगे।
हिन्दू धर्म के सात चिरंजीवियों में से वे एक हैं। वह एक मात्र विद्वान थे जो नौ व्याकरणों को जानते थे। उन्होंने सूर्यदेव से शास्त्रों की शिक्षा ली। वह बुद्धिमानों में सबसे बुद्धिमान, बलवानों में सबसे शक्तिशाली और बहादुरों में सबसे बहादुर थे। वे रुद्र के अवतार होकर उनकी शक्ति से युक्त थे। जो उनका ध्यान करता है और उनके नाम का जप करता है, वह जीवन में शक्ति, भक्ति, महिमा, समृद्धि और सफलता प्राप्त करता है। उनकी पूजा भारत के सभी हिस्सों में की जाती है। खासकर महाराष्ट्र बहुत ज्यादा ।
उनका जन्म हिन्दू चंद्र मास चैत्र की पूर्णिमा की शुभ घड़ी में हुआ, उस दिन मंगलवार का दिन था।
वे अपनी पसंद का कोई भी रूप धारण करने की शक्ति रखते थे ; अपने शरीर को काफी हद तक विस्तृत / बडा करने के लिए और इसे एक अंगूठे की लंबाई तक सूक्ष्म करने की अलौकिक शक्ति उनमें थी। वे राक्षसों का आतंक थे । वे चार वेदों और अन्य पवित्र पुस्तकों के ज्ञाता थे। उनके पराक्रम, ज्ञान, शास्त्रों के ज्ञान और अलौकिक शक्ति ने उनके निकट आने वाले सभी लोगों को आकर्षित किया। युद्ध विजय का उनके पास असाधारण कौशल था।
वे श्री राम के प्रिय दूत, योद्धा और सेवक थे। वे भगवान राम के परम भक्त थे। राम ही उनके सर्वस्व थे। वे राम की सेवा में तल्लीन रहते थे। वे राम मय रहते थे। वे श्रीराम के लिए ही समर्पित थे। पूर्व में वे सुग्रीव के एक मंत्री और घनिष्ठ मित्र थे।
अपने जन्म से ही उन्होंने असाधारण शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन किया और कई चमत्कार किए।
जब वे बच्चा थे तो सूर्य को अपने मुंह में डाल लिया। सभी देवता बहुत परेशान हुए। वे हाथ जोड़कर बालक के पास आए और नम्रतापूर्वक उनसे सूर्य को मुक्त करने की प्रार्थना की। बच्चे ने उनके अनुरोध पर सूर्य को मुक्त कर दिया।
हनुमान जी ने श्री राम को पहली बार किष्किंधा में देखा था। श्री राम और लक्ष्मण, सीता की खोज के दौरान वहां आए, जिन्हें रावण ले गया था।इसके बादन से वे निरंतर श्रीराम के मित्र बन कर उनके कष्टों को दूर करने वाले सहयोगी बन गये।
एक ऋषि ने हनुमान जी को उनके चंचल स्वभाव से परेशान होकर श्राप दिया, कि वह अपनी महान शक्ति और पराक्रम को तब तक भूल जायेंगे, जब तक कि उन्हे कोई लोकहित में याद न दिलाये। जैसे ही हनुमान ने श्री राम को देखा, वे अपनी भक्ति और शक्ति के प्रति सचेत हो गए। जामबंत जी के स्मरण करानें पर उन्होनें सशरीर उड़ कर सागर पार किया और श्रीलंका में माता सीता को खोज लिया था।
श्री लंका में, हनुमान जी ने अपनी अपार और असाधारण शक्तियों का प्रदर्शन किया। उसने सुंदर उपवन को नष्ट कर दिया, जो कि रावण का एक प्रिय आनंद स्थल था। उन्होनें अनेक वृक्षों को उखाड़ा और अनेक राक्षसों का वध किया। इस पर रावण बहुत क्रोधित हुआ। उन्होंने जंबूमाली को श्री हनुमान जी से लड़ने के लिए भेजा, जिन्होंने एक पेड़ का तना लिया और उसे जंबूमाली के खिलाफ फेंक दिया और उसे मार डाला। रावण ने अपने पुत्र अक्ष को हनुमानजी से लड़ने के लिए भेजा। वह भी मारा गया।
फिर उसने इंद्रजीत को भेजा। हनुमानजी ने इंद्रजीत पर एक बड़ा पेड़ फेंका। इंद्रजीत बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ देर बाद इंद्रजीत को होश आया। उन्होंने हनुमानजी पर ब्रह्मा का फंदा फेंका। हनुमानजी ने स्वयं को फंदे से बंध जाने दिया। वह ब्रह्मा जी का सम्मान करना चाहते थे। इंद्रजीत ने राक्षसों को, वानर स्वरूप् हनुमान जी को अपने पिता के दरबार में ले जाने का आदेश दिया। सौ राक्षस भी हनुमानजी को नहीं उठा सके।
हनुमान जी ने स्वयं को यथा संभव हल्का किया। फिर राक्षसों ने उसे उठा लिया। जब उन्होंने उसे अपने कंधों पर रखा तो वह अचानक भारी हो गया और उन्हें कुचल कर मार डाला। तब हनुमानजी ने राक्षसों से रस्सी हटाने को कहा। उन्होंने रस्सी को हटा दिया और हनुमानजी रावण के परिषद हॉल में चले गए।
रावण ने कहा, “हे शरारती वानर , तुम अपने बचाव में क्या कहोगे ? मैं तुम्हें मौत के घाट उतार दूंगा।“ हनुमान जी हँसे और कहा, “हे दुष्ट रावण, सीता को भगवान राम को वापस दे दो और उनसे क्षमा मांगो, अन्यथा तुम बर्बाद हो जाओगे और पूरी लंका नष्ट हो जाएगी।“ हनुमानजी के इन शब्दों ने रावण को बहुत क्रोधित किया। उन्होंने राक्षसों से हनुमानजी को मार डालने को कहा।
विभीषण जी ने हस्तक्षेप किया और कहा, “हे भाई, एक दूत को मारना वैध और उचित नहीं है। आप केवल कुछ दण्ड दे सकते हैं।“
रावण ने हामी भर दी। वह हनुमानजी को उनकी पूंछ से बंचित कर उन्हें कुरूप बनाना चाहता था। उन्होंने राक्षसों को हनुमान जी की पूंछ को तेल और घी में भिगोए हुए कपड़े से लपेटने का आदेश दिया। हनुमानजी ने अपनी पूंछ को इतनी लंबाई और आकार में बढ़ाया कि लंका के सभी कपड़े उसे ढक नहीं पाए। फिर उनने अपनी मर्जी से अपनी पूंछ कम की। राक्षसों ने पूंछ को तेल और घी में भिगोए हुए कपड़े से लपेट दिया और कपड़े को जला दिया। हनुमान जी ने अपने शरीर को एक विशाल आकार में फैलाया और एक स्थान से दूसरे स्थान पर कूदने लगे। पूरी लंका में आग लग लगादी। सभी महलनुमा इमारतें जल कर राख हो गईं।
फिर हनुमानजी ने खुद को ठंडा करने और तरोताजा करने के लिए समुद्र में छलांग लगा दी। उनके पसीने की एक बूंद एक बड़ी मछली के मुंह में गिर गई , जिसने मकरध्वज नामक एक शक्तिशाली नायक को जन्म दिया। मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र माना जाता है। इसके बाद हनुमानजी अशोक वाटिका गए और माता सीता को वह सब बताया जो उन्होंने किया था।
तब वह वायु के द्वारा समुद्र पार करके उस स्थान पर आये, जहां उसकी सेना रखी गई थी। उनने उन्हें वह सब बताया जो हुआ था। इसके बाद वे सभी श्री राम और सुग्रीव को खुशखबरी सुनाने के लिए तेजी से आगे बढ़े। वे किष्किंधा शहर पहुंचे। हनुमान जी ने माता सीता की अंगूठी भगवान श्री राम को दी। श्री राम मन ही मन प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान जी की प्रशंसा की और उन्हें यह कहते हुए गले से लगा लिया, “हे पराक्रमी नायक मैं आपका कर्ज नहीं चुका सकता।“
जब रावण के सभी भाई और पुत्र मारे गए, तो रावण ने अपने भाई अहिरावण को बुलवाया जो कि अधोलोक का राजा था। अहिरावण लंका आया। रावण ने श्री राम और लक्ष्मण से लड़ने के लिए उसकी मदद मांगी।
अहिरावण अपने भाई की मदद करने के लिए तैयार हो गया। रात के अंत में उन्होंने रावण के भाई और श्री राम के सहयोगी भक्त विभीषण का रूप धारण किया। वह उस स्थान पर पहुँचे जहाँ राम और लक्ष्मण सो रहे थे। हनुमानजी देख रहे थे। उसने सोचा कि विभीषण आ रहे है। इसलिए उनने उसे शिविर में प्रवेश करने की अनुमति दी। अहिरावण ने चुपचाप दोनों भाइयों को अपने कंधों पर ले लिया और अपने राज्य में ले गया।
जब दिन निकला, तो हनुमानजी को पता चला कि श्री राम और लक्ष्मण गायब हैं। उन्हें पता चला कि अहि रावण उन्हें अपने राज्य में ले गया था। वह तुरंत ही पाताल लोक में चले गये । वहां उन्हे पता चला कि अहि रावण ने दोनों भाइयों को देवी को बलि देकर मारने वाला है। हनुमानजी ने एक छोटा रूप धारण किया, मंदिर में प्रवेश किया और देवी की छवि के ऊपर बैठ गए। छवि नीचे पृथ्वी में चली गई। हनुमानजी ने अपना आसन ग्रहण किया। जब अहि रावण दोनों भाइयों की बलि देने ही वाला था कि हनुमानजी अपने रूप में प्रकट हुए और उसका वध कर दिया। तब श्रीराम जी ने हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज को सिंहासन पर बिठाया, हनुमान जी नें दोनों भाइयों को अपने कंधों पर ले लिया और उन्हें लंका ले आये।
महायुद्ध में हनुमान जी ने अनेक वीरों का वध किया था। उसके द्वारा धूमर, वज्रो, रोशत, अंखन और कई अन्य महान योद्धा मारे गए।
जब महान युद्ध समाप्त हुआ, तो विभीषण को लंका के सिंहासन पर बिठाया गया। निर्वासन का समय समाप्त होने वाला था। श्री राम, लक्ष्मण, सीता और श्री हनुमान जी पुष्पक विमान ( हवाई जहाज ) में बैठे और समय पर अयोध्या पहुंचे।
भगवान राम का राज्याभिषेक समारोह बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। माता सीता ने हनुमान जी को दुर्लभ गुण के मोतियों का हार दिया। हनुमानजी ने इसे बड़े सम्मान के साथ प्राप्त किया और अपने दांतों से मोतियों को तोड़ना शुरू कर दिया। सीता जी और अन्य मंत्री जो परिषद हॉल में बैठे थे, हनुमानजी के इस विचित्र कृत्य पर काफी विचलित हुये व चकित थे।
अन्ततः माता सीता ने हनुमान जी से पूछा, “हे पराक्रमी नायक, तुम क्या कर रहे हो? तुम दुलर्भ मोती क्यों तोड़ रहे हो ?“ श्री हनुमान जी ने कहा, “हे आदरणीय मां, यह वास्तव में सबसे मूल्यवान हार है , क्योंकि यह आपके पवित्र हाथ से मेरे पास आया है। लेकिन मैं यह जानना चाहता हूं कि किसी मोती में मेरे प्यारे भगवान श्रीराम हैं या नहीं। मैं वह चीज कभी नहीं रखता जो उनसे रहित हो। मुझे इनमें से किसी भी मोती में भगवान श्रीराम एवं माता सीता नहीं मिले। मेरे लिये ये व्यर्थ है।“ तब माता सीता ने पूछा, “मुझे बताओ कि क्या तुम भगवान राम को अपने हदय / भीतर भी रखते हो।“ तब श्री हनुमानजी ने तुरंत अपना हदय चीर दिया और उसमें भगवान श्री राम एवं माता सीता के दर्शन सभी मौजूद अन्य लोगों को करवाया । उन सभी ने श्री हनुमान जी के हृदय में आष्चर्यजनक रूप से माता सीता के साथ भगवान श्रीराम को पाया।
भगवान राम मन ही मन प्रसन्न हुए। वे सिंहासन पर उतरे और हनुमानजी जी को गले लगा कर आशीर्वाद दिया। तबसे श्री हनुमानजी ने अपना शेष जीवन भगवान श्रीराम की संगति में ही गुजारा।
जब श्री राम अपने परमधाम में गए, तो श्री हनुमान जी ने भी उनका अनुसरण करने की इच्छा की। लेकिन भगवान ने उन्हें इस दुनिया में अपने प्रतिनिधि के रूप में रहने और धर्म की सभी सभाओं में भाग लेने के लिए कहा, जहां भी भगवान श्रीराम और हनुमान जी महाराज पर प्रवचन होते हैं और सुने जाते हैं, वे वहां किसी न किसी स्वरूप में मौजूद रहते हैं। जो उनकी भक्ति की करता है, वे उस भक्तों की मदद अवश्य करते है।
वह चिरंजीवी हैं। वह हर जगह है। जिसके पास हनुमान जी की भक्ति है, वे उसे देखते है और उसको आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
विश्व के वीरों में हनुमानजी का प्रथम स्थान है। उनके वीर कर्मों, अद्भुत कारनामों और ताकत और बहादुरी के अद्भुत कारनामों का पर्याप्त रूप से वर्णन नहीं किया जा सकता है। उनकी सहयोग की भावना अत्यंत प्रशंसनीय है। उनके पास सभी सैन्य रणनीति और युद्ध के तरीकों में महान कौशल है। एक छलांग में तीस मील के समुद्र को पार करना और हाथ की हथेली में एक पहाड़ को उठाना, भाइयों को अपने कंधों पर नीचे की दुनिया से लंका तक ले जाना, सभी आश्चर्यजनक, अलौकिक करतब हैं जो मानव विवरण को चकित करते हैं। वे उनके कर्ता हैं।
उन्होंने अपने साहस, धैर्य और अदम्य भावना के माध्यम से उनके रास्ते में आने वाली असंख्य कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की। उन्होंने माता सीता को खोजने के लिए अथक खोज की। खतरे के समय उन्होंने अद्भुत साहस और दिमाग की उपस्थिति का प्रदर्शन किया। वे अपने कार्यों में परिपूर्ण और दृढ़ थे। वे अपने प्रयासों में हमेशा सफल रहे। उन्हे असफलता कभी छू भी नहीं सकी। उनने प्रभु की सेवा में अपना जीवन त्याग दिया। उनके इन महान कार्यों में स्वार्थ कहीं भी नहीं था। उनके सभी कार्य भगवान राम के प्रसाद थे। सेवा भाव में श्री हनुमान जी के समान शिखर पर कोई नहीं पहुंचा। वह भक्तों में एक दुर्लभ रत्न, पंडितों में सर्वोच्च प्रमुख, ब्रह्मचारियों में राजा और वीरों और योद्धाओं में सेनापति थे।
हे पराक्रमी हनुमानजी, श्री राम जी को समर्पित सेवक, ब्रह्मचारियों के राजा, अंजना का आनंद, हमें ब्रह्मचर्य के रहस्य और मन, वचन और कर्म में पवित्रता प्राप्त करने के तरीके बताते हैं। उनका जीवन चरित्र प्रेरणा देता है कि भारत में ऐसे वीर और ब्रह्मचारी और हों !
जहां हनुमानजी हैं, वहां श्री राम और श्री सीता हैं और जहां श्री राम और माता सीता की स्तुति की जाती है और उनके चरित्र का पाठ किया जाता है, वहीं हनुमान होते हैं।
भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी की जय। महिमा, श्री हनुमानजी की महिमा, पराक्रमी नायक, निडर योद्धा और विद्वान ब्रह्मचारी, जिनके समान दुनिया ने अभी तक कोई नहीं हुआ और न ही आने वाले समय में होगा ।
जय श्री हनुमान जी की
अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के कारण व्याकरण सम्बंधी गलतियों को सुधारा जा रहा है। आशा आप हमें असुविधा के लिये क्षमा करनें की कृपा करेंगे। कोई सुझाव होतो अवश्य टिप्पणी के माध्यम से भेजें।
जय श्री हनुमान जी की
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