दुनिया भर की धार्मिक संस्कृति में हिन्दू धर्म की झलक World Sanatan Dharma

 
Glimpses of Hinduism in religious culture around the world
दुनिया भर की धार्मिक संस्कृति में हिन्दू धर्म की झलक
duniya bhar kee dhaarmik sanskrti mein hindoo dharm kee jhalak




सनातन धर्म के 90 हजार से भी ज्यादा वर्षों के लिखित इतिहास में लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व नए सिरे से वैदिक धर्म की स्थापना हुई और नए सिरे से सभ्यता का विकास हुआ । विकास के इस प्रारंभिक क्रम में हिमयुग की समाप्ति के बाद घटनाक्रम तेजी से बदला । वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं - देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, रुद्र, मरुदगण, किन्नर, नाग आदि । 
 
In the written history of more than 90 thousand years of Sanatan Dharma, about 20 thousand years ago, a new Vedic religion was established and a new civilization developed. In this early course of development, events changed rapidly after the end of the Ice Age. On reading the Vedas and Mahabharata, we come to know that in the early times there were mainly these castes - Devas, Daityas, Demons, Rakshasas, Yakshas, ​​Gandharvas, Bhallas, Vasus, Apsaras, Rudras, Marudgans, Kinnars, Nagas etc.
 
प्रारंभ में ब्रह्मा और उनके पुत्रों ने धरती पर विज्ञान, धर्म, संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। इस दौर में शिव और विष्णु सत्ता, धर्म और इतिहास के केंद्र में होते थे। देवता और असुरों का काल अनुमानित 20 हजार ईसा पूर्व से लगभग 7 हजार ईसा पूर्व तक चला। फिर धरती के जल में डूब जाने के बाद ययाति और वैवस्वत मनु के काल और कुल की शुरुआत हुई। दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का कनेक्शन था। संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी। 
 
Initially Brahma and his sons spread science, religion, culture and civilization on earth. During this period Shiva and Vishnu were at the center of power, religion and history. The period of Devas and Asuras lasted from an estimated 20 thousand BC to about 7 thousand BC. Then the period and clan of Yayati and Vaivasvata Manu began after the earth was submerged in water. Hinduism had connections with ancient civilizations around the world.Hindu Vedic religion had established a new form of religious ideology in different areas to make people civilized all over the earth.

आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी, यजीदी, रोमा, पारसी, बौद्ध धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो। अफगानिस्तान पहले था हिन्दू राष्ट्र भातीय लोगों ने इस दौर में विश्‍वभर में विशालकाय मंदिर, भवन और नगरों का निर्माण कार्य किया किया था। हिन्दू धर्म ने अपनी जड़ें यूरोप से लेकर एशिया तक फैला रखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। आज हम आपको विश्व की ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी हिन्दू धर्म अपने चरम पर हुआ करता था। 1.सिन्धु-सरस्वती घाटी की हड़प्पा एवं मोहनजोदोड़ो सभ्यता (5000-3500 ईसा पूर्व) : हिमालय से निकलकर सिन्धु नदी अरब के समुद्र में गिर जाती है। प्राचीनकाल में इस नदी के आसपास फैली सभ्यता को ही सिन्धु घाटी की सभ्यता कहते हैं। इस नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष मिले। इसके बाद चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा (राजस्थान), सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा (गुजरात), अलीमुराद (सिंध प्रांत), कच्छ (गुजरात), रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि जगहों पर खुदाई करके प्राचीनकालीन कई अवशेष इकट्ठे किए गए। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है। 

हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो सरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था। इस दौरान हड़प्पा से कई ऐसी ही चीजें मिली हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है। पुरोहित की एक मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग। 1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एमएस वत्स को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है। शिवजी को पशुपतिनाथ भी कहते हैं। बाली का प्राचीन मंदिर : इंडोनेशिया कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था, लेकिन इस्लामिक उत्थान के बाद यह राष्ट्र आज मुस्लिम राष्ट्र है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां आज इंडोनेशियन इस्लामिक यूनिवर्सिटी है वहां कभी हिन्दू मंदिर हुआ करता था, जिसमें शिव और गणेश की पूजा की जाती थी। यहां से एक ऐतिहासिक शिवलिंग भी मिला है। इंडोनेशिया के एक द्वीप है बाली जो हिन्दू बहुल क्षेत्र है। यहां के हिन्दुओं ने अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ा था। बाली में एक इमारत के निर्माण की खुदाई के दौरान मजदूरों को मंदिर के कुछ अंश मिले जिसके बाद यह खबर बाली के ऐतिहासिक संरक्षण विभाग को दी गई जिसने खुदाई करने पर एक विशाल हिन्दू इमारत को पाया, जो कभी हिन्दू धर्म का केंद्र था। यह विशालकाय मंदिर आज बाली द्वीप की पहचान बन गया है। इंडोनेशिया के द्वीप बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं। शंकर पुत्र सुकेश के तीन पुत्र थे- माली, सुमाली और माल्यवान। माली, सुमाली और माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल (सुमेरु) पर्वत पर बसाई गई थी लंकापुरी। माली को मारकर देवों और यक्षों ने कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के उकसाने पर रावण ने अपनी सौतेली माता इलविल्ला के पुत्र कुबेर से युद्ध की ठानी थी और लंका को फिर से राक्षसों के अधीन लेने की सोची। रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यव द्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था, परंतु पिता ने लंका के लिए रावण को दिलासा दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया। आज के युग अनुसार रावण का राज्य विस्तार, इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका पर रावण का राज था। वेटिकन शहर का शिवलिंग : कुछ लोग कहते हैं कि वेटिकन तो वाटिका का बिगड़ा रूप है। वैदिक काल में यह स्थान भी हिन्दू धर्म का केंद्र हुआ करता था। यहां पुरातात्विक खुदाई के दौरान शिवलिंग प्राप्त हुआ है जो रोम के ग्रेगोरियन इट्रस्केन संग्रहालय (Gregorian Etruscan Museum) में रखा गया है। यह भी कहा जाता है कि वेटिकन सिटी का मूल स्वरूप शिवलिंग के समान ही है। इतिहासकार पी.एन.ओक ने अपने शोध में यह दावा किया है कि धर्म चाहे कोई भी हो उसका उद्भव सनातन धर्म यानि की हिन्दू धर्म में से ही हुआ है। अपने दावो को आधार देने के लिए पी.एन.ओक ने कई उदाहरण भी पेश किए हैं जिनमें से रोम का वेटिकन शहर प्रमुख है। ओक का कहना है कि वेटिकन शब्द की उत्पत्ति हिन्दी के ‘वाटिका’ शब्द से हुई है। इतना ही नहीं उनका कहना है कि ईसाई धर्म यानि ‘क्रिश्चैनिटी’ को भी सनातन धर्म की ‘कृष्ण नीति’ और अब्राहम को ‘ब्रह्मा’ से ही लिया गया है। पी.एन.ओक का कहना है कि इस्लाम और ईसाई, दोनों ही धर्म वैदिक मान्यताओं के विरुपण से जन्में हैं। वेटिकन शहर की संरचना और शिवलिंग की आकृति में एक गजब की समानता है। इस तस्वीर को देखकर आप समझ सकते हैं कि हिन्दुओं के पवित्र प्रतीक शिवलिंग और वेटिकन शहर के प्रांगण की रचना में अचंभित कर देने वाली समानता है। शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंडर) और एक बिन्दु होती हैं, ये रेखाएं शिवलिंग पर भी समान रूप से अंकित होती हैं। ध्यान से देखने पर आपको समझ आएगा कि जिन तीन रेखाओं और एक बिन्दू का जिक्र यहां कर रहे हैं वह पिआज़ा सेन पिएट्रो के रूप में वेटिकन शहर के डिजाइन में समाहित है। 

कंबोडिया का हिन्दू सम्राज्य : विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था। पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिंदू रहा और फिर बौद्ध हो गया। सदियों के काल खंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं ही, लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो और फिर अंगकोर वाट की बात ही निराली है। ये दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है। विश्व विरासत में शामिल अंगकोर वाट मंदिर-समूह को अंगकोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चौदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरूप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रांसिसी पुरातत्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मंदिर जिस रूप में है, उसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहाँ संरक्षण का काम किया था। अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियाँ कहती हैं। यह मंदिर लगभग 1 स्क्वेयर मील क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां की दीवारों पर पर छपे चित्र और उकेरी गई मूर्तियां हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास की कहानी को बयां करती हैं। सीताहरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अंगकोर वाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अंगकोर पार्क कहा जाता है। सियाम रीप क्षेत्र अपने आगोश में सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर समेटे हुए है। अफ्रीकी में हिन्दू : भगवान शिव कहां नहीं हैं? कहते हैं कण-कण में हैं शिव, कंकर-कंकर में हैं भगवान शंकर। कैलाश में शिव और काशी में भी शिव और अब अफ्रीका में शिव। साउथ अफ्रीका में भी शिव की मूर्ति का पाया जाना इस बात का सबूत है कि आज से 6 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीकी लोग भी हिंदू धर्म का पालन करते थे। साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6 हजार वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा। हाल ही में दुनिया की सबसे ऊंची शिवशक्ति की प्रतिमा का अनावरण दक्षिण अफ्रीका में किया गया। इस प्रतिमा में भगवान शिव और उनकी शक्ति अर्धांगिनी पार्वती भी हैं। बेनोनी शहर के एकटोनविले में यह प्रतिमा स्थापित की गई। हिन्दुओं के आराध्य शिव की प्रतिमा में आधी आकृति शिव और आधी आकृति मां शक्ति की है। 10 कलाकारों ने 10 महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को तैयार किया है। ये कलाकार भारत से आए थे। इस 20 मीटर ऊंची प्रतिमा को बनाने में 90 टन के करीब स्टील का इस्तेमाल हुआ है। चीन में हिन्दू : चीन के इतिहासकारों के अनुसार चीन के समुद्र से लगे औद्योगिक शहर च्वानजो में और उसके चारों ओर का क्षे‍त्र कभी हिन्दुओं का तीर्थस्थल था। वहां 1,000 वर्ष पूर्व के निर्मित हिन्दू मंदिरों के खंडहर पाए गए हैं। इसका सबूत चीन के समुद्री संग्रहालय में रखी प्राचीन मूर्तियां हैं। वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं है, लेकिन 1,000 वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फुच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं। 

यजीदी हिन्दू है? : इस्लामिक आतंकवाद के चलते यजीदी अब खत्म हो रही मनुष्य की विशिष्ट प्रजाति में शामिल हो चुके हैं। यजीदी धर्म भी विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। इस कुछ इतिहासकार हिन्दू धर्म का ही एक समाज मानते हैं। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। यजीदी मंदिर की इस तस्वीर से यह सिद्ध हो जाएगा कि ये सभी हिन्दू हैं। शोध से पता चलता है कि यजीदियों का यजीद या ईरानी शहर यज्द से कोई लेना-देना नहीं। उनका संबंध फारसी भाषा के 'इजीद' से है जिसके मायने फरिश्ता है। इजीदिस के मायने हैं 'देवता के उपासक' और यजीदी भी खुद को यही कहते हैं। यजीदियों की कई मान्यताएं हिन्दू और ईसाइयत से भी मिलती-जुलती हैं। ईसाइयत के आरंभिक दिनों में मयूर पक्षी को अमरत्व का प्रतीक माना जाता था। बाद में इसे हटा दिया गया। 'यजीदी' का शाब्दिक अर्थ 'ईश्वर के पूजक' होता है। ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं। यजीदी अपने ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं। यजदान से 7 महान आत्माएं निकलती हैं जिनमें मयूर एंजेल है जिसे मलक ताउस कहा जाता है। मयूर एंजेल को दैवीय इच्छाएं पूरा करने वाला माना जाता है। यजीदी ईश्‍वर को इतना ऊपर मानते हैं कि उनकी सीधे उपासना नहीं की जाती। उन्हें सृष्टि का रचयिता तो मानते हैं, लेकिन रखवाला नहीं। हिन्दुओं की तरह ही यजीदियों में जल का महत्व है। धार्मिक परंपराओं में जल से अभिषेक किए जाने की परंपरा है। तिलक लगाते हैं और अपने मंदिर में दीपक जलाते हैं। हिन्दू देतता कार्तिकेय जैसे दिखाई देने वाले देवता की पूजा करते हैं। उनके मंदिर और हिन्दुओं के मंदिर समान नजर आते हैं। पुनर्जन्म को मानते हैं। यजीदी अपने ईश्‍वर की 5 समय प्रार्थना करते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त में सूर्य की ओर मुंह करके प्रार्थना की जाती है। स्वर्ग-नरक की मान्यता भी है। धार्मिक संस्कार कराने वाले विशेषज्ञों की परंपरा है। व्रत, मेले, उत्सव की परंपरा भी है। समाधियां व पूजागृह (मंदिर) भी हैं। इनकी धार्मिक भाषा कुरमांजी है, जो प्राचीन परशियन (ईरान) की शाखा है। पृथ्वी, जल व अग्नि में थूकने को पाप समझते हैं। यजीदी धर्म परिवर्तन नहीं करते। यजीदी के लिए धर्म निकाला सबसे दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ऐसा होने पर उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता। रूस में हिन्दू : एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्रचलित था और उससे भी पहले संगठित रूप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिन्दू धर्म प्रचलित था। वैदिक धर्म का पतन होने के कारण यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का बोलबाला हो गया अर्थात हिन्दू धर्म का पतन हो गया। यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें। इसके बाद रूसी राजा व्लादीमिर ने यह तय कर लिया कि वह और उसकी कियेव रियासत की जनता ईसाई धर्म को ही अपनाएंगे। रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे। बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया। एक हजार वर्ष पूर्व रूस में था हिन्दू धर्म? प्राचीनकाल के रूस में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे, उन्हें तथाकथित विद्वान लोग अब प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं। सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। कोई भी संधि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। प्राचीनकाल में रूस के दो और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग। सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना कहीं इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा नहीं हुआ? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता कहीं हिन्दी का ‘जीव’ ही तो नहीं? ‘जीव’ यानी हर जीवंत आत्मा। रूस में यह जीवन की देवी थी। रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है। प्राचीनकाल में रूस के मध्यभाग को जम्बूद्वीप का इलावर्त कहा जाता था। यहां देवता और दानव लोग रहते थे। कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी सन् का बताया गया। यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। उस काल में यहां आज की आबादी से 10 गुना ज्यादा आबादी में लोग रहते थे। माना जाता है कि रूस में वाइकिंग या स्लाव लोगों के आने से पूर्व शायद वहां भारतीय होंगे या उन पर भारतीयों ने राज किया होगा। महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है। अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है। यह विष्णु की मूर्ति शायद वही मूर्ति है जिसे ललितादित्य ने स्त्री राज्य में बनवाया था। चूंकि स्त्री राज्य को उत्तर कुरु के दक्षिण में कहा गया है तो शायद स्ताराया मैना पहले स्त्री राज्य में हो। खैर...! 2007 को यह विष्णु मूर्ति पाई गई। 7 वर्षों से उत्खनन कर रहे समूह के डॉ. कोजविनका कहना है कि मूर्ति के साथ ही अब तक किए गए उत्खनन में उन्हें प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं। मौजूदा रूस की जगह पहले ग्रैंड डची ऑफ मॉस्को का गठन हुआ। आमतौर से यह माना जाता है कि ईसाई धर्म करीब 1,000 वर्ष पहले रूस के मौजूदा इलाके में फैला। यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रख्यात विद्वान डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार रूसी भाषा के करीब 2,000 शब्द संस्कृत मूल के हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव से भी पहले का यह गांव 1,700 साल पहले आबाद था। अब तक कीव को रूस के सभी शहरों की जन्मस्थली माना जाता रहा है, लेकिन अब यह अवधारणा बदल गई है। ऊल्यानफस्क स्टेट यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विभाग के रीडर डॉ. एलिग्जैंडर कोझेविन ने सरकारी न्यूज चैनल को बाताया कि हम इसे अविश्वनीय मान सकते हैं, लेकिन हमारे पास इस बात के ठोस आधार मौजूद हैं कि मध्यकालीन वोल्गा क्षे‍त्र प्राचीनकालीन रूस की मुख्य भूमि है। डॉ. कोझेविन पिछले साल साल से मैना गांव की खुदाई से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कहा कि वोल्गा की सहायक नदी स्तराया के हर स्क्वैयर मीटर जमीन अपने आप में अनोखी है और पुरातत्व का खजाना मालूम होती है। वानर साम्राज्य का रहस्य : वानर का शाब्दिक अर्थ होता है 'वन में रहने वाला नर।' वन में ऐसे भी नर रहते थे जिनको पूछ निकली हुई थी। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है। वानरों के साम्राज्य की राजधानी किष्किंधा थी। सुग्रीव और बालि इस सम्राज्य के राजा थे। यहां पंपासरोवर नामक एक स्थान है जिसका रामायण में जिक्र मिलता है। 'पंपासरोवर' अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। भारत के बाहर वानर साम्राज्य कहां? सेंट्रल अमेरिका के मोस्कुइटीए (Mosquitia) में शोधकर्ता चार्ल्स लिन्द्बेर्ग ने एक ऐसी जगह की खोज की है जिसका नाम उन्होंने ला स्यूदाद ब्लैंका (La Ciudad Blanca) दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब व्हाइट सिटी (The White City) होता है, जहां के स्थानीय लोग बंदरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं। चार्ल्स का मानना है कि यह वही खो चुकी जगह है जहां कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था। एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले। 1940 में उन्हें इसमें सफलता भी मिली पर उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज एक राज ही बनकर रह गया। अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरू, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। इस सभ्यता में खगोल शास्त्र, गणित और कालचक्र को काफी महत्व दिया जाता था। मैक्सिको इस सभ्यता का गढ़ था। आज भी यहां इस सभ्यता के अनुयायी रहते हैं। यूं तो इस इलाके में ईसा से 10 हजार साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और 1800 साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाक़ों में गांव भी बसने शुरू हो चुके थे। लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई एक हजार साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और 600 साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् 250 से 900 के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन् 900 के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए। अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं‍ कि भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई थीं। अमेरिका के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से हजारों साल पहले पहुंच गई थी। 
 
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कभी हिन्दू संस्कृति से समृद्ध था अमेरिका महाद्वीप

हिन्दू धर्म “धीयते इति धर्मः” यानि “मनुष्य अपनी धारणा जो स्वीकार
करता है वो ही धर्म है” के सिद्धांत पर चलता है | रोम संस्कृति के राजा
के विरुद्ध ईसामसीह ने अल्लाह को परमेश्वर कहा तो राजद्रोह में मृत्युदंड
मिला… इसाइयत को अपनी संख्या बढ़ाना था तो उसने धर्मांतरण को और चर्च आधारित राजनीति और कूटनीति से अनुयायियों की संख्या बढ़ाया क्यों की उसको डर था की संख्या कम रहेगी तो इसाइयत के विरोधी उसका खात्मा कर देंगे | इस्लाम ने हिजरत से ही हथियार थाम लिया और उसे अपनी संख्या बढ़ाने के लिए गुलामों पर अत्याचार कर के और क्रूरता से लोगों को मुसलमान बनाया क्यों की रोम की विशाल सत्ता के विपरीत अरब में छोटी छोटी आबादी और उनके खलीफा होते थे जिन्हें हथियारों से हराया जा सकता था |

हिन्दू धर्म ने कभी किसी को जबरन हिन्दू नहीं बनाया, क्योंकि ये सनातन सभ्यता के ऊपर किसी विरोधियों या शत्रुओं का भय नहीं था की अपनी आबादी बढाओ | इतिहास देखो हमारी संस्कृति ने “पृथ्वी शान्तिः” “अन्तरिक्षम शान्ति” का उद्घोष किया है| अयोध्या” संस्कृत के अयुध्य शब्द से बना है यानि जहाँ कभी युद्ध न हुआ हो | अवध का भी सामान अर्थ है की जहाँ पर कभी
“वध” न हुआ हो | ये अलग बात है की मुग़ल आक्रान्ताओं और लुटेरों ने इसे नरसंहार का सबसे बड़ा अखाडा बना दिया |

हमारे हिन्दू मनीषियों ने अपने संस्कृति को इतना श्रेष्ठ बनाया की पूरा विश्व उसकी ओर आकर्षित हुआ | फाह्यान, ह्वेनसांग और तुम्हारे अलबरूनी जैसे कितने मुल्ले भी यहाँ इस देश की माटी में धन्य होने और मुक्ति पाने आ गये थे | इस्लाम के अभ्युदय के हज़ारों साल पहले पूरा संसार आर्यों ने नाप लिया था| आज युरोप जिसे “navigation” कहता है वो कुछ और नहीं संस्कृत शब्द “नवगतिम” है जिसका अर्थ है नौका संचालन| पूरे विश्व को नौका संचालन का ज्ञान आर्यों ने ही दिया है | भले ही आज हम मुर्ख भारतीय कहते हैं की भारत की खोज “वास्कोडिगामा” ने किया था |

अमेरिका महाद्वीप और हिन्दू धर्म :

अमेरिका के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से हजारों साल पहले पहुंच गई थी इन्ही लाल मनुष्यों के द्वारा यानी की इतिहासकारों के आधार पर महाभारत काल में| सभी अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं की भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई | अमेरिकन महाद्वीप में मक्सिको सबसे पुराना है | मैक्सिको के सबसे आदि धर्म AZTEC के देवता TLALOC हैं और ये AZTEC और कुछ नहीं अपितु संस्कृत का “आस्तिक” ही है और TLALOC, संस्कृत का शब्द त्रिलोक है | मेक्सिको में TLALOC की पूजा का इतिहास AZTEC साम्राज्य के इतिहास से भी १००० साल पुराना है |

मजे की बात यह है की त्रिलोक (TLALOC) के मदिरों को वहां त्रिलोचन (TLALOCAN) कहा जाता है और उनका सबसे महत्वपूर्ण मंदिर “Mount Tlaloc” पर स्थित है यानि हिमालय वासी शिव का त्रिलोचन स्वरुप उसी रूप में वहां पहुंचा | TLALOC को वहां के लोग गुफाओं, झीलों और पर्वतों का वासी मानते हैं और अकाल मृत्यु से मुक्ति का देवता भी | हमारे सनातन संस्कृति में भी शिव मुक्ति दाता हैं |

यदि हम बात करें वहां के मूल भाषा पुरानी नौहाटी की तो उसमे इसका उच्चारण “त्रालोक” से करते हैं | त्रिलोक की एक मूर्ती Templo Mayor (मयूर मंदिर) में आज के वर्तमान मक्सिको सिटी शहर में है | जिसमे त्रिलोक की मूर्ती में मुकुट पर सर्प विराजमान है | यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत घोषित किया है | उसी के साथ माया सभ्यता का भी प्रभाव मक्सिको पर पड़ा जो की हिन्दू संस्कृति से बहुत कुछ आत्मसात कर चुकी थी विशेषकर पंचांग और गणित |

चिली पेरू और बोलीविया में हिन्दू धर्म :

अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने अपनी बस्तियां बनाएँ और कृषि का भी विकास किया | Quechua Pachakutiq “he who shakes the earth” की महान घटना कुर्म पुराण के “कच्छप प्रिष्ठौती” है और वही एक सामान पौराणिक कथा भी | प्रसिद्द थिअहुअन्को के कैलासिय मंदिर “Temple of Kalasasaya” के द्वारपाल विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार सब कुछ हिन्दू संस्कृति की महान गाथा का साक्षी है |

सांप या नाग, हिंदू धर्म के सभी पंथ महत्वपूर्ण है और यहां तक कि अमेरिका में, अभी भी बहुत स्थानों में प्रचलित है जो प्राचीन अमेरिका के व्यापक नाग पंथ और उसके समानता के प्रति समर्पित हैं | यहां तक कि ईसाई धर्म में, यीशु ने बाइबिल में कहा : “तु रहो नागों, और कबूतर के रूप में हानिरहित के रूप में इसलिए बुद्धिमान. “मूसा ने अपने भगवान से निर्देशन में बेशर्म नाग की स्थापना करके लोगों को चंगा किया | रोमन और ग्रीक में प्रचलित शब्द serpent संस्कृत शब्द “सर्प” ही है |प्राचीन हिन्दुओं की पूजा पधतियों ने अमेरिका पर प्रभुत्व किया|

संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की एक ४५वि मिलिट्री इन्फैन्ट्री डिविसन का चिन्ह एक पीले रंग का स्वास्तिक था | नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरुण को चिन्ह अपनान पड़ा |
अमेरिकी महाद्वीप के होपी आदिवासीयों का एक महत्वपूर्ण घटना की गाथा “Saquasohuh” “Day of Purification” (संस्कृत : स्वच्छ होहु) में Blue Star Kachina की घटना में वर्णित ८ प्रमुख चिन्हों में वृष आरूढ़ शिव और नागों से लिपटती धरती का वर्णन है जो हमारे पौराणिक गाथाओं से पूरा पूरा मिलता है | अमेरिकी महाद्वीप के पेमा इंडियन की गाथा हिन्दू गरुण के थंडर बर्ड और क्रेते सिक्कों के चक्रव्यूह की रचना सभी भारतीय प्रवासों की गाथा कह रहे हैं | प्राचीन अमेरिका महाद्वीप के पेमा इंडियन हों या रोमन साम्राज्य (युरोप)में मिलने वाला लोकप्रिय खेल “करेते”Crete (Greek: Κρήτη, Kríti)
या Labyrinth वास्तव में भारत के प्रसिद्द चक्रव्यूह भेदन की कृति है और यही कृति वहां करेते बन गई महाभारत काल से ही चक्रव्यूह भेदन और धनुर्विद्या भारत के लोकप्रिय खेल थे | यूरोप में भी युद्ध के खेलों का बहुत प्रचलन था और चक्रव्यूह भेदन की कला करेते के लोकप्रिय आयोजन होते थे, इसी कारण आज भी मैराथन खेलों के लिए विश्व प्रसिद्द ग्रीस का सबसे
सुन्दर और प्रसिद्द स्थान का नाम “करेते” Crete है और ये शहर अपने खेलों, संगीत और साहित्य के लिए आज भी प्रसिद्ध है| ये शहर यूरोप के सबसे पुराने ज्ञात मानव सभ्यता के लिए जाना जाता है |

गुयाना : दक्षिण अमेरिका के गुयाना में १५० साल पहले उत्तर प्रदेश और बिहार से लोगों का पलायन हुआ था | आज वहां की आबादी के ४०% लोग हिन्दू है और वहां फगुआ और दीपावली राष्ट्रीय त्यौहार घोषित है | भारतीय भाषा में हिंदी भोजपुरी बोली जाती है |

सूरीनाम : इस देश का नाम ही भोजपुरी शब्द सरनाम से सूरीनाम पड़ा जिसका मतलब है प्रसिद्ध | ३० % हिन्दुओं के साथ हिन्दू देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है | गिरमिटिया मजदूरों के समूह में वहां गन्ने के खेतों में काम करने गए हिन्दू आज उन देशों की राजनीति में ऊंचे स्थानों पर हैं और दक्षिण अमेरिका में एक शसक्त पहचान के साथ उभरे हैं |

जमैका : जमैका में हिन्दू दूसरा सबसे बड़ा धर्म है | ये हिन्दू गिरमिटिया मजदूर के रूप में वहां पहुचे और दीवाली देश की राष्ट्रीय छुट्टी है |

त्रिनिदाद एवं टोबैगो : इस देश में हिन्दू ३० % हैं | और हिन्दुओं का राजनीति पर बेहद मजबूत पकड़ है | सनातन धर्म महासभा के माध्यम से हिन्दू धर्म इस देश में सबसे तेजी से मजबूत हो रहा है | फगवा सबसे बड़ा त्यौहार है | वासुदेव पाण्डेय यहां के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और कमला प्रसाद बिस्वेस्वर देश की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं | और रोचक बात ये है की मशहूर रैपर और गायिका निकी मीनाज इसी देश की एक हिन्दू ब्राह्मण की बेटी हैं जिनका वास्तविक नाम ओनिका तान्या महाराज है|

प्रसिद्ध पिपिल भाषा जो मेक्सिको में प्रारंभ हुई वो हिन्दुस्तानी नाविकों की बस्तियों में प्रारम्भ हुआ और वहां इसे आज भी नाविक (nawat) भाषा कहते है इसी प्रकार nahua भी संस्कृत के नाविक से निकली है | पूरा मेसो अमेरिकन सभ्यता हिन्दू धर्म से भरी पड़ी है | यहाँ तक की आज की स्पेनिश भाषा जो मेक्सिको और अमेरिका की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है वह भी हिंदी-यूरोपीय भाषा परिवार है | हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार (Indo-European family of languages) दुनिया का सबसे बड़ा भाषा परिवार (यानी कि सम्बन्धित भाषाओं का समूह) हैं । हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा परिवार में विश्व की सैंकड़ों भाषाएं और बोलियां सम्मिलित हैं ।

आधुनिक हिन्द यूरोपीय भाषाओं में से कुछ हैं : हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी, जर्मन, पुर्तगाली, स्पैनिश, डच, फ़ारसी, बांग्ला, पंजाबी, रूसी, इत्यादि । ये सभी भाषाएँ एक ही आदिम भाषा से निकली है | स्पेनिश का बोय्नेस दियास में दियास हमारा “दिवस” है जिसका अर्थ है गुड मार्निंग |

आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (Proto-Indo-European language), जो संस्कृत से काफ़ी मिलती-जुलती थी, जैसे कि वो संस्कृत का ही आदिम रूप हो ।
Annotata : अन्नदाता
Banff : वाष्प
Bahia : बाहु (हाथ)
Cuika : कविता
Chocaya : शोकः
Chaacâ : चक्र देवी (माया सभ्यता)
Huascar : भास्कर (सूर्य)
Havana : हवन
Wanaco : वन वासी (जंगली)
Jaguarâ : व्याघ्र
Montezuma/Moktesuma : मुक्ति कुसुमः
Matawan : मात्री वन
Nazca/Naska : नक्षत्र
Papeetee : पाप इति
Palenque : पालक (मंदिर के देवता)

इस तरह के बहुत शब्द हैं जो आर्यों की वैदिक परम्पराओं से वहां तक पहुंचे
है |

मनुष (संस्कृत) >> menos (यूनानी) >> mens(लैटिन) >> men (अंग्रेजी)|
आज पूरा विश्व खुद को मनुष्य यानि मनु की संतान कहता है | 
 
यही तो सनातन का गौरव है 
-  मोहित मलिक के साथ.



 
 

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