अल्पसंख्यक निर्धारण का सही नियम बनाया जाए

बदले अल्पसंख्यक निर्धारण का पैमाना
अल्पसंख्यक


सर्वोच्च न्यायालय में देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की गुहार लगाई गई है 

*यह मांग की गई है कि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया जाए* केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकारें राज्य की सीमा में धार्मिक और भाषाई आधार पर वैसे ही अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकती हैं

 *जैसे कर्नाटक ने* उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, हिंदी, कोंकणी, मराठी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा अधिसूचित किया है तथा महाराष्ट्र ने यहूदियों को ।

भारत के संविधान में अल्पसंख्यक कौन होगा *इसकी व्याख्या नहीं की गई थी* सर्वप्रथम केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1992 बनाया *उसने अक्टूबर 1993 में* मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया

 *वर्ष 2014 में इसमें जैन को भी जोड़ा गया*।

प्रत्येक 10 वर्ष पर होने वाली जनगणना में वर्ष 1961 से हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और जैन की गणना प्रकाशित होती आ रही है *वर्ष 1951 की जनगणना में पारसी और यहूदी की भी जनगणना हुई थी* पर वर्ष 1961 के बाद उन्हें *अन्य* के कालम में डाल दिया गया

 *नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है*।

जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और लक्षद्वीप में कुल जनसंख्या में हिंदुओं का प्रतिशत 50 से कम है *लद्दाख में हिंदू मात्र 12.11 प्रतिशत ही हैं* संविधान के अनुच्छेद-29 में अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण की बात कही गई है *जिसके अनुसार 'भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी या नागरिकों के किसी विभाग को अपनी भाषा*, *लिपि* या *संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा*; वही संविधान के अनुच्छेद-30 में कहा गया है *कि 'अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा'*।

अगर राज्य और जिला स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान की जाए *तो वर्ष 2011 की जनगणना के में देश के कुल 640 जिलों में से 110 जिले ऐसे हैं* जहां कुल जनसंख्या में हिंदू जनसंख्या का प्रतिशत 50% से कम है *यानि वे अल्पसंख्यक हैं*।

उपरोक्त 9 राज्यों के अलावा *हिमाचल के* लाहुल, स्पीति, *हरियाणा के* मेवात, *उत्तर प्रदेश के* रामपुर, *बिहार के* किशनगंज, *सिक्किम के* उत्तरी सिक्किम, *असम के* धुबरी, ग्वालपाड़ा, बारपेटा, मोरीगांव, नवगांव, करीमगंज, हैलाकांडी, बोंगाईगांव एवं दरांग *बंगाल के* मालदा, मुर्शिदाबाद एवं उत्तर दिनाजपुर, *झारखंड के* पाकुड़, लोहरदगा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा एवं पश्चिमी सिंहभूम, *तमिलनाडु के* कन्याकुमारी और *केरल के* वायनाड, मल्लापुरम, एर्नाकुलम, इड्डुकी एवं कोट्टायम *जिलों में हिंदुओं की आबादी 50% से कम है*।

ऐसे में समय की मांग है कि अल्पसंख्यक की पहचान राज्य जिला नहीं *बल्कि प्रखंड*/ *सबडिवीजन* और *सर्किल स्तर पर की जाए* क्योंकि देश के अनेक ऐसे जिले हैं *जहां जिला स्तर पर भले हिंदू बहुमत में हैं पर इससे नीचे बड़े भूभाग में वे अल्पमत में है* और *असुरक्षित हैं* उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में छह सबडिवीजन है *लेकिन छह में से चार* ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद, संभल और बिलारी में वे अल्पमत में हैं।

अनुच्छेद-29 एवं 30 में भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण के लिए शिक्षण संस्थान के संचालन की बात कही गई थी *पर बाद में केंद्र और राज्य सरकारें तुष्टीकरण के तहत अल्पसंख्यक मंत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग गठित करती चली गई* तुष्टीकरण का वीभत्स रूप तब सामने आया जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से घोषित किया *कि संसाधनों पर पहला अधिकार 'अल्पसंख्यकों' का है* सर्वोच्च न्यायालय में दायर केंद्र सरकार के हलफनामे में भी राज्य सरकारों को 'भाषाई' अल्पसंख्यक घोषित करने की बात कही गई है *जबकि अल्पसंख्यक नाम लेकर पंथिक/ धार्मिक अल्पसंख्यक की बात की जाती है*।

सवाल है कि क्या मुसलमानों या ईसाइयों की कोई अपनी भाषा या लिपि है *जिसके संरक्षण की आवश्यकता है?* कई बार उर्दू को मुसलमानों से और ईसाइयों को अंग्रेजी से जोड़कर देखा जाता है *जो कि पूर्णता गलत है*।

मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में मुस्लिम आबादी 68.31% है *पर उर्दू को अपनी मातृभाषा लिखाने वाले मात्र 0.23% ही हैं*
 असम में मुस्लिम जनसंख्या 34.22% है *पर जिन्होंने मातृभाषा उर्दू लिखवाई है उनका प्रतिशत मात्र 0.06 है* यानि संविधान के अनुच्छेद-29 एवं 30 में जिस भाषा और लिपि को अल्पसंख्यक मानकर संरक्षण देने की बात है 
*उसमें मुसलमान नहीं आते* क्योंकि वे जिस राज्य में रहते हैं 
*वहां के लोगों की मातृभाषा को ही अपनी मातृभाषा मानते हैं*।

कुल मिलाकर देश में *कौन-कहां अल्पसंख्यक है?* इसकी घोषणा और उनकी सुरक्षा तथा विकास का विचार सतही स्तर पर न करके सूक्ष्म स्तर पर होना चाहिए *साथ ही अनुच्छेद 29 एवं 30 की आड़ में शिक्षा के नाम पर जो विषवमन और धंधा किया जा रहा है* उस पर भी कड़ाई से रोक लगाई जानी चाहिए !!!!!!!!!

*लेखक हरेंद्र प्रताप* : *बिहार विधान*
*परिषद के पूर्व सदस्य हैं* — *साभार*
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अल्पसंख्यक समुदाय के निर्धारण का प्रश्न
अनूप भटनागर
पंजाब, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में हिन्दुओं को उनकी आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिलाने की मांग धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है। तर्क है कि अल्पसंख्यकों के लिये बनने वाली योजनाओं के लाभ से इन राज्यों में अल्पंख्यक होने के बावजूद हिन्दू समुदाय वंचित है जबकि इन राज्यों में यह लाभ बहुसंख्यक आबादी उठा रही है। सवाल उठ रहा है कि ‘अल्पसंख्यक’ समुदाय के निर्धारण का आधार राष्ट्रीय स्तर की आबादी होनी चाहिए या फिर राज्यों में विभिन्न समुदायों की आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक परिभाषित होने चाहिए। साथ ही अल्पसंख्यक परिभाषित करने की प्रक्रिया के लिये समुचित दिशा निर्देश तैयार करने पर भी जोर दिया जा रहा है। कुछ राज्यों में मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकार दिये जाने पर सवाल उठाये जा रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा चुनिन्दा राज्यों में आबादी के आधार पर हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किये जाने की वजह से इनमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों को गैरकानूनी और मनमाने तरीके से बहुसंख्यक आबादी हड़प रही है। शायद यही वजह है कि आबादी के आधार पर ‘अल्पसंख्यक’ समुदाय निर्धारित करने का मामला देश की शीर्ष अदालत में पहुंच गया है। न्यायालय में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून, 1992 की धारा दो की संवैधानिकता को चुनौती दी गयी है। इस कानून के तहत ही मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय को उनकी आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा प्राप्त है। इनके अलावा, सरकार ने जनवरी, 2014 में जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान किया था क्योंकि 2001 की जनगणना के अनुसार उनकी आबादी 0.4 प्रतिशत है और छत्तीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है। शीर्ष अदालत में पहुंचे इस मामले में पंजाब और जम्मू-कश्मीर सहित आठ राज्यों में हिन्दू समुदाय को अल्पसंख्क का दर्जा देने का अनुरोध करते हुए दावा किया गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार इन राज्यों में हिन्दुओं की आबादी कम हुई है। न्यायालय में दायर याचिका में दावा किया गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में हिन्दुओं की आबादी 38.40 प्रतिशत और जम्मू-कश्मीर में 28.44 प्रतिशत है लेकिन इन राज्यों में उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय को मिलने वाले लाभ और सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है जबकि बहुसंख्यक आबादी को ये लाभ मिल रहे हैं। याचिका के अनुसार लक्षद्वीप में 2.5 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 प्रतिशत, नगालैंड में 8.75 प्रतिशत, मेघालय में 11.53 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत और मणिपुर में 31.39 प्रतिशत हिन्दू हैं लेकिन यहां भी हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों को प्राप्त सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। इसके विपरीत, मिजोरम, मेघालय और नगालैंड में ईसाई समुदाय बहुसंख्यक है जबकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी इस समुदाय की काफी बड़ी आबादी है लेकिन इन्हें अल्पसंख्यक माना जा रहा है। इसी तरह पंजाब, दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में सिख समुदाय को अल्पसंख्यक माना गया है। भाजपा के नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदाय बहुमत में है जबकि असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार में इस समुदाय की काफी बड़ी आबादी है लेकिन इन्हें यहां अल्पसंख्यक ही माना जाता है। इन राज्यों में हिन्दुओं की आबादी के आधार पर ही अल्पसंख्यक आयोग कानून के तहत 23 अक्तूबर, 1993 की अधिसूचना को चुनौती दी गयी है। साथ ही इस अधिसूचना को समता, न्याय और पंथ निरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए दावा किया गया है कि इससे संविधान में प्रदत्त स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और आजीविका जैसे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। यह मामला करीब छह महीने पहले भी शीर्ष अदालत में उठा था। शीर्ष अदालत ने उस समय याचिकाकर्ता से कहा था कि उसे अल्पसंख्यक आयोग के पास जाना होगा। साथ ही न्यायालय ने आयोग को ऐसे प्रतिवेदन पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। उपाध्याय के अनुसार गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग से कोई जवाब नहीं मिलने की वजह से वह फिर से शीर्ष अदालत आये हैं। अल्पसंख्यक आयोग ने भी दिसंबर, 2017 में उन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की संभावनाओं पर विचार के लिये एक समिति गठित की थी जहां उनकी आबादी 50 प्रतिशत से कम है। लगता है कि इस समिति ने अपनी रिपोर्ट आयोग को नहीं सौंपी। इसका संकेत याचिका में किये गये दावे से मिलता है।
 

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