मुख्यमंत्री गहलोत साहब ,कुछ तो अन्दर ही अन्दर पक रहा है ! Gehlot Sachin

 Something is cooking inside, Chief Minister Gehlot sahib!

 कुछ तो अन्दर ही अन्दर पक रहा है,मुख्यमंत्री गहलोत साहब !


कुछ तो अन्दर ही अन्दर पक रहा है,मुख्यमंत्री गहलोत साहब !

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आपको भाग्यवान बताते हुये कहा है कि अफवाहों पर ध्यान न दें। मुख्यमंत्री में ही रहने वाला हूं। निश्चित ही गहलोत भाग्यवान हैं तीनों बार वे किसी अन्य कांग्रेसी को ही पछाड़ कर राजस्थान के मुख्यमंत्री बनें है। 

राजस्थान में प्रमुख हैसियत रखनें और दिल्ली की सही खबरें देनें के लिये प्रसिद्ध अखबार राष्ट्रदूत कह रहा है कि गहलोत युग समाप्त और मुख्यमंत्री गहलोत कह रहे हैं कि मेरा इस्तीफा तो हमेशा ही सोनिया गांधी जी के पास रहता है।

 




यूं तो कांग्रेस मुक्त भारत बनानें में भाजपा से ज्यादा स्वयं कांग्रेस का ही योगदान है, सत्य, न्याय, जनमत और बहूमत के विरूद्ध चलने का कांग्रेस का साहस आश्चर्यजनक है।

एक कहानी बहुत सुनी जाती है कि मजबूर मां, जिद्दी बेटा और सब कुछ तबाह । कुछ वर्षों से कांग्रेस में यही देखनें को मिल रहा है। किसान आन्दोलन के चलते पंजाब में कांग्रेस की कैप्टन अमरिन्दर सिंह सरकार लौट रही थी। कांग्रेस के पक्ष में शानदार वातावरण था कि अचानक जिद् उभरी और सब कुछ तहस नहस कर दिया गया । कांग्रेस और कैप्टन कहीं के नहीं रहे । सोनिया जी एक मजबूर मां की तरह कुछ नहीं कर पाईं और पंजाब हाथ से निकल गया। आप पार्टी की बल्ले बल्ले हो गई। यही प्रयोग दिल्ली में भी हुआ था, जहा कांग्रेस को वापसी करने के हर प्रयास में बिग जीरो मिलता है।

राजस्थान में अशोक गहलोत रहें या जायें, परिणाम भाजपा के पक्ष में ही जाना है क्यों कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व जनता की पहली पशंद है। मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन नें गत लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें जीतीं थीं। अगला विधानसभा चुनाव भी वह जीतने जा रही है।

पिछले कुछ दिनों में अशोक गहलोत - सोनिया गांधी एवं सचिन पायलेट -सोनिया गांधी की मुलाकातें हुई है। जिससे राजस्थान की राजनीति में उबाल आ गया है।
 

मुख्यमंत्री गहलोत ने राजस्थान में कांग्रेस के सियासी संकट को दो साल बाद पुनः उठा कर सचिन को एक्सपोज किया है। दिल्ली में सचिन पायलट की सोनिया गांधी से मुलाक़ात के चार घंटे बाद ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में एक बार फिर से उस सियासी बग़ावत की चर्चा छेड़ दी है। इसके मायने तो हैं । इसीलिये यह माना जा रहा है कि गहलोत की जगह सचिन को लाया जा रहा है।

कांग्रेस में नई पीढ़ी गहलोत विरोधी है, जिन्होनें पंजाब में अमरिन्दर सिंह को डिस्टर्ब किया वे ही गहलोत को डिस्टर्ब करना चाहते हैं। चुनाव के ठीक एक - सवा साल पहले यही प्रयोग भाजपा करे तो फायदा होगा और कांग्रेस करे तो नुकसान । क्यों कि समस्या प्रांतीय नेतृत्व की नहीं है, समस्या है पार्टी के मूल नेतृत्व एवं अनके विचारों तथा कार्यशैली की । जहां कांग्रेस के पास तीन जीरो हैं । वो होचपोच है । अनिर्णय की स्थिती में है। बहूमत के विरूद्ध है।

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