राष्ट्रहित सर्वोपरी Rashtrhit Sarvoparii
नेतृत्व की एक खूबसूरत कहानी.. भारतीय राजनीति के गलियारे से
1991 में भारत दिवालिया होने की कगार पर था।
तत्कालीन कांग्रेसी प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को बुलाया और पूछा कि खजाने में कितना पैसा है।
मनमोहन सिंह ने कहा, बहुत ही कम है। देश को करीब 09 दिन ही चलाने में सक्षम है।
नरसिम्हा राव चिंतीत और परेशान हो गए और पूछा कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए?
मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के रुपये के मूल्यों (वैल्यू) में 20% की गिरावट होनी चाहिए।
नरसिम्हा जी ने कहा, ठीक है कैबिनेट की बैठक बुलाओ और हम मंजूरी मांगेंगे।
जिस पर मनमोहन जी ने कहा, अगर हम कैबिनेट की बैठक की व्यवस्था करते हैं, तो हम ये कड़े फैसले नहीं ले पाएंगे। सभी मंत्री वोट बैंक को संबोधित करेंगे और इसके लिए सहमत नहीं होंगे। इसलिए प्रधानमंत्री के तौर पर आपको ही यह अहम फैसला लेना होगा।
नरसिम्हा जी कुछ देर को रुके और मनमोहन जी को जाने के लिए कहा। मनमोहन जी अपने कार्यालय चले गए। करीब 20 मिनट बाद पीएम के सचिव मनमोहन जी के पास गए और उन्हें एक पत्र सौंपा. उस पत्र में नरसिम्हा राव जी ने लिखा था, "ठीक है, हो गया"!
मनमोहन जी चौंक गए और आश्चर्य में पड़ गए, बिना कैबिनेट के मंत्रियों की मंजूरी लिए प्रधानमंत्री 'हां' कहने की हिम्मत कैसे जुटा पाए?
इससे कांग्रेस के कई बड़े नेता नाराज हो सकते हैं।
वे फिर से पीएम कार्यालय पहुंचे और पूछा कि इन 20 मिनटों में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण आपने "हां" कह दिया?
नरसिम्हा राव जी ने कहा, यह बहुत आसान था। मैंने अभी-अभी विपक्ष के नेता अटल बिहारी बाजपेयी जी से बात की और उन्होंने हाँ कह दिया।
मनमोहन जी ने पूछा, इसका मतलब आप अपने कैबिनेट से ज्यादा अटल जी को मानते हैं?
नरसिम्हा जी ने कहा, मैं जानता हूं कि वे ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो देश हित में ही बोलेंगे।
दिवालियेपन से लड़ने के इस कठोर निर्णय की घोषणा के बाद, अटल जी के नेतृत्व वाली विपक्षी टीम ने कभी भी विरोध आंदोलन का आयोजन नहीं किया, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार का समर्थन किया।
आज हमें ऐसी सौम्य और रचनात्मक राजनीति को वापस लाना चाहिए।
राव जी की बुद्धिमता और अटल जी की देशभक्ति।
याद रखें ... "राष्ट्र" किसी भी राजनीतिक दल से ऊपर है।
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